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Updated: 14 नवम्बर, 2021 03:06 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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बॉलीवुड की फिल्में कई दशकों से हमारा मनोरंजन करने का काम कर रही हैं. कुछ फिल्मों ने हमें हंसाया है, तो कुछ ने हमें रुलाया है. लेकिन कुछ फिल्में ऐसी भी होती हैं जो कभी भी बोरिंग या पुरानी नहीं लग सकतीं. वहीं, कुछ फिल्में हमें जीवन के कई सबक सिखाती हैं. कई बार हम जो चीजें अपने जीवन में समझ और सीख नहीं पाते, वो फिल्मों के जरिए हमारे जेहन में उतर जाती हैं. घर कर जाती हैं. सिनेमा का प्रभाव समाज और लोगों पर बहुत ही गहरा पड़ता है. हर माता-पिता के लिए उनका बच्चा सबसे खास होता है और वे चाहते हैं कि उनका बच्चा अपने जीवन के हर क्षेत्र में बेहरीन काम करे. सफल बनें. लेकिन अक्सर कुछ माता-पिता को बहुत सी बातें समझ में नहीं आती हैं कि उनको अपने बच्चों को कैसे डील करना है. ऐसे में कई फिल्मों में इन बातों को बहुत ही सरलता से समझाया गया है.

आज 14 नवंबर है. इस दिन पूरे देश में बाल दिवस यानि चिल्ड्रेन्स डे मनाया जा रहा है. इस दिन भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का जन्म हुआ था. नेहरू जी का बच्चों से बेहद लगाव था इसलिए उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है. ऐसे खास मौके पर हम आपको चुनिंदा पांच बॉलीवुड फिल्मों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनमें बेस्ट पैरेंटिंग की शानदार सीख दी गई है. यदि आपने इन फिल्मों को देखा, समझा और उसे अपने जीवन में उतारा, तो निश्चित तौर पर आप एक बेहतर अभिभावक साबित हो सकते हैं. आइए आपको इन बेहतरीन फिल्मों और उनसे मिलने वाली सीख के बारे में बताते हैं.

650_111421011002.jpgसच कहा गया है कि सिनेमा समाज का आईना होता है, फिल्मों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.

1. फिल्म- तारे जमीं पर (Taare Zameen Par)

आमिर खान की फिल्म 'तारे जमीं पर' साल 2007 में रिलीज हुई थी. इसमें बाल कलाकार के रूप में दर्शील सफारी ने शानदार अभिनय किया था. इस फिल्म की कहानी ने हर किसी को झकझोर दिया था. यह फिल्म बताती है कि किसी भी बच्चे को कमतर नहीं समझना चाहिए. हर बच्चा स्पेशल होता है, उसमें कुछ ना कुछ खास जरूर होता है और आमिर खान की फिल्म 'तारे जमीं पर' ने यही चीज दिखाई. कहानी एक dyslexic बच्चे की है जो पढ़ाई में बहुत ही कमजोर है, हमेशा डांट खाता है, लेकिन आर्ट में उसका कोई सानी नहीं. लेकिन एक टीचर उसकी मदद करता है और उसकी खामियों को पहचान कर दूर करता है. इसका असर उस बच्चे की बढ़िया परफॉर्मेंस के रूप में देखने को मिलता है. इस फिल्म ने लोगों को सोचने का एक नया नजरिया दिया था.

सीख क्या मिलती है: हर माता-पिता को अपने बच्चे को उसकी क्षमता के अनुसार सीखने और विकसित होने का मौका देना चाहिए. उन्हें इस प्रक्रिया में केवल मार्गदर्शक की भूमिका में होना चाहिए. बच्चों से हर क्षेत्र में हमेशा अव्वल होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. प्रत्येक बच्चे की अपनी प्रतिभा और क्षमता होती है.

2. थ्री इडियट्स (Three Idiots)

आमिर खान और करीना कपूर स्टारर फिल्म थ्री इडियट्स साल 2009 में रिलीज हुई थी. यह एक ऐसी फिल्म है जिससे हर माता-पिता खुद को रिलेट कर सकते हैं. यह हमारे देश की शिक्षा प्रणाली से हमें रूबरू कराती है. इंजीनियरिंग और डॉक्टरेट जैसे करियर में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कर रहे छात्रों के अनुभव को सरलता से समझाती है. हमारे देश की शिक्षा प्रणाली बच्चों के हुनर और दिलचस्पी को समझने की बजाए नंबर लाने और रटने की प्रवृति पर जोर देती है. अधिकांश माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा इंजीनियर, डॉक्टर या सरकारी अफसर बनें. इस दबाव की वजह से अधिकांश छात्र अपने जीवन को खत्म कर लेते हैं. इस फिल्म ने शिक्षा प्रणाली के ऊपर एक नए बहस को जन्म दिया था. इस फिल्म को देखने के बाद अधिकांश लोगों को समझ आया कि बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार करियर बनाने देना चाहिए.

सीख क्या मिलती है: किसी परीक्षा में मिले नंबर ही सब कुछ नहीं होते. बच्चों के रुचि को समझना भी बहुत महत्वपूर्ण है. उनको उनकी रुचि के अनुसार अपना करियर चुनने की अनुमति दी जानी चाहिए. ऐसा करने से बच्चे अपने रुचि के क्षेत्र में अपना बेस्ट दे सकते हैं.

3. स्टेनली का डिब्बा (Stanley ka Dabba)

अमोल गुप्ते ने एक लड़के, उसके खाली लंच बॉक्स, उसके दोस्तों और एक 'खड़ूस' हिंदी शिक्षक की कहानी के साथ संवेदनशील, शिक्षक-छात्र संबंध को बड़े पर्दे पर बड़ी खूबसूरती से पेश किया है. यह फिल्म मनोरंजक होने के साथ ही शिक्षाप्रद भी है. हम अक्सर जो चीजें बच्चों को करने के लिए मना करते हैं, वही करते हैं और इस विचार को अमोल गुप्ते ने फिल्म में इमोशन की चाशनी में लपेटकर बहुत ही अच्छे तरीके से परोसा है.

सीख क्या मिलती है: आजकल शहरों में ज्यादातर माता-पिता कामगकाजी होते हैं. ऐसे में वो अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते. लेकिन ये गलत है. हर अभिभावक को अपने बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए और उनके साथ दैनिक आधार पर बातचीत करनी चाहिए. इससे उनको समझने में आसानी रहती है.

4. दंगल (Dangal)

आमिर खान की फिल्म दंगल भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक है. यह हरियाणा के एक पहलवान महावीर सिंह फोगट और उनकी बेटियों के संघर्ष के बाद कामयाबी की कहानी को दिलचस्प अंदाज में पेश करती है. बेहतरीन स्टारकास्ट, दमदार एक्टिंग और एक खास संदेश के साथ, दंगल सभी उम्र के लोगों के बीच सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली फिल्मों में से एक बन गई. यह लैंगिक असमानता के मुद्दे को बहुत ही बेहतरीन तरीके से हमारे सामने रखती है. एक ऐसे देश में, जहां लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है, यह फिल्म एक ऐसे पिता के बारे में बात करती है जो अपनी बेटियों को प्रशिक्षित करने और कुश्ती के क्षेत्र में अपनी एक नई पहचान बनाने में मदद करने के लिए समाज के खिलाफ जाता है. विरोध के बीच जब वो सफल होता है, तो हर कोई उसे अपना आदर्श मानता है.

सीख क्या मिलती है: अब समय आ गया है कि समाज अपने तरीके बदलें और महिलाओं के साथ पुरुषों की तरह समान व्यवहार करे. लड़कियों को सीखने और बढ़ने के समान अवसर दिए जाने चाहिए. जिस परिवार में ऐसे अवसर दिए जाते हैं, वहां लड़कियां हमेशा खुद को साबित करती हैं.

5. आई एम कलाम (I Am Kalam)

आई एम कलाम एक गरीब राजस्थानी लड़के छोटू की कहानी है जो ए पी जे अब्दुल कलाम का बहुत बड़ा प्रशंसक है. उनसे मिलना चाहता है. फिल्म का कथ्य गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रहे नन्हें छोटू के इर्द-गिर्द घूमता है, जो विपरीत परिस्थितियों में जोश और जज्बे को बनाए रखता है. छोटू की प्रेरणा पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम हैं. नील माधव पंडा के निर्देशन में बनी इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड मिला था. यह उन बच्चों के लिए किसी आदर्श से कम नहीं है जो माकूल परिस्थितियां और जरूरत की चीजें ना होने के बाद भी बड़ा बनने का सपना देखते हैं.

सीख क्या मिलती है: पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम कहते थे, ''महान सपने देखो और उन्हें पूरा करने में जुट जाओ, महान सपने जरूर पूरे होते हैं''. इसलिए सबसे जरूरी है कि हर बच्चा बड़े सपने देखे, तभी वो उसे पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा सकता है. अभिभावकों अपने बच्चों को बड़े सपने देखने और उसके लिए जरूरी मेहनत करने के लिए प्रेरित करना चाहिए.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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