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Updated: 27 मार्च, 2023 10:30 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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भोजपुरी फिल्म एक्ट्रेस आकांक्षा दुबे के डेथ केस ने बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत के मामले को ताजा कर दिया है. कहा जा रहा है कि जिन परिस्थितियों में सुंशात की मौत हुई थी, कमोवेश उसी तरह की परिस्थितियों में आकांक्षा का निधन हुआ है. दोनों बहुत दबाव में थे. अपने करियर को लेकर परेशान थे. उनकी फिल्म इंडस्ट्री से पैदा हुई कुछ परिस्थितियों की वजह से उनकी जान गई है. इस मामले में आकांक्षा की मां ने हत्या का आरोप लगाकर इस मामले को सनसनीखेज बना दिया है. उनका आरोप है कि उनकी बेटी की हत्या की गई. इसे भोजपुरी गायक समर सिंह और उनके भाई संजय सिंह ने अंजाम दिया है. वाराणसी की सारनाथ पुलिस ने मधु दुबे की शिकायत के आधार पर समर और संजय के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है. लेकिन सवाल वही कि क्या दिवंगत एक्ट्रेस को न्याय मिल पाएगा?

आकांक्षा दुबे ने 'वीरों के वीर' और 'कसम पैदा करने वाले की 2' जैसी फिल्मों और 'भुअरी', 'काशी हिले पटना हिले', 'नमरिया कमरिया में खोस देब' और 'तुम जवान हम लाइका' जैसे म्युजिक एलबम में काम किया था. जिस दिन उनकी मौत हुई थी, उसी दिन भोजपुरी सिनेमा के पावर स्टार पवन सिंह के साथ उनका एक गाना 'ये आरा कभी हारा नहीं' रिलीज हुआ था. उनकी मां मधु दुबे ने कहा है, "समर सिंह और संजय सिंह ने आकांक्षा से तीन साल से करोड़ों रुपयों का काम कराकर पैसा रोक रखा था. पैसे मांगने पर 21 तारीख को समर के भाई संजय सिंह ने आकांक्षा को जान से मारने की धमकी दी थी. इस बारे में आकांक्षा ने खुद मुझे फोन से इसकी जानकारी दी थी. वो इसे लेकर बहुत परेशान थी.'' ये पहली बार नहीं है, जब किसी ने इस तरह के आरोप लगाए हैं. भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में चलन है कि काम कराकर पैसे रोक लो.

650x400_032723065528.jpgभोजपुरी एक्ट्रेस आकांक्षा दुबे ने वाराणसी के एक होटल में कथित रूप से खुदकुशी कर ली है.

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में क्या बॉलीवुड की तरह मठाधीश और माफिया सक्रिय हैं? क्या सच में यहां कलाकारों का आर्थिक, मानसिक और शारीरिक शोषण होता है? इस बारे में जब हमने भोजपुरी के मशहूर फिल्म क्रिटिक मनोज भावुक से पूछा तो उन्होंने आंखें खोल देना वाला खुलासा किया. iChowk.in से बातचीत में मनोज भावुक ने बताया, ''भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की हालत तो बॉलीवुड से भी ज्यादा खराब है. इसे 'मेल डॉमिनेटिंग' या 'हीरो डॉमिनेटिंग' फिल्म इंडस्ट्री कह सकते हैं. उसमें भी महज चंद लोग इस इंडस्ट्री को चला रहे हैं. जैसे कि पहली पंक्ति में पवन सिंह और खेसारी लाल यादव का नाम लिया जा सकता है. वहीं दूसरी पंक्ति में रितेश पांडे, समर सिंह, यश मिश्रा और अरविंद अकेला कल्लू का नाम शामिल है. इन लोगों में मनोज तिवारी, रवि किशन और दिनेश लाल यादव जैसे कलाकार तो अब राजनीति में व्यस्त हो चुके हैं. ये लोग फिर भी सुलझे हुए लोग हैं. इनका भोजपुरी सिनेमा को बढ़ाने में योगदान भी बहुत है, लेकिन इस वक्त के कथित भोजपुरी स्टार इंडस्ट्री को बर्बाद करने का काम कर रहे हैं.''

कलाकारों की बात तो छोड़िए भोजपुरी सिनेमा के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर की हालत भी दयनीय है. इनके बारे में मनोज भावुक कहते हैं, ''यहां यदि कोई स्थापित प्रोड्यूसर नहीं है, तो समझिए कि उसका बली का बकरा बनना तय है. अभय सिन्हा जैसे कुछ प्रोड्यूसर हैं, जो खुद फिल्म निर्माता और वितरक हैं, उनकी दुकान तो ठीक चलती है. लेकिन जितने भी नए प्रोड्यूसर आते हैं, वो एक बार फिल्म बनाने के बाद भाग जाते हैं. इसके अलावा फिल्म के डायरेक्टर, जिसे कैप्टन कहा जाता है, वो कठपुतली की तरह काम करते हैं. हीरो के आगे उनकी कुछ नहीं चलती है. हीरो सब तय करता है. स्टारकास्ट क्या होगी, हीरोइन कौन होगी, म्युजिक डायरेक्टर कौन होगा, यही नहीं प्रोडक्शन और कैंटिन कौन देखेगा, ये भी हीरो ही तय करता है. इस तरह से एक आदमी पूरी फिल्म को तय करता है. ऐसे में समझा जा सकता है कि कलाकारों पर कितना दबाव होता होगा.''

233527699_1022683849_032723075644.jpgफिल्म क्रिटिक मनोज भावुक, जिनका मानना है कि भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री कुंठित है.

आकांक्षा दुबे को क्या खुदकुशी के लिए मजबूर किया गया है, इसे आप हत्या मानते हैं या आत्महत्या? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ''ये हत्या हो सकती है, बिल्कुल हत्या हो सकती है. प्रथम दृष्टया भले ही इसे आत्महत्या बताया जा रहा है, लेकिन ऐसे कई सारे केस भोजपुरी सिनेमा में हुए हैं. इस तरह का दबाव यहां के कलाकारों पर बहुत ज्यादा रहता है. 2001 से लेकर 2023 तक कई सारी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं. यहां इतने तरह का अनैतिक दबाव है, जिसे लोग झेल नहीं पा रहे हैं. इसके कई सारे कारण हो सकते हैं. बाहर के लोगों को लगता है कि ये हीरोइन है, तो इसकी पेमेंट से लेकर सारी सुविधाएं उसी तरह की होगी, लेकिन ऊपर के स्तर के कुछ बड़े कलाकारों को छोड़ दिया जाए तो बाकी लोगों की हालत यहां बहुत बुरी है. स्टार लोगों के अलावा सभी स्ट्रगलर हैं. इसके अलावा हीरोइनों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा भी बहुत है. वो आपस में भी लड़ती हैं. हीरो या डायरेक्टर के करीब जान के लिए हथकंडों का इस्तेमाल करती हैं. जो नहीं पहुंच पाती, वो डिप्रेशन में चली जाती हैं. इसमें कुछ लोग उनका लाभ भी उठाते हैं.''

'कुंठित फिल्म इंडस्ट्री है, इसलिए इसका विकास नहीं हो पा रहा'

भोजपुरी फिल्म या म्युजिक वीडियो में काम करने वाले कलाकारों के पैसे रोक लिए जाने के सवाल पर मनोज भावुक कहते हैं, ''हीरो और हीरोइन को तो छोड़िए फिल्म की शूटिंग के लिए आने वाले स्पॉट ब्वॉय तक के पैसे रोक लिए जाते हैं. जबकि इनकी दिहाड़ी महज कुछ सौ रुपए होती है. इसलिए मैं इसे कुंठित फिल्म इंडस्ट्री कहता हूं. यही वजह है कि इसका विकास नहीं हो पा रहा है. जहां तक म्युजिक इंडस्ट्री की बात है, तो सिनेमा के बाद कमाई करने वाली सबसे बड़ी इंडस्ट्री है. इसमें म्युजिक कंपनियों का बहुत बड़ा योगदान होता है. ये कंपनियां हीरो या हीरोइन के साथ टाइप करती है. अब तो कई सारी हीरोइने भी गाना गाने लगी हैं, क्योंकि इसमें पैसा है. पिछले कुछ वर्षों में भोजपुरी सिनेमा और म्युजिक इंडस्ट्री डिजिटल प्लेटफॉर्म खासकर यूट्यूब के भरोसे चल रहा है. अभी इनको बड़े बड़े ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्लेसमेंट नहीं मिला है. अलग अलग राइट्स से इनको पैसा मिल जाता है.''

'भोजपुरी सिनेमा में टिकने के लिए या तो फाइटर बनो या सेटर'

आकांक्षा के साथ अपनी हुई एक मुलाकात को याद करते हुए मनोज बताते हैं कि वो एक महत्वाकांक्षी लड़की थी. अपने परिवार से लड़कर भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में काम करने आई थी. पहली मुलाकात को याद करते हुए वो बताते हैं, ''आकांक्षा दुबे तब इंडस्ट्री में नई थी. उस हंसमुख और मिलनसार लड़की ने सारेगामापा के सेट पर मुझसे पूछा था कि सर आपने तो भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में बड़े-बड़े लोगों का इंटरव्यू किया है. यहां टिकने और चमकने के लिए क्या करना होता है. मैंने जवाब दिया था कि इसके लिए फाइटर या सेटर बनना होता है. उसके बाद टैलेंट का नंबर आता है. तब मैं सारेगामापा का प्रोजेक्ट हेड था और वह शो लिख रहा था. आकांक्षा को कई बड़ी हीरोइनों के साथ गेस्ट के रूप में बुलाया था. ये 2017 की बात है.'' यहां मनोज की बातों में दम है, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री में टिके रहने के लिए फाइटर या सेटर होना जरूरी होता है. जो सेटर होता है, वो प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और हीरो को सेट कर लेता है. उनके साथ अपनी जोड़ी बना लेता है. कई बार समझौता भी कर लेता है. लेकिन जो ये सब नहीं कर पाता, उसे फिर फाइटर की तरह संघर्ष करना होता है.

'भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के टॉप लेवल पर सब माफिया बैठे हुए हैं'

भोजपुरी सिनेमा के एक निर्माता-निर्देशक का कहना है कि भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के टॉप लेवल पर माफिया बैठे हैं. उनका काम नीचे के कलाकारों को तकलीफ देना, कम बजट में काम करना, यहां तक कि उनके काम का क्रेडिट भी खा जाना, उनको परपेशान करना, होता है. यहां का माफिया खुद को आगे बढ़ाना चाहता है. लोगों को कुचल कर सफल होना चाहता है. इनके चक्कर में फिल्म प्रोड्यूसर बर्बाद हो रहे हैं. नए कलाकारों को एग्रीमेंट के चक्कर में बांधकर कम बजट में काम करा लेना इनकी पॉलिसी बन गई है. जैसे हाथी के दांत दिखाने को और खाने के और होते हैं. उसी तरह भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री है, जिसमें जो सामने दिखता है, वो होता नहीं है. आकांक्षा दुबे तो एक मशहूर कलाकार थी, इसलिए उसकी मौत खबर भी बन गई, इससे पहले ऐसे कितने कलाकार इनकी वजह से मौत के मुंह में समां गए, जिनके बारे में किसी ने आज तक चर्चा नहीं की है. बहुत सारे कलाकार इनके आगे संघर्ष करते करते थक जाते हैं और वापस चले जाते हैं. कुछ लोग बिजनेस करने लगते हैं, तो कुछ गांव जाकर खेती करते हैं. बहुत संघर्ष के बाद कुछ लोग लंबा समय बीताने के बाद सफल हो पाते हैं.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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