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Updated: 25 जनवरी, 2023 06:33 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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हमारे समाज में सेक्स एजुकेशन जरूरी होते हुए भी लोग इस पर बात करने से आज भी कतराते हैं. एक लंबी बहस के बाद 2005 में शिक्षा मंत्रालय ने पहली से 12वीं तक के बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने के लिए 'एडोलसेंस एजुकेशन प्रोग्राम' लॉन्च किया था. लेकिन इसके खिलाफ कई राज्यों में विरोध-प्रदर्शन होने लगे. हालत ये हुई कि दो साल के अंदर 13 राज्यों में इस पर बैन लगा दिया गया. बच्चों को समझाने के लिए बनाए गए ग्राफिक्स के साथ कंडोम, इंटरकोर्स और मास्टरबेशन जैसे शब्दों को आपत्तिजनक बताया गया था. सेक्स एजुकेशन के बारे में बच्चों को बताया जाए, तो उनको यौन शोषण से बचाया जा सकता है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 42 से 52 फीसदी युवा महसूस करते हैं कि उन्हें 'सेक्स' के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है. ऐसे में जिन बच्चों को सेक्स एजुकेशन नहीं मिलती, वे बड़े होने के बाद गलत धारणाओं के शिकार हो जाते हैं. मानसिक उलझनों के चलते वे स्वप्न दोष, प्री-मैच्योर इजैकुलेशन, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसी समस्याओं की चपेट में आ जाते हैं. इन समस्याओं से बच्चों को बचाया जा सकता है.

सिनेमा का समाज पर व्यापक प्रभाव और असर दिखता है. कई सामाजिक मुद्दे भी सिनेमा को प्रभावित करते हैं. ऐसे में कई प्रमुख मुद्दों पर आधारित फिल्मों का निर्माण किया जाता है. इनमें सेक्स एजुकेशन भी एक प्रमुख विषय है. समय-समय पर सिनेमा के जरिए इस मुद्दे को उठाया गया है. कई फिल्म में कुछ दृश्यों के जरिए, तो कई बार संवादों और गानों के जरिए भी इसकी जानकारी दी गई है. पिछले एक दशक के दौरान ऐसी फिल्मों का निर्माण ज्यादा हुआ है. इनमें 'हेलमेट', 'विकी डोनर', 'खानदानी शफाखाना', 'शुभ मंगल सावधान', 'पैडमैन' और 'जनहित में जारी' जैसी फिल्मों का नाम प्रमुख है. इस कड़ी में सेक्स एजुकेशन और सेफ सेक्स जैसे अहम विषय पर आधारित एक नई फिल्म 'छतरीवाली' ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर स्ट्रीम की जा रही है. इसमें रकुल प्रीत सिंह, सुमित व्यास, डॉली अहलूवालिया, राजेश तेलंग, राकेश बेदी, प्राची शाह और सतीश कौशिक अहम भूमिका में हैं. फिल्म की कहानी 'आम' होने के बावजूद रकुल प्रीत सिंह ने इसे अपनी शानदार एक्टिंग से 'खास' बना दिया है. फिल्म के निर्देशक तेजस प्रभा विजय देओस्कर हैं.

650x400_012423110519.jpgरकुल प्रीत सिंह की फिल्म 'छतरीवाली' ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर स्ट्रीम की जा रही है.

रकुल के दमदार अभिनय ने फिल्म में जान डाल दिया है

फिल्म 'छतरीवाली' की कहानी पिछले साल रिलीज हुई नुसरत भरूचा की फिल्म 'जनहित में जारी' के तर्ज पर बुनी गई है. इसलिए क्लाइमैक्स और एंड का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है. लेकिन लेखक द्वव संचित गुप्ता और प्रियदर्शी श्रीवास्तव ने कहानी को सिर्फ कंडोम के इर्द-गिर्द ही नहीं रखा है. इसमें बच्चों को सेक्स एजुकेशन क्यों दिया जाना चाहिए, इसके प्रति समाज को क्यों जागरूक किया जाना चाहिए, महिलाओं को अपने स्वास्थ के प्रति खुद कैसे सतर्क रहना चाहिए, जैसे विषयों पर भी बात की गई है. इससे भी अहम फिल्म के कलाकारों का अभिनय है. हर कलाकार ने अपनी अलहदा अदाकारी से अपने किरदार को खास बना दिया है. खासकर, रकुल प्रीत सिंह के अभिनय की जितनी तारीफ की जाए वो कम है. ज्यादातर छोटे और सहायक किरदार करने वाली अभिनेत्री को पहली बार एक ऐसा किरदार मिला है, जिस पर कहानी का पूरा दारोमदार है. लेकिन रकुल ने अपनी मेहनत से पूरी फिल्म को लाजवाब बना दिया है. एक सशक्त महिला का किरदार वो बिना किसी अतिरिक्त उत्तेजना के निभाती हैं. पानी की तरह सहज और सरल दिखती हैं.

'छतरीवाली' की कहानी एक बिंदास लड़की पर आधारित है

'छतरीवाली' फिल्म की कहानी के केंद्र में रकुल प्रीत सिंह की किरदार सान्या ढींगरा है. हरियाणा के करनाल में रहने वाली सान्या एक बिंदास लड़की है. घर में कमाने वाला कोई है नहीं तो वो केमिस्ट्री की ट्यूशन पढ़ाती है. इसके साथ ही जॉब के लिए कोशिश भी करती है. एक दिन उसकी मुलाकात कंडोम फैक्ट्री चलाने वाले रतन लांबा (सतीश कौशिक) सो होती है. रतन सान्या के एटीट्यूड से काफी प्रभावित होता है. उसे अपनी फैक्ट्री में क्वॉलिटी टेस्टर की जॉब ऑफर करता है. सान्या पहले तो बदनामी के डर से जॉब करने से मना कर देती है, लेकिन जैसे 30 हजार रुपए की सैलरी सुनती है, तुरंत हां कर देती है. इसी बीच उसकी मुलाकात ऋषि कालरा (सुमित व्यास) से होती है. दोनों दोस्त बन जाते हैं. एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं. इसके बाद शादी भी कर लेते हैं. शादी के बाद ऋषि को अपनी नौकरी के बारे में बताता है, तो वो हैरान रह जाता है. उसे ससुराल में किसी न बताने और नौकरी छोड़न के लिए कहता है. सान्या उसकी बात मान जाती है. लेकिन इसी बीच कुछ ऐसी घटनाएं घटती हैं, जो उसे सेक्स एजुकेशन और सेफ सेक्स के बारे में सोचने पर मजबूर करती है.

सान्या के पति ऋषि का बड़ा भाई राजन कालरा उर्फ भाई जी (राजेश तेलंग) स्कूल में टीचर है, लेकिन उसके ख्यालात बहुत पुराने हैं. सेक्स जैसे विषय पर बात करना तो उसके लिए आसमान फटने जैसा है. इतना ही नहीं वो कंडोम के इस्तेमाल को भी बुरा मानता है. इसकी वजह से उसकी पत्नी को दो बार गर्भपात कराना पड़ता है. इतना ही नहीं उसके कई तरह की स्वास्थ संबंधित दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. सान्या ये सब देखकर औरतों और लड़कियों को शिक्षित करने का फैसला करती है. इसके लिए अपनी घर की छत पर स्कूल चलाती है, जहां महिलाओं को सेफ सेक्स के बारे में बताया जाता है. इतना ही नहीं वो स्कूल में जाकर प्रिंसिपल से बहस भी करती है कि बच्चों को सेक्स एजुकेशन के बारे में क्यों नहीं बताया जाता है. इसी बीच उसका भेद ससुराल में खुल जाता है. इसके बाद सान्या का क्या होता है, ये जानने के लिए आपको जी5 पर मौजूद ये फिल्म देखनी होगी.

सेफ सेक्स से शुरू हुई बात सेक्स एजुकेशन पर खत्म होती है

'छतरीवाली' एक ऐसी फिल्म के रूप में शुरू होती है जो चाहती है कि पुरुष सुरक्षित यौन संबंध के महत्व को समझें, लेकिन धीरे-धीरे इस बात पर आ जाती है कि एक विशेष उम्र के बच्चों के लिए यौन शिक्षा महत्वपूर्ण क्यों है. फिल्म की कहानी आकर्षक है और ज्यादा पटरी से नहीं उतरती है, इसके बावजूद संचित गुप्ता और प्रियदर्शी श्रीवास्तव इसे दिलचस्प और रोचक बनाए रखने के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी चाहिए थी. फिल्म में कई जगह समस्याओं के मूल कारण की गहराई में गए बिना सतही स्तर पर बात की गई है. हालांकि, इसके बावजूद फिल्म के निर्देशक तेजस प्रभा विजय देओस्कर की मेहनत की वजह से उपदेशात्मक फिल्म बने बिना कॉमेडी के जरिए अपनी बात सहजता के साथ समझाती चला जाती है. यह कहना गलत नहीं होगा कि यह शुरू से ही रकुल प्रीत सिंह की फिल्म है. उनको फिल्म 'डॉक्टर जी' (2022) में देखा जा चुका है, जो एक पुरुष स्त्री रोग विशेषज्ञ के बारे में बात करने वाली फिल्म थी. अब 'छतरीवाली' देखने के बाद भरोसा हो गया है कि वे इस तरह के वर्जित विषयों पर बनने वाली फिल्मों में परिपक्वता के साथ काम सकती हैं.

हर उम्र के लोगों को ये फिल्म एक बार जरूर देखनी चाहिए

सान्या ढींगरा के किरदार में रकुल प्रीत सिंह बड़े आराम से ढ़ली हुई नजर आती हैं. सान्या के किरदार में कुछ भी असाधारण नहीं है, लेकिन यही खूबसूरती है कि कैसे रकुल इस साधारण किरदार में भी इतना कुछ जोड़ देती हैं. उनके अपोजिट नजर आ रहे अभिनेता सुमीत व्यास का किरदार प्यारा और काफी दिलकश है. सख्त किरदार में नजर आ रहे राजेश तैलंग अपने भावों को अच्छी तरह व्यक्त करते हैं. लंबे समय बाद उनको एक अलग तरह के किरदार में देखा गया है. रतन लांबा के किरादर में सतीश कौशिक जम रहे हैं, लेकिन इसके लिए उनको ही क्यों कास्ट किया गया, ये बात समझ में नहीं आती है. डॉली अहलूवालिया ने एक बिंदास बेटी की बिंदास मां का किरदार बखूबी निभाया है. वो हमेशा की तरह मस्त नजर आ रही हैं. राकेश बेदी और प्राची शाह का काम ठीकठाक कहा जा सकता है. कुल मिलाकर, सेफ सेक्स और सेक्स एजुकेशन पर आधारित ये फिल्म हर उम्र के लोगों को देखनी चाहिए. इसे देखने के बाद कई लोगों की आंखें खुल जाएंगी, जो आज भी इस पर बात करना वर्जित मानते हैं. अपने बच्चों के सामने बात करने से भी घबराते हैं.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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