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Updated: 26 मई, 2015 09:08 AM
जितेंद्र कुमार
जितेंद्र कुमार
  @JeetuJourno
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तनु वेड्स मनु रिटर्न्स में अपनी अदा से कंगना रनाउत खूब तारीफें बटोर रही हैं. अब उनका इरादा भी करोड़ों लोगों को उनका फैन बना सकता है. असल में कंगना ने एक फेयरनेस क्रीम का दो करोड़ रुपये के ऑफर को ठुकरा दिया है. इस तरह कंगना ने साफ कर दिया है कि वो पैसे के पीछे नहीं भाग सकतीं - खासकर जिसके लिए उनका दिल गवाही नहीं देता.

बहन के लिए, बहनों की खातिर

फेयरनेस क्रीम का ऑफर ठुकराने की एक बड़ी वजह कंगना की अपनी बहन हैं. हालांकि, इस तरह कंगना ने वैसी अनेक बहनों को बता दिया है कि वो उनके साथ खड़ी हैं. इस बारे में कंगना का कहना है:

"जब मैं छोटी थी तभी से मुझे, गोरेपन का ये कंसेप्ट समझ में नहीं आया. खासकर, एक सेलिब्रिटी के रूप में मैं दूसरे लोगों के लिए क्या उदाहरण स्थापित करूंगी. मुझे इस तरह के उत्पादों के विज्ञापन को मना करने को लेकर कोई अफ़सोस नहीं है. पब्लिक फिगर होने के नाते मेरी भी कुछ जिम्मेवारियां हैं. मेरी बहन रंगोली रनाउत सांवली है, फिर भी ख़ूबसूरत है. अगर मैं इस तरह के विज्ञापन करती हूं तो एक तरह से मैं उसका अपमान करूंगी. अगर मैं अपनी बहन के साथ ये नहीं कर सकती तो फिर पूरे देश के साथ ऐसा कैसे कर सकती हूं?"

शाबाश कंगना!

कंगना का नजरिया

"आप गेहुंए रंग के हो सकते हैं, सांवले हो सकते हैं, काले हो सकते हैं - लेकिन फेयर होना जैसी कोई चीज नहीं होती. इसलिए इस अपमानजनक शब्द इस्तेमाल करना ठीक नहीं. सरकार को भी उन उत्पादों पर पाबंदी लगा देनी चाहिए. मैंने इस तरह के कई उत्पादों का विज्ञापन करने से मना कर दिया है. यही वजह है कि आप मुझे कम ही विज्ञापनों में देखते हैं. मुझे लगता है कि इनसे युवाओं में हीन भावना पनपती है और ये बेवकूफी भरा है."

ये वाजिब सवाल है

1. कंगना का कहना है कि गोरेपन का कंसेप्ट उन्हें समझ में नहीं आता. बात सही है. शादियों के विज्ञापन दिए जाते हैं तो उसमें ऐसा लगता है जैसे रंग गोरा होना उछल उछल कर बोल रहा हो. चारों तरफ खुलेआम गोरे रंग को तरजीह दी जाती है.

2. टीवी विज्ञापनों पर गौर कीजिए तो गोरा न होने की बात को किसी अभिशाप की तरह समझाया जाता है. ऐसे विज्ञापनों में समझाने की कोशिश होती है कि गोरापन ही हर कामयाबी की वजह है. अगर गोरे नहीं हैं तो गए काम से. चाहे वो घर की बात हो या फिर कार्यस्थल की. कामयाबी के लिए गोरा होना जरूरी है. ऐसी धारणा बनाने की कोशिश की जाती है.

3. कुछ दिन पहले गोरेपन को लेकर दो नेताओं के बयान पर खूब बवाल मचा. एक थे जेडीयू नेता शरद यादव और दूसरे थे, बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह. शरद यादव ने तो संसद में 'सांवली महिलाओं' को निशाना बनाया था, जबकि गिरिराज ने तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को टारगेट किया था. बाद में दोनों लगातार सफाई देते रहे और उन्हें माफी मांगनी पड़ी तब जाकर मामला ठंडा हुआ.

4. भारत में कॉस्मेटिक्स का कारोबार करोड़ों का है, जिसमें करीब तीस फीसदी हिस्सेदारी गोरापन बख्शनेवाले क्रीमों की है. दिन पर दिन ये कारोबार बढ़ता ही जा रहा है. महिलाओं के अलावा अब इसमें पुरुषों के लिए अलग कैटेगरी तैयार हो गई है.

दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी के रंगभेद के खिलाफ आंदोलन के लगभग 100 साल के बाद भी 'डार्क इस ब्यूटीफुल' कैंपेन चलाने की जरूरत पड़ रही है. जबकि भारत में सांवले रंग को राम और कृष्ण से जोड़ कर देखा जाता है. 2009 से ये कैंपेन फिल्म अभिनेत्री नंदिता दास चला रही हैं. नंदिता के बाद अब कंगना का खुलकर टिप्पणी करना इसी कड़ी में एक बड़ी पहल है.

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खूबसूरती गोरेपन का मोहताज नहीं

फिल्म तनु वेड्स मनु रिटर्न्स आने के बाद फिर से कंगना कंगना शोहरत की बुलंदियों पर हैं. ऐसे में उन्होंने गोरे रंग के प्रति हमारी सनक को फिर से झकझोरा है. अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्या बॉलीवुड के बाकी स्टार भी कंगना से प्रेरणा लेंगे या फिर धंधा यूं ही जारी रहेगा?

लेखक

जितेंद्र कुमार जितेंद्र कुमार @jeetujourno

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप (डिजिटल) की वेबसाइट आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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