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मेरे गांव में थे एक विभीषण झा, लोगों ने 'तैमूर' सा ही ट्रीट किया

    • सुशांत झा
    • Updated: 21 दिसम्बर, 2016 10:27 AM
  • 21 दिसम्बर, 2016 10:27 AM
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तैमूर नाम सैफ-करीना ने इसलिए रखा क्योंकि दोनों के नैन ओमकारा के दौरान लड़े थे और सैफ लंगड़ा त्यागी थे. इतिहास में सबसे मशहूर लंगड़ा तैमूरलंग हुआ तो नाम तैमूर रख दिया गया !

मेरे एक संस्कृत के शिक्षक थे, विभीषण झा. बड़े प्यारे शिक्षक थे. लेकिन उनका नाम ऐसा था जो पूरे इलाके में इकलौता था. शायद उनके मां-बाप के आलावा पूरे समाज ने मौन रूप से उस नाम के लिए उन्हें माफ नहीं किया. मैंने जब चाचा से पूछा तो उनका कहना था विभीषण दगाबाज था, ऐसे नाम अपने यहां नहीं रखते. उसने अपने भाई का खेमा छोड़कर राम का पक्ष ले लिया था!

मेरे इलाके में कुछ नाम नहीं रखे जाते, कुछ नाम पूरे भारत में नहीं रखे जाते. मसलन हमारे यहां बेटियों का नाम सीता, मैथिली या वैदेही नहीं रखा जाता, क्योंकि लंबे समय तक दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनके साथ बहुत अन्याय भी हुआ. हमारा समाज अभी तक उसके प्रति अपने तरीके से मौन विरोध जताता रहा है. वहीं हाल दुर्योधन, दु:शासन नाम का भी है. ये नाम भी नहीं रखा जाता. हालांकि 'महाभारत की एक सांझ' नामकी कहानी के लेखक ने उसे सुयोधन कहा है और ये दर्शाने का प्रयास किया है कि दुर्योधन नाम दरअसल बाद के कथाकारों की साजिश थी जिसने पराजित के लिए ये अपमानना-वश लिखा था. इतिहास के साथ छेड़छाड़ की वैसे भी सुदीर्घ और स्थायी परंपरा रही है.

 

मेरे इलाके में पहले के जमाने में गौतम या सिद्धार्थ नाम भी नहीं रखते थे. एक कारण ये था कि गौतम बुद्ध घर छोड़कर, बाल-बच्चों को तजकर सन्यासी हो गए थे और दूसरा ये कि हो सकता है कि बौद्ध धर्म के अवसान के बाद ऐसे नाम रखने पर घोषित-अघोषित पाबंदी लगा दी गई हो.

यानी फंडा ये हुआ कि समाज के लिए खलनायक या दुर्भाग्यजनक या वैचारिक विरोधियों के नाम नहीं रखे गए. हां, सफल नाम रखे जाते रहे और अभी भी रखे जाते हैं.

कहीं पढ़ रहा था कि लोग अपने बच्चों का नाम गूगल और ऊबर तक रख रहे हैं. किसी ने...

मेरे एक संस्कृत के शिक्षक थे, विभीषण झा. बड़े प्यारे शिक्षक थे. लेकिन उनका नाम ऐसा था जो पूरे इलाके में इकलौता था. शायद उनके मां-बाप के आलावा पूरे समाज ने मौन रूप से उस नाम के लिए उन्हें माफ नहीं किया. मैंने जब चाचा से पूछा तो उनका कहना था विभीषण दगाबाज था, ऐसे नाम अपने यहां नहीं रखते. उसने अपने भाई का खेमा छोड़कर राम का पक्ष ले लिया था!

मेरे इलाके में कुछ नाम नहीं रखे जाते, कुछ नाम पूरे भारत में नहीं रखे जाते. मसलन हमारे यहां बेटियों का नाम सीता, मैथिली या वैदेही नहीं रखा जाता, क्योंकि लंबे समय तक दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनके साथ बहुत अन्याय भी हुआ. हमारा समाज अभी तक उसके प्रति अपने तरीके से मौन विरोध जताता रहा है. वहीं हाल दुर्योधन, दु:शासन नाम का भी है. ये नाम भी नहीं रखा जाता. हालांकि 'महाभारत की एक सांझ' नामकी कहानी के लेखक ने उसे सुयोधन कहा है और ये दर्शाने का प्रयास किया है कि दुर्योधन नाम दरअसल बाद के कथाकारों की साजिश थी जिसने पराजित के लिए ये अपमानना-वश लिखा था. इतिहास के साथ छेड़छाड़ की वैसे भी सुदीर्घ और स्थायी परंपरा रही है.

 

मेरे इलाके में पहले के जमाने में गौतम या सिद्धार्थ नाम भी नहीं रखते थे. एक कारण ये था कि गौतम बुद्ध घर छोड़कर, बाल-बच्चों को तजकर सन्यासी हो गए थे और दूसरा ये कि हो सकता है कि बौद्ध धर्म के अवसान के बाद ऐसे नाम रखने पर घोषित-अघोषित पाबंदी लगा दी गई हो.

यानी फंडा ये हुआ कि समाज के लिए खलनायक या दुर्भाग्यजनक या वैचारिक विरोधियों के नाम नहीं रखे गए. हां, सफल नाम रखे जाते रहे और अभी भी रखे जाते हैं.

कहीं पढ़ रहा था कि लोग अपने बच्चों का नाम गूगल और ऊबर तक रख रहे हैं. किसी ने फेसबुक और हैशटैग भी रखा है. कुछ लोग व्यंग्य में भी नाम रखते थे. जैसे अमेरिका के किसी नेता ने अपनी कुतिया का नाम 'इंडिया' रखा था. यों मधुबनी में कम्यूनिस्ट पार्टी के सुनहरे दौर में मेरे कॉमरेड मामा ने भी अपने कुत्ते का नाम 'रीगन' रखा था. रीगन उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति थे.

ये भी पढ़ें- करीना के बच्चे के साथ ये क्रूर मजाक है !

कई कम्यूनिस्टों ने अपने बेटे का नाम स्टालिन, लेनिन और माओ रख लिया. हालांकि हिटलर नाम लोग नहीं रखते. पता नहीं मुसोलिनी रखते हैं या नहीं. गांव में मेरे यहां जो कामवाली थी, उसकी बेटी का नाम अमेरिका था. मेरे ननिहाल में एक चायवाले का नाम लिंकन था. हमलोग बहुत हंसते थे, लेकिन मोदी जब से पीएम बने हैं, तो लगता है कि नाम की भी कोई तासीर होती होगी!

मेरे इलाके में सोम से लेकर शनि तक के नाम पर लोगों के नाम हैं. हालांकि आमतौर पर शनि और शुक्र नामों से परहेज किया जाता है.

उत्तर-पश्चिमी भारत में तोप सिंह, लोहा सिंह इत्यादि नाम मिल जाएंगे. हालांकि तोप उस हिसाब से हिंसा का प्रतीक हुआ! कलक्टर सिंह, कप्तान सिंह, नवाब खान आम नाम हैं जो एसपिरेशन को दर्शाते हैं. मेरे गांव का सबसे गरीब आदमी ने अपने बेटे का नाम 'लालबाबू' और 'राजकुमार' रखा था.  इंदिरा गांधी जब दबंग प्रधानमंत्री साबित हो गईं तो भारत भर में राजीव, संजीव, राहुल, प्रियंका नाम रखने की होड़ लग गई. वो युग निशा, अंजलि और अपूर्वा से थोड़ा पीछे का युग था.

कुछ लोग पौराणिक नाम रखते हैं, शायद मन में स्वर्णकाल की आकांक्षा हो या जुड़े रहने का भाव दर्शाना हो अवचेतन में. इधर एक तबका ऐसा है जो ग्लोबल नाम रखता है जिसे भारत से लेकर यूरोप-अमेरिका तक में लोग रिलेट कर लें. जैसे-जैरी, आहाना, सिड इत्यादि-इत्यादि.

कुल मिलाकर आमतौर पर आकांक्षा दर्शानेवाले नाम ज्यादा रखे जाते हैं, हिंसक, नकारात्मक या दुर्भाग्य से जुड़े नाम कम.

किसी ने हास्य में लिखा कि तैमूर(या तिमूर) नाम सैफ-करीना ने इसलिए रखा क्योंकि दोनों के नैन ओमकारा के दौरान लड़े थे और सैफ लंगड़ा त्यागी थे. इतिहास में सबसे मशहूर लंगड़ा तैमूरलंग हुआ तो नाम तैमूर रख दिया गया!

ये भी पढ़ें- राजधानी की सड़कों के नाम में पूरा मुल्क क्यों नहीं दिख रहा?

मैथिली के प्रसिद्ध लेखक हरिमोहन झा की आत्मकथा में एक सीसी झा का जिक्र है. सीसी झा का मूल नाम चंडीचरण झा, लेकिन जब कॉलेज गए तो नाम आउटडेटेड लगा. सो उसे बदलकर सीसी झा कर लिया. एक बार चाचा पहुंचे कॉलेज, तो चंडीचरण झा को खोजने लगे. बहुत मुश्किल से चंडीचरण उर्फ सीसी मिले. वे झेंप रहे थे. सीसी से 'स्पिरिट' उड़ गया!

कुल मिलाकर मेरा मानना है कि कोई व्यक्ति अपने बच्चे का नाम क्या रखे ये उसकी आजादी है. अभी जो हो रहा है, वो आंशिक रूप से उग्र-हिंदूवाद है और आंशिक रूप से इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि हम सोशल मीडिया के द्वारा एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. वरना पता भी नहीं चलता कि कौन-क्या सोच रहा है! आलोचना करने के मामले में न तो पहले के जमाने के लोग दूध के धुले थे, न आगे के होंगे!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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