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जब आमिर खान ने अपने कुत्ते का नाम शाहरुख रखा था

    • सुशोभित सक्तावत
    • Updated: 21 दिसम्बर, 2016 03:56 PM
  • 21 दिसम्बर, 2016 03:56 PM
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नाम केवल नाम नहीं होते, उनकी एक प्रतीकात्मकता होती है, एक विशेष ध्वनि होती है, नाम में बहुत कुछ रखा है.

साल 2008-09 में "गजिनी" और "थ्री इडियट्स" जैसी फिल्मों से अधिकृत रूप से शाहरुख खान के सुपरस्टारडम को ओवरटेक करने के दौरान जब आमिर खान को वास्तविक "किंग खान" कहा जाने लगा था, तब आमिर ने एक चर्चित ब्लॉग लिखा था, जिसमें सभी को चौंकाते हुए उन्होंने कहा था कि उनके पालतू कुत्ते का नाम "शाहरुख" है!

 आमिर ने अपने कुत्ते का नाम शाहरुख रखा था

आप कह सकते थे कि

1) अपने कुत्ते का नामकरण आमिर का "निजी निर्णय" है.

2) शाहरुख फ़ारसी राजशाही को प्रदर्शित करने वाला केवल एक नाम है, जरूरी नहीं उसका ताल्लुक़ इसी नाम वाले आमिर के प्रतिद्वंदी सितारे से हो.और इसके बावजूद यह दिन की रौशनी की तरह साफ था कि आमिर अपने उस ब्लॉग के जरिये क्या संदेश देना चाह रहे थे. इससे शाहरुख भी एकबारगी हकबका गए थे.

ये भी पढ़ें- करीना के बच्चे के साथ ये क्रूर मजाक है !

नाम केवल नाम नहीं होते, उनकी एक प्रतीकात्मकता होती है, एक विशेष ध्वनि होती है, उनके etymological connotations होते हैं. नाम में बहुत कुछ रखा है. नामों का...

साल 2008-09 में "गजिनी" और "थ्री इडियट्स" जैसी फिल्मों से अधिकृत रूप से शाहरुख खान के सुपरस्टारडम को ओवरटेक करने के दौरान जब आमिर खान को वास्तविक "किंग खान" कहा जाने लगा था, तब आमिर ने एक चर्चित ब्लॉग लिखा था, जिसमें सभी को चौंकाते हुए उन्होंने कहा था कि उनके पालतू कुत्ते का नाम "शाहरुख" है!

 आमिर ने अपने कुत्ते का नाम शाहरुख रखा था

आप कह सकते थे कि

1) अपने कुत्ते का नामकरण आमिर का "निजी निर्णय" है.

2) शाहरुख फ़ारसी राजशाही को प्रदर्शित करने वाला केवल एक नाम है, जरूरी नहीं उसका ताल्लुक़ इसी नाम वाले आमिर के प्रतिद्वंदी सितारे से हो.और इसके बावजूद यह दिन की रौशनी की तरह साफ था कि आमिर अपने उस ब्लॉग के जरिये क्या संदेश देना चाह रहे थे. इससे शाहरुख भी एकबारगी हकबका गए थे.

ये भी पढ़ें- करीना के बच्चे के साथ ये क्रूर मजाक है !

नाम केवल नाम नहीं होते, उनकी एक प्रतीकात्मकता होती है, एक विशेष ध्वनि होती है, उनके etymological connotations होते हैं. नाम में बहुत कुछ रखा है. नामों का इस्तेमाल मिसाइल हमलों की तरह भी किया जा सकता है. यह अनिवार्यतः एक निजी, निरापद घटना नहीं होती और पूरी तरह से निजी भी कुछ नहीं होता. हर संदेश के परिणाम भी होते हैं.

मैंने गौतम बुद्ध के नाम पर बेटे का नाम "तथागत" रखा था, जिसे बाद में बदलकर "समाहित" कर लिया. "तथागत" में निहित विराट अर्थवत्ता और गुरुतर ध्वनि से मैं उतना सहज नहीं हो पा रहा था, जितना एक पिता को बेटे का नाम पुकारते होना चाहिए.

जब "तथागत" असहज कर सकता है, तो "तैमूर" तो विचलित कर देने में सक्षम होना चाहिए! होना ही चाहिए. क्योंकि नाम "निजी" परिघटना नहीं, बल्कि वह तो निजी की "सार्वजनिकता" का पहला पड़ाव है. और सार्वजनिकता के अपने दायित्व होते हैं.

ये भी पढ़ें- मेरे गांव में थे एक विभीषण झा, लोगों ने 'तैमूर' सा ही ट्रीट किया

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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