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Updated: 04 नवम्बर, 2022 09:04 PM
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एक वक्त था जब मोटे लोगों को खाते-पीते घर का समझा जाता था. ऐसा माना जाता था कि धनवान और सेठ लोगों का वजन ज्यादा होता है. मजदूर और गरीब पतले होते हैं. लेकिन बदलते समय के साथ इसकी परिभाषा बदल गई. अब मोटे लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता है. उनको बीमार समझा जाता है. ऐसे लोगों का मजाक भी उड़ाया जाता है. इसे बॉडी शेमिंग कहा जाता है, जिसमें शारीरिक बनावट के आधार पर किसी का अपमान या नीचा दिखाया जाता है. बॉडी शेमिंग के शिकार लोगों के मन और मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है. कुछ लोग तो डिप्रेशन में चले जाते हैं. इसी विषय पर पहले 'फन्ने खां' और 'दम लगा के हईशा' जैसी फिल्में बन चुकी हैं. बॉडी शेमिंग पर आधारित एक नई फिल्म 'डबल एक्सएल' सिनेमाघरों में रिलीज की गई है. इसका निर्देशन सतराम रमानी ने किया है.

'डबल एक्सएल' में हुमा कुरैशी, सोनाक्षी सिन्हा, जहीर इकबाल, महत राघवेंद्र और कंवलजीत सिंह अहम किरदारों में हैं. हुमा कुरैशी और सोनाक्षी सिन्हा ने दो ऐसी महिलाओं का किरदार निभाया है, जो कि अपने मोटापे की वजह से करियर में ग्रोथ नहीं कर पाती हैं. हुमा कुरैशी के किरदार का नाम राजश्री त्रिवेदी और सोनाक्षी सिन्हा के किरदार का नाम सायरा खन्ना है. राजश्री और सायरा के ख्वाब बहुत ऊंचे हैं. एक को स्पोर्ट्स प्रेजेंटर बनना है तो दूसरी को फैशन डिजाइनर, लेकिन इनके सपनों के साकार होने के बीच में इनका मोटापा आ जाता है. लोग इनके वजन की वजह से गंभीरता से नहीं लेते हैं. यहां तक कि सायरा के वजन की वजह से उसका बायफ्रेंड उसे धोखा तक देने लगता है. अपने जीवन में हताश और निराश राजश्री और सायरा की मुलाकात हो जाती है, जिसके बाद उनकी जिंदगी बदल जाती है.

650x400_110422063917.jpgफिल्म 'डबल एक्सएल' में हुमा कुरैशी, सोनाक्षी सिन्हा, जहीर इकबाल लीड रोल में हैं.

फिल्म 'डबल एक्सएल' एक जरूरी विषय पर बनी है. इस वक्त ऐसे विषय पर चर्चा बहुत जरूरी है. यही वजह है कि फिल्म कुछ लोगों को बहुत पसंद आ रही है. हालांकि, समीक्षकों ने इसे एक जरूरी विषय पर बनी औसत फिल्म बताया है. उनका कहना है कि 'हेलमेट' जैसी फिल्म का निर्देशन कर चुके सतराम रमानी की फिल्म का विषय बेहतरीन है. कास्टिंग परफेक्ट है.अच्छी नियत से बनाई गई है, लेकिन कहीं न कहीं इस जरूरी मुद्दे वाले विषय की परतों को पूरी तरह से उकेरने में नाकामयाब रही है. हुमा कुरैशी ने दमदार एक्टिंग की है, लेकिन सोनाक्षी सिन्हा ओवरएक्टिंग का शिकार हो गई है. वही हाल जहीर इकबाल का है. दोनों ओवरएक्टिंग की दुकान लग रहे हैं. अलका कौशल 30 पार कर चुकी अनब्याही बेटी की मां के दर्द को बखूबी बयान करती हैं. शुभा खोटे और कंवलजीत छोटे-छोटे किरदारों में भी याद रह जाते हैं.

सोशल मीडिया पर दर्शकों की तरफ से अच्छी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. ट्विटर पर विश्वजीत पाटिल 5 में से 4 स्टार देते हुए लिखते हैं, ''डबल एक्सएल फिल्म देखकर बहुत मजा आया है. एक संवेदनशील विषय पर बनी बेहतरीन फिल्म है. कहानी भी अच्छे से लिखी गई है. हुमा कुरैशी ने अपनी शानदार अदाकारी से दिल जीत लिया है. सोनाक्षी सिन्हा, जहीर इकबाल, महत राघवेंद्र की परफॉर्मेंस भी अच्छी है.'' फिल्म को 5 में से 4 स्टार देते हुए हर्ष पटेल लिखते हैं, ''मन खुश हो गया. बहुत दिनों बाद ऐसी फिल्म देखी है. ताज़ा और प्रासंगिक विषय. शानदार लेखन और अद्भुत निष्पादन. सभी कलाकारों ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है. खासकर के हुमा कुरैशी की परफॉर्मेंस सबसे मस्त हैं. फिल्म में एक गंभीर सामाजिक संदेश है. ऐसी फिल्में हर किसी को देखना चाहिए. फिल्म के मेकर्स बधाई के पात्र हैं.''

रमेश पराग फिल्म को 5 में से 3 स्टार देते हुए लिखते हैं, ''मजाकिया लेकिन प्रेरक फिल्म, जिसमें बॉडी शेमिंग की शिकार महिलाओं की संवेदनाओं को बहुत सलीके से पेश किया गया है. फिल्म के कुछ सीन में ओवरएक्टिंग की गई है, लेकिन कहानी के हिसाब से झेलने लायक है.'' हीरा मेहता लिखती है, ''वाह क्या फिल्म बनाई है. मुझे तो सोनाक्षी सिन्हा और हुमा कुरैशी के किरदारों से प्यार हो गया है. कलाकारों ने अभिनय नहीं किया है, बल्कि अपने-अपने किरदार को जिया है. निर्देशन भी मजबूत है. कहानी और विषय इसकी जान है. बॉलीवुड को इस तरह के विषय पर आधारित फिल्मों पर ज्यादा काम करना चाहिए. अब रीमेक और बॉयोपिक फिल्मों का मोह छोड़कर सामाजिक विषय पर फिल्में बनानी चाहिए. इस फिल्म में कॉमेडी के बीच जो संदेश दिया गया है, वो हर दर्शक को निश्चित रूप से प्रभावित करने वाला है.''

एनबीटी के लिए फिल्म पत्रकार रेखा खान लिखती हैं, ''डबल एक्सएल की कहानी इतनी सिंपल है कि आप या आपके घर का कोई न कोई सदस्य इससे खुद को आइडेंटिफाई किए बिना नहीं रह पाएगा. सतराम रमानी निर्देशक के रूप में किरदारों और प्लॉट को डेवलप करने में कुछ ज्यादा ही वक्त लगा देते हैं. हालांकि इसमें दो अलग शहरों और परिवेश का चित्रण देखने को मिलता है. उम्मीद बंधी रहती है कि कहानी के विकास के साथ उस तरह की हैप्निंग्ज भी देखने को मिलेंगी. लेकिन मुद्दे को लेकर जिस तरह की संवेदनशीलता की उम्मीद की जाती है, वह एक पॉइंट पर आकर दोहराव में बदल जाती है. हुमा कुरैशी राजश्री की भूमिका में छा जाती हैं. मेरठ जैसे छोटे शहर की प्लस साइज लड़की, जो अपनी औकात से बढ़कर सपने देखती है, को हुमा ने दिल से जिया है. शहरी लड़की के रूप में सोनाक्षी सिन्हा भी अपनी भूमिका के साथ इंसाफ करती हैं, लेकिन उनका चरित्र उतना लेयर्ड नहीं बन पाया है. दोनों अभिनेत्रियों की केमेस्ट्री पर्दे पर अच्छी लगी है. एक जरूरी विषय पर औसत फिल्म कही जा सकती है.''

वरिष्ठ पत्रकार पंकज शुक्ल लिखते हैं, ''फिल्म डबल एक्सएल देखने के दौरान यही सारे ख्याल आते रहते हैं. न तो इसे लिखने वालों को मेरठ के बारे में पता है कि अब दिल्ली से मेरठ सिर्फ 45 मिनट में पहुंचा जा सकता है. न ही इनको ये पता है कि टीवी प्रजेंटर का पहला काम है सितारों के आभामंडल के प्रभाव में न आना. और न ही इन्हें ये पता है कि फैशन में हॉते और कोत्यूर का फर्क क्या है. बस सब ऊपर ऊपर से हो रहा है. मेरठ की बेटी अपने घर वालों को नजरअंदाज करके स्पोर्ट्स प्रजेंटर बनना चाहती है. दिल्ली की बेटी की मंशा फैशन डिजाइनर बनने की है. सपने हर बेटी को देखने चाहिए. लेकिन सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश में यहां लंदन का क्या काम? एक अच्छी खासी कहानी पर लंदन फेर देने की कोशिश का नाम है फिल्म डबल एक्सएल. ना गाने ढंग के हैं, न एक्टिंग पर किसी का ध्यान है. सबसे बड़ा दुख इस बात का है कि इस फिल्म से मुदस्सर अजीज का नाम जुड़ा है जिनकी लिखावट से हिंदी सिनेमा के दर्शकों को बड़ी उम्मीदें रही हैं. इस फिल्म को देखना पैसे और समय की बर्बादी है.''

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