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Updated: 20 मार्च, 2021 06:47 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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देश की 'आर्थिक राजधानी' का नाम भले ही बॉम्बे से बंबई और अब मुंबई हो गया हो, उसका चेहरा बदल गया हो, लेकिन 'चाल' और 'चरित्र' अभी भी पहले ही जैसा है. मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) के घर 'एंटीलिया' (Antilia Case) के पास लावारिस स्कार्पियो में विस्फोटक मिलने के बाद एक बार फिर पुलिस, अपराधियों, नेताओं और उद्योगपतियों का नेक्सस सामने आ गया, जो कभी 80 और 90 के दशक में दिखता था. ऐसी ही कहानी को फिल्म 'मुंबई सागा' (Mumbai Saga) के जरिए निर्देशक संजय गुप्ता ने रुपहले पर्दे पर उतारा है.

यह कहानी है उस वक्त की, जब मुंबई 'बॉम्बे' थी. शहर की सूरत बदल रही थी. मिल बंद हो रहे थे. मॉल खुल रहे थे. अंडरवर्ल्ड के कई गैंग एक साथ शहर में पल रहे थे, बढ़ रहे थे और एक-दूसरे को मार रहे थे. पुलिस संगठित अपराध को खत्म करने के लिए एनकाउंटर किए जा रही थी. इसमें गैंगस्टर अर्मत्य राव (जॉन अब्राहम) है. गुंडा गायतोंडे (अमोल गुप्ते) है. एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस इंस्पेक्टर विजय सावरकर (इमरान हाशमी) है. सफेदपोश नेता भाऊ (महेश मांजरेकर) है. बिजनेसमैन (समीर सोनी) है. पूरी फिल्म इन्हीं पात्रों के इर्द-गिर्द घूमती है.

1-650_032021022755.jpgफिल्म मुंबई सागा में इमरान हाशमी पुलिस इंस्पेक्टर और जॉन अब्राहम गैंगस्टर की भूमिका में हैं.फिल्म मुंबई सागा में इमरान हाशमी, जॉन अब्राहम गैंगस्टर के अलावा काजल अग्रवाल, सुनील शेट्टी, जैकी श्रॉफ, प्रतीक बब्बर, गुलशन ग्रोवर, अंजना सुखानी, समीर सोनी, रोहित रॉय और अमोल गुप्ते जैसे कलाकारों की भूमिका भी अहम है. ये कलाकार गैंगस्टर्स, पॉलिटिशियन और पुलिसकर्मियों के रोल में हैं. शूट आउट एट लोखंडवाला और शूट आउट एट वडाला जैसी फिल्मों का निर्देशन करने वाले संजय गुप्ता ने उस दौर के नेक्सस को फिल्म के जरिए पेश करने की पूरी कोशिश की है. संजय एक बार फिर वही गैंगस्टर ड्रामा लेकर आए हैं, जिसमें गैंगस्टर बनाम पुलिस का खेल है.

फिल्म की कहानी (Mumbai Saga Film Synopsis)

फड़कती भुजाओं, धड़कती टोलियों और बरसती गोलियों के बीच इस फिल्म की कहानी शुरू होती है बॉम्बे की एक सब्जी मार्केट से, जहां एक हफ्ता वसूली के चक्कर में गुंडे एक लड़के अर्जुन राव (प्रतीक बब्बर) की बुरी तरह पिटाई कर देते हैं. अर्जुन के बड़े भाई अमर्त्य राव (जॉन अब्राहम) को जैसे ही ये बात पता चलती है, वो आगबबूला हो जाता है. अपने इलाके में हफ्ता वसूली बंद कराने की कसम खाता है. एक सीधा-सादा इंसान हफ्ता वसूली बंद कराने के चक्कर में खुद एक गैंगस्टर बन जाता है. उस दौर के बॉम्बे में गैंगस्टरों का बोलबाला था. दुकानदारों से हफ़्ता वसूली के दृश्य आम थे.

ऐसे में अमर्त्य राव उनके ख़िलाफ़ खड़ा होता है. अन्याय की इस लड़ाई में अपनी ताकत से ख़ौफ़ का दूसरा नाम बन जाता है. इसी बीच उसे मुरली शंकर (सुनील शेट्टी), ड्रग डीलर नारी खान (गुलशन ग्रोवर) और एक नेता भाऊ (महेश मांजरेकर) से आगे बढ़ने में मदद मिलती है. यहां भाऊ का किरदार शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के जीवन से प्रेरित लगता है. एक दिन भाऊ के कहने पर अमर्त्य एक बिजनेसमैन (समीर सोनी) को गोली मार देता है. उस बिजनेसमैन की पत्नी (अंजना सुखानी) अपने पति की हत्या करने वाले को पकड़ने के लिए 10 करोड़ के इनाम का ऐलान कर देती है.

इसके बाद एंट्री होती है एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस इंस्पेक्टर विजय सावरकर (इमरान हाशमी) की, जिसे मर्डर का ये केस सौंप दिया जाता है. इसके बाद शुरू होता है पुलिस और गैंगस्टर के बीच चूहे-बिल्ली का खेल. पुलिस इंस्पेक्टर अपनी फोर्स के साथ मुंबई में स्थापित गुंडाराज को खत्म करने लगता है. इसी बीच अमर्त्य राव और विजय सावरकर की मुलाकात एक टैक्सी में होती है. इसके आगे क्या होता है? क्या विजय सावरकर गैंगस्टर अमर्त्य राव को मार पाता है? क्या भाऊ अमर्त्य राव को बचा लेता है? ये सब जानने के लिए तो आपको फिल्म देखनी होगी. वैसे बॉलीवुड के हल्क जॉन एक बार फिर फुल एक्शन अवतार में हैं. जमकर मारधाड़ कर रहे हैं. रही-सही कसर डायलॉगबाज़ी पूरी कर रही है. इंस्पेक्टर के रोल में इमरान गजब ढा रहे हैं.

फिल्म की कहानी 'नई बोतल में पुरानी शराब' जैसी है. लेकिन एक्शन और डायलॉग ऐसे हैं कि दर्शक पर्दे से नजर नहीं हटा पाएंगे. जब टैक्सी ड्राइवर बनकर अमर्त्य राव पुलिस इंस्पेक्टर विजय सावरकर के पास जाता है, तो कहता है, 'बस हाथ मिला लीजिए साहब, जिस दिन किस्मत ने आपका साथ दिया और आपने उस प्लेयर को मारा तब मैं बोल सकूंगा, मैंने मौत से हाथ मिलाया था.' इसी तरह अमर्त्य कहता है, 'गायतोंडे आज से तेरा किस्सा खत्म और मेरी कहानी शुरू'. 'बंदूक को केवल शौक के लिए रखता हूं, डराने के लिए नाम ही काफी है, अमर्त्य राव.' पुलिस इंस्पेक्टर को जब गैंगस्टर्स का केस दिया जाता है, तो वह कहता है, 'सवाल ये नहीं कि अमर्त्य मरेगा, सवाल ये है कि 10 करोड़ रुपए का मैं करुंगा क्या?'

फिल्म का रिव्यू (Mumbai Saga Film Review)

कोरोना काल में घर बैठे बोर हो गए लोगों के लिए फिल्म मुंबई सागा एक अलग तरह का एक्सपीरिएंस कराएगी. जॉन अब्राहम और इमराम हाशमी के फैंस के लिए तो ये फिल्म है ही, लेकिन एक्शन पसंद करने वालों को भी बहुत पसंद आएगी. ऊपर से यो यो हनी सिंह का गाना, मनोरंजन में तड़का लगा देता है. हां, फिल्म की कहानी पुरानी है, ऐसा लगेगा कि देखी-देखी सी लग रही है, लेकिन इसकी प्रासंगिकता पुरानी नहीं है. हाल में हुए एंटीलिया केस पर नजर डालेंगे को आपको समझ में आ जाएगा कि दौर चाहे जो भी हो, लेकिन 'कथा' (Saga) आज के मुंबई की ही है. फिल्म औसत से अधिक अच्छी है.

तरण आदर्श: एक्शन पैक्ड एंटरटेनर फिल्म

मशहूर फिल्म समीक्षक तरण आदर्श ने फिल्म मुंबई सागा कि तारीफ करते हुए लिखा है, 'मुंबई सागा एक्शन पैक्ड फिल्म है, जिसमें जबरदस्त डायलॉग्स हैं. जॉन अब्राहम ने कमाल का काम किया है. इमरान हाशमी ने धांसू परफॉर्मेंस दी है. महेश मांजरेकर और अमोल गुप्ते ने भी अच्छा काम किया है. यह एक मास एंटरटेनर है. इस फिल्म का फर्स्ट हाफ धारदार, सेकेंड हाफ अच्छा है.' तरण आदर्श ने फिल्म को साढ़े तीन स्टार रेटिंग दी है.

अनुपमा चोपड़ा: सच्ची घटनाओं से प्रेरित

फिल्म क्रिटिक अनुपमा चोपड़ा लिखती हैं, 'मुंबई सागा स्पष्ट रूप से सच्ची घटनाओं से प्रेरित है. मुझे लगता है कि यह एक दमदार कहानी है जिसमें सिलसिलेवार तरीके से यह बताया गया है कि बंबई से मुंबई बनने के दौरान इस शहर ने क्या खोया और क्या पाया. हालांकि, संजय गुप्ता इसमें दिलचस्पी नहीं रखते हैं. उनको तो अपराधियों का महिमामंडन करना है. आज थिएटर में जाकर फिल्म मुंबई सागा देख सकते हैं. मास्क पहनना न भूलें!'

कोमल नाहटा: एक अच्छी मसाला फिल्म

फिल्म इंडस्टी के जाने-माने ट्रेड एक्सपर्ट कोमल नाहटा लिखते हैं, 'कुल मिलाकर, मुंबई सागा जनता के लिए एक अच्छी मसाला फिल्म है, लेकिन यह क्लास और फैमली आडिएंस के लिए सीमित अपील करता है. फिल्म के शीर्षक में 'सागा' शब्द खटकता है. क्योंकि सागा आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला अंग्रेजी शब्द नहीं है. इसकी जगह 'कथा' या कहानी शब्द इस्तेमाल किया जा सकता था. ऐसा करना दर्शकों के लिए अधिक प्रासंगिक होता.

पंकज शुक्ल: संजय के लिए खतरे की घंटी

फिल्म पत्रकार पंकज शुक्ल का कहना है कि जॉन अब्राहम की फिल्म में इमरान हाशमी ने कमाल का काम किया है, लेकिन संजय गुप्ता ने अपने लिए खतरे की घंटी बजा दी है. वह लिखते हैं, 'फिल्म मुंबई सागा उस खांचे का सिनेमा है जिसमें कभी धर्मेंद्र की 'जलजला', 'हुकूमत', 'लोहा' जैसी फिल्में शामिल होती रही है. कहानी कुछ नहीं. शोर ज्यादा है. कानों में रुई लगाने की नौबत आ सकती है. बैकग्राउंड म्यूजिक भी शोर से ज्यादा कुछ नहीं बन पाया है.

श्वेतांक शेखर: एक्सट्रा-ऑर्डिनरी फिल्म नहीं है

दी लल्लनटॉप में श्वेतांक शेखर लिखते हैं, 'मुंबई सागा बहुत एक्सट्रा-ऑर्डिनरी फिल्म नहीं है. मगर इसका थिएटर एक्सपीरियंस कमाल का है. अगर आप मार-काट और बंदूकों से लैस एक्शन फिल्म देखने के शौकीन हैं, तो जाइए सिनेमा देखिए. अगर लंबे समय से किसी ढंग की फिल्म का इंतज़ार कर रहे हैं, तो हम सिर्फ इतना कहेंगे कि आपका ये इंतज़ार इस फिल्म पर खत्म नहीं होता. मुंबई सागा संजय गुप्ता की पिछली फिल्मों से कुछ खास अलग नहीं है.'

Mumbai Saga Trailer...

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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