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Updated: 02 सितम्बर, 2022 07:31 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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ऑस्कर एकेडमी अवॉर्ड दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड माना जाता है. हर फिल्म मेकर या फिल्म इंडस्ट्री का सपना होता है कि उनकी फिल्म को ये अवॉर्ड मिले. लेकिन दुर्भाग्य है कि आजतक भारत की किसी भी सिनेमा इंडस्ट्री की फिल्म को ये अवॉर्ड अभी तक नहीं मिला है. पिछले कुछ वर्षों में देखा जाए तो हर साल किसी न किसी भारतीय फिल्म को ऑस्कर अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया, लेकिन ट्रॉफी कभी हाथ नहीं आई है. इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं? क्या भारत में इस तरह की फिल्में बनती ही नहीं हैं जो कि ऑस्कर के स्तर की हों या फिर भारतीय फिल्मों के साथ भेदभाव किया जाता है? सवाल कई हैं, लेकिन जवाब मुश्किल हैं. फिर भी हम इसकी वजह तलाशने की कोशिश करते हैं.

साल 1956 में ऑस्कर अवॉर्ड शुरू किया गया था. साल 1957 से लेकर 2021 तक केवल तीन फिल्मों 'मदर इंडिया', 'सलाम बॉम्बे' और 'लगान' को ऑफिशियल नॉमिनेशन मिला है. इन 65 वर्षों में अभी तक कोई भी भारतीय फिल्म ऑस्कर अवॉर्ड नहीं जीत पाई है. साल 1958 में 'मदर इंडिया' सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म कैटेगरी में अवॉर्ड जीतने के बहुत करीब थी. लेकिन महबूब खान द्वारा निर्देशित ये फिल्म नाइट्स ऑफ कैबिरिया के तीसरे मतदान के दौरान केवल एक वोट से हार गई. इसके बाद साल 1988 में मीरा नायर की फिल्म सलाम बॉम्बे से उम्मीदें जगी, लेकिन वो भी अवॉर्ड जीतने में नाकाम रही. साल 2001 में रिलीज हुई आमिर खान की फिल्म लगान की दावेदारी भी मजबूत थी, लेकिन उसे भी अवॉर्ड नहीं मिला.

650x400_090122114802.jpgसाल 2023 के ऑस्कर एकेडमी अवॉर्ड्स के लिए आरआरआर की दावेदारी सबसे मजबूत मानी जा रही है.

2019 में एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज के तत्कालीन अध्यक्ष जॉन बेली भारत आए थे. उनसे कई बार ये पूछा गया कि आखिर भारतीय फिल्मों को ऑस्कर अवॉर्ड क्यों नहीं मिलता? इस पर जॉन ने कहा था, "मेरी बातों का गलत मतलब मत निकालिएगा, लेकिन भारतीय फिल्मों को व्यापक रूप से क्यों नहीं दिखाया जाता? न केवल हॉलीवुड या यूएस में, बल्कि दुनिया भर में. मुझे पता है कि भारत की फिल्में चीन में बहुत लोकप्रिय हैं, लेकिन क्या वे कोरिया या जापान में लोकप्रिय हैं? क्या वे दक्षिण पूर्व एशिया में लोकप्रिय हैं? क्या फ्रांसीसी भारतीय फिल्में देख रहे हैं? आपको पीआर संगठनों, डिस्ट्रीब्यूटर्स, सरकार से यह पूछना चाहिए कि 'भारतीय फिल्मों को दुनिया भर में प्रचारित क्यों नहीं किया जा सकता है? जिन फिल्मों को नॉमिनेशन के लिए भेजा जाता है, क्या वे दूसरे देशों को संबोधित करती हैं? मुझे नहीं पता. लेकिन सभी को इस पर विचार जरूर करना चाहिए.''

यहां जॉन बेली के सवालों को समझने की जरूरत है. उनके जवाब में ही हमारे सवालों का जवाब है. पैन इंडिया फिल्मों के दौर से पहले ज्यादातर फिल्में एक खास स्थान, वर्ग और भाषा को संबोधित करके बनाई जाती रही है. हिंदी, तमिल, तेलुगू, मलायलम, कन्नड, मराठी, गुजराती और बंगाली फिल्म इंडस्ट्री की फिल्मों का एक खास दर्शक वर्ग होता है. साल 2015 में 'बाहुबली' की रिलीज और उसकी जबरदस्त सफलता के बाद फिल्म मेकर्स को समझ आया कि बड़े दर्शक वर्ग को संबोधित करने वाली फिल्में भी बनाई जा सकती हैं. उसके बाद 'पुष्पा: द राइज', 'आरआरआर' और 'केजीएफ' जैसी पैन इंडिया फिल्मों की सफलता ने साबित कर दिया कि दर्शक वर्ग जितना बड़ा होगा, सफलता भी उतनी बड़ी हो सकती है, बशर्ते की फिल्म का कंटेंट दमदार हो. ऐसे में भारतीय फिल्म मेकर्स को क्या पैन वर्ल्ड फिल्मों पर काम नहीं करना चाहिए, जो कि दुनिया भर के दर्शको को संबोधित कर सके.

फिल्म मेकर अनुराग कश्यप जो कि कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ज्यूरी रह चुके हैं, उनका मानना है कि भारतीय फिल्म मेकर्स को इंटरनेशनल स्टैंटर्ड की फिल्में बनानी चाहिए. इसके साथ ही ऑस्कर के लिए फिल्मों का चुनाव करने वाली ज्यूरी में ऐसे सदस्य होने चाहिए जिन्हें इंटरनेशनल सिनेमा की समझ हो, उसके स्तर को जानते हो. ये नहीं कि फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया में बैठे परंपरागत लोग अपनी पसंद के हिसाब से फिल्मों का चुनाव करके ऑस्कर के लिए भेज दें. यदि अच्छी फिल्म का चुनाव होगा, तो उसके ऑस्कर जीतने की संभावना उतनी ज्यादा होगी. अधिकांशत: ऑस्कर के लिए भेजे जानी भारतीय फिल्में उसके स्तर की ही नहीं होती. ऐसे में अवॉर्ड जीतने की उम्मीद कैसे की जा सकती है.

उदाहरण के लिए साल 2021 की बात ही कर लेते हैं. उस समय द न्यूयॉर्क टाइम्स के फिल्म समीक्षकों ने चैतन्य तम्हाणे की मराठी फिल्म 'द डिसाइपल' को ऑस्कर के योग्य माना था. फिल्म समीक्षक मनोहला दरगिस ने भी इस मराठी फिल्म को बेस्ट पिक्चर और बेस्ट ओरिजनल स्क्रीनप्ले की कैटेगरी में सिलेक्ट किया था. इतना ही नहीं अमेरिकन जर्नलिस्ट एओ स्कॉट ने बेस्ट एक्टर के लिए आदित्य मोदक, फिल्म 'द डिसाइपल' में लीड रोल किया था, को चुना था. लेकिन फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया के सदस्यों ने तमाम माथा-पच्ची के बाद तमिल फिल्म 'कूझांगल' को भारत की तरफ से ऑस्कर के लिए भेज दिया. जबकि उसी साल फिल्म 'जय भीम' भी रिलीज हुई थी, जिसके ऑस्कर जीतने की संभावना थी.

इस साल की जहां तक बात है तो कई फिल्मों के बीच ऑस्कर में जाने की जंग चल रही है. इनमें एसएस राजामौली के निर्देशन में बनी राम चरण और जूनियर एनटीआर की फिल्म 'आरआरआर', कबीर खान के निर्देशन में बनी रणवीर सिंह की फिल्म '83', संजय लीला भंसाली के निर्देशन में बनी आलिया भट्ट की फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी', विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में बनी अनुपम खेर की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' के नाम की चर्चा सबसे ज्यादा है. लेकिन लड़ाई 'आरआरआर' और 'द कश्मीर फाइल्स' के बीच ज्यादा है. अभी तक जो रूझान सामने आ रहे हैं उनके अनुसार 'आरआरआर' ने केवल भारत की तरफ से भेजी जाएगी, बल्कि इसे ऑफिशियली नॉमिनेट भी किया जा सकता है. इसके ऑस्कर जीतने की संभावनाएं भी अधिक हैं. बेस्ट एक्टर की कैटेगरी में जूनियर एनटीआर मुकाबला कर सकते हैं. जो भी होगा सितंबर के अंत इस पर फैसला हो जाएगा.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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