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Updated: 25 जुलाई, 2020 12:57 PM
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Dil Bechara review: मुकेश छाबड़ा ने एक बेहद साधारण फिल्म बनाई है, जो आपको रोमांचित नहीं करती, बल्कि दर्द के सागर में डुबोती है. ये पढ़कर आप शायद सोच रहे होंगे कि दिल बेचारा अच्छी फिल्म नहीं हैं, पर ऐसा नहीं है, साधारण चीजें, साधारण लोग, साधारण बातों का कभी-कभी ऐसा असर होता है कि आप कुछ समय के लिए उस साधारणता के दीवाने हो जाते हैं और लगता है कि ज़िंदगी यही तो है, जहां आप ग़म को एंजॉय करते हैं. आपको पता है कि आगे की ज़िंदगी बेहद कष्टपूर्ण है, पर आप हंसते जाते हैं. शाहरुख खान की फिल्म कल हो ना हो को जीने लगते हैं, जहां दूसरों को खुश रखने का जज़्बा आपकी खुशियों की वजह बनता है. सुशांत सिंह राजपूत, संजना संघी और सैफ अली खान की फ़िल्म दिल बेचारा इन्हीं भावों के इर्द-गिर्द घूमती है और हमारी जिंदगी भी इस एक घंटे 42 मिनट के लिए सुशांत की कर्जदार बनकर रह जाती है. हालांकि, सुशांत सिंह को छोड़ दें तो दिल बेचारा एक अति साधारण फ़िल्म है, जो लोगों के दिलों के उतना नहीं छू पाएगी.

दिल बेचारा सुपरहिट और सिलेब्रिटी से दर्शक तक कर रहे तारीफ

हिंदी सिनेमा या वर्ल्ड सिनेमा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि जब दिल बेचारा फ़िल्म को IMDb rating 10 में से 10 मिली है, यानी यह फ़िल्म सुपरहिट है. अब तक 23 हजार से ज्यादा लोगों ने आईएमडीबी पर दिल बेचारा को रेटिंग दी है, जो कि औसतन 9.8 है और यह ऐतिहासिक है. दिल बेचारा फ़िल्म को दर्शकों के साथ ही फ़िल्म स्टार्स तक की काफी सराहना मिल रही है. सुशांत के फैंस तो इसे सुपरहिट बता ही रहे हैं, फ़िल्म इंडस्ट्री के सैकड़ों लोगों ने भी दिल बेचारा की तारीफ करते हुए सुशांत की याद में संवेदनाओं के शब्द अर्पित किए हैं. सुशांत की एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे ने दिल बेचारा का पोस्टर शेयर करते हुए लिखा- आखिरी बार दिल बेचारा. रिया चक्रवर्ती ने भी सोशल मीडिया पर लिखा कि सुशांत हमेशा दिल में और फ़िल्मों में रहेंगे.

कहानी ऐसी कि नई नहीं, पर सुशांत तो है

अमेरिकी उपन्यासकार John Green के फेमस नोवेल The Fault in Our Stars पर आधारित मुकेश छाबड़ा की फिल्म दिल बेचारा कहानी है एक दो ऐसे लोगों की, जो अपनी-अपनी ज़िंदगी में अनिश्चितता और दर्द की उंगली पकड़कर आगे बढ़ते रहते हैं. कहते हैं न कि जो दर्द में होता है, उसे दर्द सहने वालों की सही पहचान होती है. रजनीकांत की फ़िल्मों का दीवाना इमैनुअल राजकुमार जूनियर (सुशांत सिंह राजपूत) भी ऐसे ही किज़ी बासु (संजना संघी) से मिलता है. किज़ी कैंसर से जूझ रही होती है और मैनी पूर्व में osteosarcoma के कारण अपना एक पैर गंवा बैठा होता है. ये दोनों कैंसर पैशेंट एक-दूसरे का दुख बांटते हुए फिल्म और म्यूजिक के बहाने एक-दूसरे के करीब आते हैं और दोनों एक-दूसरे की कमजोरी बन जाते हैं. पर कहते हैं न दो हंसते चेहरे को जब दर्द की नजर लगती है तो फिर सबकुछ बिखरने लगता है. दिल बेचारा में भी वही होता है, लेकिन जब दूसरे की खुशी अपनी ज़िंदगी से ज्यादा खास लगने लगे तो फिर लोग दर्द की परवाह किए बगैर निकल पड़ते हैं खुशियों की तलाश में. मैनी भी किज़ी की ख्वाहिश पूरी करने के लिए उसे पैरिस ले जाता है, जहां किज़ी अपनी सबसे मनसपंद गाने के रचियता से मिलती है और वहां उसे एहसास होता है कि शायद उसकी ज़िंदगी भी ऐसे मोड़ पर उसे छोड़ने वाली है, जहां सिर्फ और सिर्फ आंसु हैं और शायद उसमें खुशी ढूंढने की अज्ञात वजह भी. किज़ी और मैनी भी ऐसे ही बिछड़ जाते हैं, जब मैनी पर दोबारा बोन कैंसर यावी ओस्टिओसारकोमा का अटैक आता है और उसकी मौत हो जाती है.

सुशांत की ज़िंदगी की तरह ही यह फ़िल्म भी अधूरेपन पर खत्म होती है, जहां किज़ी मैनी की यादों के साथ रोते और ग़म में भी हंसने की मजबूरी को आत्मसात किए समय के साथ बहती जाती है. दिल बेचारा फ़िल्म के अंदर एक और फ़िल्म है, जिसमें रजनीकांत बना मैनी अपनी प्रेयसी किज़ी के साथ रोमांस करते और उसे दुनिया से बचाते हुए अपनी बांहों में उसकी खत्म होती ज़िंदगी को थामता नजर आता है. हम सब सुशांत की इस कहानी को महसूस कर ग़मजदा होते हैं और आखिर में कहते हैं कि शायद मौत एक खूबसूरत कविता है, जिसे सुशांत ने दिल से लगा लिया और उसके एक-एक शब्द पर अपनी एक-एक सांसें लूटाता गया और एक दिन रह गई तो पंखे पर झूलती उसकी लाश.

एक्टिंग और निर्देशन

दिल बेचारा सुशांत की तो फिल्म है ही, यह संजना संघी और मुकेश छाबड़ा की भी फ़िल्म है. सुशांत तो दिल बेचारा की जान हैं, लेकिन उस जान में धड़कन की तरह हैं मुकेश छाबड़ा और संजना संघी. दिल बेचारा निर्देशक के रूप में मुकेश छाबड़ा की और एक्ट्रेस के रूप में संजना संघी की पहली फ़िल्म है. जब कोई कास्टिंग डायरेक्टर मेनस्ट्रीम फ़िल्म डायरेक्टर बनता है तो वह एक-एक बात पर काफी मेहनत करता है. काश स्क्रीनप्ले और डायलॉग लिखते वक्त शशांक खेतान थोड़ी और मेहनत कर लेते, क्योंकि इन दोनों विधाओं में दिल बेचारा बेहद कमजोर साबित होती है. फर्स्ट टाइम डायरेक्टर के रूप में मुकेश छाबड़ा ने कुछ ठीक काम किया है और फ़िल्म को सिंपल रखा है, जो दिल बेचारा की जान है. सुशांत एक्सप्रेशन, इमोशन और स्क्रीन प्रजेंस से जादू करते और दर्शकों को हंसाते-रुलाते दिखते हैं, लेकिन दिल बेचारा में किज़ी यानी संजना संघी पर सबकी नजरें ठहर सी जाती है. मासूम, खूबसूरत बड़ी सी आंखों और मनमोहक आवाज वाली संजना इस फ़िल्म की सबसे खास बात हैं और इसके लिए पूरा क्रेडिट मुकेश छाबड़ा को जाता है. संजना संघी आगे चलकर सुशांत की नायाब खोज के रूप में फ़िल्मी दुनिया में जानी जाएंगी. बाकी कलाकारों की बात करें तो किज़ी के पैरेंट्स के रूप में स्वास्तिका मुखर्जी और साश्वत चटर्जी अच्छे ज्यादा असरदार नहीं दिखते हैं. बाकी सुशांत के दोस्त के रूप में साहिल वैद ने अच्छा काम किया है. हालांकि, दुनिया उन्हें इससे बेहतर किरदार में देख चुकी है. दिल बेचारा में सुनित टंडन कैंसर स्पेशलिस्ट के रूप में ठीक ठाक दिखे हैं.

म्यूजिक, लिरिक्स और तकनीकी पक्ष

काश, इस फिल्म में कुछ अच्छे और सच्चे गाने होते! दरअसल, किसी भी इमोशनल लव स्टोरी वाली फ़िल्म की जान होते हैं उसके गाने. साल 2008 में इमरान खान और जेनेलिया डिसूजा की एक फिल्म आई थी जाने तू या जाने ना. उस फ़िल्म के गानों ने उसे हिट कराने में सबसे बड़ा योगदान निभाया था. उस फ़िल्म में भी एआर रहमान ने म्यूजिक दिया था और दिल बेचारा में भी रहमान ही म्यूजिक डायरेक्टर हैं, लेकिन अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे गीतों में ज्यादा जान नहीं है, इसलिए वे दर्शकों के कानों को सुकून नहीं दे पाते. बाकी फिल्म चूंकि छोटे शहर में शूट हुई है, उसके अनुसार बहुत कुछ या काल्पनिक सेट्स लगाने की जरूरत थी नहीं. झारखंड के जमशेदपुर को सिनेमैटोग्राफर सत्यजीत पांडे ने खूबसूरती से कैप्चर किया है. दिल बेचारा के हिस्से में पैरिस भी आया है, ऐसे में पैरिस बस एक सुखद बहाने के रूप में इस फ़िल्म में जान डालती है.

क्यों देखें दिल बेचारा

दिल बेचारा सुशांत सिंह राजपूत के लिए देखें. इसलिए देखें कि एक सितारा गुम हो गया और उसकी रोशनी अब भी आपके मन को रोशन कर रही है. दिल बेचारा इसलिए देखें कि यह बेहद सिंपल फ़िल्म है, जिसके थोड़ी खुशी, थोड़ी हंसी और ढेर सारा प्यार है. हालांकि, यह फिल्म कई मायनों में बेहतर हो सकती थी. स्क्रीनप्ले और डायलॉग अच्छे होते और फिल्म थोड़ी और लंबी होती तो शायद यह दर्शकों को और अच्छी लगती, लेकिन फिलहाल यह फिल्म सुशांत सिंह राजपूत के लिए ट्रिब्यूट के रूप में देखें. दिल बेचारा के कुछ-कुछ सीन अच्छे बन पड़े हैं और कहीं-कहीं आपको कोफ्त होती है कि सुशांत को और निखरने का मौका क्यों नहीं दिया गया. आज सुशांत ज़िंदा नहीं हैं, इसलिए यह फ़िल्म खास बन जाती है और बस इसी वजह से यह फ़िल्म देखें.

ये भी हुआ: हॉटस्टार क्रैश और फ़िल्म लीक

सुशांत सिंह राजपूत की फ़िल्म दिल बेचारा डिज्नी हॉटस्टार पर 24 जुलाई की शाम 7:30 बजे रिलीज हुई. फ़िल्म रिलीज होते ही लाखों लोग जैसे हॉटस्टार पर टूट पड़े, जिसकी वजह से डिज्नी हॉटस्टार ऐप और वेबसाइट क्रैश होने की खबर मिली और लोगों को दिल बेचारा देखने में दिक्कतें आईं. हालांकि यह समस्या ज्यादा देर तक नहीं रही. एक बात और दिल बेचारा के साथ ये हुई कि फ़िल्म रिलीज होते ही यह लीक हो गई. डिज्नी हॉटस्टार पर फ्री टेलिकास्ट होने के बावजूद इसे तमिल रॉकर्स या अन्य साइट के साथ ही इसे टेलिग्राम पर लीक कर दिया गया, जिससे हॉटस्टार के दर्शक बंट गए और जिनके मोबाइल में डिज्नी हॉटस्टार ऐप नहीं था, वे दिल बेचारा का पायरेटेड वर्जन देखने लगे. चूंकि यह सुशांत की आखिरी फ़िल्म थी, ऐसे में दिल बेचारा देखते समय हमेशा फैंस की आंखें नम रहीं और सेकेंड हाफ के बाद आलम ये हो गया कि कई लोग इतने इमोशनल हो गए कि वे फ़िल्म नहीं देख पा रहे थे. हर किसी की जुबां पर एक ही नाम था कि वह सुशांत को फिर नहीं देख पाएंगे. सोशल मीडिया पर #OneLastTime ट्रेंड कर रहा था और उनके साथ ही जैसे सुशांत सबसे बिछड़ रहे थे.

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