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Updated: 11 दिसम्बर, 2021 05:10 PM
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अभिषेक कपूर के निर्देशन में बनी आयुष्मान खुराना और वाणी कपूर स्टारर मूवी चंडीगढ़ करे आशिकी एक ऐसे मुद्दे पर बनी फिल्म बताई जा रही है जिसे लेकर समाज का व्यापक मजबूत तबका मन बिचकाता है. फिल्म LGBTQA टॉपिक पर है. कहानी के केंद्र में सेक्स चेंज बताई जा रही है- भले ही कानूनी और मानवअधिकारों में इसे शामिल कर लिया जाए मगर समाज का नजरिया तो अभी इन्हें लेकर लचीला बिल्कुल नजर नहीं आता. यह सही है या गलत मगर समाज के सोचने का ढंग बिल्कुल अलग है. उसपर किसी का नियंत्रण भी नहीं. क्योंकि वहां की आवाजें अलग-अलग हैं.

मेकर्स की इस बात के लिए तारीफ़ तो की जानी चाहिए कि उन्होंने चंडीगढ़ करे आशिकी के जरिए उस बहस को और तेज करने की कोशिश की है सार्वजनिक तौर पर जिसे लेकर लोग बचते हैं. वैसे चंडीगढ़ करे आशिकी कोई पहली फिल्म नहीं है जो समाज के एक टैबू को तोड़कर बनाई गई है. हिंदी सिनेमा ने भी गे-लेस्बियन डिबेट को अलग तरह से खड़ा करने की कोशिश की है. कुछ फिल्मों पर तो बहुत बहस हुई. बवाल भी.

हालांकि ज्यादातर फिल्मों की मास अपील कमजोर थीं और इस वजह से वे आम दर्शकों के बीच नहीं पहुंच पाई. सेक्स चेंज पर भी अब तक कोई कम्प्लीट फिल्म नजर नहीं आती. मगर 90 के दशक से ही ना जाने कितनी फिल्मों में ऐसे अहम कैरेक्टर दिखने लगे थे. मसखरा ही सही, पर उन्हें ह्यूमर के रूप में इस्तेमाल किया जाना शुरू हो गया था. अब चंडीगढ़ करे आशिकी के जरिए सैद्धांतिक रूप से सामने आ रही हैं.

fireदीपा मेहता की फायर में शबाना आजमी और नंदिता दास ने लेस्बियन किरदार निभाया है. फोटो- ट्विटर से साभार.

आइए ऐसी ही कुछ फिल्मों को जानते हैं जिनमें दिखाए गए गे-लेस्बियन सब्जेक्ट ने अपने दौर में ध्यानआकर्षित किया था.

#1. फायर

इंडो-कैनेडियन इरोटिक रोमांटिक ड्रामा फायर साल 1996 में आई थी. इसे दीपा मेहता ने बनाया था. हिंदी सिनेमा की यह शायद फिल्म हो जिसमें लेस्बियन संबंधों को पहली बार एक ड्रामेटिक स्टोरी में दिखाया गया था. सीता और राधा नाम की देवरानी-जेठानी एक संयुक्त परिवार का हिस्सा हैं. हालात ऐसे बनते हैं कि दोनों का एक-दूसरे के साथ भावुक और शारीरिक सम्बन्ध बन जाता है. शबाना आजमी और नंदिता दास ने सीता और राधा का किरदार निभाया था. अपने दौर के हिसाब से फिल्म का सब्जेक्ट बहुत ही बोल्ड था. वैसे यह मुख्यधारा की फिल्म भी नहीं थी. तब ज्यादातर बोल्ड या संवेदनशील विषय समानांतर सिनेमा का हिस्सा हुआ करता था. फायर के दो अहम कैरेक्टर्स के नाम को लेकर हिंदूवादी संगठनों ने जबरदस्त विरोध किया और आरोप लगाया कि फिल्म के जरिए भारतीय परिवारों, संस्कृति और धर्म को निशाना बनाया जा रहा है.

#2. अलीगढ़

साल 2015 में आई अलीगढ़ एक बायोग्राफिकल ड्रामा है. दरअसल, यह अलीगढ़ विश्वविद्यालय में मराठी के प्रोफ़ेसर रामचंद्र सिराज की कहानी है, जिनकी निजी सेक्स रूचि की वजह से उनके ऊपर सांस्थानिक और सामजिक हमला होता है. समलैंगिकता के विषय को दिखाने वाली अलीगढ़ इस वजह से भी एक अहम कहानी है क्योंकि इसमें उस दौर को दिखाया गया है जब समलैंगिक सम्बन्ध कानूनन अपराध थे. सार्वजनिक रूप से समाज तो हमेशा से ही इसे नकारता रहा है. इसे हंसल मेहता ने बनाया था. मनोज बाजपेयी ने प्रोफ़ेसर सिराज का किरदार निभाया है. राजकुमार राव ने दीपू सबेस्टियन के रूप में एक पत्रकार का किरदार निभाया है.

#3. एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

सोनम कपूर आहूजा, राजकुमार राव और अनिल कपूर स्टारर यह फिल्म भी LGBT मुद्दों को मुखरता से रखती नजर आ रही है. फिल्म की कहानी स्वीटी चौधरी की है जो एक पारंपरिक पंजाबी परिवार का हिस्सा हैं. स्वीटी की उम्र जब कम रहती है वह दुल्हन बनने का ख्वाब देखती है मगर उम्र बढ़ने के साथ उसे पता चलता है कि वह खुद को दुल्हन देखती तो है लेकिन उसकी कहानी में कोई पुरुष नहीं है. वह परिवार द्वारा लाए सारे रिश्तों को खारिज करती जाती है. इसके पीछे की वजह कोई समझ नहीं पाता. राजकुमार राव भी स्वीटी के प्यार का सपना देखता है. मगर बाद में पता चलता है कि स्वीटी तो कुहू नाम की लड़की से प्यार करती है. फिल्म की कहानी बोल्ड तो है ही फ्रेश भी है मगर इसे दर्शकों ने पसंद नहीं किया. फिल्म का निर्देशन शैली चोपड़ा धर ने किया है.

#4. माई ब्रदर निखिल

फिल्म का सेट गोवा में है. यह फिल्म साल 2005 में आई थी. फिल्म की कहानी निखिल कपूर (संजय सूरी) नाम के स्टेट स्वीमर की है. घरवाले दोस्त सब निखिल को प्यार करते हैं. उसका एक बॉयफ्रेंड भी है. दोनों एक दूसरे को चाहते हैं. निखिल के जीवन में हालत तब बदतर हो जाते हैं जब पता चलता है कि उसे HIV है.  HIV पता चलने के बाद निखिल का हर कोई उससे दूर होने लगता है और घृणा करने लगता है. यहां तक कि उसका बॉयफ्रेंड भी. बाद में निखिल की बहन अनामिका (जूही चावला) मजबूती से सहारा देती नजर आती है. माई ब्रदर निखिल को ओनिर ने बनाया था.

#5. शुभ मंगल ज्यादा सावधान

यह फिल्म पिछले साल ही आई थी जो कि रोमांटिक कॉमेडी ड्रामा है. आयुष्मान की ही फिल्म है. निर्देशन हितेश केवल्य ने किया था. फिल्म की कहानी में सेक्सुअलिटी जैसे गंभीर विषय को कॉमिक अंदाज में दिखाया गया है. कार्तिक सिंह (आयुष्मान) और अमन त्रिपाठी (जितेन्द्र कुमार) दो दोस्त हैं और दिल्ली में सतह रहते हैं. एक दूसरे के रिलेशनशिप में हैं. एक फैमिली फंक्शन में दोनों के रिश्ते का सच घरवाले जान लेते हैं. सच का पता चलने के बाद उन्हें परिवार दोस्तों की घृणा, ब्लैकमेलिंग तक का सामना करना पड़ता है. अमन को जबरदस्ती एक लड़की से शादी के लिए मजबूर किया जाता है. यह उस टैबू पर प्रहार करती है जिसमें सेम सेक्स रिलेशनशिप को बीमारी के रूप में देखा जाता है.

इन फिल्मों के अलावा भे एकै फिल्मों के मुख्य विषय समाज में टैबू तोड़ने वाले ऐसे ही टॉपिक्स रहे हैं. बहुत सारी फिल्मों में तो इन्हें सांकेतिक विषय के रूप में भी इस्तेमाल किया गया है जिसके जरिए समाज ऐसे रिश्तों को लेक्लर समाज के नजरिए को दिखाने की कोशिश की गई है.

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