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Updated: 18 दिसम्बर, 2018 02:29 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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एक हॉट अभिनेत्री, भड़कीले और बदन दिखाऊ कपड़े और गाने के द्विअर्थी बोल- ये वो सामान है जिनसे मिलकर एक आइटम नंबर बनता है. जिन्हें फिल्म में इसलिए डाला जाता है जिससे लोगों को इंटरटेनमेंट मिल सके और फिल्म बिक सके. हमारे समाज के पुरुष इसी इंटरटेनमेंट के आदी रहे हैं, पहले ये इंटरटेनमेंट उन्हें गांव-गांव आने वाली नौटंकियों में मिला करता था, जो अब फिल्मों में दिखाई देता है.

चिकनी चमेली हो, शीला की जवानी हो, या मुन्नी बदनाम जैसे तमाम गाने हैं जिन्होंने पुरुषों को तो झूमने पर मजबूर किया, लेकिन महिलाओं के अस्तित्व को शराब की एक बोतल में समेटकर रख दिया. महिलाओं को वस्तु की तरह पेश किया जिसका उद्देश्य सिर्फ पुरुषों को रिझाना भर था. आइटम नंबर पर फिर एक बहस उठी है. जिसपर गौर करना जरूरी है.

बॉलीवुड डायरेक्टर करण जौहर ने कुछ ही दिनों पहले चिकनी चमेली जैसे गाने को अपनी फिल्म में डालने के लिए माफी मांगी थी. उन्होंने कहा था कि वो दोबारा कभी इस तरह के गाने नहीं फिल्माएंगे जिसमें महिलाओं को उत्पाद की तरह प्रस्तुत किया जाता है. करण जौहर 'अब' ये मानते हैं कि आइटम सॉन्ग में महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई किया जाता है (मानों वो कोई वस्तु हों) और महिलाओं को पुरुषों की वासना शांत करने का माध्यम दिखाया जाता है. हालांकि करण का मानना है कि वो पहले ये गलतियां कर चुके हैं. वो 'खंबे जैसी खड़ी है' गाना भी बहुत गाया करते थे. तब उन्हें ये अहसास नहीं था कि असल में इस गाने के मायने क्या थे. लेकिन अब उनको अफसोस होता है. इसलिए लोगों के मनोरंजन के लिए फूहड़ता परोसी जाए या महिलाओं के सम्मान को चोट पहुंचे ये अब नहीं होगा. 'आइटम' शब्द बोला ही महिलाओं के लिए जाता है, जो अपने आप में उन्हें नीचा दिखाना ही है.

karan joharकरण जौहर अब कभी अपनी फिल्मों में चिकनी चमेली जैसे गाने नहीं फिल्माएंगे

ये करण जौहर की निजी सोच है जबकि सच्चाई ये है कि कुछ पुरुष सिर्फ इन गानों को देखकर ही मजे नहीं लेते बल्कि इन्हें अपनी शब्दावली में भी शामिल कर लेते हैं. सड़क पर चल रही एक महिला को 'चिकनी चमेली' बोल देने में भी उन्हें वही इंटरटेनमेंट मिलता है जो गाने को देखकर मिलता है. 'आय-हाय..शीला की जवानी' जैसे कमेंट तो अक्सर सड़कों पर लड़कियां सुनती हैं.

लेकिन बहस जब आइटम नंबर पर महिलाओं के ऑब्जेक्टिफिकेशन की हो तो उनका कहना भी सुनना चाहिए जो आइटम बनकर इन गानों पर ठुमके लगा चुकी हैं और उनका भी जो इन गानों से खुद को अपमानित महसूस करती हैं.

कैटरीना कैफ फिल्मों में कई आइटम नंबर कर चुकी हैं खासकर चिकनी चमेली भी उन्होंने ही किया था. वो करण जौहर की बात से इत्तेफाक नहीं रखतीं. डीएनए को दिए एक इंटरव्यू में कैटरीना का कहना है कि- ''ये उस व्यक्ति पर निर्भर करता है जो उस गाने पर परफॉर्म कर रहा है. मुझे नहीं लगता कि मडोना या स्टेज पर स्विमसूट पहनकर नाचते हुए बियोन्से को महसूस होता होगा कि वो ऑब्जेक्टिफाई हो रही हैं. मायने ये रखता है कि आपको उस गाने पर नाचते हुए कैसा लगता है. चिकनी चमेली गाना करते वक्त मैंने एक पल के लिए भी ये महसूस नहीं किया कि मुझे ऑब्जेक्टिफाई किया जा रहा है या फिर कोई मुझे गलत तरीके से देख भी रहा है. बिल्कुल भी नहीं. मैंने गाना इनजॉय किया, डांस इनजॉय किया. जिस गाने पर एक महिला परफॉर्म कर रही है, उसे इनजॉय कर रही है, ये जरूरी नहीं कि उसका ऑब्जेक्टिफिकेशन ही किया जा रहा है. ये सिर्फ उसपर निर्भर करता है कि उसे किस तरह से देखा जा रहा है.''

तो कैटरीना कैफ को जरा भी नहीं लगता कि ये गाने एक महिला को महिला नहीं बल्कि एक वस्तु की तरह प्रस्तुत करते हैं. उन्हें लगेगा भी नहीं, क्योंकि ये उनका काम है. राखी सावंत और भोजपुरी फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्रियों को भी नहीं लगता कि उनके शरीर को ऑब्जेक्टिफाई किया जा रहा है. वो खुशी-खुशी अपना काम करती हैं, इनजॉय करती हैं. क्योंकि उसके लिए उन्हें पैसे मिलते हैं. करियर का सवाल होता है तो वुमन इमपॉवरमेंट जैसी बातें नहीं होतीं, सेल्फ इमपॉवरमेंट होता है. तब ये कहा जाता है कि हमें तो इससे कोई परेशानी नहीं. लेकिन जिस समाज के लिए आप फिल्में बनाते हो, आइटम नंबर करते हो उस समाज के लिए कुछ तो जिम्मेदारी बनती है. मीटू पर इंडस्ट्री में बवाल हो गया. तब महिलाओं ने ही जिम्मेदार लोगों की तरह बहुत कुछ कहा, महिला सशक्तिकरण की बातें कही गईं. लेकिन आइटम नंबर के मामले में किसी को ऑब्जेक्टिफिकेशन की बात नजर नहीं आती.

katrina-650_121718050209.jpgकैटरीना कैफ ने आने वाली फिल्म 'ज़ीरो' में भी हुस्न परचम नाम का आइटम नंबर किया है जो काफी चर्चित हो रहा है

तनुश्री दत्ता उस वक्त एक आइटम नंबर ही कर रही थीं, जब उनके साथ नाना पाटेकर ने कथित तौर पर छेड़छाड़ की. हो सकता है कैटरीना इस मामले में खुशकिस्मत रही हों. लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है कि वो जो पेश कर रही हैं वो औरों के लिए अच्छा हो. उनका काम अच्छा हो सकता है, उनके साथ काम करने वालों का रवैया अच्छा हो सकता है, लेकिन उस काम का प्रभाव लोगों पर किस तरह से पड़ता है उसकी जिम्मेदारी भी उन्हें लेनी चाहिए. खैर कैटरीना जो भी कहें, लेकिन इस पूरी बहस से एक बात तो साफ है कि आइटम नंबर का पक्ष लेने से आइटम नंबर की हकीकत बदल नहीं जाएगी. वो जिस काम के लिए बनाए जाते हैं, वो होता ही रहेगा. वहीं करण जौहर के पक्ष की भी तारीफ करनी होगी कि देर से ही सही उन्हें कम से कम ये अहसास तो हुआ कि वास्तव में फिल्म में कई बार जरूरत से ज्यादा ही फूहड़ता परोसी दी जाती है जो महिलाओं के लिए अच्छा नहीं है (उनमें काम करने वाली अभिनेत्रियां नहीं बल्कि समाज में रहने वाली महिलाएं). आज करण जौहर बदले हैं कल कोई और बदलेगा और आइटम नंबरों में दिखने वाली फूहड़ता में कमी आएगी. हम कैसे उन गानों को भूल सकते हैं जिसमें बिना किसी अश्लीलता के इंटरटेनमेंट दिया गया था. 'जबां पे लागा..रे लागा नमक इश्का का' याद कीजिए.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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