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Updated: 15 मार्च, 2023 07:50 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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बॉलीवुड एक्ट्रेस रानी मुखर्जी की नई फिल्म 'मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे' 17 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है. इस फिल्म की कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है, जिसमें एक भारतीय मां नार्वे के एक फोस्टर केयर में कथित रूप से बंधक बनाए गए अपने दो बच्चों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ती है. इस भारतीय मां का नाम सागरिका भट्टाचार्य है, जिनका किरदार रानी मुखर्जी ने निभाया है. सागरिका ने अपने बच्चों के लिए लड़ी गई अपनी लड़ाई पर एक आत्मकथा लिखी है, जिसका नाम 'द जर्नी ऑफ ए मदर' है. फिल्म की पटकथा इसी आत्मकथा से प्रेरित है. फिल्म में रानी के साथ अनिर्बान भट्टाचार्य, जिम सरभ और नीना गुप्ता जैसे कलाकार अहम रोल में हैं. फिल्म का निर्देशन आशिमा छिब्बर ने किया है. फिल्म का प्री रिलीज शो देखने वाले लोग इसकी जमकर तारीफ कर रहे हैं. इसकी कहानी से लेकर कलाकारों के अभिनय तक को मजबूत पक्ष बताया जा रहा है.

फिल्म 'मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे' की वजह पेश से सॉफ्टवेयर इंजीनियर सागरिका भट्टाचार्य सुर्खियों में हैं. हर कोई उनके संघर्ष की दास्तान को जानना चाह रहा है. लोगों को इस बात में दिलचस्पी है कि कैसे एक मां की ममता के आगे किसी देश को अपना कानून बदलना पड़ता है, कैसे एक मां जरूरत पड़ने पर अपने बच्चों के लिए शेरनी बन जाती है, बिना अपने नुकसान की परवाह किए बिना किसी भी परिस्थिति से लड़ जाती है. वाकई सागरिका की कहानी दिलचस्प है. विदेश में जाकर नौकरी करना और वहां सुखी जीवन जीने की तमन्ना ज्यादातर भारतीयों की रहती है. यही वजह है कि कई मां-बाप विदेश में सेटल हो चुके या होने वाले लड़के से अपनी लड़की की शादी रचाते हैं. सागरिका के साथ भी कुछ ऐसा हुआ. साल 2007 में उनकी शादी अनुरुप भट्टाचार्य से हुई. अनुरुप पेशे से भूभौतिकीविद् हैं. इसी बीच नार्वे में उनकी जॉब लग गई. कपल ने वहां जाकर सेटल होने का फैसला किया.

650x400_031523032904.jpgरानी मुखर्जी की फिल्म 'मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे' 17 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है.

वेस्ट बंगाल की राजधानी कोलकाता के बाहरी क्षेत्र के रहने वाले अनुरुप और सागरिका नार्वे पहुंच गए. दोनों पहली बार विदेशी धरती पर थे. वहां के तौर-तरीकों और कानून से अनजान थे. साल 2008 के अंत तक सागरिका एक बच्चे अभिज्ञान की मां बन गई. लेकिन बहुत जल्द उनको पता चल गया कि उनका बच्चा सामान्य नहीं है. उसमें ऑटिज्म के लक्षण दिखने शुरू हो गए थे. किसी भी मां-बाप के लिए ये किसी त्रासदी से कम नहीं होता है कि उसका बच्चा इस तरह की लाइलाज बीमारी का शिकार हो जाए. दोनों बच्चे की देखभाल में लग गए. साल 2010 में सागरिका एक बार फिर गर्भवती हो गई. इस बार उसने एक बच्ची ऐश्वर्या को जन्म दिया. दोनों बच्चों के उम्र में दो साल का अंतर था. इसलिए दोनों की एक साथ देखभाल करना उनके लिए चुनौती बन गई. इधर अभिज्ञान की बीमारी गंभीर हो गई थी. नाराज होने पर वो अक्सर अपना सिर जमीन पर पटकने लगता था.

बच्चे को खिलाना, उसके साथ सोना, क्या ये कानून का उल्लंघन है?

अभिज्ञान का ये व्यवहार सागरिका को परेशान कर देता था. यही वजह है कि वो गुस्से में उसे कई बार थप्पड़ भी मार देती थी. इसके अलावा भारतीय परंपरा के अनुसार वो अपने बच्चों को अपने हाथ से ही खाना खिलाती थी. बच्चों के साथ एक बिस्तर पर ही सोती थी. उसे क्या पता कि वो जिस देश में रह रही है, उसका कानून उसे इस बात की इजाजत नहीं देता है. नॉर्वे को एक बहुत ही सख्त चाइल्ड केयर नियमों और विवादास्पद मामलों के एक लंबे इतिहास के लिए जाना जाता है. यह देश में सांस्कृतिक मतभेदों के बावजूद कड़े नियमों को लागू करता है. यदि कोई कपल वहां के नियमों के अनुसार अपने बच्चों की देखभाल नहीं कर पाता है, तो वहां की सरकार कानून के अनुसार उनके बच्चों की कस्टडी खुद लेकर उन्हें चाइल्ड वेलफेयर सर्विस टीम को सौंप देती है. चाइल्ड वेलफेयर टीम ऐसे बच्चों को तब तक अपनी कस्टडी में रखती है, जब तक कि वो 18 वर्ष के नहीं हो जाते हैं.

भारतीय संदर्भ में 'सामान्य' लगने वाली बात नार्वे में अपराध जैसा था

साल 2011 की बात है. अनुरुप अपनी नौकरी में व्यस्त थे. सागरिका अपने बच्चों को पालने में मशगूल थी. इसी बीच उनके साथ वो अनहोनी हो गई, जिसके बारे में उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था. नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज, जिसे बार्नेवरनेट (चाइल्ड प्रोटेक्शन) के रूप में जाना जाता है, ने ऐश्वर्या और अभिज्ञान दोनों को उनके माता-पिता से दूर कर दिया. दोनों बच्चों को अपनी कस्टडी में लेकर फोस्टर केयर में भेज दिया. इसके साथ ही ये भी कहा गया कि दोनों जब तक 18 साल के नहीं हो जाते, उन्होंने अभिभावक को नहीं सौंपा जा सकता. इसके पीछे 'अनुचित पेरेंटिंग' वजह बताई गई. कहा गया कि महीनों तक "ऑब्जर्वेशन" करने के बाद ये फैसला लिया गया है. इतना ही नहीं कपल के खिलाफ आरोपों में उनके बच्चों के साथ एक ही बिस्तर पर सोना, हाथ से खाना खिलाना (जिसे नॉर्वेजियन अधिकारियों ने जबरन खिलाना माना) और शारीरिक दंड भी शामिल था (सागरिका ने कथित तौर पर बच्चों को एक बार थप्पड़ मारा था). जबकि ये चीजें भारतीय संदर्भ में "सामान्य" लग सकती हैं, लेकिन नार्वे के अधिकारियों की नजर में कानून का उल्लंघन था.

विदेशी धरती पर बच्चों की सुरक्षा के नाम पर एक सरकार का सितम

एक इंटरव्यू में सागरिका ने बताया था, ''नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज की एक महिला अधिकारी अक्सर हमें देखने आती थीं. जब मैं खाना बना रही थी या अपने बच्चे को खिला रही थी, तब वह किसी भी समय आ जाती थी. वह बस बैठी रहती थी और मुझे देखती रहती थी. मैं उनकी भाषा अच्छी तरह नहीं समझ पाती था इसलिए उससे ज्यादा बात नहीं कर पाती थी. लेकिन उन्होंने कभी भी मुझे किसी भी समय यह संकेत नहीं दिया कि कोई समस्या है, कभी भी मुझे इस बारे में कोई चेतावनी नहीं दी कि वे क्या लिख रहे हैं. मैंने कभी नहीं सोचा था कि वे मेरे बच्चों को छीनने जैसी हरकत कर सकते हैं. जब ऐसा हुआ तो मैं दंग रह गई. काउंसलिंग और ऑब्जरवेशन वाले हिस्से के बारे में हम दोनों को पता था और हम अपने बेटे की खातिर इसके लिए राजी हो गए थे. लेकिन मुझे याद है कि जब मैंने उनके होम विजिट को रद्द करने का अनुरोध किया, तो उनकी तरफ से मना कर दिया गया. यहां तक कि जिन दिनों मेरी तबियत ठीक नहीं थी, वे आने पर जोर देते थे. ऐसे मौकों पर मैं बेहद असहज हो जाती थी. बच्चे के साथ अकेले रहना चाहती थी.''

इस तरह धोखे से सीडब्ल्यूएस ने सागरिका के बच्चों की कस्टडी ली

सागरिका के मुताबिक, बच्चों की कस्टडी के दौरान उनके साथ चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज (सीडब्ल्यूएस) के लोगों ने धोखा दिया था. पहले उनके बेटे अभिज्ञान को उन लोगों ने अपनी कस्टडी में लिया. काफी कोशिशों के बावजूद जब उन लोगों ने उसे नहीं छोड़ा तो सागरिका अपने घर लौट आई. वहां पहले से सीडब्ल्यूएस के लोग और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे. उन लोगों के बीच ऐश्वर्या को लेकर बहस होने लगी, क्योंकि वो उसकी कस्टडी भी मांग कर रहे थे. इस बीच उनकी टीम की एक महिला ऐश्वर्या को घुमाने के बहाने बाहर ले गई. कुछ देर बाद कॉल आई कि दोनों बच्चे अब सीडब्ल्यूएस की कस्टडी में हैं. ये सूचना माता-पिता के लिए सदमे की तरह थी. लेकिन उन्होंने कोर्ट जाने का फैसला किया. स्थानीय कोर्ट में केस दाखिल किया गया, लेकिन कोर्ट ने सीडब्ल्यूएस के हक में ही फैसला दिया. इसके अनुसार दोनों की कस्टडी उनके अभिभावक से लेकर सीडब्ल्यूएस को दे दी गई. उनको साल में तीन बार एक घंटे के लिए अपने बच्चों से मिलने की इजाजत दी गई. धीरे-धीरे ये मामला मीडिया की नजर में आ गया. भारत में लोग सागरिका के पक्ष में प्रदर्शन करने लगे.

नार्वे से मिली जीत को अपनों ने हार में बदला, लेकिन हिम्मत नहीं हारी

इसी बीच विदेश मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद नार्वे सरकार ने बच्चों की कस्टडी उनके चाचा अरुनाभास भट्टाचार्य को सौंपने का फैसला किया. साल 2012 में दोनों बच्चे अपने चाचा के साथ दिल्ली चले आए. इधर इस केस की वजह से सागरिका और उसके पति अनुरुप के रिश्तों में खटास आ गया, जिसकी वजह से दोनों ने तलाक ले लिया. ऐसी स्थिति में सागरिका का संघर्ष एक बार फिर शुरू हो गया, क्योंकि बच्चे उसके पति के भाई के पास थे. सागरिका ने वेस्ट बंगाल के बर्दवान चाइल्ड केयर कमिटी के सामने अपने बच्चों को स्थानांतरित करने के लिए एक याचिका दायर की. उसने अपने पति के माता-पिता पर आरोप लगाया कि वे उसे अपने बच्चों से मिलने नहीं दे रहे हैं. इतना ही नहीं बच्चों की सही से देखभाल नहीं की जा रही है. लंबी सुनवाई के बाद, सागरिका को नवंबर 2012 में अपने बच्चों को पालने के लिए अनुमति दे दी गई. इस तरह लंबे संघर्ष के बाद सागरिका की जीत हो गई.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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