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Updated: 10 फरवरी, 2022 08:29 PM
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कोरोना महामारी के बाद सिनेमाघरों पर ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का दबदबा साफ़ नजर आता है. कभी नई फिल्मों को प्रीमियर करने का जो विशेषाधिकार सिनेमाघरों को हासिल था वह महामारी के बाद बहुत हद तक प्रभावित हुआ है. अब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बड़े पैमाने पर फ़िल्में रिलीज हो रही हैं. लक्ष्मी, गुलाबो सिताबो, शेरशाह, सरदार उधम, दिल बेचारा, गुंजन सक्सेना, मिमी, हम दो हमारे दो, भुज- द प्राइड ऑफ़ इंडिया, सड़क-2, बिग बुल, राधे: योर मोस्ट वॉन्टेड भाई, हसीन दिलरुबा और ना जाने कितनी फ़िल्में महामारी के बाद सिनेमाघरों की बजाय सीधे ओटीटी पर रिलीज की जा चुकी हैं. इसमें से कई फिल्मों ने सफलता के मायने बदले और कुछ बुरी तरह नकारी भी गईं.

कोरोना की वजह से डिजिटल के रूप में एक बड़ा प्लेटफॉर्म सिनेमा उद्योग को मिला है. हालांकि शुरू-शुरू में डिजिटली फ़िल्में रिलीज करने को लेकर ना  नुकर थी, लेकिन अब निर्माता ओटीटी फ्रेंडली दिख रहे हैं और अपनी फिल्मों को डिजिटल पर भी एक्सक्लूसिव रिलीज कर रहे हैं. सिनेमाघरों का आकर्षण काफी हद तक कमजोर नजर आ रहा है. और दोनों एक दूसरे के आमने सामने भी दिख रहे हैं. 11 फरवरी को दो बड़ी फ़िल्में बधाई दो (सिनेमाघर) और गहराइयां (ओटीटी) आ रही हैं. कॉमेडी ड्रामा बधाई दो राजकुमार राव और भूमि पेडणेकर स्टारर फिल्म है. जबकि रिलेशनशिप ड्रामा 'गहराइयां' दीपिका पादुकोण, सिद्धांत चतुर्वेदी और अनन्या पांडे की फिल्म है.

badhaai-do-vs-gehrai_021022060428.jpgबधाई दो और गहराइयां एक ही दिन रिलीज हो रही हैं.

मायने रखता है बधाई दो और गहराइयां का क्लैश

भले ही दोनों फ़िल्में अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर क्यों ना आ रही हों लेकिन एक ही दिन दोनों की रिलीज होने से स्वाभाविक सवाल है कि क्या फ़िल्में एक-दूसरे पर असर डालने जा रही हैं? यहां असर का मतलब नुकसान पहुंचाने से है. जहां तक बात सिनेमाघरों में एक दिन रिलीज फिल्मों की है- इसके प्रमाण हैं कि फिल्मों ने एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाया है. सिनेमाघरों और ओटीटी पर फिल्मों का क्लैश बिल्कुल अलग और ताजा मसला है. कुछ साल पहले इसकी कल्पना नहीं के गई थी लेकिन अब यह रह रहकर नजर आने लगा है. और भविष्य में इसके और गहरा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

बधाई दो और गहराइयां का क्लैश मायने रखता है. अगर ऐसे ही क्लैश के पिछले कुछ उदाहरण देखें तो निश्चित ही नतीजे नजर आए हैं. वो कितने पुख्ता हैं ये बात दूसरी है. पिछले साल नवंबर में कार्तिक आर्यन की धमाका नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हुई थी. इसी दौरान सिनेमाघरों में सैफअली खान, रानी मुखर्जी और सिद्धांत चतुर्वेदी की बंटी और बबली 2 रिलीज हुई थी. सिनेमाघरों और ओटीटी के बीच क्लैश का यह पहला बड़ा नमूना था. हालांकि इसे स्पस्ट तौर पर आंकने के अभी टूल नहीं है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि धमाका को जितना देखा गया उतने दर्शक बंटी और बबली 2 को नहीं मिले. फिल्म की खराब ओपनिंग इस बात का सीधा सीधा प्रमाण है. जबकि धमाका ओटीटी व्यूअरशिप में टॉप में नजर आई थी.

इन दो केस स्टडीज में संकेत तो मिल ही जाता है

सिर्फ बंटी और बबली ही नहीं. एक हफ्ते बाद रिलीज हुई जॉन अब्राहम की सत्यमेव जयते और सलमान खान-आयुष शर्मा की अंतिम द फाइनल ट्रुथ का भी बॉक्स ऑफिस बहुत संतोषजनक नहीं था. इन्हीं दो से तीन हफ़्तों के दौरान धमाका का वर्ड ऑफ़ माउथ और व्यूअरशिप एक नजीर तो माना जा सकता है कि सिनेमाघरों में आई कमजोर फिल्मों के मुकाबले दर्शकों ने ओटीटी जैसे सर्व सुलभ प्लेटफॉर्म पर फिल्म देखने में दिलचस्पी दिखाई.

दो अलग अलग प्लेटफॉर्म के बीच दूसरा बड़ा क्लैश अतरंगी रे और 83 के दौरान भी देखने को मिला. अक्षय कुमार, धनुष और सारा अली खान की अतरंगी रे क्रिसमस वीक में डिजनी पर स्ट्रीम हुई थी जबकि रणवीर की 83 सिनेमाघरों में. अतरंगी रे को लेकर हुई चर्चाएं सबूत हैं कि इसे खूब देखा गया. दूसरी ओर 83 का बॉक्स ऑफिस अनुमान से बहुत कम नजर आया. ओटीटी पर आई फिल्म ने 83 को निश्चित ही नुकसान पहुंचाया. ये बात दूसरी है कि अल्लू अर्जुन की एक्शन एंटरटेनर पुष्पा द राइज और हॉलीवुड की स्पाइडरमैन नो वे होम ने 83 को बुरी तरह प्रभावित किया. ये फ़िल्में भी सिनेमाघरों में थीं.

भले प्लेटफॉर्म अलग हों पर असल लड़ाई तो कंटेंट की ही है

अभी यह साफ़ होना बाकी है कि सिनेमाघरों और ओटीटी पर रिलीज होने वाली फ़िल्में एक-दूसरे को कितना नुकसान पहुंचाती हैं. लेकिन यह बिल्कुल खारिज नहीं किया जा सकता कि कोई नुकसान ही ना हुआ हो. सिनेमाघरों के मुकाबले ओटीटी अब ज्यादा सुलभ प्लेटफॉर्म है. इसके अलग-अलग ऐप का सब्सक्रिप्शन बेस भी बढ़ा है. फोन रीचार्ज प्लान में ओटीटी के फ्री सब्सक्रिप्शन बेस ने इसे बड़े पैमाने पर प्रसारित किया है. यहां तक कि अब छोटे-छोटे शहरों और कस्बों में भी ओटीटी कंटेंट इस्तेमाल किया जा रहा है. ओटीटी पर जब भी अच्छा कंटेंट आएगा और उसी दौरान सिनेमाघरों में दर्शकों को बढ़िया कंटेंट नहीं मिलेगा तो लोग डिजिटल को ज्यादा प्राथमिकता देंगे. धमाका और अतरंगी रे के साथ शायद वही हुआ. जहां तक बात बधाई दो और गहराइयां की है- दोनों में जो कंटेंट बढ़िया होगा वह व्यापक दर्शक वर्ग को आकर्षित कर सकता है.

कुल मिलाकर दो अलग-अलग प्लेटफॉर्म के इस क्लैश में भी असल लड़ाई कंटेंट का ही है. जैसे बॉक्स ऑफिस क्लैश में बाजी कोई एक बढ़िया फिल्म के हाथ लगती है- बिल्कुल वैसे ही. जहां तक बात सिनेमाघरों की है उसकी बादशाहत फिलहाल तो ख़त्म नहीं होने जा रही. हाल ही में आई सूर्यवंशी और पुष्पा की सफलता ने इसे साबित भी कर दिया है.

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