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Updated: 05 जून, 2022 03:27 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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बहुत निराशा होती है, जब आप किसी से उम्मीद लगाए बैठे उसका इंतजार कर रहे हों और वो आपकी उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फेर जाए. कुछ ऐसा ही प्रकाश झा की वेब सीरीज 'आश्रम' के तीसरे सीजन को देखने को बाद महसूस हो रहा है. इस वेब सीरीज से बहुत ज्यादा उम्मीद थी. भला हो भी क्यों नहीं 'आश्रम' के पहले और दूसरे सीजन में बाबा निराला और भोपा स्वामी की चकाचौंध भरी दुनिया को देखने के बाद गजब का रोमांच जो महसूस हुआ था. लेकिन तीसरे सीजन में प्रकाश झा ने खुद अपने ही हाथों से इस उपलब्धि को धो दिया है.

दर्शकों को बहुत ज्यादा निराश किया है. आलम ये है कि 10 एपिसोड की इस वेब सीरीज को देखने के दौरान कई बार फॉरवर्ड का बटन दबाना पड़ता है. बीच-बीच में मोबाइल भी चलाने का मन करता है. हर आने वाले एपिसोड से ये उम्मीद रहती है कि अब शायद कुछ अच्छा और नया देखने को मिलेगा, लेकिन अंतिम एपिसोड तक निराशा ही हाथ लगती है. हो सकता है कि पिछले दोनों सीजन का स्तर इतना ऊंचा रहा हो कि उसके आगे तीसरा सीजन फीका नजर आ रहा है.

प्रकाश झा एक मझे हुए फिल्म मेकर माने जाते हैं. वो दर्शकों की नब्ज को पहचानते हैं. तभी तो समय से पहले उन्होंने उन विषयों पर फिल्में बनाई हैं, जिनपर फिल्म इंडस्ट्री में किसी ने सोचा भी नहीं था. उनकी फिल्मों में समसामयिक विषयों और सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता से दिखाया जाता है. उनकी फिल्म 'मृत्युदंड', 'गंगाजल', 'दामुल', 'परिणीति', 'अपहरण', 'राजनीति' और 'आरक्षण' को देखने के बाद इस बात को समझा जा सकता है. 'आश्रम' के साथ जब वो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आए, तो अपनी पहली वेब सीरीज से ही छा गए.

पहले सीजन ने जो रोमांच पैदा किया, दूसरे ने उसे आसमान तक पहुंचा दिया. लोग तीसरे सीजन का बेसब्री से इंतजार करने लगे. लेकिन 'आश्रम 3' ने दर्शकों की उम्मीदों को धाराशाई कर दिया है. 'एक बदनाम आश्रम सीजन 3' वैसी ही गलती है, जैसे उन्होंने 'गंगाजल' के बाद 'जय गंगाजल' बनाकर की थी. इस दोष में निर्देशक के साथ सीरीज के लेखक भी बराबर के भागी हैं. हबीब फैसल, संजय मासूम, अविनाश कुमार और माधवी भट्ट जैसे लेखकों की टीम भी आकर्षण पैदा नहीं कर पाई है.

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कहानी: बाबा को भगवान बनाने का झांसा देती है सोनिया

वेब सीरीज 'एक बदनाम आश्रम सीजन 3' की कहानी में दूसरे सीजन के बाद की कथा को विस्तार देने की कोशिश की गई. बाबा निराला (बॉबी देओल) के चंगुल से निकलने के बाद पम्मी पहलवान (अदिति पोहनकर) अपने पत्रकार दोस्त अक्की (राजीव सिद्धार्थ) के साथ छिप-छिप कर अपनी जान बचा रही है. उसके पीछे बाबा के गुंडे और सरकार की पुलिस लगी हुई है. पम्मी को सब इंस्पेक्टर उजाला (दर्शन कुमार) और डॉक्टर नाताशा (अनुप्रिया गोएनका) का साथ मिल रहे हैं. लेकिन भोपा स्वामी (चंदन रॉय सान्याल) की नजरों से बचकर रहना उसके लिए चुनौती बनती जा रही है.

इधर बाबा और भोपा अपनी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक शक्ति को लगातार बढ़ाते जा रहे हैं. राज्य में हुए चुनाव के बाद बाबा के समर्थन की वजह से हुकुम सिंह (सचिन श्रॉफ) मुख्यमंत्री बन जाता है. उसके साथ की डोर बाबा के हाथों में होती है. इसकी वजह से वो सीएम रहते हुए भी कठपुतली बना रहता है. इससे निजात पाने के लिए वो अपनी दोस्त सोनिया (ईशा गुप्ता) की मदद लेता है. सोनिया एक इमेज बिल्डिंग कंपनी चलाती है.

आश्रम के तीसरे सीजन में ईशा गुप्ता की किरदार सोनिया की एंट्री नई है. वो अपने दोस्त हुकुम सिंह की मदद और अपने बिजनेस के लिए बाबा को फंसाने की तैयारी करती है. इसके लिए उनकी भक्त बनकर आश्रम में जाती है. उसे देखने के बाद भोगी बाबा की लार टपकने लगती है. सोनिया बाबा को भगवान बनने का सपना दिखाती है. उसका कहना है कि वो पूरी दुनिया में निराला की ऐसी छवि बनाएगी कि लोग उसे भगवान मानने लगेंगे. भगवान निराला. दूसरी तरफ पम्मी पहलवान अपने साथ हुई ज्यादती का बदला लेने के लिए तड़प रही होती है.

उसके गांव वाले उसे एक पिस्तौल मुहैया कराते हैं. एक प्रोग्राम में मौका देखकर पम्मी बाबा पर गोलियां चला देती है, लेकिन मजबूत सुरक्षा की वजह से बाबा बच जाता है. लेकिन इस घटना के बाद वो बुरी तरह से डर जाता है. अक्की किसी तरह पम्मी को वहां से भगाकर बाहर ले जाता है. क्या बाबा निराला भगवान बन पाता है? क्या हुकूम सिंह और सोनिया अपने इरादों पर सफल हो पाते हैं? क्या पम्मी अपना बदला ले पाती है? ये जानने के लिए आपको वेब सीरीज देखनी चाहिए.

समीक्षा: बॉबी देओल की मेहनत पर प्रकाश झा ने फेरा पानी

वेब सीरीज 'एक बदनाम आश्रम सीजन 3' का सबसे मजबूत पक्ष है बॉबी देओल और चंदन रॉय सान्याल की जबरदस्त एक्टिंग. दोनों की जुगलबंदी पहले सीजन से तीसरे सीजन तक वैसी ही चली आ रही है. बाबा निराला के किरदार में बॉबी देओल और भोपा स्वामी के किरदार में चंदन रॉय सान्याल ने दर्शकों को निराश नहीं किया है. ईशा गुप्ता इस सीजन में नई आई हैं, लेकिन उनको जिस तरह के किरदार में लाया गया है, उसमें वो प्रभावी लगी हैं. पम्मी पहलवान के किरदार में अदिति पोहनकर ने दूसरे सीजन में जिस तरह का अभिनय किया था, वो तीसरे में बिल्कुल भी नहीं दिखता है.

उनका किरदार अहम होते हुए भी उनके कमजोर अभिनय प्रदर्शन की वजह से निराश करता है. सब इंस्पेक्टर उजाला के किरदार में इस बार दर्शन कुमार के पास भी करने के लिए कुछ भी नहीं है. वो बस बुलेट दौड़ाते ही नजर आते हैं. उनका एक सीन बस प्रभावी लगा है, जब वो अपने नाराज पिता के रिटायरमेंट पार्टी में पहुंचते हैं और उनको गले लगाकर रोते हैं. अध्ययन सुमन दूसरे सीजन में जिस तरह से लाइमलाइट में आए, तीसरे में उसी तरह प्रभावहीन लगे हैं.

दूसरा सीजन जिन किरदारों की वजह से हिट हुआ था, उन सभी को प्रकाश झा ने इस सीजन में हाशिए पर कर दिया है. नए किरदारों को उभरने का मौका दिया गया है, लेकिन सोनिया के किरदार में ईशा गुप्ता को छोड़कर कोई भी अपना असर नहीं दिखा पाया है. 10 एपिसोड की पूरी वेब सीरीज खींची हुई सी लगती है. जबरन कहानी को विस्तार दिया गया है, जो बोर करता है. कहानी की रफ्तार भी उसी अनुपात में बहुत ज्यादा सुस्त है. कई चीजें तो लॉजिक से परे भी दिखाई गई है, जो प्रकाश झा जैसे फिल्म मेकर से बिल्कुल भी आशा नहीं की जा सकती है.

जैसे कि एक बहुत ही तेज तर्रार पत्रकार अक्की जो कि पम्मी का साथ दे रहा है, वो जानता है कि उसने फोन ऑन किया तो उसकी लोकेशन ट्रेस हो जाएगी. इसके बावजूद वो फोन ऑन करके बात करता है. दूसरा दो लोग फरार है, पम्मी और अक्की, लेकिन पुलिस सिर्फ पहलवान की तस्वीरों का पोस्टर लगाकर उसकी तलाश करती है. ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जो गले नहीं उतरती. अभी सीजन 3 के सदमे से उबर भी नहीं पाए हैं, चौथे सीजन का टीजर रिलीज कर दिया गया है. समझ नहीं आ रहा इसे दवा समझे या फिर दर्द का एक और झटका. बहरहाल चौथे सीजन के ऊपर इस पूरी वेब सीरीज की इज्जत बचाने का दारोमदार है. यदि आपने दो सीजन देखा है, तो ही तीसरा देखिएगा.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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