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Updated: 11 जुलाई, 2021 04:57 PM
प्रतिमा सिन्हा
प्रतिमा सिन्हा
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आमिर खान और किरण राव का तलाक हुआ है या उन्होंने परस्पर सहमति के आधार पर तलाक लिया अथवा दिया है. यह पिछले कई दिनों से सबसे ज़्यादा सुर्खियों में रहने वाली ख़बर है. प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. सकारात्मक / नकारात्मक विचार व्यक्त किए जा रहे हैं. बावजूद इस सच के कि किन्हीं दो परिपक्व लोगों के बीच होने वाली किसी भी घटना को समझना, तीसरे व्यक्ति के लिए इतना भी आसान नहीं होता, लगातार कयास लगाए जा रहे हैं. विश्लेषण किया जा रहा है. और इस पूरे विश्लेषण में एक तथ्य बहुत स्पष्टता के साथ व्यक्त होता दिख रहा है कि इस संबंध विच्छेद में आमिर खान ने पितृसत्तात्मक समाज द्वारा पुरुषों को दिए गए अदम्य अधिकारों का फ़ायदा उठाया है. किरण ने तकरीबन मजबूरी में इस निर्णय को अपनी सहमति दी है.

मैंने कहीं पढ़ा तलाक की घोषणा के समय किरण उदास थीं.असहज थीं. उनकी आंखों में ख़ालीपन था. उन पर एक असमंजस हावी था. मैंने कहीं पढ़ा आमिर खान ने किरण को संबंध विच्छेद के लिए मजबूर किया होगा क्योंकि वो समर्थ थे.

Amir Khan, Kiran Rao. Marriage, Divorce, Woman, Relationship, Societyइस खबर के बाद कि आमिर खान और किरण राव के बीच तलाक हो रहा है समाज को एक बार फिर चटपटी बातें करने का मौका मिल गया है

अय्याशीपसन्द आमिर खान जल्द ही तीसरी शादी का ऐलान करेंगे और किरण राव पीछे कहीं अकेली-अधूरी छूट जाएंगी.

क्या सचमुच?

नहीं, मैं आमिर खान की अय्याशी के बारे में कुछ नहीं कह रही. मैं सिर्फ इतना जानना चाहती हूं कि क्या आप किरण राव को अंडर एस्टीमेट नहीं कर रहे हैं?क्या आप उन्हें इसलिए उदास नहीं देख रहे हैं क्योंकि यही देखना चाहते हैं? क्या किरण इतनी कमज़ोर हैं कि एक अय्याश पति से संबंध खत्म होने पर उदास हो जाएं?

आमिर खान जैसे सुपरस्टार से शादी के पहले और उसके बाद 15 सालों में भी कभी जिस मज़बूत औरत ने पति के स्टारडम की छाया को ख़ुद पर हावी नहीं होने दिया, वो इतनी कमज़ोर होगी, आपने कैसे जाना?

क्या यह भी वही पितृसत्तात्मक सोच नहीं है जिसके हिसाब से तलाक के बाद हमेशा स्त्री ही 'छोड़ी गई' मानी जाती है, पुरुष कभी 'छोड़ा हुआ' नहीं माना जाता? ये फैसला किरण राव का भी हो सकता है, यह मानने से आपको कौन रोक रहा है? क्या वही पितृसत्तात्मक सोच नहीं, जो हमेशा से मानती है कि एक औरत चाहे टूट के बिखर जाए लेकिन वो शादी से बाहर अपनी मर्ज़ी से नहीं निकलेगी क्योंकि उसके लिए घर बचाना ही प्राथमिकता होती है या फिर होनी चाहिए?

आप क्यों नहीं मान सकते?

आपको मानना चाहिए कि एक औरत भी अपनी मर्ज़ी से तलाक ले या दे सकती है और उसके बाद भी खुश रह सकती है. जिस रिश्ते में प्रेम और परस्पर ज़रूरत खत्म हो चुकी हो उससे निकल जाने से बड़ी कोई भी रिहाई नहीं. आमिर तीसरी शादी करें या तीसवीं इससे किरण राव को अब कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.

भूलिए मत कि किरण राव आमिर खान से शादी के बाद भी 'किरण राव' ही रही हैं, 'किरण खान' नहीं. उनका व्यक्तित्व बिल्कुल अलग है. मज़बूत और बिंदास. मोटा चश्मा लगाए और काफी हद तक सुंदर नहीं दिखते हुए भी अपने आत्मविश्वास से दमकती किरण राव को अपनी पहचान बनाने के लिए कभी भी आमिर खान की ज़रूरत नहीं थी. वह एक स्वतंत्र व्यक्तित्व थीं, हैं और रहेंगी और अगर आप यह मानना नहीं चाहते तो यकीन मानिए.

आप भी कहीं ना कहीं उसी पितृसत्तात्मक समाज की कंडीशनिंग का हिस्सा हैं, जो पुरुष से अलग हुई स्त्रियों को दया के भाव से देखता है.

इसी दया भाव से स्त्रियां सहम जाती हैं. अपने ही निर्णय पर पुनर्विचार करने लगती हैं. शंका करने लगती हैं. आपका यह दया भाव उनके व्यक्तित्व को खत्म कर देता है. हर पल दुखी रहना और दुखी दिखना उनके लिए अनिवार्य हो जाता है.

हो सकता है, आपको यह मेरी एकतरफ़ा बात लगे. हां, मैं किरण राव को नहीं जानती. मैं इस मसले का अंदरूनी पहलू भी नहीं जानती लेकिन मैं ख़ुद को जानती हूं और... एक औरत होने के नाते, एक आज़ाद और मज़बूत औरत होने के नाते मुझे मालूम है कि मेरे ऐसे ही फ़ैसले के बाद लोगों ने मुझे भी दया भाव से देखने की कोशिश की थी.

कुछ तो आज भी देखते हैं. उनका पक्का विश्वास है कि मैं खुश नहीं हूं. हो ही नहीं सकती क्योंकि मैं किसी पुरुष की छत्रछाया में नहीं हूं. तो 'किरण राव के बहाने' एक बार फिर अपने मन की यह बात कहने में बहुत सुकून महसूस हो रहा है कि मेरे लिए, मेरा फ़ैसला मैंने ख़ुद लिया था. मैं छोड़ी नहीं गई थी, मैंने छोड़ा था.

अपने लिए आज़ादी चुनी थी. किरण राव जैसा स्टेटस नहीं होने के बावजूद वैसे ही दृढ़ता के साथ मैंने अपने लिए एक अनिश्चित भविष्य का चुनाव किया था और यह मेरे उन फैसलों में से एक है जिस पर आज भी मुझे सबसे ज़्यादा गर्व है.

इसी बहाने गुजारिश सिर्फ इतनी कि मत underestimate कीजिए, किरण राव या किसी भी ऐसी दूसरी, तीसरी, चौथी औरत को जो कोई पीड़िता होकर नहीं बल्कि आज़ाद और खुशहाल होकर एक चुक गए संबंध से बाहर निकलने का हौसला रखती है. जिसके लिए तलाक कोई तकलीफ़ नहीं बल्कि तकलीफ़ से छूटने का ऐलान है.

एक ऐसा माहौल बनने दीजिए जिसमें औरत बिना किसी opinion की चिंता किए हुए अपनी आज़ादी का जश्न मना सके. बिना किसी डर के, वो वाकई ख़ुश है, ये बता सके.

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लेखक

प्रतिमा सिन्हा प्रतिमा सिन्हा @pratima.sinha.5

लेखिका महिला मुद्दों पर लिखती हैं.

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