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Updated: 05 अप्रिल, 2016 07:05 PM
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बॉलीवुड ऐक्टर इमरान हाशमी का 4 साल का बेटा अयान कैंसर से पीड़ित था. लेकिन इमरान ने अपने बेटे के साथ मिलकर कैंसर से लड़ने का फैसला किया. इमरान बेटे को इस खतरनाक बीमारी से लड़ने के लिए तैयार करने के लिए बैटमैन बन गए, जोकि उनके जिंदगी की सबसे बेहतरीन भूमिका बन गई. इससे उनके बच्चे में सुपरहीरों की सुपरपावर्स और कैंसर से लड़ने की खुद की क्षमता पर यकीन बढ़ा और आखिर में अयान यह जंग जीत गया.

इमरान ने कैंसर के खिलाफ इस लड़ाई का जिक्र विस्तार से अपनी किताबः 'द किस ऑफ लाइफः हाउ ए सुपरहीरो ऐंड माइ सन डिफिटेड कैंसर' में किया है. यहां हम इमरान की उसी किताब का एक अंश दे रहे हैं, जिसे इतना प्रेरणादायक है कि उसे हर किसी को जरूर पढ़ना चाहिए.

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इमरान हाशमी अपने बेटे अयान के साथ

कौन है? मैंने जवाब देने से पहले एक सेकेंड इंतजार किया. मैं यह सुनिश्चित करना चाहता था कि मैं उसे सही आवाज में जवाब दूं. वह छोटा है लेकिन बहुत तेज है.

'मैं बैटमैन हूं,' मैंने बहुत ही धीमी आवाज में कहा, 'क्या तुम अयान हो?'

थोड़ी देर सन्नाटा रहा. मैं ये कल्पना कर सकता था कि उसकी आंखे अविश्वनीयता से फैल गई थीं. 'आ-हां? क्या आप सच में बैटमैन हो?

'तुम कैसे हो, अयान?'

'मैं ठीक हूं, बैटमैन, क्या आप गोथम में क्राइम के खिलाफ लड़ रहे हो, पापा ने मुझे बताया!'

मेरा गला रुंध गया. मैंने उसे वह बताने का निर्णय लिया जिसके लिए मैंने उसे कॉल किया था. 'क्या तुम मेरी तरह एक सुपरहीरो बनना चाहोगे अयान?' उसने उत्साह में गहरी सांस ली. मैं फोन पर इसे सुन सकता था.

'हां,' तो मुझे ध्यान से सुनो. इसमें थोड़ा समय लगेगा, लेकिन एक बार जब हम इसे पूरा कर लेंगे, तो तुम आयरन मैन से ज्यादा बेहतर बन जाओगे! तुम मेरे अयान मैन बन जाओगे! मुझे पता था कि अयान बैटमैन को प्यार करता है. लेकिन मैं पहले ही वह बन चुका था. अगर मैं उसे बैटमैन बनने का ऑफर देता तो उसे हम दोनों के एक ही सुपरहीरो बनने का आइडिया पसंद नहीं आता. इसलिए हमने सोचा कि हम उसका नाम इस तरह से पुकारेंगे जोकि उसके एक और फेवरिट-आयरन मैन से मिलता-जुलता हो.

उसने कहा, 'ओके.' 'मुझे क्या करना होगा?'

'मेरी बात ध्यान से सुनो, अयान...!'

मैंने उस रात को याद किया, जब हमने एक ट्रिक से अयान को यह यकीन दिलाया था कि हमने एक होटल में चेक इन किया है. मैं डॉक्टर्स और नर्सों से बगल के एक कमरे में मिला था ताकि वह हमारी बातचीत न सुन पाए. जब मैं उसके कमरे में गया था उसने हॉस्पिटल के फीके खाने को लेकर अपनी नाराजगी जताई. उसने पिज्जा और अन्य जंक फूड्स की डिमांड की जिससे वह खुश होता था. हमें उसे मनाने में थोड़ा वक्त लगा, इसके बाद उसने मुझसे एक सीधा सा सवाल किया,

उसने जोर देकर पूछा, 'ये मेरा बर्थडे है या क्रिसमस है, पापा?' 'क्या इसलिए हम होटेल में हैं? सेलिब्रेट करने के लिए?'

'हां अयान', 'मैंने जवाब दिया. जल्द ही तुम्हारा बर्थडे आने वाला है और हम साथ मिलकर कई और बर्थडेज मनाएंगे!'

मेरे चार साल के बेटे को दूसरे स्टेज के विम्स ट्यूमर था, एक तरह का कैंसर जोकि किडनी को प्रभावित करता है और अक्सर बच्चों में होता है. अफ्रीकी मूल के बच्चों में यह कैंसर होने की संभावना दूसरी जातियों के मुकाबले ज्यादा होती है. इसका नाम एक जर्मन डॉक्टर मैक्स विम्स के नाम पर रखा गया, जिन्होंने इस बीमारी के बारे में पहला आर्टिकल 1899 में लिखा था. यह किसी भी आदमी के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा कि एक खतरनाक बीमारी का नाम उसके नाम के साथ जुड़े. क्योंकि उस क्षण, मुझे उस शब्द से नफरत हुई.

अयान का कैंसर मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी परेशानी थी. अचानक ही मुझे यह साबित करना था कि मेरे अंदर भी वह क्षमता है जिससे मेरे रोल मॉडल्स बने हैं. मुझे सुपरमैन बनना था, मेरे अपने छोटे से तरीके से. मुझे न सिर्फ अपने बेटे की जिंदगी पर सकंट बने दुश्मन को भगाना था बल्कि प्रोफेशली भी खुद को साबित करना था...लेकिन असली हीरो मेरा बेटा था... उसके जैसे बच्चे हम बड़ों की तुलना में कहीं ज्यादा मजबूत होते हैं. वे बीमारी से एक दिन, महीनों और कभी-कभी वर्षों लड़ते हैं, दर्द सहते हुए और अपने कभी लौट के न आने वाले बचपन के दिनों की कुर्बानी देते हुए.

मेरा बेटा बैटमैन बनना चाहता था. मेरे तरीके से, वह बैटमैन बन गया है. उसने दर्द सहा और कैंसर से लड़ा. जैसा कि हर कहानी में अंत जरूरी होता है वैसे ही इस बैटमैन की कहानी को भी अंत की जरूरत है. मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं उसे बता सकूं कि बैटमैन है ही नहीं. मुझमें यह बताने की हिम्मत नहीं है कि कीमोथैरेपी के उन सेशंस के बाद उसके पास कोई सुपरपावर्स नहीं होगा. लेकिन शायद वह खुद से सीखेगा, जैसा कि मैंने किया, अपनी जिंदगी को जिम्मेदारी से जीना अपने आप में सुपरपावर है.

इसलिए यह किताब लिखने के बाद मैं बैटमैन के रूप में उसे आखिरी कॉल करने जा रहा हूं. इस कहानी को अंत की जरूरत है. हालांकि, इस समय मैं उसे जिस खाने को लेकर वह नाराज हो रहा था उसे खाने के लिए नहीं मनाऊंगा या कीमो सेशन के पहले उसे शांत करूंगा. मैं उसे बताऊंगा, बेटे तुमने इन सब पर विजय पा ली है. अब तुम छह साल के हो गए हो, और जल्द ही अपना स्कूल खत्म करके कॉलेज जाओगे.

मैं बूढ़ा हो जाऊंगा और तुम्हें इस बड़ी बुरी दुनिया का अकेले ही सामना करना पड़ेगा. लेकिन तुमने जबर्दस्त शुरुआत की है. तुमने सबसे मुश्किल जंग पहले ही जीत ली है. इसलिए अब तुम्हारे सामने जो भी मुश्किलें आएं, तुम्हें उनका सामना जिम्मेदारी से करना पड़ेगा, बहादुरी के साथ अपना सिर ऊंचा रखो और अपनी जिंदगी की हर परेशानियों को हरा दो.'

लेखक

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