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निर्भया और बिलकिस को लेकर दोहरा मापदंड संवेदना का 'रेप' है

    • हफीज़ किदवई
    • Updated: 06 मई, 2017 03:13 PM
  • 06 मई, 2017 03:13 PM
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यहां की आवाम निर्भया और बिल्किस दोनों के अपराधियों की सज़ा पर खुश है. बस ज़रा वो यह तय कर लें कि इन दोनों के अपराधी हमारे अपने घरों में न पैदा हों. हमारा बेटा अकेली औरत को अवसर न समझे. हमारा बेटा दंगो में जिस्म बांटकर खाने वाला न बन जाए.

मेरे नजदीक कल से दो फैसले गुज़रे. एक निर्भया का और दूसरा बिलकिस का. अपने वक़्त के दोनों कुख्यात कांड, दोनों से राजनैतिक भूचाल आया. एक ने मौजूदा सरकार की चूलें हिला कर तहस नहस कर दिया. एक ने मौजूद सरकार को और विराट बना दिया. मैं देखता रहा कि एक ही हैवानियत किसी को राजनैतिक फायदा पहुंचा गई तो किसी की जड़ तक खोद गई. मैं दोनों फैसलों को पढ़ रहा था. एक अख़बार के अंदर के पन्नों में सिमटा था तो दूसरा पहले दो पन्नों पर चमक रहा था. एक में जज के उठाए हर लफ़्ज चस्पा थे तो एक में सिर्फ फैसला था. यह होना कोई बड़ी बात नही है.

ज़ाहिर है एक क्रिया की प्रतिक्रिया थी तो उसमें अपराध हल्का प्रतीत होता है. मगर दूसरा तो जघन्य अपराध था. बिलकीस के मामले में एक बात और थी कि उसकी बच्ची को उसके सामने पटक कर मारा गया. पूरा परिवार क़त्ल किया गया. उसका 5 महीने का गर्भ फाड़ दिया गया. उसका दसयों लोगों ने बलात्कार किया फिर मरा जानकर फेंक दिया, जैसे बेचारी निर्भया को फेंका गया था. पुरुष के हर ज़ुल्म को इन दोनों ने सहा, फिर चला मुकदमों का दौर. एक में देश की मीडिया, सरकार, आम इंसान सब इंसाफ के लिए लड़ते गए जो कल अपने परिणाम को पहुंचा. दूसरे में सरकार समेत सब रोड़े अड़ाते रहे, यहां तक थक कर सुनवाई उस राज्य से बाहर की गई जो लम्बे वक़्त के बाद अपने फैसले पर पहृंचा. दोनों में सज़ा हुई.

अब आते हैं मसले पर. बिलकीस जिसने सब सहा, उसने अंत में अपने अपराधियों के लिए फांसी नही मांगी. मुझे पता है जब कोर्ट में उसके सामने उसका गर्भ फाड़ने वाले खड़े होंगे. बलात्कार करने वाले खड़े होंगे तब उसका दिल बदले के लिए तड़प रहा होगा मगर फिर भी उसने उनके लिए मौत नही मांगी.

यह बड़ी बात थी. दोनों मामले में कोर्ट की तारीफ की उसने न्याय किया. निर्भया केस में मैं महीनो ग़म और दहशत में रहा. दिल्ली में अनशन किया. भूखे पेट लड़ता रहा कि...

मेरे नजदीक कल से दो फैसले गुज़रे. एक निर्भया का और दूसरा बिलकिस का. अपने वक़्त के दोनों कुख्यात कांड, दोनों से राजनैतिक भूचाल आया. एक ने मौजूदा सरकार की चूलें हिला कर तहस नहस कर दिया. एक ने मौजूद सरकार को और विराट बना दिया. मैं देखता रहा कि एक ही हैवानियत किसी को राजनैतिक फायदा पहुंचा गई तो किसी की जड़ तक खोद गई. मैं दोनों फैसलों को पढ़ रहा था. एक अख़बार के अंदर के पन्नों में सिमटा था तो दूसरा पहले दो पन्नों पर चमक रहा था. एक में जज के उठाए हर लफ़्ज चस्पा थे तो एक में सिर्फ फैसला था. यह होना कोई बड़ी बात नही है.

ज़ाहिर है एक क्रिया की प्रतिक्रिया थी तो उसमें अपराध हल्का प्रतीत होता है. मगर दूसरा तो जघन्य अपराध था. बिलकीस के मामले में एक बात और थी कि उसकी बच्ची को उसके सामने पटक कर मारा गया. पूरा परिवार क़त्ल किया गया. उसका 5 महीने का गर्भ फाड़ दिया गया. उसका दसयों लोगों ने बलात्कार किया फिर मरा जानकर फेंक दिया, जैसे बेचारी निर्भया को फेंका गया था. पुरुष के हर ज़ुल्म को इन दोनों ने सहा, फिर चला मुकदमों का दौर. एक में देश की मीडिया, सरकार, आम इंसान सब इंसाफ के लिए लड़ते गए जो कल अपने परिणाम को पहुंचा. दूसरे में सरकार समेत सब रोड़े अड़ाते रहे, यहां तक थक कर सुनवाई उस राज्य से बाहर की गई जो लम्बे वक़्त के बाद अपने फैसले पर पहृंचा. दोनों में सज़ा हुई.

अब आते हैं मसले पर. बिलकीस जिसने सब सहा, उसने अंत में अपने अपराधियों के लिए फांसी नही मांगी. मुझे पता है जब कोर्ट में उसके सामने उसका गर्भ फाड़ने वाले खड़े होंगे. बलात्कार करने वाले खड़े होंगे तब उसका दिल बदले के लिए तड़प रहा होगा मगर फिर भी उसने उनके लिए मौत नही मांगी.

यह बड़ी बात थी. दोनों मामले में कोर्ट की तारीफ की उसने न्याय किया. निर्भया केस में मैं महीनो ग़म और दहशत में रहा. दिल्ली में अनशन किया. भूखे पेट लड़ता रहा कि इंसाफ चाहिए. बिलकीस के केस के वक़्त स्कूल में था. बुरा लगता था मगर ज़्यादा पता नही था. फिर तीस्ता से मिला और लम्बा दौर उनके साथ चला. खैर मैं सियासत में देखता रह गया कि एक ही अपराध हमे बुलंद बना देता है और एक ही अपराध हमे नीचे ढकेल देता है.

मैं फैसलों की जड़ में नहीं जाना चाहता बस इतना कहना चाहता हूं कि एक करिश्माई लीडर विपरीत परिस्थिति को भी अनुकूल बना लेता है और एक उसमें ढह जाता है. जिस लीडर को संवेदना बेचना आ गया उसे कोई फौरन तो नहीं हरा सकता. मैं बार-बार कहता हूं कि सियासत करनी है तो सियासत सीखो. मुद्दों को मुनाफे में बदलने का हुनर सीखो. मैं जनता को कभी नहीं मानता कि वो दो आंखों के सिवा भी कुछ देख सकती है. वोह भीड़ है, सिर्फ भीड़. बस उसमें उतरने का हुनर सीखो. लोग तुम्हारे बताए मन्त्र को ही सच मानेंगे, तुम उनकी फिक्र मत करना. वो खुद तुम्हारे समर्थन में ऐसे तर्क लाएंगे जो तुम्हें नहीं पता होंगे. इसलिए बस अपने दिमाग का भरपूर इस्तेमाल करो.

हां जो हमेशा नकारात्मक रहते हैं वो सीखें की हमारे देश में कभी न कभी तो न्याय मिलेगा ही. हर अपराध का हिसाब किताब होगा. अगर इसी भूमि में अन्याय हुआ है तो यही भूमि न्याय दिलाएगी. तुमको फ़ख्र होना चाहिए कि देश ने दोनों फैसले खुले दिल से स्वीकारे हैं. अभी हमारे देश की आंख में इतना पानी है कि उसे बिलकीस से उतनी ही मोहब्बत है जितनी निर्भया से, यहां की आवाम दोनों के अपराधियों को सज़ा पाने पर खुश है. बस ज़रा वो यह तय कर लें कि इन दोनों के अपराधी हमारे अपने घरों में न पैदा हों. हमारे घर का बेटा किसी बेटी का बलात्कार न करे, न गर्भ फाड़े. हमारा बेटा अकेली औरत को अवसर न समझे. हमारा बेटा दंगो में जिस्म बांटकर खाने वाला न बन जाए. जिस दिन यह होगा उस दिन हर निर्भया और बिलकीस हमारे आंगन में बेखौफ मुस्कुराती रहेगी.

मुझे मेरी माटी पर फ़ख्र है कि नाउम्मीदी का चाहे जो माहौल बनाए, चाहे अपराधी कितना ही बड़ा ताकतवर हो जाए. किसी मोड़ पर उसके गुनाह उसके चेहरे को बदरंग ज़रूर करेंगे. तब उसके साथ कोई नहीं होगा सिवाए उसके गुनह के. यक़ीन न हो तो एक सैर जेल की कर आना. दंगाई, बलात्कारी, हत्यारे कोठरियों में अकेले सिसक रहे हैं और उन्हें इस्तेमाल करने वाले शानदार गाड़ियों में घूम रहे हैं. यह जान लो खून जिसके हाथ में लगेगा, अपराधी वही है. बाकि सब निर्दोष. अपने को इस्तेमाल होने से बचो और शरीर के सबसे ऊपरी अंग का भरपूर इस्तेमाल करो. यह दिमाग तुम्हें सियासत की गुत्थियां सुलझाने में मदद करेगा और ऊंचा बढ़ाएगा. दोनों फैसलों ने देश को बेहद मज़बूत किया है, न्याय को सलाम. इनके लिए लड़ने वालों को सलाम.

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