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Updated: 13 जुलाई, 2021 02:25 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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वो जब अखाड़े में उतरते तो सामने वाला पहलवान पानी मांगने लगता. वो जब रुपहले पर्दे पर दिखते तो सिनेमा हाल तालियों और सीटियों की आवाज से गूंजने लगता. रेसलिंग हो या एक्टिंग उन्होंने जो किया दिल से किया. इतनी मेहनत और लगन से किया कि एक 'पहलवान' को लोग 'हनुमान' के नाम से जानने लगे. 6 फुट 2 इंच लंबा कद. 130 किलो वजन और 54 इंच चौड़ा सीना. उनको जो भी देखता देखता ही रह जाता. जी हां, हम बात कर रहे हैं कुश्ती में अपनी कुशलता से रुस्तम-ए-हिंद का खिताब पाने वाले दारा सिंह के बारे में 12 जुलाई 2012 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हो गया था.

पहलवानी से अपने करियर का सफर शुरू करते हुए दारा सिंह अभिनय की दुनिया तक पहुंचे और हर मुकाम पर सफलता के झंडे गाड़ने में सफल रहे. उन्होंने पहलवानी और अभिनय दोनों साथ किया और दोनों में सफल रहे. इसकी सबसे बड़ी वजह ये थी कि वो जब जो काम करते उसे दिल लगाकर करते. न तो अभिनय करते हुए खुद को पहलवान समझते और न ही पहलवानी करते हुए खुद को स्टार समझते. बॉलीवुड के मशहूर कलाकार होने के बावजूद उन्होंने कभी ग्लैमर को अपने सिर नहीं चढ़ने दिया. एक साधक की तरह अपने काम को साधना समझकर करते रहे. इतना ही नहीं खेल और सिनेमा के अलावा उन्होंने सियासत में भी सफल पारी खेली.

1_650_071221080733.jpgदारा सिंह ने साल 1952 में आई फिल्म 'संगदिल' से अपना बॉलीवुड डेब्यू किया था.

दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर, 1928 को पंजाब के अमृतसर के धर्ममुचक गांव में एक जाट परिवार में हुआ था. 20 साल की उम्र में साल 1948 में वो सिंगापुर चले गए. वहां ड्रम बनाने वाली एक मिल में काम करने लगे. इसी बीच उनके सुपरवाइजर ने देखा कि उनमें रेसलर बनने की अपार क्षमता है. सुपरवाइजर की सलाह पर वो कोच हरमान सिंह की देखरेख में कुश्ती की ट्रेनिंग लेने लगे. इसके बाद धीरे-धीरे रेसलिंग में हिस्सा लेने लगे. उन्होंने साल 1949 में कुआलालंपुर में उस वक्त के मशहूर पहलवान तरलोक सिंह को हराया था. इस जीत के साथ ही उन्हें चैम्पियन ऑफ मलेशिया का खिताब दिया गया था. इसके बाद तो उन्हें हर कोई जानने लगा.

500 से ज्यादा कुश्ती लड़े, लेकिन वो हारे कभी नहीं

पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनिया भर के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर 1953 में भारतीय कुश्ती चैम्पियन बने. इसके बाद साल 1959 में राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियन और साल 1968 में विश्व चैंपियन का खिताब जीता था. करीब 500 से ज्यादा कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के बाद साल 1983 में अजेय दारा सिंह ने पहलवानी से संन्यास ले लिया. साल 1996 में उनका नाम रेसलिंग ऑब्जर्वर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया. साल 1996 में पंजाबी में उनकी आत्मकथा 'मेरी आतम कथा' प्रकाशित हुई थी. लेखिका सीमा सोनिक अलीमचंद ने 'दीदार उर्फ ​​दारा सिंह' नामक पुस्तक उनके जीवन पर लिखी थी.

फिल्म 'किंग कॉन्ग' में मिला लीड एक्टर का ऑफर

पहलवानी करते हुए दारा सिंह ने अपना अभिनय करियर शुरू कर दिया था. साल 1952 में आई फिल्म 'संगदिल' से अपना बॉलीवुड डेब्यू किया. इसके बाद कुछ साल तक फिल्मों में छोटे-मोटे रोल मिलते रहे. फिल्म 'पेहली झलक' और 'एंगल सेल्वी' में एक स्टंटमैन के रूप में दिखाई दिए. लेकिन साल 1962 में उनके फिल्मी करियर में सबसे बड़ा दिन आया, जो बाबूभाई मिस्त्री ने अपनी फिल्म 'किंग कॉन्ग' में उनको बतौर लीड एक्टर काम करने का ऑफर दिया. इस दौरान का दिलचस्प किस्सा भी है, जिसे दारा सिंह ने एक बार शेयर किया था. उन्होंने बताया था, 'मुझे फिल्म मेकर बाबूभाई मिस्त्री का फोन आया और उन्होंने मुझे हीरो का रोल देने के लिए कहा. मुझे कुछ समझ में ही नहीं आया, क्योंकि हीरो के रोल के लिए मैं सोच भी नहीं सकता था. मैंने उनसे पूछा हीरो तो ठीक है, लेकिन एक्टिंग कौन करेगा?'

जब फिल्मों के लिए पंजाबी जुबान बनी समस्या

इसके बाद बाबूभाई मिस्त्री हंसने लगे. उन्होंने दारा सिंह को बताया कि उनको ही फिल्म में हीरो की एक्टिंग करनी है. इसके बाद दारा सिंह ने उनसे शूटिंग के लिए रोजाना एक हजार रुपए की मांग की, क्योंकि उनदिनों उनको कुश्ती के एक मुकाबले के लिए इतने ही पैसे मिला करते थे. बाबूभाई मिस्त्री पैसों के लिए मान गए, लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये थी कि दारा सिंह ठीक से हिंदी नहीं बोल पाते थे, जबकि उनदिनों फिल्मों में हिंदी-ऊर्दू मिक्स बोली जाती थी. इसका समाधान ये निकला कि उनकी जगह किसी और की आवाज को बाद में डब किया गया. हालांकि, बाद में दारा सिंह ने ट्यूशन लगाकर उर्दू बोलने की ट्रेनिंग ली थी.

मशहूर रेसलर किंग कॉन्ग को दी थी पटखनी

फिल्म 'किंग कॉन्ग' सुपरहिट हुई. दरअसल ये फिल्म उनकी पहलवानी पर ही आधारित थी, जिसे लेकर पूरी दुनिया में चर्चा हुई थी. साल 1962 में झारखंड की वर्तमान राजधानी रांची के अब्दुल बारी पार्क में उनकी जिंदगी का सबसे अहम मुकाबला हुआ था. ऑस्ट्रेलिया के मशहूर रेसलर किंग कॉन्ग ने दारा सिंह को अपने साथ कुश्ती लड़ने की खुली चुनौती दी थी. दारा सिंह का वजन उस वक्त 120 किलो था, जबकि किंग कॉन्ग 200 किलो का हट्टा-कट्टा पहलवान. किंग कॉन्ग के सामने दारा सिंह बच्चे लग रहे थे. इसके बावजूद वो किंग कॉन्ग पर भारी पड़े. उन्होंने किंग कॉन्ग को तीन बार पटखनी दी. उसको उठाकर ट्विस्ट करते हुए एरिना से नीचे गिरा दिया.

एक्ट्रेस मुमताज संग जुड़ा दारा सिंह का नाम

दारा सिंह ने 16 फिल्मों में बॉलीवुड एक्ट्रेस मुमताज के साथ काम किया, जिसमें 10 फिल्में सुपरहिट रही थीं. उनका नाम मुमताज के साथ जुड़ चुका है. उनकी पहली मुलाकात तब हुई थी जब दारा अपनी फिल्म 'फौलाद' के लिए एक्ट्रेस की तलाश में थे. उस समय हर किसी ने यह कह कर फिल्म करने से इंकार कर दिया था कि पहलवान के साथ कौन काम करेगा. उन्हीं दिनों फिल्म के सेट पर अपनी बहन के साथ पहुंची मुमताज में दारा सिंह को अपनी फिल्म की नायिका की झलक दिखी और इस तरह 14 साल की मुमताज और पहलवान की जोड़ी बन गई. मुमताज की बहन की शादी दारा सिंह के भाई एसएस रंधावा से हुई थी.

हनुमानजी की भूमिका ने बदल दी किस्मत

दारा सिंह ने पहलवानी और अभिनय के साथ 7 फिल्मों के लिए कहानी भी लिखी है. साल 1978 में आई फिल्म 'भक्ति में शक्ति' का लेखन और निर्देशन उन्होंने ही किया था. साल 2007 में आई फिल्म 'जब वी मेट' उनकी आखिरी फिल्म थी. इसमें शाहिद कपूर और करीना कपूर लीड रोल में थे. दारा सिंह की जिंदगी में असली मोड़ तब आया जब उन्हें रामानंद सागर के टीवी शो 'रामायण' में हनुमानजी की भूमिका निभाने के लिए चुना गया. इस किरदार ने दारा सिंह की किस्मत को पूरी तरह से बदल दिया. यहां तक कि लोग उन्हें हनुमानजी के नाम से ही बुलाने लगे. इस शो के बाद दारा सिंह ने कई पौराणिक शो में हनुमानजी की भूमिका निभाई थी.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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