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Updated: 20 मार्च, 2022 12:27 PM
आईचौक
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सिनेमाघरों में टिकट खिड़की के बाहर जिस तरह का माहौल इस वक्त नजर आ रहा है, बॉलीवुड के लिए दुर्लभ अवस्था कह सकते हैं. कोरोना महामारी के दौर में सिनेमा और थियेटर जिस मुश्किल हालात से गुजरे हैं उसमें तमाम निर्माताओं को मौजूदा बयार पर भरोसा भी नहीं हो रहा होगा. जबकि यह हकीकत है. आईचौक ने पहले ही अपने एक विश्लेषण में बता दिया था कि कैसे फरवरी का आख़िरी सप्ताह और मार्च बॉलीवुड के लिए उम्मीदों वाला महीना साबित होने जा रहा है. मार्च में एक ही हफ्ते के अंतराल पर रिलीज हुई दो फ़िल्में 'द कश्मीर फाइल्स' और 'बच्चन पांडे' इसी बात की हामी भरते नजर आ रहे हैं.

द कश्मीर फाइल्स तो पूरे हफ्ते देसी बॉक्स ऑफिस पर सुनामी की तरह दिख रही है. आठवें दिन तक फिल्म ने 116 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर ली है. जबकि इसके एक हफ्ते बाद आई अक्षय कुमार की बच्चन पांडे ने होली पर सिर्फ आधे दिन में 13 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर भविष्य में निश्चित ही 100 करोड़ी बनने का पुख्ता सबूत भी दे दिया है. यह कारनामा करने से शायद ही कोई रोक पाए. इस कड़ी में अगले हफ्ते रिलीज हो रही एसएस राजमौली की RRR भी शामिल दिखे तो हैरान मत होइए. RRR की झलकी, उसका स्केल, राजमौली का अपना ट्रैक रिकॉर्ड और RRR के प्रीमियर की तैयारियों को देख अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि साल 2022 में 25 मार्च को रिलीज हो रही फिल्म कमाई के ना जाने कितने रिकॉर्ड बनाए.

march-box-office-650_031922093936.jpgमार्च में तीन बड़ी फिल्मों की कमाई पर नजर होनी चाहिए.

फिल्मों की रेलमपेल में कमाई निकलना हिंदी पट्टी के लिए हैरानी की ही बात है

RRR रिकॉर्ड ना भी बनाए तो यह गारंटी है कि सिर्फ हिंदी वर्जन की कमाई 100 करोड़ के ऊपर रहने वाली है. फिल्म ट्रेड सर्किल के एक्सपर्ट ऐसा मानकर चल रहे हैं. यह बॉलीवुड की टेरिटरी में मामूली चीज नहीं बल्कि अद्भुत मामला होगा. हिंदी पट्टी में थियेटर जाने वाले दर्शकों का मौजूदा रुझान तो यही संकेत दे रहा है. यानी बॉलीवुड के इतिहास में मार्च दुर्लभ महीना होगा जब एक ही महीने में रिलीज हुई तीन-तीन फ़िल्में एक साथ ब्लॉकबस्टर बनने जा रही हैं. वह भी उस स्थिति में जब रिलीज की रेलम-पेल की वजह से फिल्मों को 'ब्रीदिंग स्पेस' भी नहीं मिल रहा. सभी फ़िल्में बस एक-एक हफ्ते के अंतराल पर हैं.

अभी तक ऐसा कोई महीना याद नहीं आता जब एक ही महीने में आई तीन बड़ी फ़िल्में सुपरहिट हुई हों. कोविड से पहले बॉलीवुड के बॉक्स ऑफिस को देखें तो त्योहारी वीकएंड को छोड़ अमूनम किसी महीने में कोई एक बड़ी फिल्म रिलीज होती थी. उसके साथ दो-तीन छोटे बजट की फ़िल्में सिनेमाघरों में आती थीं. और इन्हीं में से कोई एक फिल्म हिट होती थी. पिछले कुछ सालों में फ़िल्में ज्यादा बन रही हैं. जाहिर है इनमें कई अच्छे बजट की फ़िल्में भी रही हैं. तो ऐसा भी देखने को मिला है कि प्राय: हर महीने दो-दो फ़िल्में बड़ी हिट हुईं. खासकर यह ट्रेंड साल 2017 के बाद खूब देखने को मिला है. हालांकि ऐसा देखने को नहीं मिलता कि 20 से 30 दिनों के कैलेंडर में रिलीज हुई तीन फ़िल्में एक साथ बड़ी ब्लॉकबस्टर बन पाई हों.

डे वाइज कैलेंडर लें तो एक तरह से यह कारनामा लगभग बन चुका है. 25 फरवरी को संजय लीला भंसाली के निर्देशन में बनी गंगूबाई काठियावाड़ी ने 100 करोड़ से ज्यादा कमाई की. इसके बाद 11 मार्च को आई द कश्मीर फाइल्स ने भी 100 करोड़ से ज्यादा कमा लिए हैं. और पहले आधे दिन में 13 करोड़ से ज्यादा कमाकर अक्षय कुमार की बच्चन पांडे ने भी 100 करोड़ी क्लब में जाने की गारंटी दे दी है. यानी 25 फरवरी से 18 मार्च के बीच ही तीन फ़िल्में 100 करोड़ी बनती दिख रही हैं. सिर्फ मार्च को ही लिया जाए तो संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं कि आरआरआर के साथ मार्च 2022 के नाम यह रिकॉर्ड जरूर बनेगा.

क्लैश से डर रहे निर्माताओं को राहत मिल रही होगी

फिल्मों की कमाई से थियेटर का इंतजार कर रहे निर्माताओं को उत्साहित होना चाहिए. अब तक इतनी फ़िल्में फंसी हुई हैं कि किसी भी फिल्म को टिकट खिड़की पर एक हफ्ते से ज्यादा का समय नहीं मिल पाया है. यहां तक कि रिलीज की रेलमपेल की वजह से इस साल कई बड़े क्लैश भी बन चुके हैं. आशंका थी कि क्लैश और दो फिल्मों के बीच न्यूनतम अंतराल बॉक्स ऑफिस के पुराने ट्रेंड को देखते हुए फिल्मों के कारोबार को नुकसान पहुंचा सकता है. हालांकि गंगूबाई काठियावाड़ी के बाद धारणा टूटती नजर आ रही है. कोविड के बाद के हालात ही सही, लेकिन यह संकेत हिंदी टेरिटरी के लिए शुभ संकेत माना जा सकता है.

द कश्मीर फाइल्स के बाद तो ऐसा लग रहा कि सिनेमाघरों में हिंदी पट्टी के फिल्मों को देखने के रवैये में बदलाव आ रहा. कुछ कुछ साउथ की तरह का ट्रेंड बनता दिख रहा जहां फिल्मों को सिनेमाघरों में देखने की परंपरा ज्यादा मजबूत है. हो सकता है महीनों कोरोना की वजह से घरों में दर्शक उकता कर बैठे थे और हालात सामान्य होते ही उनका रेला थियेटर्स की ओर भागता नजर आ रहा है. अगर आगे भी फरवरी और मार्च की तरह कलेक्शन निकलते हैं तो मान लेना चाहिए कि हिंदी पट्टी में भी सिनेमा देखने का रुझान बदल रहा है. क्योंकि दिसंबर तक अगले कई हफ़्तों में बड़ी बड़ी फ़िल्में शेड्यूल हैं.

चीजें मार्च की तरह ही जारी रहीं तो कोरोना ने सिनेमाघरों को अबतक जितना नुकसान पहुंचाया है, उसके मुकाबले मुनाफा देकर जाएगा. क्लैश से आशंकित निर्माता खुश हो सकते हैं.

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