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Updated: 26 सितम्बर, 2021 09:52 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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'इज़्ज़तें शोहरतें चाहतें उल्फ़तें, कोई भी चीज़ दुनिया में रहती नहीं; आज मैं हूं जहां कल कोई और था, आज मैं हूं जहां कल कोई और था, ये भी एक दौर है वो भी एक दौर था'...बॉलीवु़ड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना अक्सर इन पंक्तियों को सुनाया करते थे. उनका कहना सही भी है. फिल्म इंडस्ट्री में हर बड़े नायक का अपना दौर रहा है. अपने जमाने में उनकी तूती बोला करती थी, लेकिन समय बदला, तो उनके हालात बदल गए. खुद राजेश खन्ना से लेकर दिलीप कुमार तक इसके बड़े उदाहरण हैं. लेकिन मायानगरी में एक ऐसे दिग्गज अभिनेता भी रहे हैं, जिनको उम्र भी अपने बंधन में बांध नहीं सकी. वो सदाबहार थे और हमेशा रहेंगे. जी हां, हम बात कर रहे हैं मशहूर अभिनेता देवानंद के बारे में, जिनकी आज बर्थ एनिवर्सरी है.

हिंदी सिनेमा में तकरीबन छह दशक तक अपने हुनर, अदाकारी और रूमानियत का जादू बिखेरने वाले सदाबहार अभिनेता देव आनंद का जन्म 26 सितंबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. देव आनंद का असली नाम धर्मदेव पिशोरीमल आनंद था. साल 1942 में लाहौर में अंग्रेजी साहित्य से स्नातक करने के बाद देव साहब आगे भी पढना चाहते थे, लेकिन पिता ने आर्थिक समस्या का हवाला देकर नौकरी करने के लिए कह दिया. साल 1943 में अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वह मुंबई पहुंचे, तब उनके पास मात्र 30 रुपए थे. रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था. लेकिन देव साहब ने लंबे संघर्ष के बाद अपना मुकाम हासिल किया. फिल्म इंडस्ट्री में खुद को मजबूती से स्थापित किया.

सदाबहार अभिनेता देव आनंद की जिंदगी से सीखिए 5 अद्भुत बातें...

untitled-3-650_092621035840.jpgसदाबहार अभिनेता देवा आनंद साहब को बॉलीवुड का असली रोमांटिक हीरो कहा जाता है.

1- जमीन से जुड़ा सितारा

देव आनंद साहब अपने जमाने के मशहूर अभिनेता होने के साथ ही एक सफल फिल्म मेकर भी थे. उन्होंने उम्र के आखिरी पड़ाव तक फिल्मों के लिए काम किया. लोग देव साहब के लिए दीवाने थे. उनका स्टाइल, ड्रेसिंग सेंस और हेयर स्टाइल कॉपी किया करते थे. उनकी संवाद अदायगी लोगों का मन मोह लेती थी. लेकिन इतना स्टारडम होने के बावजदू वो हमेशा जमीन से जुड़े रहे. कभी अपनी शख्सियत पर घमंड नहीं किया. हमेशा बड़ों को सम्मान दिया और छोटे को प्यार किया. उनके ऑफिस और घर का दरवाजा हर किसी के लिए खुला रहा. वो एकमात्र सुपरस्टार थे, जो अपाइंटमेंट फिक्स करते समय स्वयं पत्रकारों से पूछते थे कि उनके लिए सुविधाजनक समय क्या रहेगा. उनसे पहले और बाद में भी ऐसा किसी ने नहीं किया. यहां तक कि अपनी पार्टियों के लिए लोगों को आमंत्रित करने के लिए खुद फोन करते थे.

2- असफलता में भी अडिग

'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया'...यह गीत देव साहब के जीवन को सबसे अच्छी तरह परिभाषित करता है. उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी असफलता को हावी नहीं होने दिया. ऐसे वक्त में भी वो अडिग रहे. अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदारी से डटे रहे. जितनी बार असफल हुए, उससे कहीं ज्यादा बार कोशिश की, जिसकी वजह से सफलता झक मारकर उनको मिली. अपने जीवन के उत्तरार्ध में देव आनंद ने करीब 19 फिल्में डायरेक्ट और 31 फिल्में प्रोड्यूस की थी. इनमें से अधिकतर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं कर पाईं. फिल्मों की असफलता के बाद भी देव साहब ने कभी हार नहीं मानी. उन्होंने हर बार सीख ली और आगे बढ़ गए. यही वजह है कि अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव तक वो हिंदी सिनेमा के लिए अपना योगदान देते रहे.

3- स्वतंत्र 'मत' वाला

देव आनंद हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े स्टाइल आइकन थे. वह आजाद भारत के पहले सुपर स्टार थे जिन्होंने कई पीढ़ियों पर अपना जादू चलाया. लेकिन अपनी रोमांटिक छवि के इतर, वो अपने विचारों और जीवन जीने के तरीके में बेहद स्वतंत्र और निडर थे. भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाया, तो वो फिल्म इंडस्ट्री के पहले शख्स थे, जिन्होंने इसके खिलाफ अपनी आवाज उठाई. यहां तक कि समाज और देश के लिए सिनेमा छोड़कर कुछ वक्त के लिए सियासत में भी चले आए. साल 1977 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय पार्टी नामक एक पार्टी भी बनाई. इसके लिए अपने समर्थकों के साथ सक्रिय रूप से प्रचार भी किया, लेकिन सिनेमा की शख्सियत सियासत में कितनी और कबतक रमती. उनका जल्द ही मोहभंग हो गया, तो पार्टी भी उन्होंने भंग कर दी.

4- धुन के पक्के, जुनूनी

देव साहब का काम के प्रति जुनून गजब का था. उन्हें अपने काम से इतना प्यार था कि वे 88 साल की उम्र में भी काम कर रहे थे. उस वक्त भी उनके अंदर ऊर्जा और उत्साह वैसा ही था, जैसा उनके जवानी के दिनों में हुआ करता था. उनसे जब ये पूछा जाता कि आप इतनी ऊर्जा लाते कहां से हैं? इस पर देव साहब कहते कि जब आप रचनात्मक होते हैं, तो दिमाग को मजबूत होना चाहिए. यही दिमाग शरीर को साथ लेकर चलता है. जानी-मानी फिल्म लेखिका और समीक्षक भावना सोमाया एक बार देव साहब से मिलने उनके ऑफिस गईं, तो उन्होंने देखा कि उनके टेबल पर सारा सामान बिखरा पड़ा है. उनको देखते ही देव आनंद बोले, ''मेरी मेज पर इस अस्त-व्यस्तता पर ध्यान मत दो, क्योंकि यह अस्त-व्यस्तता मेरी रचनात्मकता का हिस्सा है. मैं कभी भी अपनी डेस्क को हमेशा साफ रखने में विश्वास नहीं करता हूं, क्योंकि यह रचनात्मक ऊर्जा की बर्बादी है.'' महान अभिनेता कि इन बातों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो अपने कार्य के प्रति कितने समर्पित थे.

5- महिलाओं को सम्मान और प्यार

देव आनंद साहब को बॉलीवुड का असली रोमांटिक हीरो कहा जाता है. ना सिर्फ पर्दे पर बल्कि असल जिंदगी में भी देवानंद की दिल्लगी का कोई सानी नहीं है. अपनी फिल्म की अभिनेत्रियों के साथ अपने रोमांस को लेकर भी वे चर्चा में रहे. चाहे सुरैया हो या जीनत अमान दोनों के साथ उनके प्रेम के चर्चे खूब आम हुए. खुद देवानंद भी मानते हैं कि सुरैया उनका पहला प्रेम थीं और जीनत को भी वह पसंद करते थे. लेकिन देव साहब ने हमेशा से ही महिलाओं का सम्मान किया. उनके साथ काम करने वाली महिला कलाकार खुद को सुरक्षित महसूस किया करती थीं. उनकी बातों में ऐसा जादू था कि लोग खुद ब खुद उनकी तरफ खींचे चले आते थे. कहा जाता है कि शबाना आज़मी एक बार देव आनंद के ऑफिस गईं. देव साहब ने उनको अपनी नई फिल्म 'इश्क़ इश्क इश्क़' में एक छोटी-सी भूमिका ऑफर की थी. शबाना उस रोल को नहीं करना चाहती थीं, लेकिन फिर भी उन्होंने हामी भर दी थी. इस पर शबाना का कहना था कि देवसाहब में इतना आकर्षण था कि वो मना नहीं कर पाई.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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