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स्मार्टफोन ने दूरियां कम कीं, या बढ़ाईं ?

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 16 अक्टूबर, 2015 02:31 PM
  • 16 अक्टूबर, 2015 02:31 PM
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फोन जैसे ही स्मार्टफोन बन गए, हम अपने अपनों से दूर हो गए. एरिक की तस्वीरें देखकर आप सोच में पड़ जाएंगे कि स्मार्टफोन की बदौलत हम वाकई कितना बदल रहे हैं.

अगर आप इस आर्टिकल को अपने फोन पर पढ़ रहे हैं, तो इस आर्टिकल का आशय आप और भी बेहतर तरीके से समझ सकते हैं. अमेरिका के एक फोटोग्राफर एरिक पिकर्सगिल ने अपने प्रोजेक्ट 'Removed' का विषय स्मार्टफोन को चुना है, लेकिन उसे तस्‍वीरों में कहीं भी दिखाया नहीं है. इस प्रोजेक्ट के जरिए उन्होंने ये बताने की कोशिश की है कि किस तरह स्मार्टफोन हम सबको दुनिया से दूर कर रहा है. स्मार्टफोन बनाने का आशय था कि लोग एक दूसरे के करीब आएं, आपस में जुड़ पाएं लेकिन असल में ये अपने मायने खो चुका है. लोग सिर्फ सोशल मीडिया पर एक दूसरे से कनेक्टेड रहते हैं, पर असल जिन्दगी में हमारे बीच का अपनत्व खत्म होता जा रहा है.

 
 
 
 

फोन अपनों से जुड़े रहने के लिए ज़रूरी है और इसके बिना एक दिन भी बिताना हमारे लिए आज संभव नहीं है. लेकिन फोन जैसे ही स्मार्टफोन बन गए, हम अपने अपनों से दूर हो गए.

अगर आप इस आर्टिकल को अपने फोन पर पढ़ रहे हैं, तो इस आर्टिकल का आशय आप और भी बेहतर तरीके से समझ सकते हैं. अमेरिका के एक फोटोग्राफर एरिक पिकर्सगिल ने अपने प्रोजेक्ट 'Removed' का विषय स्मार्टफोन को चुना है, लेकिन उसे तस्‍वीरों में कहीं भी दिखाया नहीं है. इस प्रोजेक्ट के जरिए उन्होंने ये बताने की कोशिश की है कि किस तरह स्मार्टफोन हम सबको दुनिया से दूर कर रहा है. स्मार्टफोन बनाने का आशय था कि लोग एक दूसरे के करीब आएं, आपस में जुड़ पाएं लेकिन असल में ये अपने मायने खो चुका है. लोग सिर्फ सोशल मीडिया पर एक दूसरे से कनेक्टेड रहते हैं, पर असल जिन्दगी में हमारे बीच का अपनत्व खत्म होता जा रहा है.

 
 
 
 

फोन अपनों से जुड़े रहने के लिए ज़रूरी है और इसके बिना एक दिन भी बिताना हमारे लिए आज संभव नहीं है. लेकिन फोन जैसे ही स्मार्टफोन बन गए, हम अपने अपनों से दूर हो गए.

 
 
 
 

एरिक की तस्वीरें देखकर आप सोच में पड़ जाएंगे कि स्मार्टफोन की बदौलत हम वाकई कितना बदल रहे हैं. ऐरिक कहते हैं कि- 'इन तस्वीरों में स्मार्ट फोन का न होना उनके होने से ज्यादा बोलता है.'

 
 
 
 

नॉर्थ कैरोलीना यूनिवर्सिटी से ऐरिक ने फाइन आर्ट्स में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है. उन्हें इस प्रोजेक्ट को करने की प्रेरणा एक घटना से मिली. वो एक दिन एक कैफे में बैठे थे, जहां चार लोगों का एक परिवार भी था, पिता और उनकी दो बेटियों के पास अपने अपने स्मार्टफोन्स थे. वो तीनों उसमें व्यस्त थे. मां, जिनके के पास फोन नहीं था वो खिड़की के बाहर देख रही थीं, वो दुखी थीं, और अपने परिवार के साथ होकर भी खुद को अकेला महसूस कर रही थीं. ऐरिक इस बात से बहुत दुखी हुए और तभी उन्होंने इस प्रोजेक्ट को करने का फैसला किया.

 
 
 
 

ये तस्वीरें हमें आइना दिखा रही हैं कि हम इस तकनीक को अपने जीवन में इतना करीब ले आए कि अब ये हम पर ही हावी हो रही हैं.

 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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