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Updated: 21 अगस्त, 2020 02:58 PM
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उर्दू में एक बेहद खूबसूरत शब्द है- मी रक़सम. इसका मतलब है मुझे नृत्य पसंद है. Zee5 पर रिलीज मी रक़सम फ़िल्म हिंदुस्तानी क्लासिकल डांस भरतनाट्यम के बहाने मजहबी बेड़ियों को तोड़ने के साथ ही एक खूबसूरत संदेश देती है कि कला की रूह उसकी आजादी है और उसे किसी खास मजहब या जाति में बांधना उसके साथ ज्यादती है. शबाना आज़मी द्वारा प्रोड्यूस और उनके भाई बाबा आज़मी द्वारा निर्देशित फ़िल्म मी रक़सम कहानी के साथ ही अदाकारी के मामले में भी मौजूदा दौर के सिनेमा के सामने मिशाल पेश करती है, जिसमें दानिश हुसैन, अदिति सुबेदी और नसीरुद्दीन शाह को देखकर बरबस आपके होंठ बोलने लगेंगे कि यह फ़िल्म कुछ खास है. मी रक़सम सही मायने में मशहूर शायर कैफी आजमी और उनके पैतृक गांव मिजवां को समर्पित फ़िल्म है, जिसमें एक सामान्य कहानी के बहाने हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब के रखवालों, धर्म के नाम पर सामाजिक विभेद करने वालों के साथ ही एक पिता की बेबसी दिखाई गई है, जो अपनी बेटी के अरमानों को पूरा करने के लिए पूरी बिरादरी से अलग-थलग कर दिया जाता है और लोग इसे काफिर करार देते हैं.

सिनेमैटोग्राफर से डायरेक्टर बने बाबा आजमी ने अपनी बहन शबाना आजमी के प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले एक खूबसूरत फ़िल्म बनाई है, जिसमें इमोशन के साथ ही एक ऐसा संदेश है, जो हर किसी तक पहुंचना चाहिए. दानिश हुसैन और अदिति सुबेदी की पिता-बेटी की जोड़ी आपको बेहद प्यारी लगेगी. ऐसा बिरले देखने को मिलता है कि नसीरुद्दीन शाह के सामने कोई और कलाकार इतना निखर पाए, लेकिन मी रक़सम में दानिश हुसैन ने अपनी अदाकारी से नसीरुद्दीन शाह को भी पीछे छोड़ दिया है. आजमगढ़ के मिजवां गांव में शूट हुई इस फ़िल्म की कहानी भी ऐसी है कि लोग उसे बरबस जुड़ाव महसूस करते हैं. भरतनाट्यम और इस डांस फॉर्म को लेकर एक खास मजहब के लोगों की मानसिकता के इर्द-गिर्द एक पिता-बेटी के बेहद प्यारे रिश्ते और अरमानों के दरमियां सिमटी मी रक़सम एक घंटे 35 मिनट आपको एहसासों की दुनिया में ले जाती है, जहां मरियम के अरमां हैं, सलीम की बेबसी है और हाशिम सेठ की जिद... ये सभी भाव आपको अपने आसपास की दुनिया से अवगत कराएगी और बताएगी कि मजहबी मान्यताओं और अमीरी-गरीबी की आड़ में हमारी दुनिया और हमारे सपनों को कितना सीमित कर दिया जाता है.

एक ऐसी कहानी, जो जरूरी है

मी रक़सम की कहानी यूपी के आजमगढ़ जिले स्थित मिजवां गांव में रहने वाले सलीम की है. पेशे से दर्जी सलीम की पत्नी का आकस्मिक निधन हो जाता है और वह पीछे छोड़ जाती है बेटी मरियम. मरियम अपनी मां की तरह ही भरतनाट्यम सीखना चाहती है, लेकिन आर्थिक तंगी में वह अपने पिता के सामने अपनी ख्वाहिश जाहिर नहीं कर पाती है. सलीम यह बात समझता रहता है और एक दिन मरियम का दाखिला भरतनाट्यम डांस स्कूल में करा देता है. चूंकि मुस्लिम समुदाय में भरतनाट्यम के प्रति गलत धारणा फैली होती है कि यह पूरी तरह हिंदुओं का डांस है और भगवान की अराधना से जुड़ा है, ऐसे में सलीम और मरियम यह बात अपने रिश्तेदारों और गांव वालों से छुपाते हैं. लेकिन एक दिन सबको यह पता चल जाता है कि सलीम की बेटी मरियम भरतनाट्यम सीख रही है. इसके बाद हंगामा हो जाता है. धार्मिक नेता हाशिम सेठ सलीम को समझाने आते हैं और धमकी देते हैं कि वह अपनी बेटी को समझाए और भरतनाट्यम न सीखे.

सलीम अपनी बेटी के अरमां पूरी करने के लिए किसी की बातों की परवाह नहीं करता. इस वजह से उसके रिश्तेदार भी उससे नाता तोड़ देते हैं. धीरे-धीरे उसे गांव वाले अलग-थलग कर देते हैं और सलीम के पास कोई काम भी नहीं बचता. मरियम को भी एहसास होता है और वह भरतनाट्यम से दूर होने की कोशिश करने लगती है. इस बीच सलीम के कुछ फिक्रमंद उसकी मदद करने की कोशिश करते हैं. इस दौरान मरियम को डांस कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेने के लिए उसकी टीचर हौसला बढ़ाती है. लेकिन एक दिन अचानक उसके घर पत्थरबाजी होती है और इस घटना के बाद सबकुछ बदल जाता है. क्या सलीम की स्थिति सुधर पाती है? क्या मरियम भरतनाट्यम डांस कॉम्पिटिशन में हिस्सा ले पाती है और अपनी बिरादरी के लोगों का जवाब दे पाती है? इन सारे सवालों के जवाब आपको तब मिलेंगे, जब आप जी5 पर मी रक़सम देखेंगे.

एक्टिंग और निर्देशन

बाबा आजमी ने मी रक़सम के रूप में फ़िल्म इंडस्ट्री के साथ ही लाखों-करोड़ों लोगों को ऐसी शौगात दी है, जिसे लोग समय-समय पर देखना चाहेंगे. एक सामान्य सी कहानी को बाबा आजमी ने इतनी खूबसूरत फ़िल्म की शक्ल दी है कि आपको मी रक़सम से प्यार हो जाता है. निर्देशन में कुछ खामियां जरूर हैं, लेकिन कहानी और कलाकारों के उम्दा प्रदर्शन के सामने निर्देशन की खामियां दब सी जाती हैं. नसीरुद्दीन शाह की बात क्या करना, वो तो एक्टिंग के बाबा है, लेकिन मी रक़सम फ़िल्म दानिश हुसैन और अदिति सुबेदी की बेहतरीन अदाकारी के लिए जानी जाएगी. थिएटर से फ़िल्म तक के बेहतरीन सफर में दानिश हुसैन एक चमकते सितारे की तरह दिखते हैं, जो हर तरह के किरदार में माहिर हैं. मी रक़सम में राकेश चतुर्वेदी ओम, श्रद्धा कौल, फार्रुख जफर और सुदीप्ता सिंह समेत अन्य कलाकारों ने भी अपने अपने हिस्से की अदाकारी क्या खूब निभाई है

मी रक़सम देखने की खास वजह

बाबा आजमी की फ़िल्म मी रक़सम देखने की सबसे खास वजह यही है कि ऐसी फ़िल्म ज्यादा बनती नहीं है. फ़िल्म देखते-देखते आपको इससे प्यार हो जाता है. एक खास धर्म की मान्यताएं, जो बदल नहीं रहीं और इसे नए जेनरेशन के बच्चे एक तरह से ढोते नजर आ रहे हैं, उसके साथ ही दूसरे बहुसंख्यक धर्म के कुछ ऐसे लोग, जो दूसरे धर्म की मान्यताओं का मजाक उड़ाते हैं, ये सारी भावनाएं मी रक़सम में बेहद आसानी से बयां कर दी गई हैं. मी रक़सम एक अच्छी कहानी और कुछ सधे कलाकारों की बेहतरीन अदाकारी के लिए देखें.

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