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Updated: 15 अक्टूबर, 2022 06:38 PM
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बॉलीवुड में जासूसी फिल्मों का क्रेज रहा है. 'राजी' (2018), 'एजेंट विनोद' (2012), 'एक था टाइगर' (2012), 'टाइगर जिंदा है' (2017) और 'नाम शबाना' (2017) जैसी फिल्में प्रमुख उदाहरण हैं. इन्हीं फिल्मों के तर्ज पर एक जासूसी फिल्म 'कोड नेम तिरंगा' सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. रिलायंस एंटरटेनमेंट और टी सीरीज के बैनर तले बनी इस फिल्म का निर्देशन रिभू दासगुप्ता ने किया है. रिभू ने ही फिल्म की कहानी भी लिखी है, जबकि संवाद शिशिर शर्मा के हैं. फिल्म में परिणीति चोपड़ा, हार्डी संधू, शरद केलकर, दिब्येंदु भट्टाचार्य, शिशिर शर्मा, सब्यसाची चक्रवर्ती और रजित कपूर जैसे कलाकार अहम भूमिका में हैं.

फिल्म 'कोड नेम तिरंगा' में परिणीति चोपड़ा रॉ एजेंट की भूमिका में हैं, जबकि शरद केलकर आतंकवादी के किरदार में नजर आ रहे हैं. फिल्म में परिणीति जबरदस्त एक्शन सीन करते हुए नजर आ रही हैं. इस तरह के किरदार में उनको पहली बार देखा गया है. उनको देखकर 'एक था टाइगर' की जोया यानी कैटरीना कैफ की याद आ जाती है. जिस तरह से कैटरीना ने अपनी फिल्म में शानदार एक्शन सीक्वेंस किए हैं, उसी तरह परिणीति भी हर सीन में बेहतरीन लग रही हैं. शरद केलकर की मौजूदगी हमेशा की तरह धांसू है. उनकी आवाज और अंदाज दोनों ही अद्भुत है, जो कि इस फिल्म में भी दिख रहा है.

ccc_650_101522054635.jpgफिल्म 'कोड नेम तिरंगा' के जरिए परिणीति चोपड़ा ने पहली बार रॉ एजेंट की भूमिका निभाई हैं.

फिल्म एक्शन सीक्वेंस के जरिए दर्शकों का दिल जीतने के बावजूद कहानी के स्तर पर मात खा जाती है. एक तरफ साउथ सिनेमा और ओटीटी फ्रेश और यूनिक कंटेंट परोस रहा है, वहीं बॉलीवुड आज भी फॉर्मूला बेस्ड फिल्मों में लगा हुआ है. यहां चलन है, जो फॉर्मूला हिट हो जाए, उस पर फिल्मों की बाढ़ सी आ जाती है. जैसे कि एक वक्त रोमांटिक फिल्मों का दौर था. उसके बाद देशभक्ति और धार्मिक फिल्मों का दौर आया, फिर ऐतिहासिक और बायोपिक फिल्में बनने लगीं. इसी दौरान जासूसी फिल्मों का जब क्रेज शुरू हुआ, तो उसके जबरदस्त पॉजिटिव रिस्पांस को देखकर इस तरह की फिल्मों पर काम शुरू हो गया.

लोकप्रिय कैटेगरी की फिल्म होने के बावजूद 'कोड नेम तिरंगा' दर्शकों और समीक्षकों का दिल जीतने में नाकाम नजर आ रही है. सोशल मीडिया पर दर्शकों की खराब प्रतिक्रिया मिल रही है. ट्विटर पर एक यूजर अभिनव भावा ने लिखा है, ''इस फिल्म में नया कुछ भी नहीं है. बोरिंग स्क्रीन प्ले, बोरिंग गाने, खराब एक्टिंग ने फिल्म का कबाड़ा कर दिया है. परिणिति चोपड़ा और हार्डी संधू ने अपना औसत अभिनय किया है. फिल्म की कहानी समझ से परे हैं. केवल एक्शन की बदौलत प्रभाव बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन परिणिति से कैसे एक्शन की उम्मीद की जा सकती है, ये आप खुद समझ लीजिए.''

दूसरे यूजर अविस्कर ने लिखा है, "फिल्म 'कोड नेम तिरंगा' एक औसत दर्जे की फिल्म है. इसकी कमजोर कहानी और बिखरी हुई पटकथा ने फिल्म का बंटाधार कर दिया है. हां, कुछ एक्शन सीन को जरूर अच्छी तरह से कोरियोग्राफ किया गया है, लेकिन वो इतना काफी नहीं है कि जिसके लिए कोई पैसा खर्च करके सिनेमाघरों में फिल्म देखने जाए. परिणीति चोपड़ा चोपड़ा ने ईमानदारी से अपना बेहतर देने की कोशिश की है, लेकिन कमजोर कहानी की वजह से उनकी मेहनत पर पानी फिर गया है. मैं इस फिल्म को देखने की कभी सिफारिश नहीं करूंगा. इसे देखना पैसे की बर्बादी है. बेहतर है कि इसे ओटीटी पर आने का इंतजार करें.''

दुबई के रहने वाले मशहूर फिल्म क्रिटिक उमैर संधू ने 5 में से 1 स्टार देते हुए लिखा है, ''फिल्म को देखकर बहुत निराशा हुई. परिणीति चोपड़ा चोपड़ा को फिल्मों से ब्रेक लेकर हॉलिडे पर निकल जाना चाहिए. परिणीति चोपड़ा फिल्में करना अब आपके बस की बात नहीं है. आपका करियर अब खत्म हो गया है. आप अब सिर्फ इंस्टाग्राम की एक्ट्रेस बस रह गई हैं. बोरिंग स्टोरी और स्क्रीन प्ले. टी-सीरिज एक के बाद एक डिजास्टर फिल्में देने का इतिहास बनाता जा रहा है.'' वहीं, मनीष लिखते हैं कि रिभू दासगुप्ता ने 'कोड नेम तिरंगा' बनाकर अपना शौक पूरा किया है. इसमें परिणीति चोपड़ा ने मेहनत तो किया है, लेकिन सफल नहीं हो पाई हैं.

वरिष्ठ पत्रकार पंकज शुक्ला ने लिखा है, ''नेटफ्लिक्स के लिए परिणीति चोपड़ा को लेकर 'द गर्ल ऑन द ट्रेन' बनाने वाले रिभु दासगुप्ता ने 'कोड नेम तिरंगा' कोरोना संक्रमण काल में बनाई है. लोकेशन तुर्की की है और कहानी का सिरा उन्होंने पकड़ा है दिल्ली में संसद पर हुए हमले से. आलिया भट्ट की फिल्म 'राजी' की लकीर पर चलती रही फिल्म 'एक था टाइगर' बन जाती है. 'नाम शबाना' भी याद आती है और नीरज पांडे की ही वेब सीरीज 'स्पेशल ऑप्स' भी. कहानी के स्तर पर फेल होने के बाद रिभु बतौर निर्देशक भी फेल होते हैं, क्योंकि उनके पास कहानी का सिर्फ एक विचार है. इस पर उनकी लिखी कहानी और पटकथा बेदम है.''

''फिल्म 'कोड नेम तिरंगा' की अगली कमजोर कड़ी इसके कलाकारों का अभिनय है. परिणीति चोपड़ा को इतने गंभीर किरदार में सोच पाना ही मुश्किल है. हार्डी संधू ने भी फिल्म 'कोड नेम तिरंगा' में अपने अभिनय से काफी निराश किया है. फिल्म की एक कव्वाली को गाते समय गर्दन की नसें तान देने वाले हार्डी संधू पूरी फिल्म में अदाकारी के समय तनकर खड़े भी नहीं हो पाते हैं. रजित कपूर का काम बढ़िया है लेकिन शरद केलकर को एक आतंकवादी के रूप में कुछ खास करने को नहीं मिला. दिब्येंदु भट्टाचार्य एक जैसे किरदारों में दिखकर अब टाइपकास्ट हो चले हैं. कुल मिलाकर इसे रिलायंस और टी-सीरीज की खराब फिल्म कहा जा सकता है.''

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