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Updated: 16 अक्टूबर, 2021 10:49 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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आनंद एल राय की कलर येलो प्रोडक्शंस और हिमांशु शर्मा की केप ऑफ गुड फिल्म्स ने फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार से एक बार फिर हाथ मिलाया है. वे भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट के एक अफसर मेजर जनरल इयान कार्डोजो के जीवन पर आधारित एक बायोपिक के लिए साथ आए हैं. फिल्म का निर्देशन राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता संजय पूरन सिंह चौहान करेंगे. इससे पहले अक्षय कुमार, आनंद एल राय और हिमांशु शर्मा की तिकड़ी फिल्म अतरंगी रे और रक्षाबंधन में साथ काम कर चुकी है. ये दोनों फिल्में अभी रिलीज होनी हैं, लेकिन तीनों का एक साथ काम करने का अनुभव इतना शानदार रहा है कि अब तीसरी फिल्म भी साथ कर रहे हैं.

दशहरे के मौके पर अक्षय कुमार ने इस फिल्म का फर्स्ट लुक पोस्टर सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लिखा, ''कभी-कभी आपके सामने ऐसी कहानियां आती हैं जो इतनी प्रेरणादायक होती हैं कि आप उन्हें बनाना चाहते हैं. गोरखा महान युद्ध नायक मेजर जनरल इयान कार्डोजो के जीवन पर ऐसी ही एक फिल्म है. एक आइकन की भूमिका निभाने और इस विशेष फिल्म को प्रस्तुत करने के लिए सम्मानित महसूस कर रहा हूं.'' प्रोड्यूसर आनंद एल राय कहते हैं, "हम एक महान युद्ध नायक मेजर जनरल इयान कार्डोजो की कहानी लाने के लिए सम्मानित हैं, जिनका नाम 1971 के भारत-पाक युद्ध में उनके अपार साहस के लिए इतिहास में दर्ज है.''

collage-thumb-old-65_101621064901.jpgफिल्म गोरखा में मेजर जनरल इयान कार्डोजो के किरदार में नजर आएंगे अभिनेता अक्षय कुमार.

मेजर जनरल इयान कार्डोजो की कहानी

युद्ध नायक मेजर जनरल इयान कार्डोजो को साल 1962, 1965 और खासकर साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उनके अदम्य साहस और वीरता के लिए जाना जाता है. भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट के इस जांबाज मेजर जनरल ने बांग्लादेश के सिलहट की लड़ाई में पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे. दरअसल, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के वक्त इयान कार्डोजो डिफेंस सर्विस स्टाफ कॉलेज, वेलिंगटन में कोर्स कर रहे थे. उनकी बटालियन 4/5 गोरखा राइफल्स पहले से ही ऑपरेशन के लिए तैनात थी. उसी समय बटालियन के सेकंड-इन-कमांड दुश्मन की कार्रवाई में शहीद हो गए. उनकी कार्डोजो को युद्ध में भेजा गया.

इयान कार्डोजो को उनकी बटालियन के लोग कारतूस साहब कहकर बुलाया करते थे. इसके दो कारण थे, पहला ये कि उनका असली नाम लेना बहुत कठीन था, दूसरा उनकी वीरता देखकर लोग उनको कारतूस संज्ञा से संबोधित किया करते थे. अपनी बहादुरी के साथ कारतूस साहब पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध भूमि में डट गए. उनके साथ सैनिकों ने अपनी वीरता के साथ ऐसा युद्ध कौशल पेश किया कि पाक सेना के जवानों ने हथियार डाल दिए. लेकिन सीमा सुरक्षा बल के प्लाटून कमांडर को लगा कि यह सब इतना आसान नहीं है. जरूर कुछ होने वाला है. सच में हुआ भी. एक लैंडमाइन का भयंकर विस्फोट हुआ, जिसमें कई जवान घायल हुए.

उस वक्त मेजर इयान कार्डोजो सबसे आगे थे, इसलिए उनका एक एक पैर लैंडमाइन ब्लास्ट में बुरी तरह जख्मी हो गया. उनको तुरंत इलाज की सख्त जरूरत थी, लेकिन वहां ऐसी सुविधा नहीं थी. वो दर्द से तड़प रहे थे. आखिरकार उन्होंने हिम्मत दिखाई और अपनी ही खुखरी से खुद अपना पैर काटकर शरीर से अलग कर दिया. इस तरह लड़ाई में अपना पैर गंवाने के बाद भी जीवन में कभी हार नहीं मानी. मेजर कार्डोजो इंडियन आर्मी के पहले डिसएबल अफसर बने, जिन्होंने एक बटालियन को कमांड किया. भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में बहादुरी के लिए उन्हें सेना मेडल और अति विशिष्ट सेवा मेडल से नवाजा था.

जब मेजर ने खुखरी से काटा खुद का पैर

मेजर जनरल इयान कार्डोजो एक इंटरव्यू में बताया था, ''जब हमारी गोरखा रेजीमेंट हेलिकॉप्टर से बांग्लादेश पहुंची तो वहां भारी गोलाबारी चल रही थी. मोर्टार से गोले दागे जा रहे थे, भारत और पाकिस्तानी सेना में भीषण लड़ाई छिड़ी हुई थी. युद्ध में काफी जवान घायल हो रहे थे और मारे भी जा रहे थे. एमआई रूम पर गोलीबारी हुई और हमारे 8 जवान शहीद गए. हमें बताया गया कि 48 घंटे में बड़ी पलटन आ जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं नहीं हुआ. हमने 10 दिन तक लड़ाई लड़ी. हमारे पास खाने-पीने का सामान ख़त्म हो रहा था और गोला-बारूद भी कम हो रहा था. हम सभी सोच में पड़ गए कि ऐसे वक्त में क्या किया जाए.''

''तभी मुझे एक विचार आया. मैंने सोच क्यों ना पाकिस्तान को ये मैसेज दिया जाए कि उनके सैनिक घिरे हुए हैं. यदि वो लोग हथियार नहीं डालते, तो हम सभी को मार देंगे. मैंने ऐसा ही किया. हमारी चाल कामयाब रही. हमारा मैसेज मिलते ही करीब एक हज़ार पाकिस्तानी सैनिक 4-5 सफेद झंडों के साथ हथियार डालने हमारे फॉरवर्ड कंपनी कमांडर के पास पहुंचे थे. उनके सरेंडर करने के बाद भी बीएसएफ के एक प्लाटून कमांडर को शक था कि खतरा अभी बरकरार है. इसी दौरान बारूदी सुरंग में ब्लास्ट हुआ और मेरा एक पैर उड़ गया. मेरे साथी मुझे उठाकर पलटन में ले गए. मॉरफिन और कोई दर्द निवारक दवा नहीं मिली.''

''मैंने अपने गुरखा साथी से बोला कि खुखरी लाकर पैर काट दो, लेकिन वो तैयार नहीं हुआ. फिर मैंने खुखरी मांगकर ख़ुद अपना पैर काट लिया. हमने उस कटे पैर को वहीं जमीन में गाड़ दिया था. इसके बाद इंफेक्शन से बचने के लिए मेरे पैर का ऑपरेशन बहुत जरूरी थी. पाकिस्तान के एक युद्धबंदी सर्जन मेजर मोहम्मद बशीर को उनका ऑपरेशन करने का आदेश मिला. पहले तो मैंने ऑपरेशन कराने से मना कर दिया, लेकिन बाद में जब मुझे पता चला कि भारतीय सेना के पास कोई हेलिकॉप्टर उपलब्ध नहीं है तो मैं ऑपरेशन करने के लिए तैयार हो गया. ऑपरेशन के बाद मैंने उसे सर्जन को धन्यवाद अदा नहीं किया, जिसका मुझे मलाल है.''

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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