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Updated: 17 सितम्बर, 2022 09:12 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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'तनु वेड्स मनु', 'गिन्नी वेड्स सन्नी' और 'शादी में जरूर आना' जैसी फिल्में बना चुके फिल्मकार विनोद बच्चन को बॉलीवुड के परंपरागत फिल्म निर्माण प्रक्रिया से अलग फिल्मों को बनाने के लिए जाना जाता है. उनकी फिल्मों में हीरो-होराइन और उनकी प्रेम कहानी से इतर अनोखी कहानियां देखने को मिलती रही हैं, जिनमें ज्यादातर फैमिली ड्रामा होते हुए भी अपने अलग तेवर और कलेवर के लिए जानी जाती रही हैं. विनोद ने अपनी फिल्मों के जरिए हिंदी सिनेमा में देसी कहानियों की एक नई परंपरा भी शुरू की है. कुछ ऐसा ही उनकी नई फिल्म 'जहां चार यार' में भी देखने को मिल रहा है. स्वरा भास्कर, शिखा तलसानिया, मेहर विज और पूजा चोपड़ा स्टारर फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज की गई है. इस फिल्म का निर्देशन कमल पांडे ने किया है. फिल्म के बारे में सोशल मीडिया पर दर्शकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है, वहीं कुछ समीक्षकों को फिल्म अच्छी नहीं लगी है.

fav9aylueaec1-t_650_091722074259.jpgफिल्म में स्वरा भास्कर, शिखा तलसानिया, मेहर विज और पूजा चोपड़ा लीड रोल में हैं.

आइए सबसे पहले सोशल मीडिया पर आई दर्शकों की प्रतिक्रिया के बारे में जानते हैं. ट्विटर पर एक यूजर संदीप बिष्ट ने फिल्म की तारीफ करते हुए लिखा है, ''प्लीज आप सभी फिल्म समीक्षकों द्वारा की गई नकारात्मक समीक्षाओं पर बिल्कुल भी भरोसा न करें. जहां चार यार एक बेहतरीन फिल्म है. हमेशा की तरह स्वरा भास्कर ने शानदार अभिनय किया है. एक देखे जाने लायक फिल्म, इसे जरूर देखें.'' जोगिंदर टुटेजा फिल्म को 5 में से 3 स्टार देते हुए लिखते हैं, ''जैसा कि आशा थी फिल्म जहां चार यार एक ताजा हवा की झोंके की तरह है. एक कॉमेडी ड्राम जिसमें सभी महिला कलाकार मुख्य भूमिका में हैं, ऐसे बॉलीवुड की फिल्मों में बहुत कम देखने को मिलता है. स्वरा भास्कर, शिखा तलसानिया, मेहर विज और पूजा चोपड़ा ने बहुत अच्छा काम किया है.'' फहाद अहमद इस फिल्म के देखने के बाद बहुत ज्यादा उत्साहित हैं. उनका मानना है कि फिल्म हर किसी को देखना चाहिए.

फहाद लिखते हैं, ''अभी फिल्म जहां चार यार देखी. हिंदुस्तान के कस्बों और छोटे शहरों में रहने वाली महिलाओं की जिंदगी और उनकी समस्याओं को बहुत खूबसूरती से पेश किया गया है. स्वरा भास्कर, शिखा तलसानिया, मेहर विज और पूजा चोपड़ा ने अपने किरदारों के जरिए इसमें जान डाल दी है. मुझे लगता है कि शिवांगी और बिंदिया सीक्वल हैं. इन दोनों किरदारों को स्वरा भास्कर से बेहतर कोई दूसरी अभिनेत्री नहीं निभा सकती थी. मैंने लंबे समय बाद कोई अच्छी फिल्म देखी है. क्या अमेजिंग स्टोरी है. स्वरा भास्कर और उनकी पूरी टीम को धन्यवाद.'' श्रीकांत ओझा लिखते हैं, ''फिल्म जहां चार यार में आशा से ज्यादा अच्छी फिल्म निकली है. इसमें ड्रामा, सस्पेंस और कॉमेडी सब है. स्वरा भास्कर ने एक बार फिर खुद को साबित कर दिया है. फिल्म शुरू से लेकर आखिर तक मुझे बांधे रखने में सफल रहती है.'' इस फिल्म के बारे में ज्यादातर लोग सकारात्मक लिख रहे हैं.

दरअसल, इस फिल्म में महिला सशक्तिकरण को एक अनोखे अंदाज में पेश किया गया है. फिल्म की एक किरदार कहती है, ''बताओ चुड़ैलों, कौन अपने पति परमेश्वर के साथ कहां-कहां घूमकर आया?'' इस पर दूसरी किरदार कहती हैं, ''एक बार गए थे वैष्णो देवी.'' फिर तीसरी कहती हैं, ''हम गोवा और स्विट्जरलैंड की बात कर रहे हैं, तुम्हारी तीर्थ यात्रा की नहीं.'' इस पर दूसरी किरदार कहती हैं, ''हमारी किस्मत में स्विट्ज़रलैंड होता तो हम भर-भर के ये चड्ढियां, कच्छे और धोतियां नहीं घिस रहे होते.'' फिल्म के किरदारों की इन बातों से फिल्म के विषय का अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है. घर-गृहस्थी में लगी इन मिडिल क्लास महिलाओं की बातों से साफ पता चलता है कि वो अपनी जिंदगी से ऊब गई हैं. उससे आजादी पानी चाहती हैं. खुलकर जीना चाहती हैं. फिल्म के कई संवाद ऐसे भी हैं, जो संस्कार और नैतिकता की बात करने वालों को चुभ सकते हैं.

फिल्म समीक्षकों की बात जहां तक है, जो उनकी राय भी इसे लेकर बंटी हुई है. प्रतिष्ठित फिल्म वेब साइट पिंकविला का कहना है कि ये दर्शकों से कनेक्ट करने में असफल रही है. अविनाश लोहाना लिखते हैं, ''यह निराशाजनक है जब किसी प्रोजेक्ट का इरादा बहुत अच्छा होता है लेकिन स्क्रीन पर उसका अनुवाद सही से नहीं हो पाता. निर्देशक और लेखक कमल पांडे की फिल्म जहान चार यार की हालत भी बिल्कुल ऐसी ही है. वैवाहिक चुनौतियों का सामना करते हुए, बचपन की दोस्त शिवांगी (स्वरा भास्कर), मानसी (मेहर विज), सकीना (पूजा चोपड़ा) और नेहा (शिखा तलसानिया) आजाद जीवन जीने के लिए गोवा की एक अनियोजित और अप्रत्याशित यात्रा पर निकलती हैं. लेकिन वहां घटने वाली एक घटना उनके जीवन को पूरी तरह से बदल देती है. फिल्म एक गृहिणी के संघर्षों को ईमानदारी पेश करने का प्रयास करती है, लेकिन कहानी इतनी उलझ जाती है कि कंफ्यूजन पैदा होती है.

अमर उजाला में वरिष्ठ फिल्म समीक्षक पंकज शुक्ल लिखते हैं, ''हिंदी सिनेमा की सांस फुला देने वाली भागदौड़ से दूर निर्माता विनोद बच्चन की बनाई फिल्मों का देसी स्वाद ही अलग है. वह ऋषिकेश मुखर्जी के सिनेमा को 21वीं सदी की रंग बदलती दुनिया में बचाए रखने की जी जान से कोशिश करते हैं. लीक से इतर कहानियां चुनते हैं. उन्होंने हिंदी सिनेमा में देसी कहानियों की एक लकीर खींची है. उनकी नई फिल्म इस लकीर को गाढ़ा करने का काम करती है. तकनीकी रूप से फिल्म भले बहुत आला दर्जे की न हो लेकिन फिल्म का गीत संगीत मधुर है. 'मेरी पतली कमर' गाने में रितु पाठक ने लोक रस का पूरा आनंद लिया है तो मीका सिंह का गाना भी परदे पर अच्छा लगता है. आनंद राज आनंद की अरसे बाद किसी फिल्म में वापसी अच्छी बन पड़ी है. महिला मंडली के लिए ये फिल्म खास दिलचस्पी वाली हो सकती है. फिल्म की रिलीज बहुत वृहत स्तर पर तो नहीं हुई है लेकिन फिल्म अगर आपके नजदीकी सिनेमाघरों में लगी है और अगर आपका मन भी चूल्हा चौका से ऊब गया है तो अपनी सहेलियों के साथ ये फिल्म जरूर देख आएं.''

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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