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Updated: 10 जनवरी, 2023 09:09 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में हिंदुस्तानी फौज ने 93 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को पकड़ा था, जो कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद युद्ध बंदियों का सबसे बड़ी संख्या है. इस युद्ध में न केवल पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था, बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर शर्म का सामना भी करना पड़ा था. क्योंकि एक साथ इतनी बड़ी संख्या में पाकिस्तानी फौज ने हिंदुस्तानी सेना के सामने घुटने टेक दिए थे. इसी शर्म की वजह से पाकिस्तान न्यक्लियर अटैक करके हिंदुस्तान से बदला लेना चाहता था. लेकिन उसके मुल्क में मौजूद हमारे देश के जासूसों ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया था. फिल्म 'मिशन मजनू' की कहानी इसी सच्ची घटना पर आधारित है. इसका एक्शन से भरपूर ट्रेलर रिलीज कर दिया गया है, जिसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा एक जासूस के किरदार में नजर आ रहे हैं.

जासूसों की जिंदगी पर बॉलीवुड में कई फिल्मों का निर्माण हो चुका है. किसी फिल्म में जासूसों की वास्तविक जिंदगी से परिचय कराया गया है, तो किसी में फैंटेसी के सहारे हाई ऑक्टेन एक्शन सीन करते हुए दिखाया गया है. इस कड़ी में 'राजी' (2018), 'एजेंट विनोद' (2012), 'रोमियो अकबर वॉल्टर' (2019), 'एक था टाइगर' (2012), 'टाइगर जिंदा है' (2017) और 'मद्रास कैफे' (2013) जैसी फिल्मों के नाम प्रमुख हैं. मेघना गुलजार के निर्देशन में बनी 'राजी' को लोगों ने खूब पसंद किया था. इसमें आलिया भट्ट ने एक महिला जासूस 'सहमत' के किरदार में धांसू अभिनय किया है. 'मिशन मजनू' के ट्रेलर को देखने के बाद इस फिल्म और आलिया के किरदार की बरबस याद आ जाती है. क्योंकि सिद्धार्थ मल्होत्रा का किरदार 'मजनू' आलिया भट्ट के किरदार 'सहमत' से प्रेरित नजर आता है.

1_650_011023065345.jpgफिल्म 'मिशन मजनू' 20 जनवरी को ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज होने के लिए तैयार है.

मजनू को सहमत का 'मेल वर्जन' कहा जा सकता है. फिल्म की कहानी में भी कई समानताएं हैं. जैसे कि रॉ एजेंट अमनदीप अजीतपाल सिंह को मजनू कोडनेम के साथ पाकिस्तान भेजा जाता है. वो वहां जाकर दर्जी का काम करता है. इसी दौरान उसकी मुलाकात एक लड़की से होती है. दोनों शादी कर लेते हैं. इस तरह मजनू वहां का स्थाई बाशिंदा हो जाता है. धीरे-धीरे मिलिट्री अफसरों के घर जाकर जासूसी शुरू कर देता है. वहां से मिली सूचनाएं भारत भेजता है, जिसके आधार पर पाकिस्तान स्थित न्यूक्लियर ठिकानों के बारे में पता चल पाता है. इसे समय रहते ही हिंदुस्तानी एयरफोर्स एयरस्ट्राइक करके ध्वस्त कर देती है. फिल्म 'राजी' में आलिया की किरदार को रॉ एजेंट सहमत को पाकिस्तान भेजा जाता है. वो एक पाकिस्तानी आर्मी अफसर से शादी कर लेती है. वहां उसके द्वारा मिली सूचनाओं को भारत भेजती है, जिसके आधार पर हिंदुस्तान की सरकार को पाकिस्तान के हमले से पहले अलर्ट मिल जाता है. इस तरह पाक सेना के मंसूबे को नेस्तनाबूत कर दिया जाता है.

फिल्म 'मिशन मजनू' और 'राजी' में कई समानताएं होने के बावजूद इसे सस्ती कॉपी नहीं कहा जा सकता. 'मिशन मजनू' के मेकर्स ने 70 के दशक की कहानी को आज के हिसाब से तैयार किया है. उसमें कई धांसू एक्शन सीन डाले गए हैं, जिन्हें देखकर रोंगटे खड़े हो सकते हैं. उस वक्त एयर स्ट्राइक जैसे शब्द के बारे में किसी को पता नहीं होगा, लेकिन इंडियन एयर फोर्स ने पाकिस्तान में घुसकर उसके न्यूक्लियर ठिकानों पर जो कार्रवाई की थी, उसे एयर स्ट्राइक ही कहा जाएगा. फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा ने जबरदस्त अभिनय किया है. फिल्म 'शेरशाह' से मिली लोकप्रियता को उन्होंने इस फिल्म में भुनाने की पूरी कोशिश की है. एक पाकिस्तानी लड़की के किरदार में रश्मिका मंदाना खूबसूरत लग रही हैं. ये उनकी दूसरी हिंदी फिल्म है, इससे पहले वो अमिताभ बच्चन की फिल्म 'गुड बॉय' में नजर आ चुकी है.

Mission Majnu फिल्म का ट्रेलर देखिए...

फिल्म 'मिशन मजनू' के 2 मिनट 28 सेकेंड के ट्रेलर की शुरूआत में दिखाया जाता है कि 1971 की जंग हारने के बाद बौखलाया पाकिस्तान अपने देश से बदला लेने के लिए न्यूक्लियर वॉर करना चाहता है. इसके लिए वो अपने देश में एटम बम बनाने की तैयारी कर रहा है. इधर रॉ को उसकी हरकत के बारे में पता चल जाता है. रॉ चीफ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इसके बारे में ब्रीफ करते हैं. इसके साथ ही सुझाव देते हैं कि न्यूक्लिर ठिकानों को ध्वस्त करने के लिए जंग लड़ने की बजाए दूसरा रास्ता अख्तियार करना होगा. इसके लिए वो अपना एक एक्सपर्ट एजेंट पाकिस्तान भेजने का सुझाव देते हैं. प्रधानमंत्री की सहमति मिलने के बाद रॉ एजेंटे अमनदीप सिंह को पाकिस्तान भेज दिया जाता है. अमनदीप को कोडनेम मजनू दिया जाता है. वो पाकिस्तान में दर्जी का काम करने लगता है. इस तरह पाकिस्तानी आर्मी के अफसरों के घर में अपने काम के जरिए घुसने की कोशिश करता है. उनसे न्यूक्लियर बम से जुड़ी जानकारियां हासिल करता है. इस दौरान जबरदस्त एक्शन सीन देखने को मिलता है.

एक्शन के बीच फिल्म में रोमांस का तड़का भी लगाया गया है. इसमें दिखाया गया है कि मजनू की शादी एक पाकिस्तानी लड़की से होती है. वो उसके प्यार के गिरफ्त में हो जाता है. इस वजह से अपने असली मिशन को भूलने लगता है. इसके बाद रॉ की तरफ उसे चेताया जाता है कि जिसे वो अपनी असली पत्नी समझ बैठा है, वो दरअसल एक कवर है, उसे अपने मकसद को नहीं भूलना चाहिए. उसको पाकिस्तानी न्यूक्लियर फैसिलिटी को खोजना है. इसके लिए ऑपरेशन मिशन मजनू लॉन्च किया जाता है. इसमें सिद्धार्थ के किरदार की सहायता के लिए कुमुद मिश्रा और शारिब हाशमी के किरदारों को भेजा जाता है. तीनों मिलकर इस मिशन को प्लान करते हैं. बहुत जल्द मजनू न्यूक्लियर फैसिलिटी का पता लगा लेता है. लेकिन अंदर की जानकारी हासिल करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर वहां जाने का फैसला करता है.

इधर पाकिस्तान को लगता है कि वो हिंदुस्तान की नाक के नीचे अपना न्यूक्लियर मिशन पूरा कर लेगा, लेकिन एक रॉ एजेंट उनके मंसूबे पर पानी फेर देता है. मजनू के इशारे पर इंडिय़न एयरफोर्स उन ठिकानों पर एयर स्ट्राइक कर देती है. इस तरह पाकिस्तान का सपना चकनाचूर हो जाता है. ''भारत माता की जय'' के नारे के साथ ट्रेलर समाप्त हो जाता है, लेकिन अपने पीछे वो दिलचस्पी छोड़ जाता है, जो लोगों को फिल्म देखने के लिए मजबूर करेगी. इस फिल्म को पूरी तरह से देशभक्ति के रंग में डूबो दिया गया है. ''हिंदुस्तान की हिफाजत के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं''...फिल्म के इस संवाद से ही इसकी मूल भावना समझी जा सकती है. इसके साथ ही इस फिल्म में ये भी दिखाने की कोशिश की गई है कि जासूसी काम इतना आसान नहीं होता है. इसमें हर कदम पर जासूसों की जिंदगी पर खतरा मंडराता रहता है. लेकिन जासूस न हो तो किसी देश की सुरक्षा जरूर खतरे में पड़ सकती है. जासूस पैसे के लिए नहीं देश के लिए काम करते हैं. इसे फिल्म एक संवाद से समझा जा सकता है, ''जासूस हूं, मुंशी नहीं''.

फिल्म 'मिशन मजनू' 20 जनवरी से ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम की जाएगी. शांतनु बागची के निर्देशन में बनी इस फिल्म सिद्धार्थ मल्होत्रा और रश्मिका मंदाना लीड रोल में हैं. उनके साथ कुमुद मिश्रा, परमीत सेठी, मीर सरवार और जाकिर हुसैन की भी अहम भूमिका है. फिल्म की कहानी परवेज शेख और असीम अरोरा ने लिखी है, जबकि पटकथा सुमित बथेजा, परवेज शेख और असीम अरोरा ने तैयार किया है. फिल्म के संवाद सुमित बथेजा के हैं, जो कि उतने ज्यादा प्रभावी नहीं है. एक देशभक्ति फिल्म में सशक्त संवादों की जरूरत ज्यादा होती है. क्योंकि लोगों की तालियां तो संवाद सुनने के बाद ही बजती हैं. वो भी जब दुश्मन देश पाकिस्तान के ऊपर कोई फिल्म बन रही हो, तो लोक लुभावने संवाद जरूरी हो जाते हैं. फिल्म का संगीत मनमोहक है. ''दुनिया में हम ही अकेले हैं, जो माटी को मां कहते हैं, हम माटी को मां कहते हैं''...जैसे गाने के बोल सुंदर हैं. बैकग्राउंड स्कोर भी फिल्म के हिसाब के हिसाब से अच्छा बन पड़ा है. फिल्म पहले 23 जनवरी को रिलीज की जानी थी, लेकिन तीन पहले देखने को मिलने वाली है.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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