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Updated: 10 मई, 2022 10:27 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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रिपु बल धरषि हरषि कपि बालितनय बल पुंज। पुलक सरीर नयन जल गहे राम पद कंज।।

तुलसीदासजी ने रामायण में ये पंक्तियां सुग्रीव पुत्र अंगद के लिए लिखी हैं. अंगद राम का दूत बनकर रावण के पास गए थे. वहां जाकर रावण का घमंड चूर-चूर कर दिया था. वापस लौटने के बाद आते ही श्रीराम के चरणों में लोट गए थे. उनका शरीर पुलकित था. आंखें आंसुओं से भरी थीं. यहां कहने का मतलब ये है कि इतनी बड़ी सफलता हासिल करने के बाद भी अंगद को घमंड नहीं हुआ था. उनके पैर पहले की तरह जमीन पर ही थे. लेकिन इनदिनों साउथ के सितारों का अहम चरम पर है. बॉलीवुड का घमंड चूर करने वाले साउथ सिनेमा के इन सितारों को लगता है कि उनसे बेहतर पूरी दुनिया में कोई नहीं है. तभी तो अपनी उपलब्धि के अहंकार में किसी का अपमान किए जा रहे हैं. पहले किच्चा सुदीप और चिरंजीवी जैसे अभिनेताओं ने हिंदी भाषा और फिल्म इंडस्ट्री का अपमान किया और अब महेश बाबू बॉलीवुड को उसकी औकात दिखा रहे हैं. उनका कहना है कि बॉलीवुड की इतनी क्षमता नहीं है कि वो उनको अफोर्ड कर पाए. वो हिंदी फिल्मों में काम करके अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते हैं.

650_051022083041.jpgमेजर संदीप उन्नीकृष्णन की बायोपिक फिल्म 'मेजर' को साउथ सिनेमा के सुपरस्टार महेश बाबू ने प्रोड्यूस किया है.

मुंबई आतंकी हमले में शहीद हुए एनएसजी कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के जीवन पर आधारित अपनी प्रोड्यूस की हुई फिल्म 'मेजर' के ट्रेलर लॉन्च इवेंट में पहुंचे महेश बाबू से जब उनके बॉलीवुड डेब्यू के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि बॉलीवुड उनको अफोर्ड नहीं कर सकता, इसलिए वो हिंदी फिल्मों में काम करके अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते हैं. उन्होंने कहा, ''हो सकता है कि मेरी बातों में आपको अहंकार नजर आए, लेकिन मैं इतना बता दूं कि मुझे हिंदी फिल्मों के लिए बहुत सारे ऑफर मिले हैं. लेकिन मुझे लगता है कि बॉलीवुड मुझे अफोर्ड नहीं कर पाएगा. मैं हिंदी फिल्मों में काम करके अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहता. तेलुगू सिनेमा में मुझे जो स्टारडम और प्यार मिला है, मैं कभी किसी दूसरी फिल्म इंडस्ट्री में जाने के बारे में सोचा भी नहीं सकता. मैंने हमेशा सोचा था कि मैं तेलुगू में फिल्में करूं और वो पूरे देश में देखी जाएं. मेरा विश्वास अब एक वास्तविकता में बदल रहा है. 'आरआरआर' और 'केजीएफ' की सफलता उदाहरण है. मुझसे ज्यादा कोई दूसरा खुश नहीं हो सकता.''

बोलने से पहले इन आंकड़ों को देख लेते महेश बाबू

महेश बाबू की बातों में वही नफरत झलक रही है, जो किच्चा सुदीप और चिरंजीवी की बातों में दिखी थी. वो बोल भले ही बॉलीवुड को रहे हैं, लेकिन उनका निशाना हिंदी भाषा पर है. वरना हिंदी भाषी फिल्मों में काम करने को वक्त की बर्बादी नहीं कहा जाता. महेश बाबू का कहना है कि बॉलीवुड उनको अफोर्ड नहीं कर सकता. मैं पूछना चाहता हूं कि ऐसा क्यों? क्या वो बॉलीवुड के अभिनेताओं से ज्यादा फीस चार्ज करते हैं या फिर कुछ और? यदि फीस की बात है, तो महेश बाबू एक फिल्म के लिए 50 करोड़ रुपए तक चार्ज करते हैं. यदि किसी फिल्म को उन्होंने प्रोड्यूस किया है, तो प्रॉफिट अलग मिलता है. चलिए ये ठीक है, लेकिन क्या उनको ये पता है कि बॉलीवुड के बड़े सुपरस्टार कितनी फीस लेते हैं? मुझे लगता है शायद नहीं, वरना वो ऐसा हल्का बयान कभी नहीं देते. उनकी जानकारी के लिए बता दूं कि सुपरस्टार अक्षय कुमार, सलमान खान और शाहरुख खान एक फिल्म के लिए 100 करोड़ रुपए तक चार्ज करते हैं. इतना ही नहीं अक्षय कुमार तो अपनी फिल्मों में बिना पैसा लगाए प्रॉफिट शेयर भी ले लेते हैं.

कमाई हो या फीस आज भी आगे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री

यदि पूरे देश में हाईपेड एक्टर की बात की जाए तो वो बॉलीवुड के अभिनेता अक्षय कुमार ही हैं. इतना ही नहीं अमेरिकी बिजनेस मैगजीन फोर्ब्स के 2020 में सबसे ज्यादा कमाई करने वाले दुनिया के 100 सेलेब्स की लिस्ट में अक्षय इकलौते भारतीय रहे हैं, जो 52वें पायदान पर थे. वो हॉलीवुड एक्टर जैकी चैन और जेनिफर लोपेज से भी आगे थे. उनकी एक साल की कमाई करीब करीब 356 करोड़ रुपए आंकी गई थी. इसके अलावा देश में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बॉलीवुड के ही आमिर खान की 'दंगल' है, जिसने कुल 2100 करोड़ रुपए की कमाई की है. इसकी कमाई के आगे एसएस राजामौली की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'बाहुबली' भी पीछे हैं. 'बाहुबली 2' ने कुल 1700 करोड़ रुपए ही कमाए थे, जबकि पैन इंडिया रिलीज होने वाली वो पहली फिल्म है. ये सब आंकड़े महेश बाबू के बयान का हवा निकालने के लिए काफी है. उनको समझ में आ जाना चाहिए कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री आज जिस हालत में है, उसके लिए वो खुद जिम्मेदार है, न कि साउथ सिनेमा की सफलता की वजह से ऐसा हुआ है.

साउथ सिनेमा के सितारों की अहम की पराकाष्ठा है

महेश बाबू के इस बयान को साउथ सिनेमा के सितारों की अहम की पराकाष्ठा मानी जानी चाहिए. क्योंकि इससे पहले किच्चा सुदीप और चिरंजीवी अपने-अपने बयानों से हिंदी पट्टी के लोगों को आहत कर चुके हैं. उन लोगों को जो उनकी फिल्में देखकर उनकी कमाई करा रहे हैं. यदि साउथ की फिल्में हिंदी में रिलीज नहीं होती, तो कभी भी कमाई के इतने रिकॉर्ड नहीं बना पाती. इसके बावजूद बॉलीवुड के बहाने हिंदी पर निशाना साधना गलत है. किच्चा ने कहा था, 'बॉलीवुड फिल्‍में संघर्ष कर रही हैं, मतलब हिंदी राष्‍ट्रीय भाषा नहीं रही.' बॉलीवुड आज संघर्ष कर रहा है, ये बात तो ठीक है, लेकिन हिंदी की बात यहां कहां से आ गई. वैसे दक्षिण भारतीय बयानवीरों को यह समझ लेना चाहिए कि हिंदी सिनेमा का संघर्ष साउथ सिनेमा या दक्षिण भारतीय भाषाओं की ताकत और हिंदी भाषा की कमजोरी के कारण नहीं है. मेगास्टार चिरंजीवी ने भी बहती नदी में हाथ धो लिया. उन्होंने अपने दिल में दबा हुआ वर्षों पहले का दर्द बाहर कर दिया. उन्होंने कहा था, ''पहले हिंदी सिनेमा को ही भारतीय सिनेमा समझा जाता था. बॉलीवुड कलाकारों को जितना सम्मान मिलता था, उतना साउथ के एक्टर्स को नहीं मिलता, जिसकी वजह से एक बार उनको बहुत दुख हुआ था.' साल 1989 में हुई एक घटना का भी जिक्र किया था.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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