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Updated: 04 अक्टूबर, 2022 10:05 PM
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रामायण की एपिक कहानी पर आधारित 'आदिपुरुष' लगभग बनकर तैयार है. फिल्म को अगले साल जनवरी में रिलीज करने की तैयारी है. ओम राउत के निर्देशन में बनी फिल्म का विधिवत प्रमोशन दशहरा से पहले ही शुरू होता नजर आ रहा है. इसके तहत रविवार को श्रीराम की नगरी अयोध्या से फिल्म का टीजर लॉन्च किया है. इसके लिए निर्माताओं ने खूब तैयारियां की थीं. आदिपुरुष की स्टारकास्ट टीजर लॉन्च के दौरान अयोध्या में मौजूद रही. आदिपुरुष भारीभरकम बजट में बनाई गई है. इसे हिंदी के साथ तेलुगु में रिलीज करने की योजना है. फिल्म में प्रभास के अलावा कृति सेनन और सैफ अली खान अहम भूमिकाओं में नजर आने वाले हैं. आदिपुरुष श्रीराम की ही कहानी है- अयोध्या से टीजर आने के बहुत सारे मायने हैं.

अयोध्या रामलला की जन्मभूमि है. मगर यह हैरान करने वाली बात है कि अपनी ही नगरी, अपने ही जन्मस्थान में श्रीराम का कोई भी तीन या चार सौ साल पुराना मंदिर नहीं दिखता. कुछ लोगों का अभी भी कहना है कि बाबर ने श्रीराम का कोई मंदिर नहीं तोड़ा था. अगर बाबर ने मंदिर नहीं तोड़ा था तो यह दुनिया का आठवां अजूबा ही माना जाए कि अयोध्या में राम का ही मंदिर नहीं था. हालांकि खुदाई में मिले तमाम साक्ष्यों से साफ़ हो चुका है कि बाबरी के नीचे मंदिर ही था. बाबर ने राम जन्मभूमि पर बने मंदिर को ढहाकर मस्जिद का निर्माण किया था. इस मामले में लंबी राजनीतिक और कानूनी लड़ाई चली. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के पक्ष में फैसला देकर ऐतिहासिक मामले का निपटारा कर दिया. वहां अब श्रीराम का भव्य मंदिर बनाया जा रहा है.

adipurushआदिपुरुष में प्रभास भगवान श्रीराम की भूमिका निभा रहे हैं.

सिनेमा भी दिखा रही है इतिहास के लिए व्याकुलता

सिनेमा के जरिए दक्षिण और उत्तर का महामिलन हो रहा है और भारत अपनी संस्कृति अपने इतिहास को सहेजने के लिए व्याकुल नजर आ रहा है. लोग अब ऐतिहासिक शर्म से बाहर निकलकर धरोहर को सहेजते और उस पर गर्व करते नजर आ रहे हैं. पहले तो यह था कि लोग अयोध्या के नाम से भी अपना दामन बचाते नजर आते थे. लेकिन अब पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी अयोध्या के मंदिरों में जाकर गर्व से दर्शन करते हैं. अक्षय कुमार जैसे सितारे फिल्मों का शुभारंभ करने पहुंचते हैं और श्रीराम के जीवन पर आधारित प्रभास की फिल्म का तो टीजर ही रामलला के दरबार से लॉन्च हुआ है. आदिपुरुष का टीजर अयोध्या से लॉन्च होना फिल्म का सबसे बड़ा प्रमोशन है. उत्तर-दक्षिण के महामिलन में आदिपुरुष से चोल साम्राज्य की महान कहानी पर बनी PS-1 एक तरह से दुनिया के लिए मुनादी भी है कि भारत आखिर अपने इतिहास से शर्मिंदा क्यों हो?

भारत का इतिहास किसी देश समाज के बर्बर उत्पीड़न का तो है नहीं. अगर बाबर, अकबर और औरंगजेब की बलात्कारी बर्बरता लोगों को शर्म से नहीं भारती और उन्हें रूमानी दिखाकर फ़िल्में बनाई जा सकती हैं फिर भारत अपने मानवीय इतिहास से क्यों भला मुंह मोड़े. अयोध्या नए भारत का प्रतीक है. अगर कोई निर्माता अपनी फिल्म के टीजर को वहां से लॉन्च कर रहा है तो यह भारत के सर्वसमावेशी संस्कृति का ही असर है कि लोग आकर्षित हो रहे. ध्यान होगा कि ब्रह्मास्त्र के लिए भी करण जौहर एंड टीम ने प्रयाग के कुम्भ में कुछ इसी तरह का प्रयोग किया था. तीर्थस्थलों का इस्तेमाल फिल्मों के प्रमोशन के लिए करने का चलन बढ़ रहा है. वैसे मुंबई का फिल्म उद्योग मिली जुली संस्कृति को तवज्जो देता रहा है. बॉलीवुड के तमाम निर्माता-अभिनेता अपनी फिल्मों की सफलता के लिए अजमेर की दरगाह पर जियारत करने जाते रहे हैं.

राजनीति का असर दिख रहा है, कितना लंबा चलेगा यह देखने वाली बात

निश्चित ही इसके पीछे मौजूदा राजनीति को एक बड़ी वजह मान सकते हैं. भारतीय राजनीति में हिंदुत्व पहचान ने स्वीकार्यता पाई है. यह बड़ी सच्चाई है कि चाहे पक्ष हों या विपक्ष- हिंदुत्व की राजनीति ने दलों को आकर्षित किया है. और यह करिश्मा मोदी के नेतृत्व में भाजपा की राजनीतिक सफलता की वजह से ही संभव हुआ. फिल्म इंडस्ट्री ने भी राजनीति के समानांतर वैचारिकी का इस्तेमाल किया है. पौराणिक कहानियों और इतिहास पर फ़िल्में बड़े पैमाने पर बनाई जा रही हैं. इसमें कई ने कामयाबी भी पाई जबकि ऐसी संख्या भी कम नहीं- जिसमें निर्माताओं की लागत तक डूब गई. आदिपुरुष का क्या होगा यह देखने वाली बात रहेगी. सिनेमा की वैचारिकी बदली है. मगर इसकी उम्र कितनी लंबी है, यह देखने वाली बात होगी.

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