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Updated: 17 अगस्त, 2020 06:20 PM
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नेटफ्लिक्स पर पिछले हफ्ते रिलीज जान्ह्वी कपूर की फ़िल्म गुंजन सक्सेना (Gunjan Saxena movie) नित नए विवादों से घिर रही हैं. फ़िल्म में भारतीय वायुसेना से जुड़े तथ्यों के साथ छेड़छाड़ और फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना के गलत चरित्र चित्रण को लेकर करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शंस और डायरेक्टर शरण शर्मा पर काफी आरोप लग रहे हैं. इंडियन एयरफोर्स (Indian Air Force) के साथ ही अब आम लोग भी फ़िल्म को लेकर असंतोष जताने लगे हैं. गुंजन सक्सेना: द करगिल गर्ल के मेकर्स पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने भारतीय वायु सेना की पहली महिला पायलट की कहानी को गलत तरीके से पेश किया और इसमें ऐसी-ऐसी घटनाएं दिखाईं, जो घटी ही नहीं. भारतीय वायु सेना ने धर्मा प्रोडक्शंस को इस बारे में लेटर भी लिखा और सेंसर बोर्ड के साथ ही नेटफ्लिक्स से भी शिकायत की कि भारतीय वायु सेना ने पहले ही फ़िल्म के कुछ सीन्स हटाने को कहा था, लेकिन वैसा नहीं किया गया. दरअसल, जान्ह्वी कपूर की फ़िल्म में जिस तरह से गुंजन सक्सेना के उधमपुर एयरफोर्स ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में बिताए गए दिनों को दिखाया गया है, उससे ये लगता है कि भारतीय वायु सेना में भी लैगिंक भेदभाव की घटनाएं घटती हैं और महिला अफसरों के साथ सीनियर अफसर दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं. इसके साथ ही फ़िल्म में कई तथ्यात्मक गलतियां हैं, जिसके बारे में धीरे-धीरे बातें सामने आ रही हैं.

सवाल ये उठता है कि क्या क्रिएटिव फ्रीडम यानी रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर धर्मा प्रोडक्शंस और डायरेक्टर शरण शर्मा ने भारतीय वायु सेना के साथ ही गुंजन सक्सेना का भी गलत चरित्र चित्रण किया? अक्सर ये देखने को मिलता है कि फ़िल्मों में सच्चाई को काल्पनिकता की चासनी में डुबोकर इस तरह से पेश किया जाता है कि उसका भाव और मकसद ही बदल जाता है. गुंजन सक्सेना: द करगिल वॉर के मेकर्स ने भी वही किया और अब जब विवाद हो रहे हैं तो धीरे-धीरे राज खुल रहे हैं कि उधमपुर में ट्रेनिंग के लिए गईं गुंजन सक्सेना एक हजार पुरुष ट्रेनी पायलटों के बीच अकेली महिला ट्रेनी पायलट नहीं थीं. उनके साथ विद्या राजन भी थीं, जो करगिल वॉर के दौरान चीता हेलिकॉप्टर उड़ाते समय उनकी को-पायलट भी थीं. यहीं नहीं, भारतीय वायु सेना और कई अधिकारी आपत्ति जता रहे हैं कि फ़िल्म में कई तथ्यात्मक गलतियां हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे लोगों में गलत मेसेज जा रहा है. राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपर्सन रेखा शर्मा ने भी फिल्म की स्क्रीनिंग पर रोक लगाने की मांग की है.

कहानी सच्ची, फिर काल्पनिकता का मिश्रण क्यों?

शरण शर्मा द्वारा निर्देशित और जान्ह्वी कपूर, पंकज त्रिपाठी, अंगद बेदी, आयशा रजा मिश्रा, विनीत कुमार सिंह और मानव विज द्वारा अभिनीत फ़िल्म गुंजन सक्सेना: द करगिल गर्ल के बारे में बताया गया कि यह बायोपिक फ़िल्म है, जो कि भारतीय वायु सेना की पहली महिला पायलट की जिंदगी और उनके संघर्षों पर आधारित है. लेकिन इस फ़िल्म को रोचक बनाने के लिए इसमें इतनी काल्पनिक घटनाएं समाहित कर दी गईं कि यह देखने में तो ठीक लगी, लेकिन अब इसपर आपत्तियां हो रहीं हैं. फ़िल्म मेकर्स के पास रचनात्मक स्वतंत्रता होती है, लेकिन अगर वह किसी वास्तविक घटना या पात्र पर फ़िल्म बनाते हैं तो उन्हें वास्तविक किरदारों के आसपास ही अपनी कहानी का सेटअप तैयार करना होता है और गैर जरूरी एवं काल्पनिक बातों से बचना होता है. गुंजन सक्सेना फ़िल्म मेकर्स ने फ़िल्म को ड्रामेटाइज करने के लिए ऐसी-ऐसी बातें दिखा दीं, जो सच्चाई से कोसों दूर थीं. खुद गुंजन सक्सेना ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा है कि जब वह उधमपुर स्थित एयरफोर्स ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट गई थीं तो उन्हें देख उनके पुरुष सहकर्मी जरूर असहज हुए थे और वहां फिमेल टॉयलेट का अभाव था, लेकिन लैगिंक भेदभाव जैसी बातें नहीं हुई थीं. थोड़ा समय लगा, क्योंकि बदलाव अचानक से नहीं होते हैं, समय के साथ सभी चीजें ठीक हो गई थीं और फिर भारतीय वायु सेना में अलग-अलग भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ती गई.

इन बातों पर हुआ विवाद

गुंजन सक्सेना फ़िल्म में एक लड़की के पायलट बनने की कहानी दिखाई गई है कि किस तरह उसके सपने के रास्ते कितनी चुनौतियां आईं. हर फील्ड में हर किसी के लिए चुनौतियां होती हैं, लेकिन जिस तरह से गुंजन सक्सेना का किरदार निभा रहीं जान्ह्वी कपूर 10वीं परीक्षा में 94 फीसदी नंबर लाने के बाद कहती हैं कि वह अब किस मुंह से अपने पैरेंट्स के पास जाकर बोले कि 94 फीसदी लाने के बाद भी वह पायलट ही बनना चाहती है. यह बात बेहद आपत्तिजनक और हतोत्साहित करने वाली है और लगता है कि टैलेंटेड लोग आर्मी में जाते ही नहीं हैं और उनके लिए एमबीबीएस या इंजीनियरिंग ही सही है. लेकिन हकीकत ये है कि सेना में अफसर वहीं बनते हैं जो बेहद टैलेंटेड होते हैं. ऐसे में शरण शर्मा ने जान्ह्वी कपूर के बहाने एक तरह से आर्मी रिक्रुटमेंट का यह कहकर तिरस्कार किया है कि ज्यादा नंबर लाने वाले सेना में जाने से बचते हैं. कुछ लोग इस फ़िल्म की आलोचना में ये भी कह रहे हैं कि गुंजन सक्सेना इतनी पढ़ी-लिखी थीं, लेकिन उन्हें ये भी नहीं पता था कि एयरफोर्स जॉइन करने के लिए कितनी क्वॉलिफिकेशन चाहिए.

भारतीय वायुसेना की आपत्ति की ये वजहें

भारतीय वायु सेना को गुंजन सक्सेना फ़िल्म में दिखाई इन बातों पर भी आपत्ति है कि करगिल वॉर में कॉम्बैट जोन में एक ही रेस्क्यू हेलिकॉप्टर क्षतिग्रस्त हुआ था, लेकिन फ़िल्म में दो चीता हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त होने की बात दिखाई गई, जो कि तथ्यात्मक रूप से गलत है. गुंजन सक्सेना फ़िल्म में दिखाया गया है कि गुंजन सक्सेना के साथ उनके यूनिट के अधिकारी भेदभाव करते थे और उनकी शॉर्टी कैंसल कर देते थे, लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं होता, क्योंकि कोई यूनिट अधिकारी ऐसा करता है तो उसे ऊपरी स्तर तक लिखित में ये बातें बतानी पड़ती है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया और क्या वजहें रहीं. यह तथ्यात्मक गलती आपत्तिजनक है. एयरफोर्स ने फ़िल्म को लेकर सभी आपत्तियां जताते हुए कहा कि भारतीय वायु सेना के महिला और पुरुष कर्मियों के साथ कभी भी किसी तरह का भेदभाव नहीं हुआ है.

विवाद से लाभ मिलेगा क्या?

उल्लेखनीय है कि फ़िल्मों में वास्तविकता और काल्पनिकता का मेल कभी-कभी सराहनीय साबित होता है तो कभी-कभी यह विवाद को भी जन्म दे देता है. गुंजन सक्सेना फ़िल्म के साथ यही हो रहा है. शरण शर्मा ने एक वास्तविक किरदार के ऊपर फ़िल्म तो बना दी, लेकिन उन्होंने फ़िल्म में इतनी काल्पनिक बातें दिखा दीं कि वह उनके ऊपर अब भारी पड़ रही है. आप जब देश का नाम रोशन करने वालीं किसी हस्ती पर फ़िल्म बनाते हैं तो आपको तथ्यों का ध्यान रखना होता है. शरण शर्मा को ऐसा ही करना था तो वह इस फ़िल्म का नाम कुछ और रख लेते. अब भारतीय वायु सेना जब आपत्ति जता रही है तो लोगों को समझ में आ रहा है कि जान्ह्वी कपूर की फ़िल्म की कहानी हकीकत तो है, लेकिन उसमें काल्पनिकता भी कम नहीं. असलियत के छेड़छाड़ को लेकर हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री पहले से बदनाम रही है और समय-समय पर एक्टर के साथ ही डायरेक्टर-प्रोड्यूसर्स भी आलोचना के शिकार होते रहे हैं. फिलहाल आलोचना की जद में गुंजन सक्सेना: द करगिल गर्ल के मेकर्स हैं.

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