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Updated: 25 दिसम्बर, 2021 03:18 PM
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हिंदी सिनेमा में एक गायक के रूप में आखिर मोहम्मद रफ़ी की हैसियत क्या थी? हिंदी सिनेमा में एक और दिग्गज गायक के रूप में किशोर कुमार की लोकप्रिय मौजूदगी की वजह से यह सवाल अक्सर किया जाता है. मगर ऐसा नहीं है कि जवाब खोजने के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी. किशोर कुमार होते तो तपाक से कहते- मोहम्मद रफ़ी जैसा कोई नहीं. या रफ़ी से यह सवाल होता तो वे भी किशोर को भींचकर गले लगाते और दोहराते- ऐसा सिंगर कोई नहीं हुआ. यह तुम ही कर सकते हों. दोनों हिंदी सिनेमा के महान गायक हैं जिनकी आपस में तुलना करना ही गलत है.

चूंकि दोनों दिग्गजों का करियर लगभग के ही वक्त का है तो यह सवाल हमेशा बना रहेगा. किशोर हकीकत में अभिनेता थे. उस दौर में अभिनेता होने की एक शर्त उसका गायक होना भी था. किशोर सिंगर भी थे. नेचुरल सिंगर. लेकिन रफ़ी साहेब प्रशिक्षित गायक थे. हालांकि उन्होंने गाए फ़िल्मी गाने ही और इसी ने उन्हें पहचान भी दिलाई. गीतकार जावेद अख्तर ने एक बार कहा था कि अपने दौर में रफ़ी बेजोड़ थे. 90 प्रतिशत गाने वही गाते थे और बाकी के 10 प्रतिशत में उनके दौर के दूसरे गायक शामिल थे.

एक जमाने तक किशोर भी इसी 10 प्रतिशत में थे. हकीकत में रफ़ी के मुकाबले किशोर का दौर आरडी बर्मन के दौर में शुरू होता है. किशोर का दौर शुरू होता है राजेश खन्ना, ऋषि कपूर और अमिताभ बच्चन के सुपरस्टार बनने के दौर में. रफ़ी इस दौर से बहुत पहले से बादशाह की तरह नजर आते हैं.

rafi songsमोहम्मद रफ़ी हिंदी सिनेमा के दिग्गज गायक हैं.

इस्लाम की वजह से रफ़ी ने गाना बंद कर दिया था

बहरहाल, मोहम्मद रफ़ी के सिंगिंग करियर को देखें तो एक छोटी अवधि के अलावा वे हमेशा शीर्ष पर ही नजर आते हैं. यह तथ्य है. रफ़ी कमजोर तब हुए जब उन्होंने गाना ही बंद कर दिया था. 1969 के बाद से 1974 तक रफ़ी कमजोर दिखते हैं. 1969 के बाद रफ़ी ने एक मुफ्ती के कहने पर गानों से तौबा कर ली थी. हज के दौरान मुफ्ती ने रफ़ी से कहा था कि इस्लाम में गाना हराम है. रफ़ी की इस्लाम में आस्था थी. मुंबई लौटकर उन्होंने गाना छोड़ भी दिया. करीब 19 महीनों तक रफ़ी बिना गाए रहे. जब रफ़ी ने गाना छोड़ा था- भारत के सबसे बेहतरीन उपलब्ध गायक थे. सबकी पहली पसंद.  

रफ़ी गाना छोड़ते हैं और किशोर शिखर पर जाते नजर आते हैं

अब एक गायक के रूप में किशोर कुमार की लोकप्रियता देखिए. वह 1969 के बाद से उफान पर है. अराधना, अमर प्रेम, कटी पतंग, आनंद और दर्जनों ऐसी फ़िल्में 1969 के बाद ही आती हैं. इन फिल्मों के सभी गाने ब्लॉकबस्टर हुए. गानों ने लोगों को मदहोश कर दिया. जब किशोर गायकी में शिखर की ओर बढ़ तरहे थे रफ़ी ने उसे छोड़ दिया था. किशोर बेशक अपने फेन के अच्छे गायक हैं लेकिन यह माना जा सकता है कि रफ़ी की अनुपस्थिति ने उन्हें ज्यादा बेहतर मौका दिया. लंबे अंतराल के बाद रफ़ी वापसी करते हैं और दोबारा 1974-75 में "ठोकर" और "महल हो सपनों काठ जैसी फिल्मों से पुरानी स्थिति पाते दिखते हैं.

1969 में जब "प्यार का मौसम" में रफ़ी-किशोर ने एक ही गाने (तुम बिन जाऊं कहां, कि दुनिया में आपके, कुछ भी कभी चाहा नहीं तुमको चाह के...) को अलग-अलग नायकों के लिए गाया तो बहस खूब होने लगी. फिल्म में शशि कपूर के लिए रफ़ी ने गाया और भारत भूषन के लिए किशोर कुमार ने. हालांकि लोगों ने किशोर का वर्जन ही खूब सुना.

तुलना पर किशोर आगे आए और लंबी चिट्ठी लिखकर रफ़ी होने के मायने समझाया

जावेद अख्तर एक किस्सा सुनाया है कि उन दिनों फिल्म पत्रिकाओं में पाठकों की चिट्ठियों में किशोर बेहतर सिंगर हैं या फिर रफ़ी को लेकर बहस दिखी. पत्रिका के दो-तीन अंक आने के बाद किशोर कुमार ने उसी पत्रिका में एक लंबी चिट्ठी लिखी. उन्होंने लिखा- "मैं चाहता हूं कि ये बहस बंद कर दी जाए. इसलिए कि ये बहस मेरे लिए बहुत तकलीफदेह है. मैं रफ़ी साहेब की बहुत इज्जत करता हूं और मैं अपने आप को रफ़ी साहेब के सामने कुछ भी नहीं समझता."

किशोर ने पूछा- क्या मैं रफ़ी साहेब के ये गाने गा सकता हूं

इसी चिट्ठी में किशोर कुमार ने रफ़ी साहेब के कई गानों की एक लिस्ट भी साझा की और लोगों से पूछा- क्या मैं ये गाने गा सकता हूं जिस तरह से रफ़ी ने गाए? किशोर ने रफ़ी के जो गाने साझा किए थे उनमें- कोहिनूर का मधुबन में राधिका नाचे... जैसे गाने शामिल थे. उन्होंने कहा- इस टॉपिक पर व्यर्थ की बहस को बंद कर दिया जाए.

रफ़ी और किशोर दोनों के गायन की पिच ही बिल्कुल अलग थी. रफ़ी और किशोर में टकराव जैसी चीज नहीं दिखती. दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे, सम्मान करते थे और खूब सम्मान करते थे. किआ उदाहरण फिल्म हिस्टोरियन और पत्रकारों ने दर्ज किए हैं. जैसे- किशोर ने नक्श लायलपुरी के लिखे गाने को जयदेव के संगीत निर्देशन में गाया. फिल्म थी- मान जाइए और गाना था- ये वही गीत है जिसको मैंने धड़कन में...रफ़ी ने जब इस गाने को सुना. वे किशोर के घर पहुंच गए और उन्हें गले लगा कर शाबासी दी.

रफ़ी ने किशोर कुमार को भी अपने गाने से दी आवाज

किशोर खुद गायक थे, लेकिन परदे पर उन्हें रफ़ी ने भी आवाज दी. 1959 में हसरत जयपुरी के लिखे 'अजब है दास्तान तेरी ये जिंदगी' को रफ़ी ने किशोर के लिए गाया. जबकि यही गाना पहले खुद किशोर अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर चुके थे. मगर उन्हें लगा कि अगर इसे रफ़ी साहेब गाते तो यह और बेहतरीन बन जाता. राजकुमार और मीना कुमारी के साथ सुनने के बाद किशोर को अपना गाया गाना बिल्कुल ठीक नहीं लगा.

किशोर ने हसरत जयपुरी से अनुरोध किया कि वे रफ़ी साहेब को इस गाने के लिए राजी करें. हसरत के कहने पर रफ़ी ने किशोर के लिए गाना गाया, मगर शर्त के साथ कि वे इसके लिए कोई पैसा नहीं लेंगे. कई फिल्म पत्रिकाओं में ये प्रसंग लिखा जा चुका है. दरअसल, किशोर भले ही नेचुरल गायक थे, बावजूद उनकी अपनी सीमा थी. वे इसे जानते थे. जबकि रफ़ी प्रशिक्षित गायक थे. ऊपर जिस चिट्ठी का जिक्र है उसमें रफ़ी के कई ऐसे गाने हैं जिन्हें शायद किशोर उतना बेहतर नहीं गा पाते जितना रफ़ी ने गाया है. लेकिन यह भी सच है कि किशोर ने मेल या फीमेल सिंगर के साथ जितने भी डुएट किए- उसमें किशोर का वर्जन ही सबसे ज्यादा हिट हुआ. भले ही उनके साथ रफ़ी रहे हों या फिर कोई और सिंगर.

रफ़ी और किशोर में कैसे गलत-फहमी हुई

रफ़ी और किशोर के बीच एक गलतफहमी भी हुई. गलतफहमी गाने को लेकर ही थी. 1966 में एक फिल्म आई थी- तूफ़ान में प्यार कहां. फिल्म अशोक कुमार की थी और उनके लिए किशोर ने एक गाना गाया था. गाना था- इतनी बड़ी दुनिया जहां इतना बड़ा मेला... अशोक कुमार को किशोर की आवाज में गाना पसंद नहीं आया. चित्रगुप्त का किशोर के साथ तब कोल्डवार भी था. चित्रगुप्त को भी गाना पसंद नहीं आया.

अशोक कुमार और चित्रगुप्त ने गाने को फिर से रफ़ी की आवाज में रिकॉर्ड करने का फैसला लिया. रफ़ी ने गाना रिकॉर्ड तो किया मगर उन्हें यह नहीं बताया गया कि उनसे पहले गाने को किशोर की आवाज में रिकॉर्ड करवाया गया था. किशोर वाकये को लेकर निराश थे हालांकि उन्होंने कभी सार्वजनिक रूप से इस पर कुछ नहीं कहा.

लोगों ने भले रफ़ी और किशोर को एक ही तराजू पर रखने की कोशिश की हो, लेकिन यह तथ्य है कि दोनों की जमीन अलग थी और दोनों एक-दूसरे का सम्मान करते थे. दोनों को अपनी सीमाओं का अंदाजा था. फिल्म हिस्टोरियन की दास्तानें इसे पुख्ता करती हैं.

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