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Updated: 01 मार्च, 2023 03:08 PM
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हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में रोमांटिक फिल्मों के बाद एक्शन का दौर आया था. 60 के दशक की बात होगी, तब लोग इन दोनों कैटेगरी के अलावा फिल्में बनाने से डरते थे, क्योंकि सफलता की दर बहुत कम होती थी. ऐसे में दौर में मसाला फिल्मों की शुरूआत करने वाले दिग्गज फिल्म मेकर मनमोहन देसाई ने बहुत कम उम्र में नए सिनेमा से लोगों का परिचय कराया था. 'हैप्पी एंडिंग' वाली फिल्मों का जनक उन्हें कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी. मनमोहन जी बॉलीवुड में 'मनजी' के नाम से मशहूर थे. अपने नाम के अनुरूप फिल्में बनाया करते थे. उन्होंने अपनी पहली फिल्म 'छलिया' राज कपूर और नूतन के साथ बनाई थी. उस वक्त उनकी उम्र महज 22 साल थी.

कहा जाता था है कि जब मनमोहन देसाई के बड़े भाई सुभाष देसाई फिल्म 'छलिया' के लिए राज कपूर से संपर्क किया था, तो उन्होंने हैरानी जताई. उनका कहना था कि इतनी कम उम्र का लड़का कैसे उनके साथ काम कर पाएगा. लेकिन इसे आत्मविश्वास कहें या फिर अपने पर यकीन मनजी ने राज साहब से सीधे कहा कि जब आप कम उम्र में फिल्में बना सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं? राज साहब को उनकी बातों में दम दिखा. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कहा कि पहले फिल्म के एक गाने की शूटिंग होगी, यदि इसे वो सही से निभा गए, तब तक वो उनकी फिल्म में काम करेंगे. इसके बाद फिल्म के गाने 'डम-डम डिगा-डिगा' की शूटिंग हुई, जिसमें मनजी खरे उतरे.

650x400_030123022353.jpgदिग्गज फिल्म मेकर मनमोहन देसाई की आज डेथ एनिवर्सरी है.

26 फरवरी 1973 में मुंबई में जन्में मनमोहन देसाई फिल्मी बैकग्राउंड से थे. उनके पिता कीकूभाई देसाई फिल्म प्रोड्यूसर थे. पैरामाउंट फिल्म स्टूडियो के मालिक थे. कीकूभाई को ज्यादातर एक्शन फिल्में बनाने के लिए जाना जाता था. उन्होंने 'शेख चिल्ली', 'तारणहार', 'मधु बांसरी', 'सुनहरी टोली', 'अफलातून' और 'औरत' जैसी फिल्में बनाई हैं. लेकिन बहुत कम उम्र में ही उनका निधन हो गया, तब मनजी महज चार साल के थे. पिता के जाने के बाद उनके बड़े भाई सुभाष देसाई ने परिवार को संभाला.

साल 1960 में फिल्म 'छलिया' बनाने के बाद उन्होंने 1963 में फिल्म 'ब्लफ मास्टर' बनाया, जिसमें शम्मी कपूर, शायरा बानू और प्राण लीड रोल में थे. इसके बाद 1966 में फिल्म 'बदतमीज' (शम्मी कपूर और साधना), साल 1970 में 'सच्चा झूठा' (राजेश खन्ना, विनोद खन्ना और मुमताज), 1972 में 'भाई हो तो ऐसा' (जितेंद्र, हेमा मालिनी और शत्रुघ्न सिन्हा), 1973 में 'आ गले लग जा' (शशी कपूर, शर्मिला टैगोर और शत्रुघ्न सिन्हा) और 1974 में 'रोटी' (राजेश खन्ना, मुमताज और ओम प्रकाश) बनाई थी.

साल 1974 में पहली बार मनमोहन देसाई और अमिताभ बच्चन की मुलाकात हुई थी. ये वही दौर था, जब अमिताभ अपने सबसे मुश्किल समय से गुजर रहे थे. उनकी कई फिल्में फ्लॉप हो चुकी थी. इस समय मनजी अपनी फिल्म 'परवरिश' की तैयारी कर रहे थे. कुछ लोगों ने अमिताभ का नाम सुझाया, उसके बाद उन्होंने इस फिल्म में उनको कास्ट कर लिया. उनके साथ शम्मी कपूर, विनोद खन्ना, नीतू सिंह और शबाना आज़मी को भी कास्ट किया गया. ये उस साल की ब्लॉकबस्टर फिल्म साबित हुई थी.

इसके बाद तो मनमोहन देसाई और अमिताभ बच्चन की जोड़ी बॉक्स ऑफिस पर कमाल करने लगी. दोनों ने एक साथ कई फिल्मों के लिए काम किया. इनमें 'गंगा जमुना सरस्वती', 'कूली', 'परवरिश', 'अमर अकबर एंथनी', 'देश प्रेमी', 'सुहाग', 'नसीब', 'मर्द' और 'तूफान' जैसी फिल्मों का नाम प्रमुख है. इनमें से ज्यादातर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी, जिनमें सबसे ज्यादा चर्चा फिल्म 'कूली' और 'अमर अकबर एंथनी की होती है. इन दोनों फिल्मों ने बॉलीवुड की दशा और दिशा दोनों बदल दी थी.

मनमोहन देसाई ज्यादातर अपनी फिल्मों में अमिताभ बच्चन को कास्ट करना चाहते थे. यही वजह है कि उन्होंने साल 1977 से 1989 तक लगातार अमिताभ बच्चन के साथ काम किया. 'मनजी' की इन फिल्मों ने अमिताभ को बॉलीवुड का 'बिगबी' बनाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है. 'बिगबी' के करियर को बूस्ट देने वाली फिल्मों में 'अमर अकबर एंथनी', 'सुहाग', 'नसीब', 'मर्द' और 'कूली' का नाम प्रमुख है. 'कूली' वही फिल्म है, जिसमें उनके पेट में बहुत गंभीर चोट लगी थी. लंबे इलाज के बाद वो काम पर लौटे थे.

अमिताभ बच्चन के साथ काम करने पर एक बार मनमोहन देसाई ने इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में कहा था, ''फिल्म अमर अकबर एंथनी से पहले एक नायक की मेरी अवधारणा लगभग पूरी तरह से राज कपूर पर आधारित थी, जिनको लेकर मैंने अपनी पहली फिल्म 'छलिया' बनाई थी. उस वक्त मैं सिर्फ 22 साल का था. लेकिन अमर अकबर एंथोनी बनाने के बाद नायक को लेकर मेरी सोच पूरी तरह से बदल गई. अब मुझे अपने सिस्टम में अमिताभ मिल गए. मैं उनके अलावा किसी और के बारे में नहीं सोच सकता. अब तो मैं अमिताभ बच्चन को ध्यान में रखकर ही स्क्रिप्ट के बारे में सोचता हूं. उनके विकल्प की कल्पना करना बहुत मुश्किल है. हालांकि मैं सहमत हूं कि उनका विकल्प होना चाहिए.''

मनमोहन देसाई अपनी प्रोफेशनल लाइफ में जितने सफल थे, पर्सनल लाइफ में उतने ही निराश थे. उन्होंने अपनी गर्लफ्रेंड प्रभा से शादी की थी. प्रभा उनके घर के पास में ही रहती थीं. पहली नजर में ही मनजी उनसे प्यार कर बैठे थे. यहां तक कि उनका पीछा किया करते थे. उन्होंने अपने भाई के जरिए प्रभा के परिजनों को शादी का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन वो इसके खिलाफ थे. आखिरकार प्रभा की जिद्द के आगे उन्हें झुकना पड़ा और दोनों की शादी हो गई. लेकिन करियर के पीक पर ही उनकी पत्नी का निधन हो गया.

पत्नी प्रभा की मौत के बाद मनजी अपने काम में रम गए, लेकिन जिंदगी अधूरी लगने लगी थी. इसी समय उनकी मुलाकात अपने जमाने की मशहूर अदाकारा नंदा से हुई. साल 1952 में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट बॉलीवुड में डेब्यू करने वाली नंदा 'परिणिता', 'बड़ी दीदी', 'इत्तेफाक', 'राजा साहब', 'बेटी', 'परिवार' और 'गुमनाम' जैसी फिल्मों में काम किया था. मनमोहन देसाई उनके काम और खूबसूरती से बहुत प्रभावित थे. नंदा भी उनको बहुत चाहती थी. दोनों को मिलाने का काम अभिनेत्री वहीदा रहमान और उनके बेटे केतन देसाई ने किया था.

साल 1992 में 52 साल की उम्र में मनमोहन देसाई ने नंदा से सगाई कर ली. दोनों धूमधाम से शादी करने की योजना में थे. लेकिन इसी बीच एक मनहूस कर देने वाली खबर सामने आई. 1 मार्च 1994 को मुंबई के गिरगांव स्थित अपने घर की बालकनी से गिरकर उनकी मौत हो गई. हालांकि, कुछ लोगों ने कहा कि हार्ट अटैक होने से उनकी मौत हुई थी. इस मामले में पुलिस ने लंबे समय तक तहकीकात की थी, लेकिन मौत की असली वजह कभी सामने नहीं आई. आज भी मनमोहन देसाई की मौत का रहस्य अनसुलझा है.

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