New

होम -> सिनेमा

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 08 जून, 2022 08:48 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
  • Total Shares

समलैंगिक समुदाय के लिए जून का महीना बहुत खास होता है. इस महीने को एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग प्राइड मंथ के रूप में सेलिब्रेट करते हैं. दुनिया भर के कई शहरों पर मार्च निकाले जाते हैं. इसके जरिए समुदाय के लोग अपनी आजादी और कानूनी अधिकारों का जश्न मनाते हैं. अब से 53 साल पहले साल 1969 में न्यूयॉर्क की सड़कों पर मार्च पास्ट करके इस समुदाय के लोगों ने अपने हक में मांग उठाई थी. लेकिन उस वक्त पुलिस ने लोगों को पकड़ कर बहुत मारा पीटा था. लेकिन समलैंगिकों का विरोध तबतक जारी रहा, जब तक उनके हक में कानून नहीं बन गया. भारत में भी साल 2018 तक इसे अपराध माना जाता था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को खत्म करके इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया. कोर्ट ने कहा था, ''जो भी जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. समलैंगिक लोगों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है.''

सामाजिक सरोकारों के लिए भारतीय फिल्म इंडस्ट्री समय के साथ हमेशा मुखर रही है. जब लोग समलैंगिकता पर बात करने से परहेज करते थे. इसे समाज में अपराध माना जाता था. लोग इस पर बात करने से डरते थे. उस वक्त भी कई फिल्मों में समलैंगिक संबंधों पर आधारित कहानियां दिखाई गईं. उन फिल्मों का विरोध भी हुआ, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री कभी पीछे नहीं हटी. समलैंगिकों के अधिकार की इस लड़ाई में हमेशा उनके साथ रही है. फिल्मों के जरिए लोगों को जागरूक करती रही. हालांकि, ऐसी फिल्मों पर बवाल भी खूब हुआ है. याद कीजिए दीपा मेहता की फिल्म 'फायर' के बारे में, जिसे साल 1996 में रिलीज किया गया था. समलैंगिक संबंधों आधारित इस फिल्म में अभिनेत्री शबाना आजमी और नंदिता दास ने लेस्बियन कपल का किरदार निभाया है. इस फिल्म को लेकर देशभर में हंगामा हुआ था. इसे देखते हुए फिल्म को भारत में बैन कर दिया गया.

aligarh_650_060722094257.jpg

समलैंगिकों की समस्या को समझना चाहते हैं तो जरूर देखें ये 5 फिल्में...

1. चंडीगढ़ करे आशिकी (Chandigarh Kare Aashiqui)

क्या खास है: ये फिल्म ट्रांसजेंडर की समस्याओं पर आधारित है. ऐसे लोगों को हम किन्नर या हिजड़ा के नाम से भी जानते हैं. इनका लिंग जन्म के समय तय किए गए लिंग से मेल नहीं खाता है. ये पुरुष होते हुए भी एक महिला की तरह होते हैं. समय के साथ इनकी स्थिति बदली है. हम सेक्स चेंज कराकर ट्रांसजेंडर पुरुष से महिला बन रहे हैं. इस तरह उनका सेक्स तो चेंज हो जा रहा है, लेकिन उनके प्रति समाज का नजरिया कैसा होता है, ये समझने के लिए इस फिल्म को देखा जाना चाहिए.

भूषण कुमार, प्रज्ञा कपूर और अभिषेक नैयर की प्रोडक्शन कंपनी के बैनर तले बनी फिल्म 'चंडीगढ़ करे आशिकी' 'सेक्स चेंज' जैसे संवेदनशील मुद्दे पर आधारित थी. इसमें आयुष्मान खुराना और वाणी कपूर लीड रोल में थे. गौरव शर्मा, गौतम शर्मा, कंवलजीत सिंह, अंजन श्रीवास्तव और अभिषेक बजाज जैसे कलाकार भी अहम किरदारों में हैं. फिल्म एक बोल्ड और वर्जित विषय को बहुत ही संवेदनशील तरीके से पेश करती है, जिसमें भावनाओं का भरपूर मिश्रण है. अभिषेक कपूर, सुप्रतीक सेन और तुषार परांजपे की लिखी कहानी प्रगतिशील, ताज़ा और समय की आवश्यकता है, क्योंकि महत्वपूर्ण संदेश देती है. अमूमन हिंदी फिल्मों में हमने देखा है कि एक लड़का और लड़की मिलते हैं. दोनों के बीच रोमांस होता है. अचानक दोनों दूर हो जाते हैं. अंत में दोनों का मिलन हो जाता है. लेकिन इस फिल्म में रोमांस के बाद बड़ा सवाल खड़ा होता है. क्योंकि नायक को पता चलता है कि नायिक एक ट्रांस गर्ल है. वो सेक्स चेंज कराकर लड़के से लड़की बनी है. ऐसे में नायक के तो पैरों तले जमीन ही खिसक जाती है. लेकिन आगे जो कुछ होता है, वही सच्चा प्यार है.

2. शुभ मंगल ज्यादा सावधान (Shubh Mangal Zyada Saavdhan)

क्या खास है: पहले पूरी दुनिया में समलैंगिकता को अपराध और पाप के नजरिए से देखा जाता था. लेकिन समय के साथ लोगों का नजरिया बदला. कई देशों में गे या लेस्बियन को सामान्य आदमी की तरह देखा जाता है. ये फिल्म यह बताने की कोशिश करती है कि समलैंगिक होना किसी तरह कि कोई बीमारी नहीं है. परिवार और समाज को इसके प्रति अपना नजरिया बदलना होगा. हर इंसान को अपनी खुशी के अनुसार अपनी जिंदगी को जीने का हक है.

आनंद एल राय, भूषण कुमार और हिमांशु शर्मा की प्रोडक्शन कंपनी के बैनर तले बनी रोमांटिक कॉमेडी फिल्म 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' साल 2020 में रिलीज हुई थी. हितेश केवल्य के निर्देशन में बनी इस फिल्म में में सेक्सुअलिटी जैसे गंभीर विषय को कॉमिक अंदाज में दिखाया गया है. इसमें आयुष्मान खुराना, जितेंद्र कुमार, गजराज राव, नीना गुप्ता, मनु ऋषि चड्ढा, सुनीता, मानवी और पंखुड़ी जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं. दो लड़कों के आपसी प्यार और उनके परिवार के बीच उठे जद्दोजहद और पीड़ा पर बनी इस फिल्म की कथा-व्यथा को बखूबी वही समझ सकता है, जो इस रास्ते से गुजर रहा हो या कम से कम किसी को गुजरते हुए देखा हो. इसमें दो लड़के समलैंगिक हैं. एक-दूसरे के साथ रिलेशनशिप में हैं. लेकिन जब उनके परिजनों को उनका सच पता चलता है, तो घृणा और ब्लैकमेलिंग का सामना करना पड़ता है. उन्हें अलग-अलग शादी को लिए मजबूर किया जाता है. लेकिन अंतत: उनके प्यार की जीत और परिवार की हार होती है. फिल्म उस टैबू पर प्रहार करती है जिसमें समलैंगिक रिश्तों को बीमारी के रूप में देखा जाता है.

3. अलीगढ़ (Aligarh)

क्या खास है: फिल्म 'अलीगढ़' के जरिए यह बताने की कोशिश की गई है कि हमें हर किसी की नीजता का सम्मान करना चाहिए. अपनी निजी जिंदगी में कौन क्या कर रहा है, इसे जानने का अधिकार किसी को तभी है, जब वो बताना चाहे. सोशल मीडिया के इस दौर में हर किसी की प्राइवेसी खतरे में है.

निर्देशक हंसल मेहता की फिल्म 'अलीगढ़' में यह सवाल मुख्य रूप से उठाने की कोशिश कि गई है कि क्या हमें किसी के एकांत में झांकने की इजाजत मिलनी चाहिए? इस दौर में हर हाथ में कैमरे हैं, जिसकी वजह से निजता का हनन हर बार होता है. यहां तक यदि कोई कुछ छुपाने की कोशिश भी करे, तो लोग उसे संदिग्ध नजरों से देखना शुरू कर देते हैं. यह फिल्म व्यक्तिगत निजता की वकालत करती है, जो कि एक सच्ची घटना पर आधारित है. फिल्म को साल 2016 में रिलीज किया गया था, जिसमें मनोज वाजपेयी, राजकुमार राव और आशीष विद्यार्थी लीड रोल में हैं. फिल्म की कहानी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक गे प्रोफेसर के इर्द-गिर्द घूमती है. उनका एक रिक्शा चलाने वाले लड़के के साथ यौन संबंध बनाने का वीडियो वायरल हो जाता है. इसके बाद प्रोफेसर को सस्पेंड कर दिया जाता है. राह चलते लोग उनको ताने कसते हैं. हालत यहां तक पहुंच जाती है कि प्रोफेसर आत्महत्या तक करने का फैसला कर लेते हैं. फिल्म प्रोफेसर की आत्महत्या या हत्या का सवाल आपके जेहन में पैदा करने के साथ खत्म हो जाती है.

4. बधाई दो (Badhaai Do)

क्या खास है: इस फिल्म में एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों घुटन भरी जिंदगी को बहुत संवेदनशीलता के साथ पेश किया गया है. इसमें बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा धारा 377 के खत्म किए जाने के बावजूद अभी तक समाज नजरिया समलैंगिक रिश्तों के प्रति बदल नहीं पाया है. आज भी उनको समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है.

जंगली पिक्चर्स के बैनर तले बनी फिल्म 'बधाई दो' का निर्देशन हर्षवर्धन कुलकर्णी ने किया है. इस फिल्म में राजकुमार राव, भूमि पेडनेकर, सीमा पाहवा, शीबा चड्ढा, नितिश पांडे और गुलशन देवैया अहम भूमिकाओं में हैं. फिल्म की कहानी सुमन अधिकारी, अक्षत घिल्डियाल और हर्षवर्धन कुलकर्णी ने लिखी है. ये फिल्म इसी फ्रेंचाइजी की पिछली फिल्म 'बधाई हो' की ही तरह सामाजिक और पारिवारिक ताने बाने में वर्जित विषय पर बनी है. फिल्म में राजकुमार राव और भूमि पेडनेकर जैसे कलाकार गे और लेस्बियन किरदारों को मुखर करते हुए न केवल उनकी चुनौतियों और मुश्किलों की बात करते हैं बल्कि इस समुदाय के लोगों और परिवारों को एक नया नजरिया देने का प्रयास भी करते हैं. फिल्म एक ऐसे संवेदनशील और जरूरी मुद्दे को पेश करती है, जिसमें कहानी और चरित्र समलैंगिक समुदाय को स्टीरियोटाइप नहीं करते बल्कि उनके प्रति जमे हुए पूर्वाग्रह और कमतर मानसिकता को बदलने का प्रयास करते हैं. इसमें राजकुमार राव और भूमि पेडनेकर ने अपने करियर का सबसे बेहतरीन अभिनय किया है. फिल्म एक गंभीर को हंसाते हुए समझा जाने का मादा रखती है.

5. एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

क्या खास है: एक समलैंगिक जोड़े की वजह से परिवार और समाज किस तरह से प्रभावित होता है और उनके साथ व्यवहार करता है, इस फिल्म में दिखाया गया है. कई बार परिवार साथ देना भी चाहे तो समाज के डर से पीछे हट जाता है. ऐसे तब हो रहा है जब कि इसे कानूनी रूप से अपराध नहीं माना जाता है.

शैली चोपड़ा धर के निर्देशन में बनी फिल्म 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' ऐसे मुद्दे पर बनी है, जो एलजीबीटी समुदाय ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए अहम फिल्म साबित होती है. फिल्म में समलैंगिक रिश्तों का भावनात्मक पहलू तो मजबूती से बुना गया है, लेकिन उनके सेक्शुअल ओरिएंटेशन पर बात नहीं की गई है. फिल्म में एक लेखक-निर्देशक साहिल मिर्जा (राजकुमार राव) को एक पंजाबी लड़की स्वीटी (सोनम कपूर) प्यार हो जाता है. अपने प्यार को पाने के लिए साहिल सबसे पहले स्वीटी की मां छत्रो (जूही चावला) को पटाता है. उसके जरिए गांव मोगा पहुंच जाता है. वहां स्वीटी अपने पिता बलबीर चौधरी (अनिल कपूर), मां छत्रो, बीजी (मधुमालती कपूर), वीरजी (अभिषेक दुहान) के साथ रहती है. एक दिन मौका देखकर साहिल स्वीटी से अपने प्यार का इजहार कर देता है, लेकिन स्वीटी बताती है कि वो किसी लड़के से नहीं बल्कि अपनी दोस्त कुहू से प्यार करती है. वो दोनों शादी करने वाले हैं. एक पंजाबी परिवार में समलैंगिक रिश्ते का क्या हश्र होता है, इसे फिल्म में दिखाया गया है. समाज खिलाफ हो तो परिवार भी पीछे हट जाता है.

#Lgbtq, #समलैंगिक, #समलैंगिकता, LGBTQ Pride Month, Bollywood Movies On Homosexuality, Aligarh

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय