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Updated: 04 जुलाई, 2018 09:02 PM
अनंत कृष्णन
अनंत कृष्णन
  @ananthkrishnan
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सेंट्रल बीजिंग के सिनेमा हॉल के बाहर मंगलवार की शाम के शो के लिए भीड़ को इंतजार में खड़े देखना असामान्य था. लेकिन लोकप्रिय चीनी अभिनेता और निर्देशक जू झेंग की डार्क कॉमेडी का जादू ऐसा है कि लोगों ने इसकी पहली स्क्रीनिंग देखने के लिए अपना काम जल्दी खत्म किया और फिल्म देखने के लिए सिनेमा हॉल पहुंच गए. और दो घंटे बाद, फिल्म के क्रेडिट रोल को देखकर दर्शकों ने खड़े होकर तालियां बजाईं.

फिल्म की जो चीज सबसे उल्लेखनीय है और लोगों के दिलों को छू गई वो है उसका एक अलग हटकर विषय है: चीन में "अवैध" कैंसर की भारतीय दवाओं की विशाल लोकप्रियता, जहां पश्चिमी दवाओं की बहुत ज्यादा कीमत की वजह से लोगों में निराशा फैली है. यह एक संवेदनशील मुद्दा है और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि जू की इस फिल्म के कई हिस्से को सेंसर बोर्ड ने भी पास कर दिया.

china, cancerकैंसर की दवाई के बहाने चीनी सरकार को आईना दिखाया

फिल्म व्यवसायी लू योंग की सच्ची कहानी पर आधारित है. लू योंग की भूमिका जू ने निभाई है. लू योंग को 'नकली' दवाओं को बेचने के लिए गिरफ्तार किया गया था, क्योंकि चीनी कानून भारतीय जेनेरिक दवाओं को जिन्हें बिक्री के लिए अनुमोदित नहीं किया गया है उन्हें गैरकानूनी मानता है.

2002 में खुद लू को ल्यूकेमिया डायग्नोस किया गया था. और उन्हें नोवार्टिस की एक दवा ग्लीवेक लेने की सलाह दी गई थी. इसकी एक छोटी बोतल के लिए 25,000 युआन (2.5 लाख रुपये) का खर्च आता है. 70 लाख रुपये खर्च करने के बाद लू के पैसे खत्म हो गए और इसके बाद थक कर उन्होंने एक भारतीय दवा वीनाट लेना चुना. वीनाट, ग्लीवेक के समान ही प्रभावी है, लेकिन इसकी कीमत ग्लीवेक से दस गुणा कम है.

लू ने इसके बाद सैकड़ों अन्य कैंसर पीड़ितों की मदद वीनाट से की. इसके लिए उन्हें जुलाई 2014 में गिरफ्तार कर लिया गया. चाइना डेली की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने लू के स्वास्थ्य और दूसरे मरीजों की मदद को देखते हुए उनके लिए उदार रुख अपनाया. सुप्रीम कोर्ट ने बाद में न्यायिक व्याख्या कर घोषणा की कि बगैर लाइसेंस वाली विदेशी दवाओं जिससे मरीजों को किसी तरह की कोई दिक्कत न हो की छोटी संख्या में बिक्री को अपराध नहीं माना जाएगा.

सह-निदेशक वेन मुये और जू, जिन्होंने फिल्म का निर्माण भी किया, कहानी को शक्तिशाली तरीके से बताते हैं. चीनी मरीजों की दुर्दशा को ह्यूमर में पिरोकर बहुत ही सटीक तरीके से पेश किया है. जिसने जू को चीन में लोकप्रिय कर दिया.

फिल्म के कुछ सीन मुंबई में फिल्माए गए हैं. यहां फिल्म का नायक भारतीय फार्मास्युटिकल फर्म के कार्यकारी को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि वो उसे चीन में दवाई का सेल्स रिप्रेजेंटेटिव बना दे. उसके बाद दवाओं की तस्करी जहाजों के जरिए शंघाई में की जाती है.

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एक तरह से देखें तो फिल्म ने सेंसर को पास कर लिया ये उल्लेखनीय है. यह फिल्म नोवार्टिस और चीन की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर भी प्रहार करती है. फिल्म में डॉक्टरों और पुलिस अधिकारियों के भी कठोर चेहरे को दिखाया गया है. नोवार्टिस के अधिकारियों के साथ शंघाई पुलिस के जांचकर्ता भी बैठकों में शामिल होते हैं और फिल्म में दिखाया गया है कि चीन में वीनेट की प्रसिद्धि रोकने के लिए वो उपाय खोजते हैं.

यहां तक की कैंसर रोगियों को नोवार्टिस के कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हुए दिखाया है. और एक बहुत ही शक्तिशाली सीन में जू एक युवा कैंसर पीड़ित के लिए पुलिस वाले से लड़ जाता है और पूछता है, "उसका अपराध क्या है? वह सिर्फ जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहा था."

और फिल्म एक आशावादी नोट पर समाप्त होती है. क्रेडिट रोल में इस तरह की दवाओं की कीमतें कम करने के लिए शी जिनपिंग सरकार द्वारा घोषित 2018 सुधारों की सूची दी गई और ऐसे मरीजों के लिए राज्य बीमा कवर के तहत भी शामिल किया गया है. ये एक ऐसा समझौता था जो शायद निर्देशक को चीन में फिल्म रिलीज (यह स्पष्ट नहीं है कि नई नीति वास्तव में लागू की गई है) कराने के लिए शायद करना ही था.

लेकिन फिर भी उससे फिल्म की शानदार कहानी को कोई फर्क नहीं पड़ता. और फिल्म की जबरदस्त कहानी से इतना तो तय है कि भारतीय दवाएं चीन में अभी कुछ समय के लिए बातचीत का संभावित विषय होने जा रही हैं.

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लेखक

अनंत कृष्णन अनंत कृष्णन @ananthkrishnan

लेखक चीन में इंडिया टुडे के संवाददाता हैं.

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