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Updated: 17 अगस्त, 2022 03:26 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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कहते हैं कि जब वक्त खराब हो तो धैर्य, धीरज, सब्र और समझदारी से काम लेना चाहिए. ऐसे वक्त में सोच समझ कर उठाया गया कदम अंधेरे से उजाले की ओर ले जाता है. इस दौरान ठहर कर सोचने और समझने का जो वक्त मिलता है, उसमें भूत में की गई गलतियों से सबक लेते हुए भविष्य को बेहतर बनाने की कोशिश की जाती है. लेकिन कुछ लोग अपने खराब वक्त से भी सीख नहीं लेते हैं. जैसे कि इस वक्त बॉलीवुड के साथ हो रहा है. अपने सबसे खराब दौर में होने के बावजूद बॉलीवुड के लोग सबक लेने को तैयार नहीं है. बॉलीवुड फिल्मों के फ्लॉप होने की कई वजहों में एक ये भी है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री अभी भी आंखे बंद किए हुए अपने पुराने फॉर्मूले पर फिल्में बनाए जा रही है. उसे लगता है कि पहले की तरह दर्शक मजबूरी में उनकी फिल्में देखते रहेंगे. लेकिन लगातार फ्लॉप हो रही फिल्मों ने समझा दिया है कि दर्शकों के पास अब विकल्पों की कमी नहीं है.

anurag-kashyap_650_081622113014.jpgयशराज बैनर की फिल्मों के फ्लॉप होने पर अनुराग कश्यप ने आदित्य चोपड़ा पर तंस कसा है.

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री एक बड़े प्रोडक्शन हाऊस यश राज फिल्म्स की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर लगातार पिट रही हैं. इनमें 'संदीप और पिंकी फरार', 'बंटी और बबली 2', 'जयेशभाई जोरदार', 'सम्राट पृथ्वीराज' और 'शमशेरा' जैसी बड़ी फिल्मों का नाम शामिल है. इन फिल्मों के बजट से लेकर स्टारकास्ट तक सबकुछ बड़ा है, इसके बावजूद फ्लॉप हुई हैं, इसके पीछे की वजह क्या है? इसके बारे में फिल्म मेकर अनुराग कश्यप का कहना है कि यशराज फिल्म्स के मालिक आदित्य चोपड़ा बाहरी दुनिया से अनजान अपने हिसाब से फिल्में बनाए जा रहे हैं. उनको ये पता ही नहीं है कि दर्शकों की मांग क्या है. दर्शक क्या पसंद कर रहे हैं, क्या नापंसद कर रहे हैं. वो बनाने कुछ और चलते हैं और बन कुछ दूसरा जाता है. जैसे कि वो 'पाइरेट्स ऑफ द कैरेबियन' बनाना चाहते थे, लेकिन 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' बन गई. वो 'मैड मैक्स: फ्यूरी रोड' बनाना चाहते थे, लेकिन 'शमशेरा' बन गई.

यश राज के फिल्म बनाने के मॉडल पर तंज कसते हुए अनुराग कश्यप कहते हैं, ''एक आदमी गुफा में बैठा है जो बाहर की दुनिया को जानता ही नहीं, यह तय कर रहा है कि कैसे हर किसी को अपनी फिल्में बनानी चाहिए और बताता है कि उन्हें क्या करना चाहिए. जाहिर है आप अपनी कब्र खुद खोद रहे हैं. आपको लोगों को छूट देनी होगी, आप शर्तों को तय नहीं कर सकते. वह समय बीत चुका है. यदि आदित्य चोपड़ा कई लोगों को काम के लिए चुनते हैं तो उन्हें सशक्त बनाने की जरूरत है. उन्हें कंट्रोल करने, हुक्म चलाने, कास्टिंग को कंट्रोल नहीं करना चाहिए. किसी चीज को नियंत्रित करने की जरूरत नहीं है. अपने ऑफिस में बैठो, अच्छे लोगों को काम पर रखो. यदि आप उन पर भरोसा करते हैं और उन्हें अपनी फिल्म बनाने दें. यहां सिनेमा बड़े पैमाने पर उन लोगों द्वारा कंट्र्रोल किया जा रहा है जो दूसरी पीढ़ी के हैं और जो ट्रायल रूम में बड़े हुए. वो उसे जीते नहीं हैं.''

अनुराग कश्यप ने भले ही ये बातें आदित्य चोपड़ा के लिए कही हों, लेकिन सही मायने में देखा जाए तो पूरी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री पर लागू होती है. इस वक्त बॉलीवुड शुतुरमुर्ग की तरह सामने आई मुसीबत से आंखें चुराए जा रहा है. सबक लेकर फिल्मों की क्वालिटी पर काम करने की बजाए अलग-अलग बातों पर फोकस कर रहा है. माना कि इस वक्त बायकॉट बॉलीवुड मुहिम अपने सबाब पर है. लोग बॉलीवुड फिल्मों का जमकर विरोध कर रहे हैं. इसकी वजह से फिल्मों के कलेक्शन पर असर भी पड़ रहा है. लेकिन कोई फिल्म केवल बायकॉट की वजह से फ्लॉप हो जाए, ये संभव नहीं लगता. यदि ऐसा होता तो कार्तिक आर्यन की फिल्म 'भूल भुलैया 2' और विवेक अग्निहोत्री की 'द कश्मीर फाइल्स' भी बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट जाती. लेकिन इन दोनों ही फिल्मों ने शानदार परफॉर्मेंस देते हुए लागत से कई गुना कमाई की है. इसकी वजह ये कि दर्शकों को इन फिल्मों का कंटेंट पसंद आया. इसके बाद माउथ पब्लिसिटी हुई. इसकी वजह से फिल्म को बड़ी संख्या में लोगों ने देखा. वहीं 'लाल सिंह चड्ढा' और 'रक्षा बंधन' दर्शकों का दिल जीतने में नाकाम रहे हैं.

बॉलीवुड को अब फॉर्मूला बेस्ट फिल्में बनाना पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए. रीमेक और बायोपिक फिल्मों का जमाना लद चुका है. अब दर्शक किसी भी फिल्म के मूल भाषा में ही उसे देख ले रहा है. उदाहरण के लिए आमिर खान की 'लाल सिंह चड्ढा' हॉलीवुड फिल्म 'फॉरेस्ट गंप' की हिंदी रीमेक हैं. ज्यादातर दर्शक 'फॉरेस्ट गंप' को पहले ही देख चुके हैं. सोशल मीडिया पर लंबे समय तक इस पर चर्चा हुई है. इसके बाद फिल्म के खिलाफ माहौल बनाया गया. यही वजह है कि उम्मीद के मुताबिक इस फिल्म को दर्शक नहीं मिले हैं. इसका परिणाम ये हुआ है कि फिल्म रिलीज के बाद पांच दिनों के अंदर महज 45 करोड़ रुपए ही कमा पाई है. जबकि आमिर की फिल्में इतने पैसे तो दो दिनों में कमा लिया करती हैं. आमिर की फिल्मों का लोग बेसब्री से इंतजार करते रहे हैं. लेकिन बदले माहौल में दर्शकों का स्वाद बदल चुका है. इसमें साउथ सिनेमा का भी बहुत बड़ा योगदान है.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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