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Updated: 27 फरवरी, 2021 07:44 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित किसी फिल्म या वेब सीरीज को बनाने के लिए सबसे बेसिक काम तथ्यों और प्रामाणिकता पर गहन रिसर्च करना होता है. लेकिन महेश मांजरेकर वेब सीरीज '1962: द वॉर इन द हिल्स' (1962 The War in The Hills) बनाते समय इस बेसिक सिद्धांत पर ही विफल रहे है, जबकि यह भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण कहानियों में से एक है. साल 1962 में हुए चीन-भारत युद्ध पर आधारित इस वॉर ड्रामे में अभय देओल, माही गिल, सुमित व्यास, आकाश ठोसर, रोहन गंडोत्रा, अनूप सोनी, मियांग चांग, हेमल इंगल, रोशेल राव, सत्या मांजरेकर और गीतिका विद्या ओहल्यान की मुख्य भूमिका है. इतने बड़े स्टारकास्ट से सजी इस वेब सीरीज को महेश मांजरेकर ने निर्देशित किया है.

ichowk-650_022621074630.jpgअभय देओल के बारे में क्या कहें, ऐसा लगता है कि उनको गलत रोल दे दिया गया है.

डिज़्नी प्लस हॉटस्टार ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई इस वेब सीरीज के 10 एपिसोड हैं, जिनकी अवधि 40 मिनट की है. इतने बड़े विषय, लंबी-चौड़ी स्टारकास्ट, नामचीन निर्देशक और लेखक के बावजूद ये वेब सीरीज हर स्तर पर प्रभावहीन है. एक्टिंग, राइटिंग से लेकर डायरेक्शन तक, हर डिपार्टमेंट ने नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली कहावत चरितार्थ है. सबसे ज्यादा निराश किया है महेश मांजरेकर और अभय देओल ने. महेश मांजरेकर एक शानदार निर्देशक के साथ ही दमदार अभिनेता भी हैं, लेकिन इस वेब सीरीज में ऐसा लगता है कि उन्होंने बेमन काम किया है. न तो निर्देशन पर पकड़ दिखती है, न ही कलाकारों से उनका 100 फीसदी काम निकाल पाए हैं. अभय देओल के बारे में क्या कहें, ऐसा लगता है कि उनको गलत रोल दे दिया गया है.

मुझे ठीक से याद है, जिस दिन वेब सीरीज '1962: द वॉर इन द हिल्स' का ट्रेलर रिलीज हुआ था, उस दिन महेश मांजरेकर ने खूब ज्ञान दिया था. निर्देशक ने कहा था, 'वॉर सीरीज़ को सिर्फ़ जंग तक सीमित नहीं रखा गया है, इसमें सैनिकों के पराक्रम के साथ उनके परिवारों पर भी फोकस किया गया है. हमारे फौजी भी इंसान हैं और उनके भी जज़्बात होते हैं. आर्मी में काम करने वालों की पत्नियां भी एक तरह से आर्मी का हिस्सा बन जाती हैं. एक फौजी की ज़िंदगी में कई लोगों का योगदान होता है. हमने इस वेब सीरीज़ को किसी फ़िल्म की तरह ट्रीट किया गया है. ओटीटी की तरह नहीं.' बात आपने ठीक कही थी महेश बाबू, लेकिन खुद उस पर अमल नहीं कर पाए. अफसोस आपकी बात, वेब सीरीज में जज्बात बनकर कहीं नहीं उतर पाई है.

वेब सीरीज की कहानी

1962 का साल चीन-भारत युद्ध के लिए ही जाना जाता है. उस वक्त देश की हालत बहुत खराब थी. भारत और चीन सीमा पर बहुत तनाव था. लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में चीनी सीमा भारत में लगातार घुसपैठ कर रही थी. 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा लगाने वाले राजनेता उस वक्त मौन साधे हुए थे. उस समय मेजर सूरज सिंह के नेतृत्व में सेना की बटालियन सी-कंपनी 3000 चीनी सैनिकों से लद्दाख के दुर्गम इलाकों में जंग लड़ी थी. इस जंग की ख़ासियत यह है कि सिर्फ़ 125 भारतीय सैनिक हजारों की संख्या में मौजूद चीनी सेना के सामने साहस के साथ उतरे थे, जिसमें से 123 शहीद हुए थे. इसी सच्ची घटना पर आधारित इसकी कहानी है. इसमें अभय देओल ने मेजर सूरज सिंह का किरदार निभाया है. माही गिल उनकी पत्नी शगुन सिंह के रोल में हैं.

वेब सीरीज की शुरूआत एक डिस्क्लेमर के साथ होती है. इसमें लिखा गया है कि ये फिल्म 1962 की जंग पर आधारित नहीं, बल्कि उसका बैकड्रॉप लेकर बनाई गई है. यानि उस समय के हालात को लेकर एक काल्पनिक कहानी रची गई है. चीनी सेना की ओर से हो रहे लगातार हमले और घुसपैठ के बाद मेजर सूरज सिंह के नेतृत्व में सेना की एक कंपनी तैयार की जाती है, जो दुश्मनों से लोहा लेने सीमा पर जाती है. सी-कंपनी के साथ सूरज सिंह चीनी सेना से सारे पोस्ट वापस लेने की कोशिश करते हैं, लेकिन सीमित संसाधनों की वजह से पोस्ट में उन्हें पीछे हटना पड़ता है. यह भारत के लिए एक झटके की तरह होता है, लेकिन सभी को अंदाजा होता है कि चीन बड़े युद्ध की तैयारी कर रहा है. इसी बीच सैनिकों की पर्सनल लाइफ की कहानी शुरू हो जाती है.

ज्यादातर सैनिक हरियाणा के रेवाड़ी गांव के रहने वाले हैं. युद्ध से पहले जवान अपने गांव छुट्टियों में जाते हैं. वहां अपने परिवार, प्यार और जिम्मेदारियों के साथ दिन गुजारते हैं. वहां भी उन्हें जंग लड़नी पड़ती है. किसी को अपना प्यार पाने के लिए, तो किसी को अपने अंदर की ही कमियों से. परिवार के साथ कुछ ही दिन वो गुजार पाते हैं कि चीन की ओर से लगातार हो रहे हमले की वजह से जल्द ही उन्हें सरहद पर वापस बुला लिया जाता है. लद्दाख की दुर्गम घाटियों पर अनेक विपरीत परिस्थितियों से लड़ते हुए सी-कंपनी बंदूक की आखिरी गोली तक चीन की सेना का सामना करती है. इस तरह 125 बहादुर भारतीय सैनिकों ने 3 हजार चीनियों का डटकर मुकाबला किया. अपने प्राणों की आहूती दे दी, लेकिन देश पर आंच नहीं आने दिया.

महेश मांजरेकर का मजाक

वेब सीरीज की कहानी जोरदार है, लेकिन ट्रीटमेंट उतना ही खराब है. यहां तक की बेसिक बातों पर भी ध्यान नहीं दिया गया है. जैसा कि कहानी से पता चलता है कि कंपनी के ज्यादातर जवान हरियाणा के रहने वाले हैं, लेकिन उनमें से कोई भी हरियाणवी बोलता हुआ नजर नहीं आता. यहां तक कि उनके बोलचाल की टोन भी खड़ी है. गांवों का बैकग्राउंड भी गांव जैसा नहीं दिखता है. सबसे मजेदार तो युद्ध के दृश्य हैं. गली के गुंडे जैसे आपस में लड़ते हैं, उस तरह तो युद्ध का फिल्मांकन किया गया है. चीनी सेना गुंडे की तरह नजर आती है. उनका लीडर गुंडों का सरदार. मतलब मजाक की पराकाष्ठा पार कर दी गई है. ऐसा लगता है कि किसी ने जबरन महेश मांजरेकर से इस वेब सीरीज का निर्देशन कराया है. हालांकि, कुछ कलाकारों ने बेहतर अभिनय किया है.

कई लोग इस वेब सीरीज को इसलिए देखेंगे या इसकी प्रशंसा करना चाहेंगे, क्योंकि ये हमारे देश के बहादुर सैनिकों के बारे में है. लेकिन हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं कि वेब सीरीज निर्माता पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) और युद्ध की मानवीय लागत जैसी थीम को भी टैकल नहीं कर पाए हैं, केवल देशभक्ति की भावनाओं को भुनाने की कोशिश करते हैं. कुल मिलाकर 1962: द वार इन द हिल्स एक बेहद निराशाजनक वॉर ड्रामा है. खासकर जब हमने विकी कौशल स्टारर उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक जैसी फिल्म ऐसे ही विषय पर पहले ही देख ली हो, तो हमें उम्मीद थी कि यह वेब सीरीज एक बेहतर वॉर फिल्म साबित होगी. आप इसमें दिखाए गए किसी भी पात्र से सहानुभूति नहीं रख पाएंगे. अलबत्ता वेब सीरीज देखेंगे तो बोर हो जाएंगे.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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