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Updated: 19 जून, 2022 06:38 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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''पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः। पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः॥''

पद्मपुराण में कहा गया है कि पिता धर्म है, पिता स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तप है. पिता के खुश रहने पर सभी देवता भी खुश रहते हैं. पिता का स्थान सबसे ऊपर माना जाता है. इसलिए तो ईश्वर को भी 'परम पिता' कहा जाता है. परिवार में पिता सर्वोच्च अनुशासन रखते हैं तो समाज में सर्वोच्च पहचान. जब भी सर्वोच्च की बात आती है तो उसे पिता से जोड़ दिया जाता है. पिता यानी जन्म देने वाला, पालनहार, सबसे जिम्मेदार, सम्मानित, महान, सर्वोच्च. ये सब वो खासियतें हैं, जो हर व्यक्ति अपने पिता में देखता है, क्योंकि पिता ही हमें बनाते हैं, सिखाते हैं और हमारा निर्माण करते हैं. इसलिए पिता का रिश्ता सर्वोच्च है.

पिता के प्रति अपना प्यार, सम्मान और आदर प्रगट करने के लिए हर साल जून के तीसरे रविवार को पूरी दुनिया में फादर्स डे मनाया जाता है. इस साल आज यानि 19 जून को हम इस खास दिन को सेलिब्रेट कर रहे हैं. पहली बार फादर्स डे 19 जून 1910 को वाशिंगटन में मनाया गया था. चूंकि समाज में पिता का इतना महत्व है, तो भला सिनेमा इससे कैसे अछूता रह सकता है. फिल्मों में भी पिता के किरदार को खूब फिल्माया गया है. इन फिल्मी पापाओं ने पिता के कई स्वरूप का दर्शन कराया है. इनको देखने के बाद समझ में आता है कि कैसे एक पिता सिर्फ घर की जिम्मेदारियां ही नहीं उठाता, बल्कि जरूरत पड़ने पर बच्चों का दोस्त भी बन जाता है.

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यदि आप भी एक अच्छा पिता बनना चाहते हैं, तो इन फिल्मी पापाओं से बहुत कुछ सीख सकते हैं...

- मेहनतकश पिता, जो बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दे

किरदार- महावीर सिंह फोगाट

कलाकार- आमिर खान

फिल्म- दंगल

साल 2016 में रिलीज़ हुई 'दंगल' एक स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म है. इसे पूर्व पहलवान महावीर सिंह फोगट की बायोपिक कहा जा सकता है. फिल्म में अभिनेता आमिर खान ने महावीर फोगाट का किरदार किया था. उनकी दोनों बेटियों गीता फोगट का किरदार फातिमा सना शेख और बबीता फोगट का किरदार सान्या मल्होत्रा ने किया था. यह फिल्म महिलाओं को जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर होने के लिए प्रोत्साहित करती है. जिस वक्त लोग अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए भेजने से भी परहेज किया करते थे, उस वक्त महावीर फोगाट ने अपनी बच्चियों को अखाड़े में उतार दिया था. उनको लड़कों के साथ लड़ने देते थे. उनको विश्वस्तरीय पहलवान बनाने के लिए सख्त लेकिन मेहनतकश पिता की तरह दिन रात लगे रहते थे. उनको सुबह उठाने से लेकर ट्रेनिंग देने का काम करते थे. पहले बेटियों को पिता बुरे लगते, लेकिन जब मेडल जीतने लगीं, तब जाकर समझ आया कि उनके जीवन में पिता की मेहनत और सख्ती ने क्या गुल खिलाया है. पिता की वजह से ही गीता और बबीता ने दुनिया भर में अपना नाम रौशन किया. देश के लिए गोल्ड मेडल जीता.

- कूल डैड, जो बच्चों के साथ दोस्त जैसा रहे

किरदार- पॉप्स धर्मवीर मल्होत्रा

कलाकार- अनुपम खेर

फिल्म- दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे

साल 1995 में रिलीज हुई फिल्म 'दिलवाले दुल्‍हनिया ले जायेंगे' को भारतीय सिनेमा के बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया जाता है. इस फिल्म ने कमाई के मामले में बॉक्स ऑफिस पर कई रिकॉर्ड बनाए थे. फिल्म में शाहरुख खान, काजोल, अनुपम खेर, अमरीश पुरी और फरीदा जलाल ने मुख्‍य भूमिका निभाई है. अनुपम फिल्म के मुख्य किरदार राज (शाहरुख खान) के पिता धर्मवीर मल्होत्रा के किरदार में है. राज अपने पिता को पॉप्स कहकर बुलाता है. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाप-बेटे का रिश्ता कितना सहज होगा. जिस फिल्म में अमरीश पुरी जैसे कड़क पिता का किरदार दिखाया गया है, जो कि बेटी के प्रेम के बारे में जानने के बाद उसे लेकर हिंदुस्तान चला आता है, उसी फिल्म में पॉप्स अपने बेटे को समझाता है कि यदि सिमरन से प्यार करता है, तो उसके लिए इंडिया जाए, उसे लेकर आए. उनकी नजर में प्यार गुनाह नहीं है. एक जगह पॉप्स राज से कहते हैं, ''फेल होना और पढ़ाई ना करना...हमारे खानदान की परंपरा है''. बच्चों के साथ दोस्तों जैसा रहने वाला कूल डैड किसे नहीं पसंद आएगा. पॉप्स से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.

- प्रगतिशील पिता, जो किसी भी सूरत में बच्चों के सपनों को पूरा करे

किरदार- चंपक बंसल

कलाकार- इरफान खान

फिल्म- अंग्रेजी मीडियम

फिल्म 'अंग्रेजी मीडियम' में चंपक बंसल के किरदार में इरफान खान ने एक प्रगतिशील पिता की भूमिका निभाई है. एक ऐसा पिता जो अपनी खराब आर्थिक स्थिति के बावजूद बेटी के सपने को टूटने नहीं देता. चंपक बंसल की बेटी तारिका का किरदार राधिका मदान ने निभाया है. उसकी महत्वाकांक्षा अपने पिता की हैसियत से बहुत ज्यादा है, जिसे पूरा करना चंपक के वश का नहीं होता, लेकिन फिर भी वो अपनी बेटी को पढ़ाई के लिए विदेश भेजता है. इतना ही नहीं वो हर संभव कोशिश करते हैं, जिससे उनकी बेटी के सपने को पूरा करने में मदद मिले. इसके लिए कई बार अपनी हद तक पार कर जाते हैं. उन्होंने कभी भी अपनी बेटी पर समाज की अपेक्षाओं का बोझ नहीं डाला. पितृसत्तात्मक समाज में लड़कियों की शिक्षा हमेशा एक बहस का विषय रही है. लेकिन ये फिल्म रूढ़ियों और ऐसी विचारधाराओं को गलत साबित करती है. इसमें बाप-बेटी का बेहतरीन रिश्ता देखने को मिलता है.

- खुले विचारों वाले पिता, जो बच्चों के हर फैसले का समर्थन करे

किरदार- सचिन संधू

कलाकार- कुमुद मिश्रा

फिल्म- थप्पड़

अनुभव सिन्हा के निर्देशन में बनी फिल्म 'थप्पड़' साल 2020 में रिलीज हुई थी. इसमें तापसी पन्नू ने लीड रोल किया है. उनके पिता सचिन संधू भूमिका में अभिनेता कुमुद मिश्रा है. सचिन खुले विचारों वाले एक ऐसे पिता हैं, जो कि अपने बच्चे की हर फैसले में उसके साथ होते हैं. उसका समर्थन करते हैं. यहां तक कि उसे प्रोत्साहित भी करते हैं. उनकी बेटी अमृता (तापसी पन्नू) को उनका दामाद पार्टी में लोगों के बीच थप्पड़ मार देता है. इसके बाद अमृता अपने पति को छोड़कर अपने मायके चली आती है. पति से तलाक लेने की बात कहती है. बात बेटी के सम्मान की है, इसलिए सचिन उसके फैसले में उसका साथ देते हैं. बेटी के गाल पर पड़े थप्पड़ से वो व्यथित और क्रोधित हैं. वो किसी भी प्रकार के घरेलू हिंसा के खिलाफ हैं, भले ही वह एक थप्पड़ क्यों ना हो. दामाद आकर उनसे कहता है, ''हो गई गलती. अब मैं क्या करूं? आगे से कभी नहीं होगी''. इस पर पिता कहते हैं, ''सवाल यह ज्यादा जरूरी है कि ऐसा हुआ क्यों?'' सामान्यतौर पर बेटी ऐसी स्थिति में मायके आती है, तो लोग उसे समझा-बुझाकर वापस भेजने की कोशिश करते हैं, जो कि गलत है.

- उदार मानसिकता वाले पिता, जो बच्चों के साथ बच्चों की तरह रहे

किरदार- भास्कर बनर्जी

कलाकार- अमिताभ बच्चन

फिल्म- पीकू

यदि बाप-बेटी के रिश्ते पर बनी बेहतरीन फिल्म देखनी है, तो 'पीकू' जरूर देखनी चाहिए. फ़िल्म में पिता भास्कर बनर्जी के किरदार में अमिताभ बच्चन और उनकी बेटी पीकू के क़िरदार में दीपिका पादुकोण हैं. फिल्म में शादी, सेक्स और प्यार जैसे विषयों पर भास्कर बनर्जी की उदार मानसिकता को दिखाया गया है. इस फ़िल्म में रिश्तों को खूबसूरती से दिखाया गया है फिर चाहे वह मालिक और नौकर का रिश्ता हो, कार किराए पर देने वाली कंपनी के मालिक और उसकी ग्राहक पीकू का, जो कुछ ना कहकर भी बहुत कुछ कह जाता है. इसमें एक इंसान की जड़ों को बड़ी सादगी के साथ पेश किया गया है. फ़िल्म देखते वक्त आपके होठों पर हंसी भी होगी तो आंखों में आंसू भी छलक सकते हैं.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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