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समाज

हमारी मॉडर्न जिंदगी की ये है सबसे सटीक और डरावनी कल्‍पना

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 02 सितम्बर, 2015 03:31 PM
  • 02 सितम्बर, 2015 03:31 PM
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स्‍टीव कट्स(Steve Cutts) एक ऐसे चित्रकार हैं, जो अपनी कल्‍पना को कैनवास पर उतारना बखूबी जानते हैं. पर उनका अंदाज़ थोड़ा अलग है. स्टीव के चित्रों में निराशा दिखाई देती है, वो इसलिए क्योंकि ये सच्चाई के बेहद करीब हैं.

स्‍टीव कट्स(Steve Cutts) एक ऐसे चित्रकार हैं, जो अपनी कल्‍पना को कैनवास पर उतारना बखूबी जानते हैं. पर उनका अंदाज़ थोड़ा अलग है. स्टीव के चित्रों में निराशा दिखाई देती है, वो इसलिए क्योंकि ये सच्चाई के बेहद करीब हैं.

स्टीव लंदन के एक इलस्ट्रेटर और एनिमेटर हैं जो अपने चित्रों से समाज की दुखद स्थिति की आलोचना करते हैं. लालच, पर्यावरण, जंक फूड, टीवी, स्मार्ट फोन की लत, और जानवरों का शोषण कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन्होंने उनको प्रेरित किया है. उनके चित्रों में हमारे समाज में फैले तनाव, निराशा, और हताशा साफ साफ दिखाई देती है. हम आपके लिए लाए हैं उनके कुछ चुनिंदा चित्र, जिन्हें देखकर आप सोचने को मजबूर हो जाएंगे.

चूहा दौड़- स्टीव अब स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, लेकिन पहले वो कॉर्पोरेट जगत में काम करते थे. महानगरों में कर्मचारियों की आवाजाही को वे ऐसे समझाते हैं-

'Rat Race'

उफ्फ फिर आ गया मंडे- शनिवार और रविवार आराम करने के बाद सोमवार किसी को नहीं भाता. स्‍टीव ने उसे ऐसे समझाया है-

'Monday Again'

रईसज़ादे- गरीबों को दबाकर वो हमेशा ही उनके ऊपर रहे हैं...

स्‍टीव कट्स(Steve Cutts) एक ऐसे चित्रकार हैं, जो अपनी कल्‍पना को कैनवास पर उतारना बखूबी जानते हैं. पर उनका अंदाज़ थोड़ा अलग है. स्टीव के चित्रों में निराशा दिखाई देती है, वो इसलिए क्योंकि ये सच्चाई के बेहद करीब हैं.

स्टीव लंदन के एक इलस्ट्रेटर और एनिमेटर हैं जो अपने चित्रों से समाज की दुखद स्थिति की आलोचना करते हैं. लालच, पर्यावरण, जंक फूड, टीवी, स्मार्ट फोन की लत, और जानवरों का शोषण कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन्होंने उनको प्रेरित किया है. उनके चित्रों में हमारे समाज में फैले तनाव, निराशा, और हताशा साफ साफ दिखाई देती है. हम आपके लिए लाए हैं उनके कुछ चुनिंदा चित्र, जिन्हें देखकर आप सोचने को मजबूर हो जाएंगे.

चूहा दौड़- स्टीव अब स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, लेकिन पहले वो कॉर्पोरेट जगत में काम करते थे. महानगरों में कर्मचारियों की आवाजाही को वे ऐसे समझाते हैं-

'Rat Race'

उफ्फ फिर आ गया मंडे- शनिवार और रविवार आराम करने के बाद सोमवार किसी को नहीं भाता. स्‍टीव ने उसे ऐसे समझाया है-

'Monday Again'

रईसज़ादे- गरीबों को दबाकर वो हमेशा ही उनके ऊपर रहे हैं...

 'The Fatcat'

विकास- लेकिन क्या यही है विकास

'Evolution'

खाना लग गया- कोई थाली नहीं, सिर्फ एक डिब्‍बा खुराक...

'Dinner is served'

फोन के गुलाम- आधुनिकता के नाम पर असल जीवन में हम तकनीक के गुलाम बनते जा रहे हैं, वाकई ऐसी ही है हालत-

'Phone Slaves'

री-साइकलिंग- कुछ भी हो, कैसे भी हो, सिर्फ पैसा कमाने की होड़ हैं-

'Recycling'

वर्कशॉप की असलियत- जैसा सोचा जाता है, वैसा होता कहां है. कर्मचारियों के काम करने के हालात पर स्‍टीव का व्यंग कुछ ऐसा है-

'Santa's real workshop'

शिकार- चूहे को रोटी का टुकड़ा दिखाकर जैसे फांसा जाता है, आज का इंसान भी तो ऐसे ही फंस रहा है-

'The Trap'

खाने पीने के राजा- मांसाहार की हद क्‍या है. शायद जानवरों की लाशों पर इस व्‍यक्‍ति को बैठाकर स्‍टीव यही संदेश देना चाहते हैं-

'The King'

हम हो गये कामयाब- तस्वीर खुद बयां कर रही है, बर्बादी के बाद यही मंजिल तो हासिल होगी-

'The Final Handshake'

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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