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Updated: 10 अगस्त, 2022 02:00 PM
आकाश यादव
आकाश यादव
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वैसे तो मैं सीरियल तो बहुत कम देखता हूं. क्योंकि, एक दशक तक चलने वाला नाटक मेरी सहन शक्ति के बाहर हैं. मैं व्योमकेश बक्शी, मालगुड़ी डेज, देवी चौधरानी, जाने-अनजाने, जासूस विजय, रामायण, महाभारत और शक्तिमान जैसे धारावाहिक देखकर बड़ा हुआ हूं, नाकि सास-बहू लॉन्च करने वाले प्राइवेट चैनल्स. मुझे याद भी नहीं होगा कि मैंने आखिरी बार टीवी कब देखा था. वैसे, मैं मुद्दे पर आता हूं कि क्यों मुझे ये धारावाहिक घर तोड़ने वाले लगते हैं?

बहुत पहले मैंने एक फिल्म देखी थी 'कपूर एंड संस'. इसमें रत्ना पाठक अपने पति के मुंह पर सबके सामने पूरा केक पोत देती हैं. क्योंकि, वो बिना बताए एक पड़ोसी को निमंत्रण दे देता हैं. जिसको वो (रत्ना पाठक) पसंद नहीं करती हैं. बस इतनी सी बात पर जन्मदिन वाले दिन अपने पति का सार्वजनिक अपमान करती हैं. अब आते हैं बुद्धु बक्से पर. जो कि अपने नाम के अनुरूप हमारी समाज में केवल मूर्खता फैलाता हैं. जितना मुझे लगता हैं कि हमारे लेखक या फिर धारावाहिकों की देखने वाली औरतें अभी भी पचास या साठ के दशक में जी रही हैं.

Indian television serialsबुद्धु बक्सा अपने नाम के अनुरूप ही हमारे समाज में केवल मूर्खता फैलाता हैं.

अभी भी सीरियल में मर्द कमाने के लिए घर से बाहर नहीं निकलता. सारा समय केवल औरतों से पंचायत करना यही उसका काम हैं. और, घर की औरतें केवल दूसरों को नीचा दिखाने और षड्यंत्र में व्यस्त दिखाई जाती हैं. एक भोली-भाली औरत दिखाई जाएगी, जिसका कोई आत्म सम्मान नहीं हैं. यह तक कि उसे झूठे आरोप में जेल भी भेज दोगे. तब भी उसका पति और ससुराल वाले उसका संसार होंगे.

कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे सीरियल हर घर में झगड़े करवाने में आगे रहते हैं. जिनका वास्तविक जीवन से कुछ लेना देना नहीं है. शायद यही कारण हैं कि यूट्यूब इंडिया के ट्रेंडिंग पेज पर पाकिस्तानी ड्रामे छाए रहते हैं. जब घर की औरतें नेशनल जियोग्राफिक, डिस्कवरी और एनिमल प्लेनेट न देखकर ये कूड़ा देखेंगी. तो, आप उनका मानसिक स्तर समझ सकते हो.

लेखक

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