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Updated: 18 मार्च, 2023 10:39 PM
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कन्नड़ सिनेमा की फिल्में पिछले दो साल से बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रही है. यहां की फिल्मों में एक खास तरह का फ्लेवर देखने को मिलता है. कहानी बिल्कुल फ्रेश, दिलचस्प और रोचक होने के साथ ही यहां की फिल्मों के नायक में एक गुस्सा, एक बगावत देखने को मिलता है. कुछ ऐसे जैसे कि बॉलीवुड की फिल्मों में 80 से 90 के दशक के बीच में देखने को मिलता था. 'केजीएफ चैप्टर', 'जेम्स', 'विक्रांत रोणा', और 'कांतारा' जैसी फिल्मों इसकी गवाह हैं.

इस कड़ी में एक नई फिल्म कन्नड़ फिल्म 'कब्जा' इस शुक्रवार को रिलीज हुई है, जिसे 'अंडरवर्ल्ड का कब्ज़ा' नाम से पैन इंडिया हिंदी, तमिल, तेलुगू और मलयालम में रिलीज किया गया है. इसका हाई वोल्टेज एक्शन थ्रिलर फिल्म में जबरदस्त एक्शन, शानदार विजुअल्स और पॉवरफुल डायलॉग भरपूर है. इसके साथ ही फिल्म में सभी कलाकारों ने शानदार अभिनय प्रदर्शन किया है. लेकिन इसके बावजूद फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. कुछ लोगों को फिल्म पसंद आ रही है, लेकिन कई लोग इसे अल्लू अर्जुन की फिल्म 'पुष्पा: द राइज' और रॉकिंग स्टार यश की फिल्म 'केजीएफ' की कॉपी बता रहे हैं.

kabza_650_031823084122.jpgउपेंद्र, श्रिया सरन और किच्चा सुदीप स्टारर पैन इंडिया फिल्म 'कब्जा' सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है.

आर चंदू के निर्देशन में बनी फिल्म 'अंडरवर्ल्ड का कब्ज़ा' में उपेंद्र, किच्चा सुदीप, श्रिया सरन और मुरली शर्मा लीड रोल में हैं. इस फिल्म के बारे में सोशल मीडिया पर एक यूजर ने लिखा है, ''यदि आपने केजीएफ 1 और केजीएफ 2 देखी है तो इसे अवॉइड कर सकते हैं. ये केजीएफ का चीप वर्जन है. फिल्म एंगेजिंग नहीं है और उपेंद्र का परफॉर्मेंस बहुत खराब है.'' ट्विटर पर अनमोल जायसवाल ने लिखा है, ''वास्तव में कब्ज़ा एक थकाऊ और उबाऊ फिल्म है. इसकी वजह विश्वास की कमी नहीं है, बल्कि इसलिए कि फिल्म निर्माताओं को लगता है कि वो एक टेम्पलेट पर फिल्में बनाकर इसे पैन इंडिया रिलीज करके सुपरहिट करा सकते हैं.''

गूगल पर एक यूजर प्रसन्ना कुमार ने लिखा है, ''सबसे घटिया फिल्म जो मैंने हाल के दिनों में सिनेमा हॉल में देखी है. मैं इस फिल्म को अमेज़न प्राइम में भी देखने की सलाह नहीं दूंगा. क्लूलेस डायरेक्टर. कहानी और पटकथा का कोई सिर और पूंछ नहीं है. फिल्म निर्माताओं को यह समझना चाहिए कि फिल्म में डार्क ब्लैकआउट और व्हाइट फ्लैश का इस्तेमाल क्यों किया जाता है. अनावश्यक ब्लैकआउट. कैमरा एंगल ठीक है, लेकिन शॉट चयन गलत है. बैकग्राउंड स्कोर बेकार है. संगीत के नाम पर केवल एक तरह का गाना है. किरदारों के अनुसार कलाकारों का चयन भी ठीक नहीं है. भव्य बनाने के चक्कर में बेकार फिल्म बना दी गई है.''

एक दर्शक शिवकुमार लिखते हैं, ''इस फिल्म को देखने के बाद बहुत निराशा हुई है. कभी उम्मीद नहीं की थी कि उप्पी (उपेंद्र) इतनी ढीली पटकथा में काम करेंगे. मैं उप्पी का कट्टर प्रशंसक हूं. चंद्रू निर्देशन और पटकथा में नासमझ हैं. यदि आप इसे सिनेमाघरों में देखने की योजना बना रहे हैं तो यह समय की बर्बादी है. फिल्म में ऐसी ग्राफिक्स इस्तेमाल की गई है, जिसकी कमियां एक बच्चा भी देखकर बता सकता है. यह फिल्म केजीएफ से प्रेरित लगता है. मैं उप्पी सर से कहना चाहूंगा कि इस तरह की बेकार स्क्रिप्ट पर बनी फिल्म में काम करके अपने प्रशंसकों को निराश न करें. चंद्रू को सलाह है कि वो निर्माताओं के पैसे का बेहतर उपयोग करें.''

दैनिक जागरण में स्मिता श्रीवास्‍तव ने अपनी समीक्षा में लिखा है, ''उपेंद्र की पैन इंडिया रिलीज होने वाली यह पहली फिल्‍म है. चंद्र मौली द्वारा लिखित और आर चंद्रू निर्देशित इस पीरियड फिल्‍म में घटनाक्रम तेजी से आगे बढ़ते हैं. पिछली सदी के चौथे दशक से लेकर सातवें दशक को दर्शाने के लिए उन्‍होंने भव्‍य सेट बनाए हैं. यहां तक कि संवाद और पार्श्‍व संगीत भी सामान्‍य से तेज और ऊंची फ्रीक्‍वेंसी पर हैं. फिल्‍म का गाना नमामि नमामि कर्णप्रिय है. उसका फिल्‍मांकन भी सुंदर है. सिनेमैटोग्राफर अरूण शेट्टी ने उस दौर को सटीक तरीके से कैमरे में दर्शाया है. कलाकारों में उपेंद्र अपने पात्र में रमे हुए नजर आए हैं. फिल्म के अगले पार्ट का इंतजार है.''

एनबीटी में प्रशांत जैन ने लिखा है, ''इस फिल्म की कहानी आजादी से पहले ब्रिटिश कालीन भारत में शुरू होती है. फिल्म के राइटर और डायरेक्टर आर चंद्रू ने एक्शन और हिंसक दृश्यों से भरपूर से एक डार्क ड्रामा पीरियड फिल्म बनाई है. इंटरवल से पहले फर्स्ट हाफ में उन्होंने कहानी को स्थापित किया है. सेकेंड हाफ में कहानी अपने असली रंग में आती है. क्लाईमैक्स में कुछ ऐसा होता है कि आप हैरान रह जाते हैं. उपेंद्र ने फिल्म में बढ़िया काम किया है, तो श्रिया सरन भी खूबसूरत लगी हैं. जबकि मुरली शर्मा समेत दूसरे कलाकारों ने अच्छा काम किया है. किच्चा सुदीप का कैमियो स्टाइलिश है, जबकि शिवा राजकुमार का क्लाईमैक्स वाला सीन फिल्म के अगले भाग की कहानी की झलक देता है. इस फिल्म का एक्शन, बैकग्राउंड स्कोर और सिनेमेटाग्राफी जबर्दस्त हैं. लेकिन स्क्रीनप्ले और कहानी के मामले में फिल्म कमजोर है.''

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