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Updated: 20 अक्टूबर, 2022 01:36 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों से गायब रहने वाली बॉलीवुड की कंट्रोवर्सी क्वीन कंगना रनौत अचानक चर्चा में आ गई हैं. वजह एक नई फिल्म बनी है, जिसमें कंगना लीड रोल करने जा रही हैं. ये कंगना की चौथी बायोपिक फिल्म होगी, जो मशहूर बंगाली थिएटर एक्ट्रेस बिनोदिनी दासी की जिंदगी पर आधारित है. इससे पहले एक्ट्रेस 'थलाइवी' में जयललिता और 'मणिकर्णिका' में रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका निभा चुकी हैं. वर्तमान में इंदिरा गांधी के जीवन से प्रेरित फिल्म 'इमरजेंसी' में काम कर रही हैं. इसमें वो इंदिरा गांधी की भूमिका निभा रही हैं. 'परीणिता' और 'मर्दानी' जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके प्रदीप सरकार नई फिल्म का निर्देशन करने वाले हैं, जिसका टाइटल अभी तक फाइनल नहीं हुआ है.

बंगाली थिएटर एक्ट्रेस बिनोदिनी दासी के बारे में बहुत कम लोगों को पता है. यहां तक कि उनकी तमाम सामाजिक, साहित्यिक और कलात्मक उपलब्धियों के बावजूद उनका नाम इतिहास में उस तरह से दर्ज नहीं है, जैसे कि होना चाहिए था. उनके बारे में अभी तक बहुत कम पढ़ा और लिखा गया है. यही वजह है कि बिनोदिनी की जिंदगी की कहानी जब रूपहले पर्दे पर दिखाई जाएगी, तो लोगों को जरूर आकर्षित करेगी. उनका किरदार बहुत कठिन है, लेकिन कंगना रनौत जैसी अभिनेत्री की प्रतिभा और पिछले बायोपिक फिल्मों में जबरदस्त परफॉर्मेंस को देखते हुए कहा जा सकता है कि वो इस किरदार के साथ इंसाफ करेंगी. फिल्म की कहानी बिनोदिनी की आत्मकथा 'अमार कथा' पर आधारित होगी.

1_650_101922114742.jpg बॉलीवुड की कंट्रोवर्सी क्वीन कंगना रनौत अचानक चर्चा में आ गई हैं.

बिनोदिनी दासी को नोटी बिनोदिनी के नाम से भी जाना जाता है. उनका जन्म 1862 में कोलकाता के एक रेड लाइट एरिया में हुआ था. उनकी मां सेक्स वर्कर थीं. यही वजह है कि बड़े होने के बाद बिनोदिनी भी देह के धंधे में उतर गईं. लेकिन इसी बीच उनका संपर्क बंगाली थियेटर के एक आर्टिस्ट से हुआ, जिसके जरिए वो ग्रेट नेशनल थियेटर के मालिक गिरीश चंद्र घोष के संपर्क में आई गईं. गिरीश बिनोदिनी की सुंदरता को देखकर बहुत प्रभावित हुए और 1874 में 12 साल की उम्र में उन्हें थियेटर में काम करने का मौका दे दिया. इसके बाद 23 साल की उम्र तक वो लगातार काम करती रहीं. इस दौरान उन्होंने 80 से ज्यादा किरदार निभाए, जिनमें प्रमिला, सीता, द्रौपदी, राधा, आयशा, कैकेयी, मोतीबाई और कपालकुंडला का रोल अहम है. उन्होंने चैतन्य महाप्रभु का किरदार भी किया था. 1884 में उनकी कला से प्रभावित हो कर बंगाल के महान संत रामकृष्ण उनका नाटक देखने आए थे.

23 साल की उम्र में तबियत खराब होने की वजह से उन्होंने अपने काम से ब्रेक ले लिया. उन्होंने अपने थियेटर के मालिक प्रताप चंद जहुरी से एक महीने की छुट्टी मांगी और आराम करने के लिए काशी चली गईं. वहां उनकी तबियत ज्यादा खराब हो गई. इस तरह उनको ठीक होने में करीब दो महीने का वक्त लग गया. वापस कोलकाता लौटने के बाद वो नाटकों में काम करने के लिए थियेटर पहुंची तो पता चला कि प्रताप चंद जहुरी उनकी छुट्टियों का पैसा नहीं देना चाहते हैं. बिनोदिनी इसके विरोध में आ गईं. उनका मानना था कि उन्होंने तबियत खराब होने की वजह से छुट्टी ली है, ऐसे में उनको पैसा मिलना चाहिए. क्योंकि काम की वजह से ही उनका स्वास्थ प्रभावित हुआ है. उन्होंने ऐलान किया कि जब तक पैसा नहीं मिलेगा, वो काम नहीं करेंगी. थियेटर के मालिक के आते ही उन्होंने पैसा मांगा, जिसके बाद उनको कोई जवाब नहीं मिला. इसके तुरंत बाद वो अपने घर लौट गईं.

नाराज बिनोदिनी को मनाने के लिए गिरीशचंद्र घोष और अमृत मित्र उनके घर गए, लेकिन उन्होंने बिना पैसा लिए काम करने से मना कर दिया. यहां तक कि अपनी सैलरी की डिमांड भी ज्यादा कर दी. इसी मतभेद की वजह से उनका करियर समय से पहले ही खत्म हो गया. 23 साल की उम्र में उन्होंने थियेटर को अलविदा कह दिया. लेकिन अपनी सोच के जरिए उन्होंने समाज को संदेश दे दिया कि स्त्री और पुरुष बराबर हैं, इसलिए उनके साथ बराबरी का व्यवहार होना चाहिए. वरना 19वीं सदी के समाज में जहां स्त्रियों के स्वतंत्र वजूद को ही नहीं माना जाता था, यह बिनोदिनी अपने अधिकारों के प्रति इतनी सचेत थी कि उन्होंने सैलरी नहीं मिलने पर प्रतापचंद के थिएटर को छोड़ने का फैसला ले लिया.

थियेटर छोड़ने के बाद उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखनी शुरू कर दी. जो साल 1913 में 'अमार कथा' (The Story of My Life) के नाम से पब्लिश हुई थी. इसके बाद उन्होंने एक दूसरी किताब अमार अभिनेत्री जिबोन (My life as an actress) लिखी थी. वो अपनी आत्मकथा लिखने वाली दक्षिण एशिया की पहली अभिनेत्री थीं. अपनी दोनों किताबों में उन्होंने औपनिवेशिक कलकत्ता की रंगमंच की दुनिया के अनुभवों, अपने साथ हुए नुकसान, विश्वासघात और शोषण के बारे में खुलकर लिखा था. एक अभिनेत्री, एक उद्यमी और एक मेकअप कलाकार के रूप में उनका योगदान अविस्मरणीय है. उन्हें एक नई मेकअप स्टाइल के निर्माण के लिए जाना जाता है जो यूरोपीय और भारतीय दोनों शैलियों का मिश्रण है.

बिनोदिनी दासी ने अपनी आत्मकथा में अपने बारे में तो लिखा ही है, इसके साथ ही उस दौर के समाज में महिलाओं की स्थिति के बारे में भी प्रकाश डाला है. वह विशेष रूप से महिलाओं और अभिनेत्रियों के प्रति पाखंड के बारे में खुलकर बोलती दिखती हैं. ऐसे समय में जब अभिनेत्रियों ने खराब परिस्थितियों में काम किया. उनको लोगों की नज़रों में नीचा समझा गया. उन्हें 'बुरी महिला' माना गया. यहां तक पारिश्रमिक के मामले में भी पुरुषों से नीचे रखा गया. उन्होंने 19वीं सदी के तथाकथित प्रबुद्ध बंगाली समाज पर तीखी टिप्पणी की है, जिसने यूरोपीय मूल्यों को अपनाया लेकिन महिलाओं की आजादी को संदेह और अविश्वास की नजर से देखा. इतना ही नहीं जो भी महिला स्त्रीत्व की धारणाओं के अनुरूप नहीं रही उसकी निंदा की गई. उसे घर तक सीमित रखने की कोशिश की गई. वो खुद एक बेहतरीन अभिनेत्री होने के बावजूद अपनी बैकग्राउंड की वजह से ताने झेला करती थीं.

बिनोदिनी जैसी शख्सियत पर बायोपिक बनाने का फैसला सराहनीय है. खुशी की बात ये है कि उनकी जिंदगी पर दो बायोपिक फिल्में बनने जा रही हैं. कंगना रनौत की अनाम फिल्म के अलावा एक फिल्म बंगाली में भी बनने जा रही है, जिसका नाम 'बिनोदिनी एकती नातिर उपाख्यान' है. इसमें बंगाली एक्ट्रेस रुक्मिणी मैत्रा बिनोदिनी दासी का किरदार निभाने जा रही हैं. रुक्मिणी चैतन्य महाप्रभु की भूमिका भी अदा करेंगी, जिसे बिनोदिनी ने अपने थियेटर के दिनों में किया था. बिनोदिनी की जिंदगी को देखते हुए उनका किरदार निभाना कंगना रनौत और रुक्मिणी मैत्रा दोनों के लिए एक चुनौती है. इसके साथ ही एक अवसर भी है ऐसा ऐतिहासिक किरदार करके इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया जा सकता है.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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