जानें कैसे बनेगी सुपरहिट सेक्स कॉमेडी
सेक्स कॉमेडी का मतलब यह नहीं है कि सिर्फ कुछ नॉनवेज जोक्स परोस दिए जाएं और उन्हें दिखाने के लिए जबरदस्ती कुछ सीन पिरो दिए जाएं. जैसा मस्तीजादे और क्या कूल हैं हम-3 में नजर आया.
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बॉलीवुड कभी भी अपनी फिल्मों को गंभीरता से बनाने के लिए नहीं जाना जाता. कुछेक डायरेक्टरों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर चट कहानी और पट फिल्म की तर्ज पर माल तैयार करने में यकीन रखते हैं. इसलिए हर शुक्रवार के साथ बोगस फिल्मों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है और सेक्स कॉमेडी जॉनर में बॉलीवुड पिछले दो शुक्रवार में दो सेक्स कॉमेडी दे चुका है. लेकिन दोनों ही फिल्में कन्टेंट के मामले में कच्चेपन का ही इशारा करती हैं. शायद हॉलीवुड से हमेशा प्रेरित और उस पर जान न्यौछावर करने वाला बॉलीवुड उसकी नकल तो करना चाहता है लेकिन अपना दिमाग इस्तेमाल करने से बचता है. वह यह बात नहीं समझ पा रहा है कि कोई भी जॉनर हो जब तक बांध के रखने वाली कहानी नहीं होगी तब तक कुछ नहीं हो सकता.
मजबूत कहानी से ही होगा बेड़ा पारः
सेक्स कॉमेडी की जब हम बात करते हैं तो ऐसा नहीं है कि सिर्फ कुछ नॉनवेज जोक्स परोस दिए जाएं और उन्हें दिखाने के लिए जबरदस्ती कुछ सीन पिरो दिए जाएं. जैसा मस्तीजादे और क्या कूल हैं हम-3 में नजर आया. बेशक नॉन वेज जोक्स डालिए लेकिन कहानी के मुताबिक. अगर कहानी की बात करें तो डेल्ही बेली में एक सॉलिड कहानी चलती थी. हॉलीवुड की सेक्स कॉमेडी अमेरिकन पाई सीरीज हो या फिर हैंगओवर, उनमें बांधने वाली कहानी है. हैंगओवर में तीन दोस्त हैं जो मस्ती करने के लिए निकलते हैं या फिर अमेरिकन पाई सीरीज तो पूरी तरह से किशोरों को समर्पित है. इसी तरह ड्यू डेट में एक पति है जिसे अपनी पत्नी के पास जल्द से जल्द पहुंचना है क्योंकि वह उनके पहले बच्चे को जन्म देने वाली है. शायद प्रोड्यूसर एकता कपूर, लेखक मिलाप झवेरी जैसे लोगों को कहानी के महत्व को बखूबी समझना होगा. अगली बार हॉलीवुड फिल्म देखते समय बॉलीवुड के इन दिग्गजों को देखी जाने वाली फिल्मों की कहानी को भी ध्यान में रखना चाहिए.
फ्लॉप सितारों से भी आगे सोचें:
अगर फिल्म की कहानी सॉलिड होगी तो फिर कास्टिंग में कोई दिक्कत नहीं आने वाली क्योंकि कहानी के मुताबिक चलने में किसी को कोई दिक्कत नहीं आती. कहानी सॉलिड होगी तो सनी लियोनी नहीं भी होंगी तो भी लोग फिल्म देखने आएंगे जैसे डेल्ही बेली में कोई बड़ा सितारा नहीं था लेकिन फिल्म को खूब पसंद किया गया था. अगर सिर्फ डबल मीनिंग डायलॉग और मजाक के नाम पर फूहड़ता होगी तो उसके लिए सिर्फ वही सितारे हां करते नजर आएंगे जिनका करियर बाकी जगह ठंडा पड़ गया है. ऐसे में नामी सितारों के आने से इस जॉनर में लोगों का भरोसा बढ़ेगा. जैसे ड्यू डेट में रॉबर्ट डाउनी जूनियर और जेमी फॉक्स जैसे सितारे नजर आए थे.
फूहड़ नहीं शानदार फिल्मांकन हो:
वैसे कितने ही प्रोड्यूसर्स ने इस बात को माना है कि जब उन्हें कहानी सुनाई गई तो वे हंसते-हंसते लोट-पोट हो गए. एक प्रोड्यूसर ने तो यहां तक कहा कि उन्होंने जब डायरेक्टर को बुलाया तो कहानी सुनने के लिए सिर्फ 15 मिनट दिए थे लेकिन सुनने में इतना मजा आया कि एक-डेढ़ घंटा चुटकियों में गुजर गया. तो क्या कहानी लिखने और फिर उसे परदे पर उतारने के बीच इतना लोचा हो जाता है कि फिल्म का सत्यानाश हो जाता है? वैसे अधिकतर फिल्मों में ऐक्टिंग पर कम और फूहड़ हाव-भाव पर हंसाने के लिए ज्यादा भरोसा किया जाता है. इस कमी को भी दूर करने के बारे में सोचना चाहिए, जिसका काफी हद तक इशारा क्या कूल हैं हम-3 में मिल चुका है. सीन में सेक्स और स्त्री शरीर या समलैंगिक शख्स से जुड़े मजाक दिखाकर ही हंसी नहीं पैदा की जा सकती है, इस बात को समझने की भी जरूरत है.
बहुत बड़ा है बाजार, आंखें खोलकर देखें:
सिनेमा देखने वालों में युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है. कहा जाता है कि 16-35 वर्ष के लोग सिनेमाघरों में फिल्में देखने सबसे ज्यादा आते हैं. अब अगर एडल्ट फिल्म की बात करें तो इसमें 18 साल से ऊपर के लोग आते हैं देखने. ऐसे में दर्शक वर्ग काफी बड़ा है और ग्रैंड मस्ती के 100 करोड़ रु. का आंकड़ा पार करना इस बात को सिद्ध कर चुका है. वैसे मस्तीजादे ने पहले वीकेंड में 18 करोड़ रु. कमाए थे, इस तरह इस बात का इशारा तो मिलता है कि दर्शकों की कोई कमी नहीं है. जरूरत है तो सिर्फ उनके रुझान को समझने और मानकों को ऊपर करने की जिससे सेक्स कॉमेडी फिल्मों को लेकर वाहियात फिल्म होने का टैग हट सके क्योंकि ऐसी ही द्विअर्थक फिल्में बनाकर असफल कोशिश दादा कोंडके भी कर चुके हैं.

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