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सामने आ ही गई भारतीय नारी की ‘परफेक्ट’ तस्वीर

    • आईचौक
    • Updated: 10 फरवरी, 2016 04:24 PM
  • 10 फरवरी, 2016 04:24 PM
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भारतीय नारी कैसी है, और उसे कैसा होनी चाहिए, इस पर हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है. मुंबई की एक कलाकार ने भारतीय नारी पर अपनी सोच को अपने चित्रों में कुछ यूं दर्शाया. ये काफी हद तक सच है, इसलिए कड़वा भी लगेगा.

हर इंसान के जेहन में भारतीय नारी की परिभाषा अलग-अलग होती है. किसी के लिए वो रीति-रिवाजों और संस्कृति से बंधी होती है, तो किसी के लिए वो आजाद सशक्त है. लेकिन फिर भी समाज द्वारा बनाए हुआ एक ढ़ांचे में हर कोई भारतीय सत्री को ढला हुआ देखना चाहता है.

मुंबई की एक डिजाइनर कनिका कौल ने सामाजिक बंधनों में बंधी एक भारतीय नारी को अपनी तस्वीरों में दर्शाया है और उसपर अपने विचार भी रखे हैं. 5 पोस्टर की एक सीरीज के जरिए उन्होंने दिखाने की कोशिश की है कि भारतीय नारी चाहे कितनी भी आत्मनिर्भर क्यों न हो जाए, लेकिन समाज उससे एक ही उम्मीद करता है. अपने हर चित्र के कोने में उन्‍होंने अपने विचार भी रखे जो समाज पर ही कटाक्ष करते हैं.

ये भी पढ़ें- हमारी मॉडर्न जिंदगी की ये है सबसे सटीक और डरावनी कल्‍पना

1. ढेर सारा दहेज लाए-

कोई आदमी ये नहीं चाहता कि उसकी पत्नी खाली हाथ घर में आए. अपने पिता से कहो कि अपनी जेबें ढ़ीली करें. 72 इंच के एलईडी टीवी तक सीमित न रहें. तुम्हें घर में घंटों अकेला छोड़कर पति अपने काम पर कैसे जाएंगे? चमचमाती एक-दो नई गाड़ियां ही आपका रुतबा आपके नये घर में बढ़ाएंगी.

तो अपने माता-पिता की गाढ़ी कमाई को बहाओ. वैसे भी तुमने तो घर छोड़ दिया है, तो वो और किसपर ये सब खर्च करेंगे? खुदपर? क्या सोच है!

हर इंसान के जेहन में भारतीय नारी की परिभाषा अलग-अलग होती है. किसी के लिए वो रीति-रिवाजों और संस्कृति से बंधी होती है, तो किसी के लिए वो आजाद सशक्त है. लेकिन फिर भी समाज द्वारा बनाए हुआ एक ढ़ांचे में हर कोई भारतीय सत्री को ढला हुआ देखना चाहता है.

मुंबई की एक डिजाइनर कनिका कौल ने सामाजिक बंधनों में बंधी एक भारतीय नारी को अपनी तस्वीरों में दर्शाया है और उसपर अपने विचार भी रखे हैं. 5 पोस्टर की एक सीरीज के जरिए उन्होंने दिखाने की कोशिश की है कि भारतीय नारी चाहे कितनी भी आत्मनिर्भर क्यों न हो जाए, लेकिन समाज उससे एक ही उम्मीद करता है. अपने हर चित्र के कोने में उन्‍होंने अपने विचार भी रखे जो समाज पर ही कटाक्ष करते हैं.

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1. ढेर सारा दहेज लाए-

कोई आदमी ये नहीं चाहता कि उसकी पत्नी खाली हाथ घर में आए. अपने पिता से कहो कि अपनी जेबें ढ़ीली करें. 72 इंच के एलईडी टीवी तक सीमित न रहें. तुम्हें घर में घंटों अकेला छोड़कर पति अपने काम पर कैसे जाएंगे? चमचमाती एक-दो नई गाड़ियां ही आपका रुतबा आपके नये घर में बढ़ाएंगी.

तो अपने माता-पिता की गाढ़ी कमाई को बहाओ. वैसे भी तुमने तो घर छोड़ दिया है, तो वो और किसपर ये सब खर्च करेंगे? खुदपर? क्या सोच है!

 2. घर पर ही रहो-

जब तुम्हारे पति ही तुम्हारे लिए सभी निर्णय लेते हैं तो फिर तुम्हें सबके सामने बाहर जाने की क्या जरूरत? तुम बेकार में खुले विचारों की महिला बन जाओगी, और कोई भी ऐसी महिला को पसंद नहीं करता जो 'कुशल/स्मार्ट' या 'अनुभवी' हो, है न? तुम्हारी डिग्री भी तुम्हारे आत्म सम्मान की तरह ही बेकार है.. कम है या ज्यादा, या फिर है ही नहीं. तुम्हें करियर बनाने की क्या जरूरत जब जल्दी ही बच्चे पैदा करने होते हैं. ये मेहनत के काम पुरुषों पर ही छोड़ दो.

तो घर पर रहो, जमकर खाना बनाओ जिससे दिन भर का थका हारा पति जब घर आए तो तुम्हारे खाने की आलोचना करे.

 3. जींस को ना कह दो-

जैसा कि हमारे शास्त्रों में लिखा है कि 'कुत्तों और महिलाओं के लिए आराम हराम है'. हमारे यहां बड़े पर्दे पर महिलाएं साड़ी में झरने के नीचे खड़ी हुई सबसे सेक्सी लगती हैं. पश्चिमी संस्कृति की नकल करने, व्यवहारिक होने और आरामदायक कपड़े पहनने से हमारी भारतीयता का पतन होता है. यहां ये बताने की जरूरत नहीं कि तुम कुछ भी पहनो कुछ पुरुषों को तुम्हें छेड़ने में कोई परेशानी नहीं होती. पर अगर तुम साड़ी में हो तो कोई बुराई नहीं.

तुम्हारे शरीर पर कपड़ों की संख्या तुम्हारे संस्कारी स्कोर के समानुपातिक है. जितना ज्यादा संस्कारी स्कोर होगा, तुम उतनी ही ज्‍यादा परफेक्ट भारतीय नारी बनोगी.

 4. हिंसा को गले लगाओ-

महिलाओं, क्या तुम्हें पता भी है कि कभी-कभी तुम कितना निराश करती हो? मतलब, जब तुम्हारा पति नशे में घर लौटता है तब तुम परेशान हो जाती हो? हिम्मत भी कैसे होती है तुम्हारी? तुम्हें थप्पड़ मारने के अलावा उसके पास कोई और विकल्प भी कहां होता है? ये चोट के निशान तुम्हारे ही कर्मों का फल है, तुम्हारे साथ जो होता है उसके लिए औरों को दोष देना बंद करो.

तुम्हारा पति और हर दूसरा पुरुष तुम्हारे साथ जो चाहे कर सकता है, जब तक कि तुम मानती हो कि तुम इस लायक हो. सीटियां, छेड़छाड़, शारीरिक हिंसा, तुम इन सबके लायक हो. जब तक मरती नहीं, मजबूत बनी रहती हो. और अगर ये कोई मार देता है, तो इसका मतलब है कि तुम ही ने यह चुना.

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5. निष्क्रिय बनो-

महिलाओं, ओ महिलाओं! मजबूत बनने और आवाज उठाने का ये नया जुनून कैसा है? याद रखो, कि तुम महिला हो. अपने दिमाग का इस्तेमाल करने का अधिकार तुम्हें किसने दिया? तुम्हारी भावनाएं तुम्हें सोचने की अनुमति नहीं देतीं. 

तुम्हारा नारीत्व तुम्हारी चुप्पी में ही है. जब तुम चुप होती हो तभी तक तुम सबसे आकर्षक लगती हो. तुम्हारे विचार किसी के लिए भी महत्वपूर्ण नहीं हैं. तुम्हें उन्हें दबा देना चाहिए और लोगों को कभी पता नहीं लगना चाहिए कि तुम क्या सोचती हो. कल्पना करो खुद के विचार वाली एक महिला की. भयानक है न.

समाज कुछ ऐसा ही सोचता है न?

कनिका कौल के इस बेहतरीन काम को इंस्टाग्राम और यहां भी देख सकते हैं. 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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