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Updated: 23 जून, 2021 10:09 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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फिल्म इंडस्ट्री की एक ऐसी शख्सियत, जिनकी छवि जब रुपहले पर्दे पर उभरती, तब जाकर दर्शकों को फिल्म के असली रोमांच का अहसास होता. वो अपनी असली जिंदगी में नायक, लेकिन सिल्वर स्क्रिन पर खलनायकी का पर्याय बन चुके थे. उनकी आवाज ही उनकी पहचान थी, जो सिनेमाघरों में जब गूंजती तो तालियों की गड़गड़ाहट से दर्शक स्वागत करते थे. 'मोगैम्बो खुश हुआ'...फिल्म 'मिस्टर इंडिया' का ये डायलॉग लोगों की जुबान पर आते ही उनका चेहरा जहन में कौंधने लगता है. जी हां, अभी तक तो आप समझ ही गए होंगे कि हम फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज कलाकार अमरीश पुरी की बात कर रहे हैं.

अमरीश पुरी साहब का जन्म 22 जून 1932 को पंजाब के जालंधर में हुआ था. यदि आज वो दुनिया में होते तो 89 साल के हो गए होते. उनसे अधिक उम्र के होकर 91 साल की उम्र में अभी मशहूर एथलिट मिल्खा सिंह का निधन हुआ है. यदि ये मुद्दई कोरोना वायरस न होता तो फ्लाइंग सिख अपनी उमर का शतक लगा सकते थे. खैर, मोगैंबो का मशहूर किरदार निभाने वाले अमरीश पुरी बॉलीवुड में आए तो हीरो बनने का ख्वाब लेकर थे, लेकिन किस्मत ने उन्हें विलेन बना दिया. लेकिन विलेन भी ऐसे बने कि कई बार उनके आगे हीरो भी फेल हो जाता था. उनको आज भी फिल्म इंडस्ट्री का सबसे बेहतरीन खलनायक माना जाता है.

untitled-1-650_062221070548.jpgफिल्म कोई भी हो, किरदार कैसा भी हो, अमरीश पुरी साहब हर भूमिका में दर्शकों को भा जाते थे.

40 साल की उम्र में अपना फिल्मी करियर शुरू करने से पहले अमरीश पुरी सरकारी नौकरी के साथ थियेटर में प्ले किया करते थे. उनकी बेहतरीन एक्टिंग को देखकर किसी ने फिल्मों में ट्राई करने की सलाह दी, तो बॉलीवुड चले आए. यहां उन्हें पहली बार सुनील दत्त और वहीदा रहमान स्टारर फिल्म 'रेशमा और शेरा' में रहमत खान नामक शख्स का रोल प्ले करने का मौका मिला. इसके बाद धीरे-धीरे खलनायक के किरदार में रंगने लगे. फिल्मों में उनके अलग-अलग गेटअप किसी को भी डराने के लिए काफी होते थे. 'अजूबा' में वजीर-ए-आला, 'मि. इंडिया' में मोगैंबो, 'नगीना' में भैरोनाथ, 'तहलका' में जनरल डोंग का गेटअप आज भी लोग भुला नहीं पाए हैं.

12 जनवरी, 2005 को ब्रेन हेमरेज के चलते बॉलीवुड के सबसे बड़े खलनायक अमरीश पुरी ने दुनिया को अलविदा कह दिया. इस तरह हमेशा-हमेशा के लिए 'मोगैम्बो खामोश हो गया'. फिल्मों में अमरीश पुरी द्वारा निभाए गए किरदारों और उनके डायलॉग्स में सफल बिजनेसमैन बनने के कई महत्वपूर्ण गुर छिपे हुए हैं. जरूरत उन्हें समझने और अपनाने की है. आइए आपको पुरी साहब के कुछ ऐसे ही मशहूर किरदारों और उनसे मिलने सबक के बारे में बताते हैं...

1:- हमेशा बड़ा सोचना चाहिए, बड़े सपने देखना चाहिए

'मोगैम्बो': अनिल कपूर और श्रीदेवी की क्लासिक बॉलीवुड फिल्म 'मिस्टर इंडिया' में अमरीश पुरी ने मोगैम्बो का किरदार निभाया था. इसमें उनका डायलॉग 'मोगैम्बो खुश हुआ' इतना मशहूर हुआ कि बच्चे-बच्चे की जुबान पर बना रहा. इस फिल्म में मौगैम्बो का किरदार पूरे भारत पर कब्जा करने का सपना देखता है. उसका सपना उसकी सोच से परिलक्षित होता रहता है. वो जब भी हमने साथियों के साथ बैठता है, हर बार अपनी सोच और सपने को दोहराता है. उसके गिरोह के लोगों को इसका एहसास रहे, इसलिए उनको बोलने के लिए मजबूर करता है, 'जय मोगैम्बो! भारत के राजा'. उसके भरोसे और विश्वास की वजह से 'मोगैम्बो' शब्द उसके खुद के जीवन से बड़ा हो गया. मोगैम्बो जानता था कि वह क्या चाहता है और उसने उस पर कभी कोई हिचकिचाहट नहीं रखी. इसलिए अपना साम्राज्य बनाने में कामयाब रहा.

क्या सबक लेना चाहिए: अमरीश पुरी के किरदार 'मोगैम्बो' की तरह ही एक बिजनेसमैन को अपने और कंपनी के लक्ष्य के बारे में बहुत स्पष्ट होना चाहिए. बड़े लक्ष्य रखने और उसे पूरा करने के लिए की गई कड़ी मेहनत ही किसी बिजनेसमैन को सफल बना सकती है.

2:- पहले पैशन जरूरी है, पैसे के पीछे भागना नहीं चाहिए

'धीरेंद्र प्रताप': 'ये दौलत भी क्या चीज़ है, जिसके पास जितनी भी आती है, कम ही लगती है'...साल 1992 में रिलीज हुई सुपर-डुपर हिट फिल्म 'दीवाना' का ये डायलॉग अमरीश पुरी के किरदार 'धीरेंद्र प्रताप' ने बोला था. धीरेंद्र के किरदार में पुरी साहब फिल्म के हीरो ऋषि कपूर के लालची चाचा की भूमिका निभाते हैं. फिल्म में शराब में डूबा हुआ धीरेंद्र यह स्वीकार करता है कि लालच का कोई अंत नहीं है. इमोशनल होकर वह कहता है कि जीवन में धन का कोई अर्थ नहीं है. कोई कितना भी अमीर क्यों न हो जाए, पैसा हमेशा उन्हें आकर्षित करेगा.

क्या सबक लेना चाहिए: अमरीश पुरी के किरदार 'धीरेंद्र प्रताप' की हर बात एक बिजनेसमैन के लिए महत्वपूर्ण सबक है. यदि वे अमीर बनने के पीछे दौड़ रहे हैं, तो उस दौड़ का कोई अंत नहीं होगा. सफल बिजनेस के लिए पहले पैशन जरूरी होता है. पैसा तो अपने आप झक मारकर आपके पास आ जाएगा.

3:- बड़े बाजार के लिए अनूठा वक्तव्य, अनोखा दृष्टिकोण चाहिए

'बाबा भैरवनाथ': 'आओ कभी हवेली पे'...साल 1986 में रिलीज हुई ऋषि कपूर और श्रीदेवी की फिल्म नागिन का ये डायलॉग तो आपको याद ही होगा. फिल्म में सपेरे बाबा भैरवनाथ की भूमिका में अमरीश पुरी जब भी नायिका श्रीदेवी से मिलता है, तो उससे यही डायलॉग बोलता है. जबकि सबको पता होता है कि उसके पास हवेली क्या मकान तक रहने को नहीं है. वह इधर-उधर रहकर अपना समय काट रहा होता है. लेकिन उसका वक्तव्य अनूठा होता है, जो सबको आकर्षित करता है.

क्या सबक लेना चाहिए: एक बिजनेसमैन को अपने प्रोडक्ट के हिसाब से बाजार बनाने की जरूरत होती है. व्यापार बिना बाजार या ग्राहक के संभव नहीं है. इसके लिए आपको कुछ ऐसा करना या बोलना होगा, जो पहले किसी ने नहीं किया. जिज्ञासा बढ़ाने वाली एक 'यूनिक क्लिच लाइन' औसत और उत्कृष्ट परिणाम के बीच अंतर पैदा कर सकती है.

4:- बिजनेस में जुनून जरूरी, लेकिन पागलपन की हद नहीं चाहिए

'चौधरी बलदेव सिंह': 'जा सिमरन जा...जी ले अपनी जिंदगी'...साल 1995 में रिलीज हुई फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का ये डायलॉग अमरीश पुरी के किरदार चौधरी बलदेव सिंह ने बोला था. शाहरुख खान और काजोल स्टारर इस सुपरहिट फिल्म में अमरीश पुरी एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका में थे. वह सिमरन (काजोल) के पिता बलदेव सिंह की भूमिका में थे. सिमरन, राज (शाहरुख खान) से बहुत प्यार करती थी. लेकिन बलदेव ने दोनों को जुदा कर दिया. लेकिन नाटकीय घटनाक्रम के बाद अंत में, बलदेव सिंह सिमरन और राज के साथ एक होने की अनुमति दे देते हैं.

क्या सबक लेना चाहिए: अमरीश पुरी के किरदार बलदेव सिंह की तरह किसी भी बिजनेसमैन को पागलपन की हद तक जुनून नहीं रखना चाहिए. उसको अपनी जरूरत के अनुसार कोई भी काम करने के लिए और समय के अनुसार सब कुछ छोड़ने के लिए तैयार और तत्पर रहना चाहिए. क्योंकि व्यापार में जोखिम हमेशा बना रहता है.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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