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Updated: 02 मार्च, 2022 05:36 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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बॉलीवुड के दिग्गज फिल्म मेकर संजय लीला भंसाली भव्य सिनेमा बनाने के लिए मशहूर हैं. उनकी फिल्मों में शानदार सेट, डिजाइनर कास्ट्यूम, मनोहारी संगीत और बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी देखने को मिलती है. सही मायने में अपनी फिल्मों के हीरो खुद भंसाली ही होते हैं. लेकिन फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' में अभिनेत्री आलिया भट्ट अपनी अलहदा अदाकारी से भंसाली के निर्देशन पर भारी पड़ी हैं. पहले से अंतिम सीन तक उन्होंने जबरदस्त अभिनय किया है. मुंबई के कमाठीपुरा की सेक्स वर्कर गंगूबाई हरजीवनदास काठियावाड़ी के किरदार में आलिया का तेवर देखकर लगता ही नहीं कि वो करण जौहर कैंप की वही अभिनेत्री हैं, जिसे सोशल मीडिया पर 'आलू' कहकर ट्रोल किया जाता था. गंगूबाई के किरदार में उनका नाज-ओ-अंदाज, हिम्मत, ताकत, गुस्सा, साहस, प्यार हर भाव उनके चेहरे पर साफ नजर आता है.

फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' को महिला सशक्तिकरण का अप्रतिम उदाहरण कहा जा सकता है. यह एक ऐसी महिला की कहानी है, जिसका प्रेमी उसे हिरोइन बनाने के सपने दिखाकर घर से भगाता है और मुंबई लाकर एक चकलाघर में बेच जाता है. वहां तमाम जुल्म-ओ-सितम सहने के बाद मजबूरन देहव्यापार करने वाली महिला के सपने बड़े हैं. उन सपनों को साकार करने के लिए वो एक-एक कदम आगे बढ़ाती है, लेकिन जलने वाले उसे रौंदने की कोशिश करते हैं. उसे हैवान के हवाले कर देते हैं. उसके दिल से लेकर देह तक जख्म देते हैं. लेकिन वो हारती नहीं है. उनसे लड़ती है. इस तरह तमाम औरतों की आवाज बन जाती है, जो वर्षों से उस गुमनाम गली में घुट-घुट कर जी रही होती हैं. फिल्म में एक जगह वो कहती है, ''अरे जब ये शक्ति, संपत्ति और सद्बुद्धि तीनों ही औरते हैं, तो इन मर्दों को किस बात का गुरूर''.

gangubai-kathiawadi-_022522110126.jpgसंजय लीला भंसाली की फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' की हीरो सही मायने में आलिया भट्ट हैं.

Gangubai Kathiawadi की कहानी

मशहूर लेखक हुसैन जैदी के उपन्यास 'द माफिया क्वीन्स ऑफ बॉम्बे' पर आधारित फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' की कहानी गंगा उर्फ गंगू (आलिया भट्ट) के ईद-गिर्द घूमती है. गुजरात के काठियावाड़ के बैरिस्टर हरजीवनदास की बेटी गंगा को सिनेमा बहुत पसंद है. वो देवानंद को चाहती है. उनके साथ फिल्मों में हिरोइन बनना चाहती है. उसका प्रेमी रमणिक उसे हिरोइन बनाने के सपने दिखाकर घर से भगाकर मुंबई लाता है. लेकिन रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा में एक कोठे पर महज 1000 रुपए में बेच जाता है. कोठे की मालकिन शीला बाई (सीमा पाहवा) लड़कियों पर बहुत जुल्म करती हैं. उनसे जबरन देह का धंधा कराती है. गंगा को भी देह व्यापार में उतार दिया जाता है, जिसके बाद वो गंगू बन जाती है. धीरे-धीरे गंगू का प्रभाव बढ़ने लगता है. लड़कियों में लोकप्रियता बढ़ने लगती है, जिसे देख शीला जलने लगती है.

एक दिन मुंबई के माफिया किंग रहीम लाला (अजय देवगन) गैंग का एक गुर्गा कोठे पर आता है. शीला गंगू को उसके हवाले कर देती है. वो गंगू को बहुत मारता-पीटता है. जानवरों की तरह उसके साथ संबंध बनाने की कोशिश करता है. घायल गंगू को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है. शीला को लगता है कि गंगू अब कभी सिर नहीं उठा पाएगी, लेकिन यहां उसके मन में कुछ और ही चल रहा होता है. वो रहीम लाला से मिलकर इंसाफ की गुहार लगाती है. रहीम उससे प्रभावित होकर उसे बहन बना लेता है. कोठे पर उस गुर्गे के आते ही उसे मौत के घाट उतार देता है. इसके बाद शीला बाई के कोठे पर क्या पूरे कमाठीपुरा में गंगू के नाम का सिक्का चलने लगता है. धीरे-धीरे वो गंगूबाई बन जाती है. कमाठीपुरा का चुनाव लड़ने की तैयारी करने लगती है. लेकिन उसके सामने रजिया बाई (विजय राज) जैसी मजबूत कैंडिडेट है.

कमाठीपुरा में रजिया बाई की तूती बोलती है. उसके सामने चुनाव लड़ने की हिम्मत करना बहुत बड़ी बात मानी जाती है. लेकिन एक कुशल राजनेता की तरह गंगू अपने प्रेमी रज्जाक की शादी कोठे पर रहने वाली एक वेश्या की बेटी से करा देती है. यह खबर उसे रातों-रात मशहूर बना देती है. इस तरह गंगू चुनाव जीत जाती है. उसके राह में कई रोड़े आते हैं, लेकिन अपनी समझ, साहस और योजना से सबको खत्म कर देती है. इसी बीच कमाठीपुरा के खिलाफ कुछ सामाजिक कार्यकर्ता बिल्डरों की शह पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर देते हैं. वो उस जगह को खाली कराकर वहां बहुमंजिला इमारत बनाना चाहते हैं. लेकिन गंगू उनके खिलाफ जंग छेड़ देती है. सीधे प्रधानमंत्री से मिलकर अपनी समस्याओं को उनके सामने रखती है. समाज की उपेक्षित महिलाओं के लिए गंगू की सोच को प्रधानमंत्री भी सलाम करते हैं. उसका साथ देते हैं.

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Gangubai Kathiawadi की समीक्षा

#निर्देशन:- संजय लीला भंसाली को सिनेमा का जादूगर कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. उनको पता है कि दर्शकों को क्या चाहिए. किसी कलाकार से उसका 100 फीसदी काम कैसे निकाला जाता है, उनको बखूबी आता है. कुछ लोगों का आरोप है कि भंसाली ने अपनी फिल्म में गुंडे, माफिया और वेश्या का महिमामंडन किया है. ऐसे लोगों को सलाह है कि सिनेमा को सिनेमा की तरह देखना चाहिए. इसमें नैतिकता खोजने की कोशिश करेंगे, तो निराशा ही हाथ लगेगी. हां, कुछ फिल्में ऐसी होती है, जिन्हें घोषित रूप से मेकर्स नैतिकता के पैमाने पर कसकर बनाते हैं. उनसे ऐसी अपेक्षा की जानी चाहिए. यहां भंसाली ने ऐसा कोई दावा नहीं किया है. लेकिन फिल्म देखने के बाद आप जरूर एक संदेश लेकर जाते हैं कि हर तरह के इंसान को समाज में रहने का हक है. समाज के किसी ठेकेदार को किसी का हक छीनने का कोई अधिकार नहीं है.

#पटकथा:- फिल्म की पटकथा उत्कर्षिणी वशिष्ठ, प्रकाश कपाड़िया और संजय लीला भंसाली ने लिखी है. किसी किताब की कहानी जो पहले से ही लोगों को पता हों, उस पर एक कसी हुई पटकथा लिखना ज्यादा कठिन काम माना जाता है, लेकिन लेखन टीम ने उसे बेहतर तरीके अंजाम दिया है. सेकेंड हॉफ के बाद आखिरी के आधे घंटे में पकड़ थोड़ी ढ़ीली हुई है, लेकिन भंसाली ने अपने मजबूत निर्देशन से उसे खटकने नहीं दिया है. फिल्म का एक मजबूत पहलू इसके डायलॉग भी हैं, जिसे प्रकाश कपाड़िया ने लिखा है. एक सभा में लोगों को संबोधित करती हुई गंगू कहती है, ''हम दिल में आग चेहरे पर गुलाब रखते हैं. मिटाकर तुम्हारे मर्दों की भूख, हम तुम्हारा रूआब रखते हैं.'' इसी तरह वो यह भी कहती है, ''शायद आपको मेरी बात थोड़ी सी कड़वी लगे, लेकिन ध्यान से सुनना, आपसे ज्यादा इज्जत है हमारे पास, पूछो कैसे? आपकी इज्जत एक बार गई तो गई, हम तो रोज रात को इज्जत बेचती है, खत्म इ च नहीं होती.'' गूंग की इन बातों में कई भाव हैं. चेहरे पर गर्व है, साहस है; तो अंदर दर्द भी है.

#संगीत:- संजय लीला भंसाली की फिल्मों पर चर्चा संगीत के बिना बेमानी है. वो भावपूर्ण और कर्णप्रिय गीतों के लिए जाने जाते हैं. उनकी फिल्मों में संगीत जान होती है. लेकिन पूर्ववर्ती फिल्मों की तुलना में फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' का संगीत सुस्त नजर आता है. एक भी ऐसा गाना नहीं है, जो थियेटर से निकलने के बाद हमारे साथ जाता हो. 'धोलिदा' और 'मेरी जान' सॉन्ग सिर्फ फिल्मांकन की वजह से ठीक लगता है. 'शिकायत' और 'झुमे रे गोरी' सॉन्ग याद रखने लायक नहीं है. हां, 'जब सईयां, आए शाम को' गाना दिल की गहराइयों में उतरने की कोशिश जरूर करता है, लेकिन पहले ही दम तोड़ जाता है. संचित बलहारा और अंकित बलहारा का बैकग्राउंड स्कोर काफी बेहतर है. फिल्म की कोरियोग्राफी शानदार दिखती है. खासकर नवरात्री सॉन्ग के दौरान आलिया भट्ट का अद्भुत डांस हैरान करता है. इसका श्रेय कृति महेश को जाता है.

#अभिनय प्रदर्शन:- फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' का सबसे मजबूत पक्ष है, इसमें शामिल कलाकारों का बेहतरीन अभिनय प्रदर्शन. हर कलाकार ने अपने किरदार को जिया है. गंगूबाई के किरदार में आलिया भट्ट ने अपना अबतक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है. उन्होंने नेपोटिज्म और स्टार किड्स के ठप्पे को अपने टैलेंट की बदौलत धो दिया है. पूरी फिल्म में वो छाई हुई हैं. उनके जैसी नाजुक काया वाली एक्ट्रेस के लिए गंगूबाई का किरदार किसी चुनौती से कम नहीं है, लेकिन उन्होंने इसे जिस तरह निभाया है, उसे देखकर लगता ही नहीं कि वो आलिया ही हैं. एक्टिंग से लेकर डायलॉग डिलिवरी तक, हर जगह परफेक्ट नजर आती हैं. कुछ सीन तो ऐसे हैं, जिसमें उनकी नेचुरल एक्टिंग साफ नजर आती हैं. आलिया के अलावा शीलाबाई के रोल में सीमा पाहवा, रहीम लाला के रोल में अजय देवगन और रजिया बाई के रोल में विजय राज ने प्रभावित किया है. हालांकि, अजय और विजय के हिस्से बहुत कम सीन आए हैं. वो आते हैं, छाते हैं, लेकिन तुरंत गायब हो जाते हैं. उनके किरदारों को विस्तार दिया जाना चाहिए था. इससे फिल्म ज्यादा प्रभावशाली लगती.

#फिल्म देखें या नहीं?:- इन सभी के साथ छोटे रोल में ही सही शांतनु माहेश्वरी और जिम सरभ बहुत ज्यादा प्रभावित किया है. एक दर्जी के किरदार में शांतनु जब भी सामने आते हैं, आकर्षित करते हैं. उनके किरदार के साथ गंगूबाई का प्रेम प्रसंग भी पवित्र लगता है. एक पत्रकार के किरदार में जिम सरभ हमेशा की तरह अलग दिखते हैं. हालांकि, उनके कद के कलाकार के पास भी करने के लिए बहुत कुछ होता नहीं है. कव्वाली करती हुमा कुरैशी अच्छी लगती हैं. तालियों की थाप पर बदलते उनके एक्सप्रेशन 'पाकीजा' की मीना कुमारी की याद दिला जाते हैं. कुल मिलाकर, दमदार कहानी, शानदार अभिनय प्रदर्शन और बेहतीन मोमेंट्स के लिए फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' जरूर देखी जानी चाहिए. इसमें आलिया भट्ट का 'रंग' देखकर आपको समझ में आ जाएगा कि गंगूबाई वाला 'सफेद' कितना सुहावना है.

iChowk.in रेटिंग: 5 में से 4 स्टार

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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