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काश, जुबां जितना ही बड़ा होता 'पुणे वालों' का दिल !

    • गगन सेठी
    • Updated: 21 फरवरी, 2017 01:26 PM
  • 21 फरवरी, 2017 01:26 PM
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किसी खिलाड़ी को टीम में रखने या कप्तान बनाने का फैसला पुणे आईपीएल टीम के मालिक संजीव गोयनका के पास है. लेकिन, जिस अंदाज में उन्‍होंने धोनी पर फैसला सुनाया है, उसका हक तो उन्‍हें भी नहीं है.

गोयनका साहब बड़े उद्योगपति हैं. यह भी सच है कि पुणे की टीम उन्होंने खरीदी है. यह भी सच है कि किसी खिलाड़ी को टीम में रखने या कप्तान बनाने का फैसला भी उनका है, क्योंकि मामला करोड़ों के इनवेस्टमेंट से जुड़ा है. सीधा सा फॉर्मूला है- पैसा आपका, फैसला भी आपका लेकिन माफ कीजिएगा गोयनका साहब, जिस अंदाज में आपने फैसला सुनाया है, वो सुनाने का हक आपको भी नहीं है. था तो वैसे 2009 में विजय माल्या के सीईओ को भी नहीं कि वो एसी ऑफिस से बाहर आकर भारतीय क्रिकेट के दिग्गज राहुल द्रविड़ को बैंगलोर रॉयल चैलेंजर्स की कप्तानी से बर्खास्तगी का फरमान थमा दें. था तो शाहरुख खान एंड कंपनी को भी नहीं जिन्होंने तारीफों के पुल बांधते हुए सौरव गांगुली को कप्तानी से हटा दिया था. 

सेल-परचेज के ग्राफ से किसी कंपनी की कामयाबी तोलने वाले सीईओ कैसे भारतीय क्रिकेट के किसी दिग्गज को हटाने का फैसला ले सकते हैं. इसीलिए, आईपीएल में किसी भारतीय दिग्गज को कप्तानी से हटाने का एक सम्मानजनक तरीका खोजने का वक्त आ गया है.

जर्सी लॉन्च के दौरान की फोटो जब धोनी टीम के कप्तान थे और टीम के सीईओ संजीव गोयनका साथ में थे.

वैसे देने को तो आईपीएल चलाने वाले सीईओ हजार तर्क दे सकते हैं कि ये फॉर्मेट भावनाओं का नहीं, बिजनेस के भरोसे का है लेकिन सच तो यह है कि भावनाएं नहीं होती तो स्टेडियम भरे नहीं होते, भावनाएं नहीं होती तो इतनी फैन फॉलोइंग नहीं होती और फिर खिलाड़ियों पर इतना पैसा नहीं बरस रहा होता. इतने बड़े खिलाड़ी, इतने काबिल कप्तान की बेइज्जती का हक किसी उद्योगपति को कैसे हो सकता है. संजीव गोयनका जैसे मालिकों ने तो जो किया है, वो तो बीसीसीआई ने भी कभी नहीं किया.

विवादों के बीच सौरव गांगुली चले गए, फुटवर्क के सवालों के बीच सचिन तेंदुलकर चले गए, कप्तान के साथ खींचतान की अटकलों के बीच...

गोयनका साहब बड़े उद्योगपति हैं. यह भी सच है कि पुणे की टीम उन्होंने खरीदी है. यह भी सच है कि किसी खिलाड़ी को टीम में रखने या कप्तान बनाने का फैसला भी उनका है, क्योंकि मामला करोड़ों के इनवेस्टमेंट से जुड़ा है. सीधा सा फॉर्मूला है- पैसा आपका, फैसला भी आपका लेकिन माफ कीजिएगा गोयनका साहब, जिस अंदाज में आपने फैसला सुनाया है, वो सुनाने का हक आपको भी नहीं है. था तो वैसे 2009 में विजय माल्या के सीईओ को भी नहीं कि वो एसी ऑफिस से बाहर आकर भारतीय क्रिकेट के दिग्गज राहुल द्रविड़ को बैंगलोर रॉयल चैलेंजर्स की कप्तानी से बर्खास्तगी का फरमान थमा दें. था तो शाहरुख खान एंड कंपनी को भी नहीं जिन्होंने तारीफों के पुल बांधते हुए सौरव गांगुली को कप्तानी से हटा दिया था. 

सेल-परचेज के ग्राफ से किसी कंपनी की कामयाबी तोलने वाले सीईओ कैसे भारतीय क्रिकेट के किसी दिग्गज को हटाने का फैसला ले सकते हैं. इसीलिए, आईपीएल में किसी भारतीय दिग्गज को कप्तानी से हटाने का एक सम्मानजनक तरीका खोजने का वक्त आ गया है.

जर्सी लॉन्च के दौरान की फोटो जब धोनी टीम के कप्तान थे और टीम के सीईओ संजीव गोयनका साथ में थे.

वैसे देने को तो आईपीएल चलाने वाले सीईओ हजार तर्क दे सकते हैं कि ये फॉर्मेट भावनाओं का नहीं, बिजनेस के भरोसे का है लेकिन सच तो यह है कि भावनाएं नहीं होती तो स्टेडियम भरे नहीं होते, भावनाएं नहीं होती तो इतनी फैन फॉलोइंग नहीं होती और फिर खिलाड़ियों पर इतना पैसा नहीं बरस रहा होता. इतने बड़े खिलाड़ी, इतने काबिल कप्तान की बेइज्जती का हक किसी उद्योगपति को कैसे हो सकता है. संजीव गोयनका जैसे मालिकों ने तो जो किया है, वो तो बीसीसीआई ने भी कभी नहीं किया.

विवादों के बीच सौरव गांगुली चले गए, फुटवर्क के सवालों के बीच सचिन तेंदुलकर चले गए, कप्तान के साथ खींचतान की अटकलों के बीच वीरेंद्र सहवाग चले गए, एक फॉर्मेट से धोनी भी जा ही चुके हैं...इन सबके बारे में दबी जुबान ना जाने कितने ही बातें कहीं गई लेकिन सार्वजिनक तौर पर सम्मान की लकीर किसी ने नहीं लांघी. आईपीएल के मालिकों को छोड़कर. तभी तो सचिन और सहवाग जैसे खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय करियर को अलविदा कहते वक्त मीडिया के सामने नहीं आए. दो-चार लाइन लिखीं और भेज दी मीडिया को ताकि गलती से भी, जी हां गलती से भी कोई कड़वी बात जुबां पर न आ जाए.

क्रिकेट की बहुत बड़ी-बड़ी बातें पुणे के मालिक ने की लेकिन वो दिल बड़ा करना भूल गए. वो ये भूल गए कि बड़े खिलाड़ी को हटाने पर पर क्या कहा जाता है और क्या दिल में ही रख लिया जाता है. लेकिन वह दिल नहीं, दिमाग से बोलते रहे और जुबां से वो भी निकला जो नहीं निकलना चाहिए था. वो भी उस कप्तान के लिए जो इसी आईपीएल में दो बार अपनी टीम को चैंपियन बना चुका है और चार बार रनर-अप.

उन्होंने 2016 के डेढ़ महीने के प्रदर्शन पर फरमान सुना दिया. जी हां, 14 मैचों के आधार पर. चलिए देखते हैं कि वो कंगारू इन्हें कितनी कामयाबी दिला पाएगा जो खुद भारत में 0-4 की हार का काउंटडाउन सुन रहा है. पुणे मैनेजमेंट यह भी भूल गया कि आईपीएल में आज भी धोनी भारत में किसी विदेशी खिलाड़ी के मुकाबले सबसे बड़े 'क्राउडपुलर' हैं.

खैर, छोड़िए... जाने दीजिए, आईपीएल मालिकों के कॉरपोरेट ऑफिस से बाहर की दुनिया जानती है कि धोनी की कामयाबी और फैन फॉलोइंग कागज के किसी करार से नहीं तोली जा सकती. मालिक कप्तान तो बदल सकते हैं लेकिन उन दिलों का क्या जो किसी दिग्गज के सम्मान की धड़कनों से ही धड़कते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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