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Updated: 09 फरवरी, 2023 01:58 PM
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भारतीय सिनेमा के इतिहास में यूं तो तमाम फ़िल्में आईं मगर कांतारा उन चुनिंदा फिल्मों में से एक है- जिसे लेकर रिलीज से पहले बहुत कारोबारी अपेक्षाएं नहीं की गई थीं. मूलत: कन्नड़ में बनी फिल्म ने 400 से 450 करोड़ तक की रिकॉर्डतोड़ कमाई की थी. इसे मात्र 16 करोड़ के बजट में बनाया गया था. रिलीज के बाद देखने वाले दर्शकों और समीक्षकों ने इस तरह तारीफ़ की कि निर्माताओं ने तमाम दूसरी भाषाओं में इसे रिलीज किया और खूब पसंद की गई. यह ऐसी फिल्म थी जिसकी क्लास और मास दोनों तरह की ऑडियंस ने जमकर सराहना की.

हाल ही में फिल्म ने रिलिज के 100 दिन पूरे किए हैं. कांतारा की टीम सफलता के 100 दिन का जश्न मना रही है. इस मौके पर कांतारा के निर्माताओं ने फिल्म के दूसरे पार्ट की घोषणा की है. यानी कांतारा भी अब एक फ्रेंचाइजी है. मगर कांतारा का दूसरा पार्ट प्रिक्वल होगा. यानी पहले पार्ट से पहले की कहानी. फिल्म का निर्माण हंबल प्रोडक्शन ही करने जा रहा है. जबकि इसका निर्देशन ऋषभ शेट्टी करेंगे. और मुख्य भूमिका भी उन्हीं की रहेगी.चूंकि फिल्म की कहानी प्रिक्वल होगी, तो मान सकते हैं कि यह एक पीरियड थ्रिलर ड्रामा होगी. ऋषभ शेट्टी ने बताया कि कांतारा 2 की कहानी पर काम चल रहा है. शूटिंग के दौरान ही इसे बनाने का विचार आ गया था. कहानी के लिए रिसर्च पर काम जारी है.

kantara movieकांतारा का एक दृश्य.

कांतारा की फिक्शनल कहानी पंजुरली दैव को लेकर बुनी गई है. पंजुरली दैव को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. फिल्म में दिखाया गया है कि मंगलौर के एक राजा परिवार की शांति और सत्य की तलाश में जंगलों में घूम रहे होते हैं. उन्हें आदिवासियों के गांव में पंजुरली दैव की मूर्ति मिलती है. वे अपनी रक्षा के लिए गांववालों से मांगते हैं. कन्नड़ संस्कृति में पंजुरली देवता की खूब पूजा होती है. बदले में राजा आदिवासियों को जंगल की जमीनें देते हैं.

भूत कौला त्योहार के दौरान आदिवासी समुदाय में पंजुरली भगवान का वेश धारण कर विशेष पूजा की जाती है. इसमें राज परिवार के लोग भी शामिल होते हैं. समय के साथ राज परिवार के वंशजों की नियत बदल जाती है. और वह अपनी जमीन वापस पाना चाहते हैं. आदिवासी जमीन नहीं देना चाहते. इसके बाद लालच और आस्था के संघर्ष में क्या कुछ होता है- आगे यही कहानी दिखाई गई है.

क्यों कांतारा भारतीय सिनेमा की एक लाजवाब फिल्म है?

कुछ लोगों को कांतारा की कहानी बहुत पांड आई. मगर कई ऐसे लोग भी थे जिन्हें यह ओवररेटेड लगी, बावजूद कि यह फिल्म तमाम ट्विस्ट टर्न्स से भरी पड़ी है. फिल्म का क्राफ्ट लाजवाब है. इंटरवल के बाद का क्राफ्ट तो ऐसा है कि भारतीय सिनेमा में इसके आसपास कोई दूसरी फिल्म नजर नहीं आती. यह फिल्म अपने विषय के साथ बहुत ईमानदार है. खासकर उस दौर में जब सिनेमा पर प्रोपगेंडा नैरेटिव का बहुत दबाव है. मगर इसमें तमाम संवेदनशील विषयों को वैसे ही दिखाया गया है भारतीय समाज में जैसे चीजें हैं.

अमीर गरीब का झगड़ा, मान्यताओं का संघर्ष, सरकार और ग्रामीणों का संघर्ष, जातियों का संघर्ष, छुआ-छूत जिस तरह दिखाया गया है- याद नहीं आता कि भारतीय सिनेमा कब इतनी ईमानदारी से चीजों को दिखाया गया है. इसमें संघर्ष है और समाधान है. इसमें कोई स्थापना नहीं है. और यही वजह है कि संवेदनशील विषयों को दिखाने के बावजूद मन कसैला नहीं होता. बल्कि सहअस्तित्व और भविष्य की राह दिखाई पड़ती है. आख़िरी के 30 मिनट खासकर क्लाइमैक्स तो वर्ल्डक्लास है. कांतारा का क्लाइमैक्स हॉलीवुड की "गॉडफादर" के नजदीक है. भारतीय सिनेमा में यह अनुराग कश्यप की गैंग ऑफ़ वासेपुर 2 में ही नजर आता है जो असल में "गॉडफादर" से ही बुरी तरह प्रेरित है.

यह कांतारा का दुर्भाग्य है कि फिल्म उस साल आई जब आरआरआर और केजीएफ़ 2 भी रिलीज हुई. वर्ना तो कई मायनों में ऋषभ शेट्टी की कांतारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आरआरआर और केजीएफ़ 2 से ज्यादा आकर्षक फिल्म थी. बावजूद कि अब दूसरे पार्ट पर नजर रहेगी और यह फिल्म दुनियाभर के दर्शकों का वाजिब ध्यान खींचने में सफल रहेगी. पहले पार्ट की तरह दूसरे पार्ट का कॉन्टेंट रहा तो मान सकते हैं कि अंतराष्ट्रीय दर्शक कांतारा 2 को नजरअंदाज नहीं कर पाएंगे.

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