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Updated: 29 जुलाई, 2021 01:30 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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तो आखिरकार बॉलीवुड मूवीज में इंटरेस्ट रखने वाले सिने प्रेमियों की एक बड़ी शिकायत दूर हो गई है. Mimi के रूप में एक शानदार फ़िल्म हमारे सामने है. मिमी होने को तो कॉमेडी जॉनर की फ़िल्म है मगर फ़िल्म में जिस तरह सेरोगेसी, जिसे आज भी कोई आम भारतीय एक हव्वे के रूप में देखता है, उसे बड़े ही चुटीले अंदाज में पेश किया गया है. भारत में सरोगेसी होने को तो एक बेहद संवेदनशील टॉपिक है जिसे मजाहिया बनाने के बारे में शायद ही कभी किसी ने विचार किया हो. लेकिन जय हो Kriti Sanon और Pankaj Tripathi की उन्होंने अपने अभिनय से न केवल कॉमेडी को एक नई परिभाषा दी है. बल्कि भारतीय सिनेमा को नए सांचे में डाल दिया है. OTT के इस दौर में बहुत दिनों के बाद कोई ऐसी फिल्म आई है जिसने पूरे परिवार को एकसाथ बैठने का मौका तो दिया ही है साथ ही कई जरूरी मगर अनकहे / अनसुलझे मुद्दों को भी उठाया गया है.

Mimi, Kriti Senon, Pankaj Tripathi, Cinema, Netflix, Bollywood, Mother, Kidफिल्म मिमी में निर्माता निर्देशक ने एक साथ कई जरूरी मुद्दों को छुआ है

फ़िल्म शुरू होती है एक ऐसे सेंटर से जहां पैसों के बदले जरूरतमंद महिलाओं से सेरोगेसी करवाई जाती है. इस सेंटर से जॉन और समर नाम का अमेरिकन जोड़ा संपर्क करता है मगर सेंटर संभालने वाला उन्हें सेरोगेसी के लिए मनमाफिक लड़की नहीं दिलवा पाता.

एक हेल्थी सेरोगेट मदर की तलाश में जोड़ा राजस्थान निकलता है और उनकी मुहीम में मदद करता है टैक्सी ड्राइवर भानू (पंकज त्रिपाठी). जोड़ा जब भानू को सेरोगेसी की कीमत बताता है उसके होश उड़ जाते हैं. पैसे भानू को तिकड़म भिड़ाने के लिए मजबूर करते हैं और आखिरकार वो अपनी लच्छेदार बातों से मिमी (कृति सेनन) को रिझाने में कामयाब होता है.

मिमी एक डांसर है, जिसके कुछ सपने हैं और जिसे किसी भी सूरत में मुंबई जाना है और हिरोइन बन कटरीना, करीना, दीपिका, प्रियंका, आलिया को पीछे करना है. 2 घंटे से कुछ ऊपर की इस फ़िल्म में भले ही सेरोगेसी को लेकर बात हो रही हो और उसे हंसी ठिठोली का तड़का लगाकर पेश किया गया हो लेकिन मिमी में सिर्फ सेरोगेसी नहीं है.

जी हां हम फिर इस बात को दोहराना चाहेंगे कि फ़िल्म में केवल सेरोगेसी की आड़ में कॉमेडी को नहीं पेश किया गया है. जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं फ़िल्म पूरे परिवार को एकसाथ बैठने का मौका तो देती ही है साथ ही इसमें कई जरूरी मगर अनकहे मुद्दों को भी उठाया गया है. तो देर किस बात की आइये जानें कि मिमी में सेरोगेसी के अलावा किन पांच बड़े मुद्दों पर बात हुई है.

तीन तलाक की मार झेलती स्त्री का दर्द

फ़िल्म का एक सीन है अमेरिकन जोड़े यानी यानी जॉन और समर को जयपुर की एक प्राइवेट क्लीनिक की डॉक्टर बताती है कि सेरोगेसी के जरिये जो बच्चा मिमी की कोख में पल रहा है उसे डाउन सिंड्रोम है. अमेरिकन अपने होने वाले बच्चे को लेने से इंकार करते हैं और वापस अमेरिका भाग जाते हैं.

जब ये खबर मिमी को पता चलती है तो वो बौखला जाती है. उसके सामने सवाल ये रहता है कि आखिर लोग क्या कहेंगे. उस मुश्किल वक़्त में उसकी दोस्त शमा ( साईं तम्‍हनकर) सामने आती है और कहती है कि बच्चे को वो अपना लेगी और मिमी फिर हिरोइन बनने मुंबई जा सकती है. इसपर मिमी शमा से कहती है कि अगर ऐसा हो गया तो लोग उसे क्या कहेंगे?

शमा कहती है कि जब उसके पति ने तीन बार तलाक कहकर उसे छोड़ दिया तब ये लोग कहां थे? इसके अलावा फिल्म में 2-3 बार अपने साथ हुई घटना का जिक्र किया जिससे पता चलता है कि तब उस महिला पर क्या बीतती है जब उसका पति किसी बात पर तीन बार तलाक कहकर बरसों का रिश्ता चुटकी बजाते ही खत्म कर देता है.

एक गंदे व्यापार के रूप में महिलाओं को बनाया जाता है बच्चे पैदा करने की मशीन.

सेरोगेसी गलत नहीं है मगर ये घिनौनी तब हो जाती है जब पैसों के लिए किसी औरत को अपनी कोख बेचनी पड़ती है और वो बच्चे पैदा करने की मशीन बन जाती है. चाहे फ़िल्म मिमी का ओपनिंग शॉट हो और एजेंट का सेरोगेट मदर्स को 'नया माल' बताना हो या फिर भानू का मिमी को लाखों का लालच देना.

हो सकता है कि फ़िल्म के ये सीन आपके चेहरे पर मुस्कान लाएं और आप हंसे मगर कभी फुरसत मिले तो इसपर गंभीरता से विचार करिएगा. मिलेगा कि ये एक ऐसी समस्या है जिसने कई महिलाओं की ज़िंदगी को नरक बनाया है.

सेरोगेसी की आड़ में धंधा करते प्राइवेट मेटरनिटी होम और डॉक्टर्स

फ़िल्म का वो सीन, जिसमें मिमी अपना अल्ट्रा साउंड कराने डॉक्टर के पास जाती है. डॉक्टर उसे बताती है कि कई विदेशी जोड़े कृतिम विधि से भारत में बच्चा पैदा करवाने के लिए आते तो हैं, लेकिन जब उन्हें मनमाफिक बच्चा नहीं मिलता वो उन सेरोगेट मदर्स को बीच राह में छोड़कर चले जाते हैं.

ये कथन ये बताने के लिए काफी है कि यदि सेरोगेसी जैसा काम आज धंधे में परिवर्तित हुआ है तो इसके पीछे डॉक्टर्स और प्राइवेट नर्सिंग होम्स की बड़ी भूमिका है. यदि देश के उन मेटरनिटी होम्स जिनमें IVF की सुविधा है, यदि उनका दौरा किया जाए तो मिलेगा कि आपको जैसा बच्चा चाहिए उसकी वैसी कीमत है.

कई जगहों पर तो डॉक्टर्स ने सैलरीड एम्प्लॉई रखे हैं जो उन्हें उनके क्लाइंट्स के लिए मनमाफिक बच्चे पैदा करके देते हैं.

बच्चे का रंग कैसे बन जाता है कौतूहल का विषय

रंग के लिहाज से हम भारतीय न तो काले हैं न गोरे बल्कि हमारा रंग गेहुंआ है. इस स्थिति में यदि हिंदुस्तान के किसी घर में अगर बहुत गोरा बच्चा हो जाए तो वो कैसे कौतूहल का विषय बनता है इस बात को फ़िल्म मिमी में बखूबी दर्शाया गया है.

चूंकि फ़िल्म में मिमी भानू को ही बच्चे का बाप बताती है तो लोगों को यकीन ही नहीं होता कि भानू जैसा आदमी इतना गोरा बच्चा पैदा कर सकता है.

दिलचस्प ये कि फ़िल्म में लोग भानू से ये भी पूछते हैं कि आखिर उसने ऐसा क्या खाया था जो इतना गोरा बच्चा हुआ? वो तमाम सीन जो बच्चे के रंग को लेकर हैं न केवल गुदगुदाने वाले हैं बल्कि अपने में कुछ अहम सवाल भी खड़े करते हैं.

अनाथों को घर देने के लिए आगे आए जनता

फ़िल्म मिमी का जो सबसे उम्दा पहलू है वो उसकी एंडिंग है. फ़िल्म में दिखाया गया है कि कैसे जॉन और समर अपना बच्चा जिसके गर्भपात की बात उन्होंने मिमी से कही थी. उसे छोड़कर एक अनाथ बच्ची को अपने साथ अमेरिका ले जाते हैं. फिल्म मिमी में अनाथों के मुद्दे को दिखाकर फिल्म के निर्माता निर्देशक की तरफ से बड़ा सन्देश दिया गया है.

हो सकता है कि फिल्म के निर्माता निर्देशक इस बात को बताना चाह रहे हों कि, यदि किसी कपल के बच्चा नहीं हो रहा है. तो बजाए इधर उधर जाने के और गलत रास्ता अपनाने के आखिर क्यों नहीं वो अनाथों को अडॉप्ट करते हैं.

यदि जनता ऐसा करती है तो न केवल अनाथों को मां बाप और घर मिल जाएगा बल्कि देश की कई समस्याओं पर विराम जाएगा.

बहरहाल हम फिर इस बात को कहेंगे कि अगर सिनेमा का थोड़ा बहुत शौक भी है तो फिल्म मिली जरूर देखिये. हमारा दावा है आप किसी भी हाल में निराश नहीं होंगे. याद रखिये ऐसी फ़िल्में बॉलीवुड में बार बार बिलकुल नहीं बनती हैं.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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