जाति के सवाल पर अमिताभ बच्चन संग स्पोर्ट्स ड्रामा लाए हैं मंजुले, असरदार है झुंड का ट्रेलर!
अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) की मुख्य भूमिका से सजी झुंड का ट्रेलर सामने आ चुका है. 4 मार्च को आ रही फिल्म का निर्देशन नागराज मंजुले ने किया है. फिल्म असल में एक बायोग्राफिकल ड्रामा है.
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कुछ ना कुछ खूबी सब में होती है. जिन्हें संसाधन और मौके मिलते हैं उनका हुनर दुनिया के सामने आ जाता है. मगर जिन्हें ये सब नहीं मिल पाता उनकी क्षमताएं कभी बाहर नहीं निकल पातीं. झोपड़पट्टी में रहने वाले दबे-कुचलों के बारे में आमधारणा है कि वे किसी काम के नहीं. दुर्भाग्य से झोपड़पट्टी में रहने वाली ज्यादातर आबादी बेहद निम्न जाति से आती है. इस वजह से छोटी जाति से आने वालों को लेकर भी एक जातिगत धारणा बना ली जाती है- 'कुछ नहीं कर सकते. कभी नहीं सुधर सकते. ये होते ही ऐसे हैं.'
यह बहस का विषय नहीं कि झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को तमाम बुरी आदतें परिवेश और विरासत में मिल जाती हैं और ज्यादातर बच्चों की जवानी उसी में बर्बाद भी हो जाती है. उनका दोष वश इतना है कि उन्होंने वहीं जन्म लिया है और किसी ने उनके हुनर को पहचाना नहीं. उन्हें सामान्य बच्चों जैसे मौके नहीं मिले. नागराज मंजुले के निर्देशन में बनी स्पोर्ट्स ड्रामा झुंड का ट्रेलर रिलीज हो गया है.
अमिताभ बच्चन, रिंकू राजगुरु और अन्य कलाकारों की मुख्य भूमिकाओं से सजी झुंड की कहानी झोपड़पट्टी में रहने वालों को लेकर बनाई गई आमधारणा और एक प्रोफ़ेसर की धारणा के बीच के संघर्ष को लेकर है. अमिताभ बच्चन प्रोफ़ेसर विजय के मुख्य किरदार में हैं.
झुंड में अमिताभ बच्चन.
प्रोफ़ेसर मानता है कि मौका मिलने और तराशे जाने पर झोपड़पट्टी के बच्चे भी उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल कर सकते हैं. लेकिन प्रोफ़ेसर को कॉलेज में पढ़े-लिखे लोगों के बीच बनी उस धारणा से संघर्ष करना पड़ता है जो ठीक उसके विपरीत सोचता है. कॉलेज झोपड़पट्टी के लड़कों के आने से खुश नहीं है. ये लड़के गांजे के लती हैं, ट्रेनों में कोयला चुराते हैं, छिनौती करते हैं और मारपीट उनका रोज का पेशा है. इसके अलावा उनके जीवन में कुछ नहीं दिखता. ना तो इनके माता पिता को फ़िक्र है और भला दुनिया क्यों फ़िक्र करे इनकी. इनकी हालत देखकर आम धारणाएं गलत नहीं लगतीं. लेकिन प्रोफ़ेसर को लगता है कि अगर इन्हें सामान्य बच्चों की तरह मकसद दिया गया होता तो ये भी कमाल दिखाने का दम रखते हैं.
झुंड का का ट्रेलर नीचे देख सकते हैं:-
तमिल की तरह हिंदी सिनेमा में भी उठेगा जाति का सवाल
प्रोफ़ेसर आम धारणाओं को गलत साबित करने का बीड़ा उठाता है. झोपड़पट्टी के बच्चों को जुटाता है. उन्हें फुटबाल की ट्रेनिंग देता है. फ़ुटबाल का मकसद पाते ही बच्चों का जीवन बदलने लगता है. बच्चों के जीवन में फ़ुटबाल का मकसद देने तक प्रोफ़ेसर को किस तरह के मुश्किल हालात से गुजरना पड़ता है, बच्चों का जीवन किस तरह बदलता है यही झुंड की कहानी में दिखाने की तैयारी है. झुड का ट्रेलर सब्जेक्ट के हिसाब से असरदार दिख रहा है. इन दिनों तमिल सिनेमा में जाति के सवाल को बड़ी बड़ी फिल्मों के जरिए एड्रेस किया गया है. फिल्मों पर खूब बहस भी देखने को मिली.
झुंड फ़िलहाल जाति के सवाल पर मुख्यधारा में बनी बड़ी और स्पष्ट कहानी नजर आ रही है. झुंड पर व्यापक बहस देखने को मिल सकती है. वैसे भी झुंड की कहानी सच्ची घटनाओं से प्रेरित है. फिल्म की कहानी विजय बरसे के जीवन पर आधारित है. विजय बरसे को स्लम सॉकर की स्थापना के लिए जाना जाता है.
झुंड में फुटबाल की कहानी दिखेगी.
नागराज की पहली हिंदी फिल्म, पहली बड़ी फिल्म भी
झुंड नागराज की पहली बड़ी कमर्शियल फिल्म है. झुंड का ट्रेलर साफ़ बताता है कि इस पर ब्रांड नागराज मंजुले की छाप है. मंजुले खुद दलित समुदाय से आते हैं और उनके निजी सामजिक अनुभव उनकी फिल्मों का हिस्सा बनते हैं. सैराट और फैंड्री में मंजुले ने अंबेडकराइट विचार नजर आए थे. झुंड में भी उसे महसूस किया जा सकता है. मंजुले बहुजन प्रतीकों का इस्तेमाल करते दिख रहे हैं. फिल्म के संवादों और दृश्यों में फिलहाल उसकी झलक दिख रही है. डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीर का भी इस्तेमाल ट्रेलर में दिख रहा है. फिल्म के स्कोर पर भी ब्रांड मंजुले की छाया है. सैराट के बाद अजय अतुल की जोड़ी अपनी धुनों से दर्शकों को लाजवाब करने के लिए तैयार हैं.
झुंड नागराज की पहली हिंदी फिल्म भी है. इसे टीसीरीज और दूसरे निर्माताओं ने बनाया है. इससे पहले नागराज ने बहुत कम संसाधनों पर मराठी में फ़िल्में बना चुके हैं जिन्हें दुनियाभर के दर्शकों ने सराहा था. झुंड में अमिताभ संग मंजुले के काम पर दर्शकों की नजर रहेगी.
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