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Updated: 04 अप्रिल, 2021 07:53 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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देश की आजादी के बाद अभी तक शौर्य और साहस की जितनी कहानियां सुनी और सुनाई जाती हैं, उनमें फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की वीरगाथा सबसे अलग है. भारत के सबसे बड़े दुश्मन मुल्क पाकिस्तान की कमर तोड़कर दो हिस्सों में विभाजित कराने वाले सैम मानेकशॉ शूरता और वीरता की मिसाल थे. हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में इस वक्त बायोपिक का दौर चल रहा है. तमाम खिलाड़ियों और ऐतिहासिक किरदारों की कहानियां रुपहले पर्दे पर दिखाई जा रही हैं, ऐसे में मानेकशॉ की दास्तान आज की पीढ़ी को दिखाना और बताना बहुत जरूरी है. इस सपने को साकार करने जा रहे हैं रॉनी स्क्रूवाला और मेघना गुलजार. इनके प्रोडक्शन और डायरेक्शन में फिल्म 'सैम बहादुर' बनाने का ऐलान हुआ है. उरी फेम एक्टर विक्की कौशल सैम का किरदार निभा रहे हैं.

3 अप्रैल सैम मानेकशॉ की जयंती होती है. इसी दिन उनके जीवन पर बनने वाली बायोपिक फिल्म के टाइटल का ऐलान किया गया, नाम है 'सैम बहादुर'. सैम तो मानेकशॉ के नाम से ही लिया गया है, जबकि बहादुर उनकी विशेषता है. वैसे गोरख सेना उनको प्यार से सैम बहादुर कहकर ही पुकारती थी. भारत के सबसे महान युद्ध नायकों में से एक मानेकशॉ की जयंती पर इससे बेहतरीन तोहफा नहीं हो सकता था. विक्की कौशल ने लिखा, 'द मैन, द लीजेंड, द ब्रेवहार्ट हमारे 'सैम बहादुर'. सैम मानेकशॉ की कहानी को उनकी जयंती पर नाम मिल गया है- 'सैम बहादुर'. विक्की ने एक वीडियो भी शेयर किया, जिसमें फिल्म के नाम के साथ ही सैम के कई अन्य नाम भी दिखाए गए हैं. उनको 'मानेक सैम', 'मेकिनटोश', 'मानेक जी' जैसे नामों से भी जाना जाता है.

sam-650_040421023101.jpgसैम मानेकशॉ के लुक में विक्की कौशल बिल्कुल उन्हीं की तरह दिख रहे हैं.

सैम मानेकशॉ की कहानी

सैम मानेकशॉ का पूरा नाम शाहजी होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ था. उनका जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था. उनका परिवार गुजरात के शहर वलसाड से पंजाब आ गया था. मानेकशा ने शुरुआती पढाई अमृतसर में की, बाद में वे नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में दाखिल हो गए. वे देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी के पहले बैच के लिए चुने गए 40 स्टूडेंट्स में से एक थे. यहां से कमीशन हासिल करने के बाद साल 1934 में सैम भारतीय सेना में भर्ती हो गए. उस वक्त भारत अंग्रेजों का गुलाम था, तो सेना भी उसके ही अंडर में थी. दूसरे वर्ल्ड वॉर के लिए सैम को बर्मा के मोर्चे पर भेजा गया. वहां फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट के कैप्टन के तौर पर जापानियों से मुकाबला करते हुए वह गंभीर रूप से घायल हो गए.

बताया जाता है कि मानेकशॉ को सात गोलियां लगी थीं. उनकी गंभीर हालत देख डॉक्टर ने इलाज करने से ही मना कर दिया. यह देख एक सैनिक ने डॉक्टर पर रायफल तान दी और गुर्राया, 'मेरे साब का हुक्म है जब तक जान बाकी है तब तक लड़ो. यदि तुमने इनका इलाज नहीं किया तो मैं तुम्हे गोली मार दूंगा.' जान जाती देख डॉक्टर ने इलाज शुरू किया. उनकी जान बच गई. ऐसे थे सैम मानेकशॉ के सिपाही, तो जरा सोचिए उनके अंदर वीरता और साहस कितनी कूट-कूट कर भरी रही होगी. वैसे सैम को बांग्लादेश के लिए हुए पाकिस्तान से युद्ध और उसमें जीत दिलाने के लिए ज्यादा जाना जाता है.

बात साल 1971 की है. उससे पहले चीन से मिली हार के बाद भारतीय सेना का मनोबल टूटा हुआ था. इधर पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) के हालात बहुत खराब चल रहे थे. वहां के लोग पाकिस्तान से अलग होकर एक नए देश की मांग कर रहे थे. पाकिस्तान सरकार सेना और पुलिस के दम पर प्रदर्शनकारियों को दमन कर रही थी. लोगों पर अत्याचार किया जा रहा था. वहां के हालात देख तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने देश में एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई. इसमें मंत्री मंडल के वरिष्ठ सदस्यों के साथ ही सेना के सभी प्रमुख भी शामिल हुए. इंदिरा गांधी चाहती थीं कि भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान पर हमला कर दे, ताकि वहां से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ करके बांग्लादेश को आजाद मुल्क के रूप में स्थापित किया जा सके.

इंदिरा गांधी इस मसले को कूटनीतिक नजरिए से देख रही थीं. वैसे ये सही भी था, क्योंकि यदि आज बांग्लादेश पाकिस्तान के पास होता, तो वह और ज्यादा भारत के लिए खतरा होता. खैर, उस वक्त इंदिरा गांधी की बातें सुनकर सैम ने युद्ध के लिए साफ इनकार कर दिया. उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा, 'क्या आप युद्ध हारना चाहती हैं?' सैम के इस सवाल से इंदिरा दंग रह गईं. उन्होंने इंदिरा से युद्ध की तैयारी के लिए समय मांगा. वक्त मिलने के बाद सैम ने सेना को प्रशिक्षित करने की तैयारियां शुरू कर दीं. करीब 7 महीने बाद उन्होंने तैयारी पूरी करके बांग्लादेश का युद्ध लड़ा था. युद्ध से पहले जब इंदिरा गांधी ने उनसे भारतीय सेना की तैयारी के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, 'मैं हमेशा तैयार हूं, स्वीटी.' सैम इंदिरा को स्वीटी कहकर पुकारते थे.

बस फिर क्या 1971 का साल बीतने से पहले ही दिसंबर महीने में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना पर धावा बोल दिया. जमकर युद्ध हुआ. पाकिस्तान को लगा कि ये चीन से हारी हुई सेना है, उसके सामने ठीक नहीं पाएगी. लेकिन दांव उल्टा पड़ गया. भारतीय सेना तो पहले से ही खार खाए बैठती थी, उपर से मानेकशॉ का कुशल नेतृत्व. 13 दिनों में ही पाकिस्तानी सेना ने भारत के सामने हथियार डाल दिए. पाकिस्तान के 90 हजार से भी ज्यादा सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया. इतिहास में यह पहला युद्ध था जिसमें एक साथ इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों ने हथियार डाले. इस युद्ध में पाकिस्तान को जान-माल के साथ ही जमीन से भी हाथ धोना पड़ा. उस वक्त एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ. भारतीय सेना का जोश तो 'हाई' हो गया.

विक्की कौशल की तैयारी

इस युद्ध के बाद ही साल 1973 में सैम मानेकशॉ को फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया. वह इस पद से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय जनरल थे. साल 1972 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया था. 1973 में सेना प्रमुख के पद से रिटायर होने के बाद वे वेलिंगटन चले गए. वेलिंगटन में ही साल 2008 में उनका निधन हो गई था. दमदार शख्सियत के मालिक मानेकशॉ, जिनका देश की आयरन लेडी इंदिरा गांधी भी लिहाज करती थीं, उनके जीवन चरित्र को बड़े पर्दे पर निभाने का जिम्मा लिया है, बॉलीवुड एक्टर विक्की कौशल ने. इस फिल्म के लिए वह काफी मेहनत कर रहे हैं. इस रोल के लिए उनके सामने सबसे पहला चैलेंज मानेकशॉ की तरह दिखने का था. लुक टेस्ट में वह इस चुनौती से पार पा चुके हैं.

साल 2019 में रिलीज हुई फिल्म 'उरी द सर्जिकल स्ट्राइक' में लीड रोल के जरिए अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले विक्की कौशल की इसी फिल्म का एक डायलॉग बहुत मशहूर है. 'हाउज द जोश', हाई सर... इसी तरह इस वक्त विक्की कौशल का जोश भी हाई है. इस फिल्म की शूटिंग शुरू होने जा रही है. इससे पहले विक्की किरदार को बखूबी निभाने के लिए पूरी तैयारी कर रहे हैं. सैम हिंदी और इंग्लिश में बखूबी बात करते थे, पंजाबी और गुजराती भी बोल लेते थे, लेकिन उनकी भाषा में स्पेशल सोफिस्टिकेटेड पारसी एक्सेंट होती थी. उस एक्सेंट को पकड़ना विकी के लिए बिग चैंलेंज है. इसके लिए विक्की एक वॉइस और स्पीच ट्रेनर के साथ काम कर रहे हैं. वे उन्हें डीप वॉइस मॉडुलेशन में ट्रेंड करेंगे. डबिंग करते वक्त सैम जैसी स्ट्रांग वॉइस में बोलेंगे.

इतना ही नहीं विक्की कौशल सैम की फैमिली से भी मिलने वाले हैं. उनकी फैमली में उनकी बेटियां और पोते शामिल हैं. वह उनके साथ टाइम गुजारेंगे. सैम की पर्सनैलिटी, उनके रवैए, परफेक्ट फैमिली मैन होने के बारे में जानेंगे. सैम को अच्छे से जानने वाले रिटायर्ड फौजियों से और 1971 का युद्ध लड़ चुके सैनिकों से मुलाकात करेंगे. इसके अलावा विक्की की सबसे महत्वपूर्ण मीटिंग होगी सैम के एडीसी और मिलिट्री असिस्टेंट से, जिनसे खास जानकारी मिलेगी. फिल्म में पार्टिशन और कश्मीर हिंसा जैसी घटनाएं भी दिखेंगी. इन घटनाओं के दौरान सैम की भूमिका समझने विक्की बुक्स और आर्काइव में मौजूद वीडियो देख रहे हैं. इस तरह एक बार फिर विक्की कौशल उरी की तरह अपने दमदार एक्टिंग से सैम को पर्दे पर जीवंत करने की कोशिश करेंगे.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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